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Saturday, 22 November, 2025
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हरीश रावत की ‘ज़मीनी भूमिका’ वाली मांग से उत्तराखंड कांग्रेस में पुराने मतभेद फिर उभरे

कांग्रेस को मजबूत करने के लिए किया गया फेरबदल उल्टा पार्टी में नाराज़गी बढ़ा रहा है. पूर्व CM हरीश रावत का बूथ लेवल पर काम करने का ऑफर कई लोगों को तंज जैसा लगा और गुटबाज़ी फिर से सामने आ गई.

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नई दिल्ली: उत्तराखंड कांग्रेस में हाल ही में हुआ संगठनात्मक फेरबदल जिसका मकसद पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की छाया से बाहर निकलना था, इसने पार्टी के अंदर मौजूद पुरानी दरारों को फिर सामने ला दिया है. इससे पार्टी की घर-घर सामंजस्य बनाने और राज्य में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को चुनौती देने की क्षमता पर सवाल खड़े हो गए हैं.

बीजेपी 2017 से राज्य में सत्ता में है. उत्तराखंड में 2027 की शुरुआत में चुनाव होने हैं.

पिछले हफ्ते कांग्रेस ने गणेश गोदियाल को उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी का नया अध्यक्ष नियुक्त किया, जिन्होंने करण मेहरा की जगह ली. 2022 में BJP छोड़कर कांग्रेस में लौटे हरक सिंह रावत को पार्टी की चुनाव प्रबंधन समिति का अध्यक्ष बनाया गया है. प्रीतम सिंह को कांग्रेस की उत्तराखंड इकाई के प्रचार समिति की जिम्मेदारी दी गई है.

लेकिन ये नियुक्तियां खासकर गोदियाल और हरक सिंह रावत की, हरीश रावत को ज्यादा पसंद नहीं आई दिखतीं. उत्तराखंड कांग्रेस की गुटबाज़ी में केंद्रीय किरदार रहे रावत पिछले कुछ दिनों से अपने असंतोष को बेहद हल्के लेकिन साफ तरीके से ज़ाहिर कर रहे हैं.

पिछले दो दिनों में वरिष्ठ नेता ने कई सार्वजनिक बयान दिए हैं, जिनमें उन्होंने गोदियाल से अनुरोध किया है कि उन्हें किसी बूथ का इंचार्ज बनाया जाए. रावत का कहना है कि वे ज़मीनी स्तर पर जाकर पार्टी को मजबूत करना चाहते हैं. साथ ही उन्होंने उन दावों को खारिज किया है जिनमें कहा गया कि उनकी ये बातें तंज या उन्हें किनारे किए जाने की नाराज़गी दिखाती हैं.

19 नवंबर को रावत ने सोशल मीडिया पर खुलकर अपनी मांग लिखी. उन्होंने कहा कि नई नियुक्तियों के बाद उन्हें लगा कि वे अब कहां काम करें. रावत के एक्स पोस्ट में लिखा था, “अचानक मुझे लगा कि हरीश रावत, तुम इतने सालों से ऊपरी स्तर पर कुछ न कुछ करते रहे हो, क्यों न इस बार ज़मीनी स्तर पर काम किया जाए?” बस, इसी पोस्ट ने राज्य की राजनीति में चर्चा तेज कर दी.

शुक्रवार को उन्होंने एक्स पर एक अन्य पोस्ट के जरिए अपनी बात दोहराई और इस बार साफ कहा कि उनकी टिप्पणी को ‘पावर मूव’ यानी शक्ति प्रदर्शन के रूप में न देखा जाए. रावत ने लिखा: “पार्टी ने मुझे सब कुछ दिया है. आज भी मेरे समर्थक इसे अपने तरीके से परिभाषित करते हैं और मेरे आलोचक अपने तरीके से. जब पार्टी एक चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है, तो क्या मेरा कर्तव्य नहीं कि मैं उसे ज़मीनी स्तर पर मजबूत करने के लिए अपनी सेवाएं दूं?”

कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) के स्थायी आमंत्रित सदस्य रावत ने ये भी जोर दिया कि आज भी, वे खुद, करण मेहरा और प्रीतम सिंह—तीनों पार्टी के केंद्रीय स्तर पर ऊंचे पदों पर हैं, जहां माहरा CWC में विशेष आमंत्रित सदस्य बने हैं, वहीं प्रीतम सिंह कांग्रेस की सेंट्रल इलेक्शन कमेटी (CEC) के सदस्य हैं.

हरीश रावत ने, हालांकि, अपनी एक्स पोस्ट में हरक सिंह रावत को पार्टी की चुनाव प्रबंधन समिति का प्रमुख बनाए जाने पर कोई टिप्पणी नहीं की.

2016 में, उस समय के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने हरक सिंह रावत पर आरोप लगाया था कि उन्होंने दलबदल करवा कर उनकी सरकार गिराने की कोशिश की. इसके बाद हरक सिंह रावत बीजेपी में शामिल हो गए थे और जनवरी 2022 तक वहीं रहे, जब पार्टी ने उन्हें बाहर कर दिया.

इस हफ्ते की शुरुआत में, हरक सिंह रावत जो पुष्कर सिंह धामी सरकार के खिलाफ खुले तौर पर बोलते रहे हैं और सीबीआई और ईडी के मामलों में भ्रष्टाचार के आरोपी भी हैं, ने हरीश रावत पर परोक्ष रूप से तंज कसा. उन्होंने कहा कि कांग्रेस को “spent cartridges” (यानी पुराने, बेअसर नेताओं) पर निर्भर रहना बंद करना चाहिए.

पत्रकारों से बात करते हुए हरीश रावत ने पलटवार किया और कहा कि राजनीतिक दलों को सभी का सम्मान करना चाहिए. उन्होंने कहा कि हरक सिंह रावत जैसे टिप्पणियां करने वाले लोग “जहरीले” होते हैं. ऐसे लोग बीजेपी में भी हैं. उन्होंने कहा, “इसीलिए मैंने अपनी पार्टी से कहा कि मैं बूढ़ा आदमी हूं, मेरा काम है खांसते रहना ताकि कोई गलत आदमी पार्टी में न घुस पाए. मैंने उनसे यह भी कहा कि आपके पास जो भी जहर है, वो मेरे ऊपर डाल दो, मैं उसे पी जाऊंगा. आप बस एक-दूसरे की तारीफ करो, एक-दूसरे को प्रोत्साहित करो और आगे बढ़ो.”

ये बयानबाज़ी गणेश गोदियाल के सामने मौजूद चुनौती को साफ दिखाती है, एक गुटों में बंटी कांग्रेस इकाई का नेतृत्व करना, वह भी 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले.

कांग्रेस पार्टी 2017 और 2022 के पिछले दो विधानसभा चुनाव हार चुकी है. इसी तरह, वह राज्य की लगातार तीन लोकसभा चुनावों में भी एक भी सीट नहीं जीत पाई है.

दो बार के विधायक गोदियाल, जिन्हें कभी हरीश रावत का करीबी माना जाता था, 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले राज्य अध्यक्ष थे, लेकिन चुनाव हारने के बाद उनकी जगह मेहरा को दे दी गई.

इस साल की शुरुआत में, हरीश रावत ने सार्वजनिक रूप से सुझाव दिया कि अगला विधानसभा चुनाव कांग्रेस को प्रीतम सिंह (जो पांच बार के विधायक हैं) के नेतृत्व में लड़ना चाहिए. बताया जाता है कि इस टिप्पणी से गोदियाल नाराज़ हो गए थे.

राज्य के नेताओं के साथ हरीश रावत के जटिल रिश्ते कोई नई बात नहीं हैं.

जब कांग्रेस उत्तराखंड में सत्ता में थी, तब भी वे लगातार संघर्षों में फंसे रहे. पहले एन.डी. तिवारी से टकराव रहा और बाद में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से जिन्हें 2014 में हरीश रावत ने अंततः रिप्लेस किया. यह बदलाव उस समय आया जब बहुगुणा पर जून 2013 की केदारनाथ आपदा से निपटने को लेकर भारी आलोचना हो रही थी.

हाल ही में माहरा को CWC और प्रीतम सिंह को CEC में शामिल किया जाना, कांग्रेस हाईकमान द्वारा राज्य में प्रतिस्पर्धी गुटों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. इसे हरीश रावत को उनकी नाखुशी के बावजूद केंद्रीय नेतृत्व से जोड़कर रखने की रणनीति भी माना जा रहा है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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