गुरुग्राम: 2018 में चौधरी देवीलाल के परिवार में विभाजन हुआ, जिसके कारण हरियाणा की एक प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) का उदय हुआ, जो दुष्यंत चौटाला द्वारा जननायक जनता पार्टी (JJP) के गठन के बाद लड़खड़ा गई.
अब लगभग पांच साल से अधिक समय से जेजेपी (परपोते दुष्यंत की पार्टी) और आईएनएलडी (देवी लाल के पोते अभय चौटाला के नेतृत्व वाली पार्टी) दोराहे पर फंस गए हैं — दोनों पार्टियां जो पूर्व उप-प्रधानमंत्री की राजनीतिक विरासत पर दावा करती हैं, उन्हें लोकसभा चुनावों में सिर्फ 2.61 प्रतिशत वोट मिले हैं
आईएनएलडी ने 7 सीटों पर चुनाव लड़ा जिसे केवल 1.84 प्रतिशत वोट मिले और जेजेपी जिसने सभी 10 सीटों पर चुनाव लड़ा, उसे 0.87 प्रतिशत वोट मिले. दोनों पार्टियां अपना खाता खोलने में विफल रहीं, जबकि कांग्रेस और भाजपा ने पांच-पांच सीटें जीतीं.
क्या लोकसभा के नतीजे पूर्व उप-प्रधानमंत्री देवी लाल के वंश के अंत का संकेत देते हैं जो 1966 में हरियाणा के अस्तित्व में आने के बाद से एक प्रमुख राजनीतिक ताकत रहा है?
देवीलाल के भतीजे कमल वीर सिंह जो 1987 से 1989 तक उनके विशेष कार्याधिकारी (ओएसडी) रहे थे, जब दिवंगत नेता राज्य के मुख्यमंत्री थे, ने कहा, “मुझे अब चौधरी देवी लाल के वंश के पुनरुद्धार की कोई संभावना नहीं दिखती है. यह अस्तित्व का सवाल है, खासकर आईएनएलडी के लिए. मुझे देखना होगा कि आईएनएलडी एक राजनीतिक दल के रूप में अपनी पहचान बरकरार रख पाती है या नहीं.”
राजनीतिक हलकों में के.वी. सिंह के नाम से मशहूर सिंह की देवी लाल के बड़े बेटे ओम प्रकाश चौटाला से नहीं बनती थी और वे अंततः कांग्रेस में शामिल हो गए. वे 2009 और 2014 में दो बार डबवाली से चुनाव लड़े, हालांकि वे असफल रहे.
2019 में कांग्रेस ने सिंह के बेटे अमित सिहाग को मैदान में उतारा, जिन्होंने डबवाली में देवी लाल के सबसे छोटे बेटे जगदीश चंद्र के बेटे आदित्य देवीलाल को हराया.
सिंह ने दिप्रिंट से कहा, “विधानसभा चुनाव इनेलो के लिए अस्तित्व का सवाल होगा. अगर पार्टी को चुनाव आयोग के मानदंडों के अनुसार, पर्याप्त प्रतिशत वोट नहीं मिलते हैं, तो वो अपना चुनाव चिन्ह चश्मा खो देगी. अगर ऐसा होता है, तो पार्टी के लिए चौधरी देवी लाल के समय से अपने पास मौजूद चुनाव चिन्ह को खोना बहुत बड़ी शर्म की बात होगी.”
उन्होंने कहा कि यही कारण है कि इनेलो ने चौटाला के गृह जिले सिरसा में भावनात्मक अपील की कि कम से कम एक वोट परिवार को दें ताकि पार्टी अपना चुनाव चिन्ह बचा सके.
सिंह चुनाव चिन्ह (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के तहत निर्धारित नियमों का हवाला दे रहे थे. पिछले तीन चुनावों — 2019 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनावों में, इनेलो आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ रही है, जिससे खुद को राज्य पार्टी के रूप में अपना दर्जा खोने का खतरा है.
उन्होंने कहा कि हरियाणा चुनाव जेजेपी के लिए कोई उम्मीद लेकर आने की संभावना नहीं है क्योंकि लोग दुष्यंत से नाराज़ हैं क्योंकि उन्होंने 2019 में सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ 10 सीटें जीतने के बाद भाजपा के साथ गठबंधन करके उनके विश्वास को “धोखा” दिया है.
सिंह ने दिप्रिंट से कहा, “जेजेपी के अधिकांश नेता भी पार्टी छोड़ चुके हैं. अगर पार्टी 2029 में नए चेहरों के साथ आती है और लोगों का दिल जीतती है, तभी जेजेपी किसी पुनरुद्धार के बारे में सोच सकती है.”
हालांकि, सोमवार को यमुनानगर में पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए अभय चौटाला ने कहा कि उनकी पार्टी या उसके चुनाव चिह्न को कोई खतरा नहीं है.
उन्होंने कहा, “एक बार चुनाव चिह्न जारी होने के बाद उसे तब तक वापस नहीं लिया जाता, जब तक पार्टी उसे वापस नहीं कर देती.”
छह बार विधायक रहे संपत सिंह, जिन्होंने 1977 से 1979 तक देवीलाल के मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनके राजनीतिक सचिव के रूप में काम किया था, ने भी महसूस किया कि वंशवाद के फिर से उभरने की संभावना नहीं है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “देवीलाल की विरासत जारी रहेगी, क्योंकि पूर्व उप-प्रधानमंत्री एक बड़े और बड़े दिल वाले नेता थे. उनके शिष्य पार्टी लाइन से हटकर राजनीति में सफल रहे हैं — कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष उदयभान, हिसार के सांसद जय प्रकाश, भिवानी-महेंद्रगढ़ के सांसद धर्मबीर सिंह, बेरी से कांग्रेस विधायक रघुबीर कादियान, पूर्व विधायक आनंद सिंह दांगी और अशोक अरोड़ा, लेकिन जहां तक उनके वंश का सवाल है, मुझे नहीं लगता कि इसके फिर से उभरने की कोई संभावना है.”
संपत सिंह ने देवीलाल की सरकार में 1987 से 1989 तक गृह मंत्री और 2000 से 2005 तक ओ.पी. चौटाला के तहत वित्त मंत्री के रूप में भी काम किया था.
उन्होंने कहा कि देवीलाल परिवार के सदस्य खुद ही अपनी स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं.
सिंह ने कहा, “जैसे-जैसे देवीलाल के परिवार के अधिक सदस्य चुनावी राजनीति में उतरे, इनेलो एक राजनीतिक पार्टी के बजाय एक पारिवारिक उद्यम में तब्दील होती गई. देवीलाल ने खुद इस प्रवृत्ति का विरोध किया और हमेशा अपने परिवार के सदस्यों को पार्टी के मामलों में हस्तक्षेप करने से हतोत्साहित किया. यही कारण है कि वह इनेलो (और इसके पिछले संस्करणों) को व्यापक आधार देने में सफल रहे.”
उन्होंने आगे कहा, “हालांकि, एक बार जब उनके परिवार के सदस्यों ने कमान संभाली, तो उन्होंने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को नज़रअंदाज़ करना शुरू कर दिया, जिससे दलबदल हुआ. आंतरिक सत्ता संघर्ष ने पार्टी को और कमज़ोर कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप 2018 में जेजेपी का गठन हुआ. 2024 तक, इनेलो और जेजेपी दोनों को लोगों ने नकार दिया है.”
तीन बार लोकसभा सांसद और दो बार मुख्यमंत्री रहने के अलावा, देवीलाल 2001 में अपनी मृत्यु के समय राज्यसभा सांसद थे. वे आठ बार विधायक रह चुके थे. इसी तरह, ओ.पी. चौटाला, उनके बेटे, पोते और बहू ने कुल चार बार सांसद और 15 बार विधायक के रूप में चुनाव लड़ा है.
देवीलाल के चार बेटे – ओ.पी. चौटाला, प्रताप सिंह चौटाला, रणजीत सिंह और जगदीश सिंह, जबकि रणजीत सिंह भाजपा के साथ हैं और हिसार से चुनाव लड़े, लेकिन देवीलाल की राजनीतिक पार्टी पर नियंत्रण ओ.पी. चौटाला के पास रहा.
उनके दो बेटे अजय और अभय चौटाला दिसंबर 2018 में अलग हो गए और वे क्रमशः जेजेपी और इनेलो के प्रमुख हैं. दुष्यंत, दिग्विजय (अजय चौटाला के बेटे) के साथ-साथ अभय के बेटे करण और अर्जुन चौटाला राजनीति में सक्रिय हैं.
हालांकि, इनेलो महासचिव अभय सिंह चौटाला ने कहा कि आम और राज्य चुनावों में मुद्दे और कारक अलग-अलग थे और आगामी विधानसभा चुनाव पूरी तरह से अलग मुद्दों पर लड़ा जाएगा.
उन्होंने कहा, “2024 का संसदीय चुनाव भाजपा और इंडिया ब्लॉक के बीच लड़ा गया था. कुछ लोग थे जिन्होंने मोदी को वोट दिया और कुछ ऐसे भी थे जो मोदी को हराना चाहते थे और इसलिए उन्होंने इंडिया ब्लॉक को वोट दिया…इस बार लोग राज्य से जुड़े मुद्दों पर वोट करेंगे और इसलिए इनेलो बहुत अच्छा प्रदर्शन करेगी.”
उन्होंने ये भी कहा कि पार्टी ने सोमवार से जिला स्तरीय बैठकें शुरू कर दी हैं.
जेजेपी के प्रदर्शन पर बात करते हुए इनेलो नेता ने कहा कि 2019 के विधानसभा चुनाव में 15 प्रतिशत वोट शेयर पाने का दावा करने वाली पार्टी इस चुनाव में 1 प्रतिशत से भी कम पर सिमट गई.
चंडीगढ़ में जेजेपी के कार्यालय सचिव रणधीर झांझरा ने कहा कि पार्टी ने अपने सभी निकाय भंग कर दिए हैं और नए पदाधिकारियों की नियुक्ति जुलाई में शुरू होगी. उन्होंने कहा कि पार्टी इस बार कुछ सीटें जीतने के लिए अच्छा प्रदर्शन करेगी और 2029 में अपनी सरकार बनाने का लक्ष्य रखा है.
हरियाणा में अक्टूबर में चुनाव होंगे. वर्तमान में हरियाणा विधानसभा में जेजेपी के 10 विधायक हैं, जबकि अभय सिंह चौटाला सदन में अकेले इनेलो प्रतिनिधि हैं.
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