नई दिल्ली: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी तेज़ी से हिंदुत्व के एक और पोस्टर बॉय बनते जा रहे हैं.
उनके कार्यकाल में हाल ही में उठाए गए कई कदमों की कड़ी में जिन्हें राजनीतिक नेता हिंदुत्व एजेंडे को आगे बढ़ाने वाला बताते हैं, राज्य विधानसभा ने बुधवार को उत्तराखंड अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान विधेयक को मंज़ूरी दे दी.
राज्यपाल की मंज़ूरी मिलते ही यह नया कानून उत्तराखंड मदरसा एजुकेशन बोर्ड एक्ट, 2016 की जगह ले लेगा और मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी समुदायों द्वारा चलाए जा रहे संस्थानों को भी अल्पसंख्यक दर्जे का लाभ देगा. सरकार ने इस कानून को “ज़्यादा व्यापक” बताया है.
सोशल मीडिया पोस्ट में धामी ने कहा, “आज (बुधवार को) विधानसभा में ‘उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक-2025’ पारित हुआ. अब तक अल्पसंख्यक संस्थानों की मान्यता केवल मुस्लिम समुदाय तक ही सीमित थी.”
यह नया विधेयक पिछले दो साल में धामी सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों की एक कड़ी है. सरकार पहले ही यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) लागू कर चुकी है, जिसने धर्म-विशेष सिविल कानूनों को समाप्त किया. साथ ही धार्मिक परिवर्तन और अतिक्रमण के साथ-साथ तथाकथित “लैंड जिहाद” और “थूक जिहाद” पर भी कार्रवाई की गई है.
धामी सरकार ने “गैर-कानूनी मदरसों” के खिलाफ भी कार्रवाई की है. इसी महीने कैबिनेट ने धर्मांतरण विरोधी कानून को और कड़ा करने को मंज़ूरी दी, जिसमें सज़ा बढ़ाकर अधिकतम 20 साल और 10 लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान किया गया.
मुख्यमंत्री ने कई भाषणों में बार-बार कहा है कि “लैंड जिहाद”, “थूक जिहाद” और धर्मांतरण को उत्तराखंड की “देवभूमि” पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
सरकार धार्मिक ढांचों और जंगल की ज़मीन पर अतिक्रमण के खिलाफ भी कार्रवाई कर रही है और कई मज़ारों (मकबरों) पर कार्यवाही हो चुकी है.
बीजेपी के एक नेता ने कहा कि धामी पार्टी के मूल मुद्दों पर लगातार ध्यान दे रहे हैं, चाहे वह यूसीसी लागू करना हो या “लव जिहाद” और “लैंड जिहाद” के मामलों में कार्रवाई करना.
नेता ने कहा, “उत्तराखंड पहला राज्य बना जिसने यूसीसी लागू किया और यह बड़े सहज ढंग से हुआ. अब कई राज्य उत्तराखंड की तर्ज़ पर इसी तरह का कानून लाने की तैयारी में हैं. धामी ने ज़रूरत पड़ने पर हमेशा निर्णायक क़दम उठाए हैं और केंद्रीय नेतृत्व इससे अवगत है.”
उन्होंने कहा, “यह कहना गलत नहीं होगा कि राज्य बीजेपी की नई हिंदुत्व प्रयोगशाला बनता जा रहा है.”
संगठन से जुड़ाव
49-वर्षीय धामी की जड़ें संघ परिवार से जुड़ी रही हैं और उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यकर्ता के रूप में शुरू की.
उनकी पहली आधिकारिक नियुक्ति 2002 में हुई, जब राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने उन्हें अपना विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) बनाया.
2002 में बीजेपी की हार के बाद धामी 2002 से 2008 तक लगातार दो कार्यकालों के लिए उत्तराखंड भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के पहले अध्यक्ष बने.
योगी और हिमंता जैसे
विशेषज्ञों का कहना है कि धामी की दूसरी पारी में बीजेपी सरकार ने हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों पर ज्यादा फोकस किया है, जिसकी तुलना उत्तर प्रदेश और असम के मुख्यमंत्रियों से की जा रही है.
देहरादून के राजनीतिक विश्लेषक जय सिंह रावत ने दिप्रिंट से कहा कि ऐसा लगता है धामी सीधे असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा से मुकाबला कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “हम देख रहे हैं कि असम सरकार किस तरह अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाले मुद्दों पर काम कर रही है और धामी भी लगातार ऐसे ही कदम उठा रहे हैं, जो खास तौर पर मुस्लिम समुदाय पर केंद्रित हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “यह साफ तौर पर हिंदुत्व का आइकॉन बनने की होड़ है. धामी लगता है उनसे आगे निकलना चाहते हैं.”
रावत का कहना है कि धामी के फैसले हिंदू वोट को एकजुट करने की कोशिश लगते हैं. उन्होंने कहा, “धामी ने समझ लिया है कि राज्य की 80 फीसदी आबादी हिंदू है और उन्हें ही साधना है. इसी वजह से, पहले कार्यकाल में जहां विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर पर थोड़ा ध्यान था, अब वह प्राथमिकता नहीं है.”
उन्होंने कहा, “जैसे ‘थूक’ और ‘लैंड जिहाद’ जैसे शब्द जनता के दिमाग में एक खास छवि बनाने के लिए कहे जाते हैं. उन्हें समझ आ गया है कि वोट इन्हीं बातों से मिलेंगे.”
पिछले साल अक्टूबर में धामी सरकार ने “थूक जिहाद” पर धामी की टिप्पणी के बाद खाने-पीने की चीज़ों पर थूकते पकड़े जाने वालों पर 25,000 से 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का फैसला किया.
धामी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दोनों ने ही कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित ढाबों और रेस्टोरेंट्स को यह निर्देश दिए कि वे अपने मालिक का नाम और पहचान साफ तौर पर साइनबोर्ड पर लिखें, जो आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद की मुख्य मांग रही है.
दुकानदारों को मान्य लाइसेंस और पहचान पत्र अपनी दुकान पर स्पष्ट रूप से दिखाने को कहा गया, नहीं तो उन पर सख्त कार्रवाई होगी.
नाम न बताने की शर्त पर बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, धामी अपने लिए एक ब्रांड बनाने और खुद को “आरएसएस का पोस्टर बॉय” साबित करने पर ध्यान दे रहे हैं, लेकिन असली फोकस विकास पर होना चाहिए.
उन्होंने कहा, “यूसीसी एक अहम कानून है और उत्तराखंड में इसकी ज़रूरत भी थी, लेकिन अब राज्य ज्यादातर साम्प्रदायिक मुद्दों या सरकार की किसी नई योजना के कारण ही चर्चा में रहता है, जो ज्यादा दिखावा लगता है. उत्तराखंड बार-बार प्राकृतिक आपदाओं से जूझता रहा है, ऐसे में फोकस विकास कार्यों पर होना चाहिए.”
हालांकि, उत्तराखंड बीजेपी के महासचिव आदित्य कोठारी ने सरकार के फैसलों का बचाव किया. उन्होंने कहा कि राज्य में जनसांख्यिकीय बदलाव हो रहा है, जिसका कारण पड़ोसी उत्तर प्रदेश से आकर बसने वाले लोग हैं.
उन्होंने कहा, “जहां तक अल्पसंख्यक संस्थानों का सवाल है, सरकार एक बिल ला रही है ताकि सभी अल्पसंख्यक संस्थानों को जगह मिल सके.”
कोठारी ने आगे कहा, “साथ ही, ‘लव’ और ‘थूक’ जिहाद जैसे मुद्दे देवभूमि की पवित्रता बनाए रखने से जुड़े हैं. पिछले कुछ महीनों में ऐसे मामले बढ़े हैं, खासकर सहारनपुर और बरेली जैसे पड़ोसी इलाकों से. ये घटनाएं राज्य की शांति को प्रभावित करती हैं और इन पर सख्त कदम उठाने ज़रूरी हैं. हमें इसे राजनीति से नहीं जोड़ना चाहिए. बल्कि, मुख्यमंत्री के काम की सराहना करनी चाहिए.”
‘एक समुदाय को निशाना बनाना’
धामी सरकार द्वारा मदरसा बोर्ड खत्म करने के फैसले की विपक्ष ने आलोचना की है. कांग्रेस ने बीजेपी को “संकीर्ण मानसिकता वाली” करार देते हुए कहा कि राज्य ने अब तक ऐसी “सांप्रदायिक राजनीति” कभी नहीं देखी जैसी धामी सरकार में हो रही है.
वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि ‘मदरसा’ एक उर्दू शब्द है और “उर्दू गंगा-जमुनी तहज़ीब की उपज है.”
उत्तराखंड कांग्रेस की प्रवक्ता गरिमा दसुनी ने कहा, “यह तो साफ तौर पर किसी एक समुदाय को चुन-चुन कर निशाना बनाना है. लगता है मुख्यमंत्री को बुनियादी जानकारी की भी कमी है और वे मदरसे को सीधे मुसलमानों से जोड़ देते हैं. आज़ादी की लड़ाई के दौरान कई बड़े नेता, जिन्होंने इसमें योगदान दिया, वे मदरसों से ही निकले थे. पहले तो किसी न किसी बहाने मदरसों को सील किया गया और अब इन्हें सुधारने के नाम पर फिर से निशाना बनाया जा रहा है.”
उन्होंने आगे कहा कि बीजेपी मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रही है, लेकिन वह दिन दूर नहीं जब भाषाई अल्पसंख्यक भी उनकी लिस्ट में होंगे. उन्होंने कहा, “वे बस मदरसा शिक्षा को सीमित करना चाहते हैं, यह सोचे बिना कि धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ यहां वैज्ञानिक शिक्षा भी दी जाती है. धामी जी को पहले मस्जिदों से दिक्कत थी, फिर मज़ारों से और अब मदरसों से होने लगी है.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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