नई दिल्ली: उपचुनाव में बीजेपी द्वारा मैदान में उतारे गए एक मुस्लिम उम्मीदवार ने शुक्रवार को त्रिपुरा के अल्पसंख्यक बहुल बॉक्सानगर विधानसभा क्षेत्र में बड़ी जीत दर्ज की, जिसके बाद महज छह महीने पहले यह सीट जीतने वाली सीपीआई (एम) ने आरोप लगाया कि यह चुनाव में हुई बड़ी धांधली और मतदाताओं को डराने का नतीजा है.
हालांकि, बीजेपी ने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि बॉक्सानगर और धनपुर में उसके चुनावी प्रदर्शन ने राज्य की राजनीति में एक नए युग की शुरुआत की है. बीजेपी का कहना है कि राज्य में “तुष्टिकरण” की राजनीति को साथ नहीं दिया गया और इससे यह संकेत मिलता है कि मुस्लिम समुदाय ने भी बीजेपी पर अपना विश्वास जताया है. बीजेपी नेताओं का मानना है कि यह “सबका साथ, सबका विकास” का परिणाम है.
2011 की जनगणना के अनुसार, बॉक्सनगर की आबादी में 50 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम हैं.
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा ने शुक्रवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, “सालों से चली आ रही तुष्टीकरण की राजनीति आज समाप्त हो गई. एक समुदाय को एक वोटिंग ब्लॉक में सीमित करने की यह बांटो और राज करो की नीति और तुष्टिकरण अब काम नहीं करेगा. अल्पसंख्यक समुदाय ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे का जवाब देते हुए हमें अपना समर्थन दिया है.”
बीजेपी ने धनपुर सीट को अपने पास बरकरार रखा और बॉक्सानगर सीट सीपीआई (एम) से छीन लिया. बॉक्सनगर सीट पर वोट शेयर में नाटकीय वृद्धि देखी गई. फरवरी 2023 के विधानसभा चुनावों में यहां 37.76 प्रतिशत पड़े थे, इस उपचुनाव में वह बढ़कर 87.97 प्रतिशत हो गया.
दूसरी ओर, सीपीआई (एम) ने कहा कि उपचुनाव के नतीजे लोगों की भावनाओं को नहीं दर्शाते हैं.
सीपीआई (एम) के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी ने शुक्रवार को संवाददाताओं से कहा, “परिणाम से पता चलता है कि बड़ी धांधली हुई है. महज छह महीने पहले, हमारे उम्मीदवार ने बोक्सानगर में लगभग 5,000 वोटों से जीत हासिल की थी. और इस चुनाव में हमारा उम्मीदवार केवल 3,000 वोट ही प्राप्त कर सका. यह स्पष्ट रूप से मतदाताओं की पसंद को नहीं दिखाता है. बीजेपी ने त्रिपुरा को निरंकुश शासन की प्रयोगशाला बना दिया है.”
बॉक्सानगर का परिणाम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि त्रिपुरा में, कांग्रेस- जो 28 सदस्यीय INDIA गठबंधन का हिस्सा है- ने गैर-बीजेपी वोटों में संभावित विभाजन को रोकने में मदद करने के लिए कोई उम्मीदवार नहीं उतारा. यह एक ऐसी रणनीति है जिसे विपक्ष 2024 के आम चुनावों में बीजेपी के खिलाफ अपनी संभावनाओं को मजबूत करने के लिए कहीं और दोहराने की योजना बना रहा है. हालांकि, बॉक्सानगर परिणाम यह दिखाता है कि कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच समन्वय के चलते में बीजेपी ने यह सीट जीत ली और INDIA गठबंधन प्रभावी ढंग से मुकाबला करने में असमर्थ रहा.
मौजूदा सीपीआई (एम) विधायक सैमसुल हक की मृत्यु के कारण बॉक्सानगर उपचुनाव जरूरी हो गया था. हक के बेटे मिजान हुसैन ने सीपीआई (एम) के टिकट पर उपचुनाव लड़ा लेकिन बीजेपी के तफज्जल हुसैन से हार गए.
बॉक्सनगर में INDIA के लिए क्या गलत हुआ?
वामपंथियों और कांग्रेस के बीच दरार तब देखने को मिली, जब वामपंथियों ने उन दो सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा की, जहां 5 सितंबर को पांच अन्य विधानसभा सीटों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, केरल और झारखंड की एक-एक सीट पर उपचुनाव हुए थे.
कांग्रेस ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए सीपीआई (एम) पर बिना बातचीत के उम्मीदवारों की घोषणा करने का आरोप लगाया, जबकि दोनों दलों और राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी TIPRA मोथा के बीच एक आम अभियान रणनीति तैयार करने के लिए बातचीत चल रही थी.
आखिरकार, हालांकि कांग्रेस सीपीआई (एम) उम्मीदवार के पक्ष में किसी भी रैली को संबोधित करने से दूर रही और इसके बजाय कांग्रेस नेताओं ने लोगों से INDIA गठबंधन के लिए वोट करने की अपील की. हालांकि, नतीजों की घोषणा के बाद भी कांग्रेस ने अपनी नाराजगी नहीं छिपाई.
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष आशीष साहा ने शुक्रवार को कहा, “यह एक सच्चाई है कि त्रिपुरा में बीजेपी के शासन में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव असंभव हो गया है. लेकिन मैं यह भी कहना चाहता हूं कि सीपीआई (एम) को सभी विपक्षी दलों को एक साथ लेने में अधिक सक्रिय होना चाहिए था.”
इसके अलावा, इस सीट से किसी भी उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारने के कांग्रेस के फैसले के कारण बांग्लादेश की सीमा से लगे इस क्षेत्र में उसका संगठनात्मक आधार भी ढह गया.
बॉक्सानगर से दो बार के कांग्रेस विधायक रह चुके बिलाल मिया ने 24 अगस्त को मुख्यमंत्री माणिक साहा की उपस्थिति में कांग्रेस छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए. मिया ने राज्य में कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष के साथ-साथ 1988 और 1993 के बीच राज्य में पार्टी के नेतृत्व वाली पिछली सरकार में मंत्री के रूप में कार्य किया था.
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राज्य के एक शीर्ष बीजेपी नेता ने दिप्रिंट को बताया कि मिया के बीजेपी में शामिल होने से नतीजे प्रभावित हुए. उन्होंने कहा, “सबसे पहले, अल्पसंख्यक जानते हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए, सरकार अगले पांच वर्षों तक नहीं बदलेगी. इसलिए उनके लिए फिर से सीपीआई (एम) का समर्थन करने का कोई मतलब नहीं था. दूसरा, जब उन्होंने मिया को बीजेपी में शामिल होते देखा, तो इससे उन्हें कुछ हद तक आत्मविश्वास मिला. हमने इलाके में एक अभियान भी चलाया और लोगों को बताया कि विकास का कोई धर्म नहीं होता.”
बीजेपी में मिया का स्वागत करते हुए, साहा ने दावा किया था कि “8,000 से अधिक विपक्षी मतदाता” पूर्व कांग्रेस नेता के हिसाब से चलते हैं जिसके चलते बॉक्सानगर में बीजेपी की आसानी से जीत मिल सकती है.
दो दिन बाद, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और TIPRA मोथा प्रमुख प्रद्योत देबबर्मा के बीच एक बैठक ने इस मुद्दों पर और संशय पैदा कर दी. मोथा, जिसके फरवरी में हुए चुनावों में 13 विधायक निर्वाचित हुए थे, ने उपचुनावों में उम्मीदवार नहीं उतारे. मोथा ने अपने समर्थकों से मतदान करते समय अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने का आग्रह किया.
हालांकि, आदिवासियों के अधिकारों को सुरक्षित करने की मोथा की मांगों को लेकर देबबर्मा की शाह के साथ बैठक का समय, उपचुनावों से पहले एक चर्चा का विषय बन गया.
‘माकपा विश्वास जगाने में विफल’
बीजेपी के टिकट पर बॉक्सानगर से जीत हासिल करने वाले तफज्जल हुसैन भी इस क्षेत्र में कांग्रेस का एक लोकप्रिय चेहरा थे.
दिप्रिंट से बात करते हुए, त्रिपुरा कांग्रेस के एक नेता ने बताया कि कैसे 2013 के विधानसभा चुनावों में बॉक्सनगर से हुसैन को उम्मीदवार नहीं बनाने के पार्टी के फैसले ने हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था.
कांग्रेस नेता ने कहा, “उसकी क्षेत्र में अच्छी पकड़ है. उनका परिवार आर्थिक रूप से मजबूत है. राजनीतिक रूप से भी सक्रिय है और पारंपरिक रूप से कांग्रेस से जुड़ा हुआ था. इस क्षेत्र में कांग्रेस की गिरावट 2018 के विधानसभा चुनावों से ही शुरू हो गई थी जब उसका वोट शेयर घटकर 5.43 प्रतिशत रह गया था. बीजेपी ने 2018 में भी बॉक्सनगर में 34.45 प्रतिशत वोट हासिल किए थे.”
एक अन्य कांग्रेस नेता ने कहा, “इसके विपरीत, सीपीआई (एम) उम्मीदवार मिज़ान हुसैन लोगों के बीच विश्वास जगाने में विफल रहे. मतदान के दिन भी वह घर पर ही थे. इस तरह से आप उस चुनाव मशीनरी का मुकाबला नहीं कर सकते जो बीजेपी के नियंत्रण में उतनी प्रभावी है.” कांग्रेस नेता की टिप्पणी का TIPRA मोथा के एक पदाधिकारी ने भी समर्थन किया था.
शुक्रवार को, देबबर्मा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया, जिसमें सुझाव दिया गया कि सीपीआई (एम) के अभियान में बहुत कुछ बाकी है. उन्होंने लिखा, “हमें स्वायत्त जिला परिषद चुनाव के दौरान धांधली का सामना करना पड़ा. मोहनपुर में मुझ पर व्यक्तिगत हमला किया गया लेकिन पीछे नहीं हटे. नतीजा यह निकला कि हम जीत गए. जीत, डर और ताकत मन में है, शिकायत करने से कोई फायदा नहीं होगा. आखिरी ओवर फेंके जाने तक हार मान लेना दिखाता है कि आप अपने कार्यकर्ताओं की कितनी परवाह करते हैं और 25 साल तक त्रिपुरा पर राज करने वाली पार्टी की हालत क्या हो गई है.”
We faced rigging during ADC election -I was personally attacked in Mohanpur but Tipra did not back down . Result we won.
When I was the congress president in 2019 we were attacked -we did not back out and put polling agents – Result from 1 percent our share went to 27%.
Last…— Pradyot_Tripura (@PradyotManikya) September 8, 2023
देबबर्मा के वामपंथियों से नाराज होने के कारण भी हैं क्योंकि 5 सितंबर के उपचुनावों से पहले, पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार सहित शीर्ष वामपंथी नेताओं ने बॉक्सानगर और धनपुर में रैलियों को संबोधित किया था, और TIPRA मोथा पर बीजेपी को आगे बढ़ाने में सहायता करने का आरोप लगाया था.
(संपादन: ऋषभ राज)
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