मुम्बई: पिछले हफ्ते, शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) लीडर और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस से मुम्बई के एक होटल में मुलाक़ात की, जिससे परदे के पीछे चल रही सियासी चालों को लेकर अटकलबाज़ियां शुरू हो गईं.
लेकिन राउत, जो शिवसेना के मुखपत्र सामना के कार्यकारी संपादक भी हैं और फड़णवीस ने स्पष्ट किया कि उनकी ये मुलाक़ात, मराठी दैनिक के एक इंटरव्यू के लिए थी और उससे अधिक इसकी कोई राजनीतिक अहमियत नहीं थी.
दोनों नेताओं के बीच धमाकेदार सियासी बातचीत की संभावना महज़ एक अटकलबाज़ी हो सकती है, लेकिन उनके इस क़दम में शिवसेना और उसके सामना की बदलती रणनीति की झलक ज़रूर देखी जा सकती है.
ख़ासकर तब से, जब राउत ने फड़णवीस के अलावा बीजेपी के अमित शाह और कांग्रेस के राहुल गांधी के इंटरव्यू छापने में भी, दिलचस्पी का इज़हार किया.
कभी केवल शिव सेना प्रमुख की आवाज़ और शिव सैनिकों के लिए ‘आदेश’ का माध्यम रही सामना अब दूसरी पार्टियों के नेताओं की आवाज़ भी शामिल कर रही है. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि हो सकता है कि ये सामना के लिए, ज़्यादा पाठक आकर्षित करने की एक चाल हो, लेकिन इससे पार्टी को ये मदद भी मिलेगी कि अपने पूर्व और वर्तमान सहयोगियों से संपर्क करके वो अपने राजनीतिक लक्ष्य साध सकती है.
राजनीतिक टिप्पणीकार हेमंत देसाई ने कहा, ‘शरद पवार के क़दमों पर चलते हुए शिव सेना सभी दलों के नेताओं से, सीधे संबंध बनाना सीख रही है. मुसीबत के समय ऐसे रिश्ते हमेशा काम आते हैं.’
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उन्होंने आगे कहा, ‘ये क़दम राष्ट्रीय स्तर पर शिवसेना की आक्रामक, उपद्रवी और भगवा पार्टी की छवि से दूरी बनाकर, एक नर्म और नियमित राजनीतिक संगठन के तौर पर स्थापित होने का भी प्रयास है, जो राष्ट्रीय स्तर पर भी किसी भी दूसरी ग़ैर-भगवा पार्टी के साथ सहयोग कर सकती है.’
सभी विकल्प खुले
सामना में ‘मैराथन इंटरव्यूज़’ की धारणा, 1995 से 1999 के बीच, महाराष्ट्र में शिव सेना की पहली सरकार के दौरान शुरू हुई, जब उसका बीजेपी के साथ गठबंधन था. ये इंटरव्यू लंबे और बिना कटे होते हैं जिन्हें सामना दो या तीन हिस्सों में छापती है. लेकिन, इस साल तक ये मैराथन इंटरव्यूज़ केवल ठाकरे परिवार के सदस्यों के लिए होते थे- संस्थापक बाल ठाकरे और मौजूदा पार्टी अध्यक्ष महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे.
इस साल जुलाई में सामना ने पहली बार किसी ग़ैर-ठाकरे नेता- राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) अध्यक्ष शरद पवार का, तीन हिस्सों में इंटरव्यू प्रकाशित किया.
राउत ने दिप्रिंट से कहा, ‘इसके पीछे कोई रणनीति नहीं है. जब हम नई पीढ़ी को मुख़ातिब कर रहे हैं, तो हमें समय के साथ चलना है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘एक अख़बार के नाते हमने हर ख़बर छापी है, वो ख़बरें भी जिनमें शिव सेना की आलोचना होती है. क्रॉस-पार्टी साक्षात्कार एक नई विशेषता है’.’ उन्होंने ये भी कहा, ‘बालासाहेब हमेशा कहा करते थे कि विपक्ष की आवाज़ भी उतनी ही महत्वपूर्ण है.’
राउत ने कहा कि ये कहना उचित होगा कि सामना अब एक अधिक लोकतांत्रिक आवाज़ बनना चाहता है. लेकिन अख़बार से जुड़े एक सूत्र ने कहा, ‘ये बदलाव एक राजनीतिक रणनीति ज़्यादा है कि सभी दरवाज़े खुले रखे जाएं और शिवसेना के नए सहयोगियों- कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ख़ास एनसीपी को एक संदेश दिया जाए.’
2019 के विधान सभा चुनावों के बाद, शिवसेना ने बीजेपी के साथ अपना चुनाव-पूर्व का गठबंधन तोड़ दिया था और कांग्रेस व एनसीपी के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी की सरकार बना ली थी.
एमवीए के सत्ता में आने से पहले के गतिरोध के दौरान, एनसीपी के अजित पवार ने बीजेपी से मिलकर आधी रात में सियासी तख़्ता पलट करते हुए फड़णवीस की सरकार बनवा दी जिसमें वो उप-मुख्यमंत्री बने.
ये सरकार तीन दिन में गिर गई और अजित पवार अब सीएम ठाकरे के डिप्टी हैं, लेकिन वो और उनके बेटे पार्थ पवार, बार बार बीजेपी को इशारे दे चुके हैं. हाल ही में अजित पवार ने ट्वीट के ज़रिए, भारतीय जन संघ के लीडर दीन दयाल उपाध्याय को, उनके जन्म दिवस पर श्रद्धांजलि दी, लेकिन बाद में विवाद उठने पर ट्वीट को हटा दिया.
ऊपर हवाला दिए गए सूत्र ने कहा, ‘डिप्टी सीएम अजित पवार का हमेशा एक पैर यहां और दूसरा वहां रहता है. ऐसे समय में शिव सेना अपने वर्तमान सहयोगियों को संदेश देना चाहती है कि ज़रूरत पड़ने पर पार्टी भी ऐसा ही कर सकती है.’
सूत्र ने आगे कहा, ‘कहने का मतलब है कि अगर हम शरद पवार के क़रीब हैं और उनका इंटरव्यू छाप सकते हैं, तो हम फड़णवीस के भी क़रीब हैं और उनका भी इंटरव्यू कर रहे हैं. अगर ज़रूरत पड़ती है, तो हमारे पास दूसरे दोस्त भी हैं.’
सामना से और पाठकों को जोड़ना
राजनीतिक टिप्पणीकार प्रकाश बाल ने कहा कि पिछले हफ्ते राउत और फड़णवीस के बीच मुलाक़ात के कुछ ज़्यादा ही मायने निकाले जा रहे हैं.
बाल ने कहा, ‘वैसे तो सियासत में कुछ भी हो सकता है, लेकिन ऊपरी तौर पर लगता है कि शिवसेना के अब बीजेपी के साथ जाने की संभावना नहीं है. मीडिया चैनलों ने राउत-फड़णवीस मुलाक़ात को सनसनीख़ेज़ बना दिया था.’ उन्होंने आगे कहा, ‘अगर उद्धव ठाकरे वास्तव में एमवीए सरकार को अस्थिर करना चाहते हैं, तो वो अमित शाह या पीएम नरेंद्र मोदी से सीधे बात करेंगे, मध्यस्थों के ज़रिए नहीं.’
उन्होंने ये भी कहा कि इस एपिसोड से सिर्फ यही समझ में आता है कि सामना अपने पाठक बढ़ाने की कोशिश कर रही है.
उन्होंने कहा, ‘केवल शिव सैनिक ही सामना को लेते हैं और पढ़ते हैं. सामना क्या कह रही है, ये जानने के लिए बहुतों को अब सामना ख़रीदने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि नेता ट्विटर और फेसबुक पर उनसे सीधे बात कर रहे हैं और दूसरे न्यूज़ मीडिया अख़बार की संपादकीय लाइन को फिर से छाप रहे हैं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘ऐसी स्थिति में संभव है कि अख़बार सिर्फ अपने पाठकों का आधार विस्तृत करने की कोशिश कर रहा हो’.
बाज़ार के सूत्रों के अनुसार, सामना का सर्कुलेशन क़रीब 1.5 लाख है और इसके पाठक लगभग 7.5 लाख है.
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