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Tuesday, 19 August, 2025
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VP पद के लिए INDIA गठबंधन के उम्मीदवार—‘वैचारिक लड़ाई’ छेड़ने और NDA सहयोगियों को असहज करने की कोशिश

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी. सुदर्शन रेड्डी एनडीए उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. वे असम में गुवाहाटी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं, उसके बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचे.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को मंगलवार को विपक्ष का साझा उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया गया. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के आवास पर हुई बैठक के बाद यह घोषणा हुई. खरगे ने कहा कि यह फैसला “वैचारिक लड़ाई” लड़ने के सामूहिक संकल्प को दर्शाता है.

सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने महाराष्ट्र के राज्यपाल और आरएसएस पृष्ठभूमि वाले सी.पी. राधाकृष्णन को मैदान में उतारा है.

विपक्ष ने बयान जारी कर कहा, “यह उपराष्ट्रपति चुनाव वैचारिक लड़ाई है. विपक्षी दलों ने श्री बी. सुदर्शन रेड्डी गरु को अपना साझा उम्मीदवार बनाया है…क्योंकि वे पूरी तरह उन मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्होंने हमारे आजादी के आंदोलन को गहराई से आकार दिया और जिन पर हमारा संविधान और लोकतंत्र आधारित है. आज ये मूल्य हमले में हैं, इसलिए हम सब मिलकर इस चुनाव को लड़ने का दृढ़ संकल्प लेते हैं.”

शुरुआत में इंडिया गठबंधन की प्रमुख पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) चाहती थी कि उम्मीदवार तमिल हों ताकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा तमिलनाडु से राधाकृष्णन को उतारने के राजनीतिक लाभ को काटा जा सके, लेकिन एक वरिष्ठ सांसद ने दिप्रिंट को बताया, “यह समझ बनी कि सिर्फ रिएक्टिव दिखने के बजाय विपक्ष को एनडीए की कमजोरियों का फायदा उठाना चाहिए.”

घोषणा के बाद खरगे के आवास पर हुई बैठक में शामिल डीएमके सांसद कनिमोझी ने कहा कि विपक्ष ने संविधान का सम्मान करने वाले चेहरे को चुना है ताकि “हिंदुत्व और आरएसएस पृष्ठभूमि” वाले उम्मीदवार का मुकाबला किया जा सके.

उन्होंने कहा, “जो लोग इस देश की परवाह करते हैं वे निश्चित ही जस्टिस रेड्डी को वोट देंगे. सिर्फ इसलिए कि आपके (भाजपा के) उम्मीदवार तमिलनाडु से आते हैं, इसका मतलब यह नहीं कि आप तमिलनाडु, तमिल भाषा या राज्य के मूल्यों की परवाह करते हैं. आपने फंड नहीं दिए; हिंदी थोप रहे हैं; इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश कर रहे हैं. आपको तमिलनाडु के लोगों का कोई सम्मान नहीं है.”

आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी), जो एनडीए की अहम सहयोगी है और उसकी प्रतिद्वंद्वी वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) पहले ही राधाकृष्णन के समर्थन का ऐलान कर चुके हैं. विपक्ष का यह कदम क्या दोनों में से किसी पार्टी के रुख को बदल पाएगा, यह देखना बाकी है.

उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए लोकसभा और राज्यसभा के सांसद मिलकर 782 सदस्यीय इलेक्टोरल कॉलेज बनाते हैं. जीत के लिए उम्मीदवार को 392 वोट चाहिए. लोकसभा में एनडीए के पास 293 सांसद हैं और विपक्ष के पास लगभग 234 सांसदों का समर्थन है. राज्यसभा में एनडीए को लगभग 130 सांसदों का समर्थन हासिल है.

तेलुगु पार्टियों में टीडीपी के पास लोकसभा में 16 और राज्यसभा में 2 सांसद हैं. वाईएसआरसीपी के पास लोकसभा में 4 और राज्यसभा में 7 सांसद हैं. तेलंगाना की एक और तेलुगु पार्टी, भारत राष्ट्र समिति, राज्यसभा में 3 सांसदों के जरिए प्रतिनिधित्व करती है.

खरगे ने विपक्षी नेताओं के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में जस्टिस सुदर्शन रेड्डी को भारत के सबसे प्रतिष्ठित और प्रगतिशील न्यायविदों में से एक बताया. सुप्रीम कोर्ट में 2007 से 2011 तक जज रहने से पहले रेड्डी गुवाहाटी हाई कोर्ट (असम) के मुख्य न्यायाधीश और आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में जज रह चुके हैं.

2013 में वे गोवा के पहले लोकायुक्त बने लेकिन कुछ ही महीनों बाद निजी कारणों का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया.

खास बात यह है कि 2009 में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने जज इनक्वायरी एक्ट के तहत एक तीन सदस्यीय समिति बनाई थी ताकि कलकत्ता हाई कोर्ट के जज सौमित्रो सेन पर लगे आरोपों की जांच हो सके. इस समिति का नेतृत्व जस्टिस रेड्डी ने ही किया था.

तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने कहा कि आम आदमी पार्टी—जो अब औपचारिक तौर पर इंडिया गठबंधन का हिस्सा नहीं है उसने भी जस्टिस रेड्डी का समर्थन किया है.

खरगे ने बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “यह सर्वसम्मति से हुआ चुनाव था.”

इस बैठक में एनसीपी (एसपी) प्रमुख शरद पवार, राजद सांसद मनोज झा, डीएमके सांसद तिरुचि शिवा (जिनका नाम भी संभावित उम्मीदवारों में शामिल था), सीपीआई(एम) महासचिव एम.ए. बेबी, शिवसेना (यूबीटी) के संजय राउत और सपा सांसद धर्मेंद्र यादव मौजूद थे.

2022 के उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ ने विपक्षी उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को 346 वोटों से हराया था यह 1997 के बाद से सबसे बड़ा अंतर था. उस समय तृणमूल कांग्रेस ने विपक्ष से अलग होकर मतदान से दूरी बना ली थी, यह कहते हुए कि कांग्रेस बिना किसी चर्चा के सहयोगियों पर अपना फैसला थोप रही थी.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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