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Monday, 20 May, 2024
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राजस्थान की ट्रेंडिंग सीटें और क्यों पायलट को अपने साथ पाकर खुश हैं CM अशोक गहलोत

सचिन पायलट के निर्वाचन क्षेत्र टोंक की तरह, राजस्थान में 18 और सीटें हैं, जहां 1998 से राज्य में सरकार गठन के अनुरूप बारी-बारी से कांग्रेस और भाजपा को वोट दिया गया है.

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नई दिल्ली: कांग्रेस आलाकमान ने इस साल मई में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट के बीच समझौता करवा दिया था. गहलोत, जिन्होंने कभी सीएम को गिराने की असफल कोशिश के लिए पायलट को ‘गद्दार’ कहा था — उन्होंने अब कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि वह दोनों साथ मिलकर काम करेंगे.

चुनाव परिणाम के आंकड़े यह समझाने के लिए पर्याप्त हैं कि इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले गहलोत अपने पूर्व डिप्टी को अपने साथ पाकर क्यों खुश हैं.

दरअसल, पायलट टोंक सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं – जो राज्य की सबसे महत्वपूर्ण सीटों में से एक है.

दिप्रिंट द्वारा देखे गए चुनाव आयोग (ईसी) के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में सरकार गठन के अनुरूप, 200-सदस्यीय विधानसभा में 19 सीटों पर 1998 से वैकल्पिक रूप से कांग्रेस और भाजपा को वोट दिया गया है. इससे पता चलता है कि जो पार्टी इन 19 सीटों पर जीत हासिल करेगी वह राज्य में सरकार बनाएगी.

इनमें से प्रत्येक महत्वपूर्ण सीट के लिए – जो कि चुनाव परिणाम का रुझान दे सकती है – दिप्रिंट ने चुनाव आयोग के आंकड़ों पर नज़र डाली है कि कब से उन सीटों के परिणाम पूरे राज्य के परिणाम के साथ मेल खा गए हैं.

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उदाहरण के लिए, कहा जा सकता है कि टोंक 1985 से एक मजबूत सीट रही है और पिछले चार चुनावों में इसने कांग्रेस और भाजपा को बारी-बारी से जीतने का अवसर दिया है, जो विधानसभा परिणाम को दर्शाता है.

2018 में पायलट ने टोंक से जीत हासिल की और राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी. 2013 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अजीत सिंह मेहता ने सीट जीती और उनकी पार्टी ने सरकार बनाई थी.

2008 में कांग्रेस की ज़किया इमाम टोंक से जीतीं और पार्टी सत्ता में लौट आई. 2003 में भाजपा के महावीर प्रसाद ने सीट जीती और पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया.

पिछले चार चुनावों में भी इस मुस्लिम-गुर्जर बहुल निर्वाचन क्षेत्र में इसी तरह का रुझान देखा गया था. खबरों के अनुसार, यहां 34 प्रतिशत मतदाता हैं और अन्य 17 प्रतिशत आबादी में अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति समुदाय शामिल हैं.

राज्य में किसी भी पार्टी को सत्ता में दोबारा न चुनने का 25 साल का इतिहास है. भैरों सिंह शेखावत के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार, जो 1993 में फिर से निर्वाचित होने में सफल रही थी, यह उपलब्धि हासिल करने वाली आखिरी सरकार थी.

जहां कांग्रेस के अशोक गहलोत 1998, 2008 और 2018 में मुख्यमंत्री बने, वहीं भाजपा की वसुंधरा राजे 2003 और 2013 में बारी-बारी से मुख्यमंत्री बनीं.

इस महीने की शुरुआत में राजस्थान में एक सार्वजनिक बैठक को संबोधित करते हुए, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कथित भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर गहलोत सरकार पर हमला करते हुए यह भी दावा किया था कि भाजपा आगामी राज्य चुनाव रिकॉर्ड अंतर से जीतेगी.

इस बीच कांग्रेस 25 साल पुरानी सत्ता विरोधी लहर को मात देने में सक्षम होने को लेकर आश्वस्त दिख रही है.

इस महीने दिल्ली में एक रणनीति बैठक के बाद बोलते हुए, कांग्रेस के पार्टी महासचिव, संगठन, के.सी. वेणुगोपाल ने मीडिया से कहा कि पार्टी में हर कोई “पूरी तरह से आश्वस्त है कि कांग्रेस पार्टी राजस्थान में जीतेगी”. जबकि वेणुगोपाल ने स्वीकार किया, “हर पार्टी को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ता है, हमारी पार्टी को भी कुछ सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है”, उन्होंने कहा, “हमें राजस्थान जीतना है और हम जीत सकते हैं”.

राज्य के राजनीतिक विश्लेषक ओ.पी. सैनी के अनुसार, गहलोत सरकार राजस्थान की 25 साल की सत्ता विरोधी प्रवृत्ति को बदलने में सफल हो सकती है, क्योंकि कांग्रेस जाति विभाजन और “नरम हिंदुत्व” सहित बीजेपी की रणनीतियों से अवगत है और “ऐसा प्रतीत होता है” इसका सामना करने के लिए बेहतर ढंग से तैयार भी है”.

सैनी यह भी बताते हैं कि 1970 और 1980 के दशक में, आपातकाल और इंदिरा गांधी की हत्या जैसे राष्ट्रीय मुद्दे स्थानीय चुनावों पर हावी रहे, लेकिन अब ऐसा नहीं है.

हालांकि, इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि क्या गहलोत सीएम की सीट पर लौटने में कामयाब होंगे, भले ही कांग्रेस राजस्थान में सत्ता में वापसी कर ले.

गहलोत-पायलट के बीच समझौते के बाद वेणुगोपाल ने नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि कांग्रेस कभी भी चुनाव से पहले सीएम उम्मीदवार की घोषणा नहीं करती है. इससे गहलोत के लिए स्थिति खराब हो गई है, जो सीएम पद की दौड़ में पायलट को अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में देख सकते हैं.


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राजस्थान की ‘पहली’ बेलवेदर सीट

चुनाव आयोग के आंकड़ों पर दिप्रिंट के विश्लेषण के अनुसार, राजस्थान की सबसे पुरानी मौजूदा सीट होने की प्रतिष्ठा का दावा मंडल द्वारा किया जा सकता है. दिप्रिंट द्वारा देखे गए ईसी के डेटा के अनुसार, यह सीट 1962 से उस सम्मान को बरकरार रखने में कामयाब रही है.

राज्य के राजस्व मंत्री रामलाल जाट वर्तमान में भीलवाड़ा जिले की सीट पर हैं. 2008 में रामलाल जाट ने सीट जीती और कांग्रेस सत्ता में आई. 2013 में जाट आसींद विधानसभा क्षेत्र में चले गए, लेकिन जीत नहीं सके. इस बीच भाजपा ने उस वर्ष मंडल में जीत हासिल की और राज्य में सत्ता में आई.

2018 में, जाट मंडल में लौट आए और उस वर्ष बनी कांग्रेस सरकार में मंत्री बने.

दिप्रिंट से बात करते हुए, भीलवाड़ा के संगम विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान और लोक प्रशासन विभाग के सहायक प्रोफेसर, जोरावर सिंह राणावत ने कहा, “भीलवाड़ा की समग्र राजनीति में ब्राह्मण समुदाय हावी है, लेकिन कुछ हिस्सों में, जैसे कि मंडल सीट, जाट और गुज्जर समुदाय का दबदबा है. राजपूत समुदाय भी नियंत्रण रखता है. (मंडल में) अधिकांश विधायक इन्हीं समुदायों से रहे हैं.

अपनी ओर से भाजपा ने 1985 के बाद से मंडल से केवल एक उम्मीदवार पर भरोसा किया है. राज्य में भाजपा के सबसे प्रमुख गुर्जर नेताओं में से एक, कालू लाल गुर्जर, इस सीट से चार बार विधायक रहे हैं.

राणावत के मुताबिक, बीजेपी नेता वोट के लिए पार्टी पर निर्भर नहीं रहते.

चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले तीन दशकों में जब भी भाजपा (मंडल से) जीती, तो गुर्जर उम्मीदवार थे. उन्होंने 1990-92 के बीच भैरो सिंह शेखावत के अधीन मंत्री के रूप में कार्य किया है और 2013 और 2018 के बीच जब पार्टी ने सरकार बनाई तो वह मुख्य सचेतक थे.


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19 सीटों पर एक जैसे वोट पड़े

पिछले दशकों में कुछ सीटें ऐसी रही हैं, जिनमें कुछ चुनावों के लिए संभावित संभावनाएं दिखी हैं, लेकिन वे उस टैग को बरकरार नहीं रख सकीं. चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, टोंक और मंडल के अलावा, वर्तमान में राजस्थान में 17 सीटें हैं, जिन्हें बेलवेदर (गेमचेंजर) सीटों के रूप में टैग किया जा सकता है और कम से कम 1998 से ऐसा ही है.

उस वर्ष से इन सभी सीटों पर बारी-बारी से कांग्रेस और भाजपा को वोट मिला है.

इन सीटों में केकड़ी, डीडवाना, जायल, निवाई, खेरवाड़ा, सवाई माधोपुर, पीपल्दा, ओसियां, कामां, किशनगंज, बांसवाड़ा, सुजानगढ़, बेगूं, चौहटन, शेओ, सीकर और श्री माधोपुर शामिल हैं.

दिप्रिंट द्वारा देखे गए ईसी डेटा के मुताबिक, इनमें कुछ सीटें 1998 से पहले भी बेलवेदर रही हैं.

उदाहरण के लिए, चूरू जिले में सुजानगढ़ 1993 से एक बेलवेदर सीट रही है, जबकि चित्तौड़गढ़ जिले में बेगुन 1972 से एक ऐसी सीट रही है.

केकड़ी, जो वर्तमान में कांग्रेस विधायक रघु शर्मा के पास है, ने भी 1962 के बाद से कभी भी मौजूदा विधायक को दोबारा नहीं चुना है. एकमात्र अपवाद 1993 था, जब शंभू दयाल ने भाजपा के टिकट पर सीट से लगातार दूसरी बार जीत हासिल की थी. दयाल ने पहले जनता दल के टिकट पर सीट जीती थी.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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