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Sunday, 22 December, 2024
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केरल में ‘कैप्टन’ पिनराई विजयन के नेतृत्व वाला LDF कैसे दशकों पुराना रिकॉर्ड तोड़ने को तैयार

एलडीएफ केरल में अब तक चली आ रही परिपाटी को तोड़ते हुए सत्ता में वापसी के लिए पूरी तरह तैयार है. और इसका श्रेय जाता है ‘कैप्टन’ पिनराई विजयन को जिन्होंने खुद को एक कुशल संकट प्रबंधक साबित किया है.

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नई दिल्ली: कैप्टन, कॉमरेड और संकट प्रबंधक— केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के ‘जादू’ ने राज्य में चार दशकों में पहली बार वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) की भारी जीत का रास्ता साफ कर दिया है.

माकपा की अगुवाई वाले गठबंधन ने राज्य में दशकों पुरानी यह परिपाटी भी तोड़ दी है जिसमें केरल के मतदाता हर बार बारी-बारी से एलडीएफ और कांग्रेस नीत संयुक्त डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) की सरकारों को चुनते थे. एलडीएफ को 85 से 95 के बीच सीटें मिलने का अनुमान है जबकि 140 सदस्यीय विधानसभा में यूडीएफ को मात्र 40-45 सीटों पर संतोष करना पड़ सकता है.

यद्यपि एलडीएफ में कई लोकप्रिय पार्टी नेता और मंत्री मौजूद हैं लेकिन पिनराई विजयन निर्विवाद रूप से गठबंधन का चेहरा बने रहे और उन्होंने अग्रिम मोर्चे पर रहकर विधानसभा चुनाव का नेतृत्व संभाला. पिछले पांच साल में एक के बाद एक तमाम संकटों से निपटने के साथ बहुत सावधानी से अपनी छवि मजबूत करते हुए विजयन ने खुद को ‘कैप्टन’ की तरह एक कुशल प्रशासक के रूप में स्थापित किया— यहां तक कि ऐसी स्थितियों में भी जब आलोचकों ने उनके रुख को ‘सत्तावादी’ तक करार देने में कसर नहीं छोड़ी.


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संकट प्रबंधक

विजयन की एक कुशल संकट प्रबंधक की छवि होना एलडीएफ के पक्ष में सबसे ज्यादा कारगर फैक्टर रहा जो कि पिछले कुछ सालों में ही ज्यादा प्रमुखता और लोकप्रियता के साथ उभरी है.

एलडीएफ सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान केरल को कई संकटों से गुजरते देखा— 2017 में चक्रवात ओखी, 2018 में निपाह का प्रकोप, 2018 और 2019 में कई जिलों में बाढ़ की विभीषिका और आखिरकार 2020 में कोविड जैसी महामारी. इस सबके दौरान विजयन एक कुशल, सक्रिय और निष्पक्ष नेता के तौर पर उभरे, जिसमें स्वास्थ्य मंत्री के.के. शैलजा समेत उनकी कुशल टीम ने भी काफी मदद की. एलडीएफ सरकार संकट के समय में केरल के लोगों को ताजा हालात के साथ-साथ इससे निपटने की सरकार की योजनाओं के बारे में लगातार अवगत कराती रही.

बाढ़ के दौरान बचाव और पुनर्वास प्रक्रिया चली, मुफ्त भोजन पैकेट और फ्लड किट बांटी गई और मुख्यमंत्री खुद ही लगातार मीडिया ब्रीफिंग करते रहे— यह सक्रियता से काम करने के साथ-साथ संवाद बनाए रखने की रणनीति थी और चुनाव नतीजे बताते हैं कि एलडीएफ को इनका फायदा भी मिला है.

इसके बाद, मार्च 2020 में नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से घोषित पहले राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान देशभर में जब प्रवासी मजदूरों के सामने संकट खड़ा हो गया और उन्हें घर लौटने के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल तक चलना पड़ा—केरल अपने कल्याणकारी कार्यक्रमों और सेवाएं मुहैया कराने के साथ आगे खड़ा नज़र आया.

इसने वेलफेयर पेंशन के अग्रिम भुगतान, पीडीएस कार्ड धारकों को मुफ्त भोजन किट की व्यवस्था की और मजदूरों के समूहों को प्रवासियों के बजाये ‘अतिथि’ मानते हुए मदद पहुंचाई.

इन उपायों ने मतदाता जनता के बीच एक अच्छी छाप छोड़ी, जो उन लोगों की बातों से भी जाहिर है जिन्होंने मार्च में चुनाव कवरेज के दौरान दिप्रिंट से बात की थी. कोच्चि में एलडीएफ के समर्थक और एक कारखाने के कर्मचारी बशीर अहमद ने कहा था, ‘हम यह कैसे भूल सकते हैं कि इस कठिन समय में सरकार ने हमारे लिए क्या-क्या किया है? वे हमारे साथ खड़े थे, हम उनके साथ खड़े होंगे.’


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कैसे बने ‘कैप्टन’

ऐसा नहीं है कि सिर्फ कल्याणकारी योजनाओं की राजनीति ने इस चुनाव में एलडीएफ की मदद की. गठबंधन ने भी पिनराई विजयन का व्यक्तित्व बेहद विशाल बनाने की दिशा में काम किया. पिछले साल मई में कांग्रेस ने एलडीएफ पर आरोप लगाया था कि वह मुख्यमंत्री की मार्केटिंग के लिए एक पीआर एजेंसी की मदद ले रही है. इससे इनकार करते हुए विजयन ने कहा था, ‘लोग मुझे जानते हैं’ और यह कि ‘उन्हें इस तरह के सहारे की कोई जरूरत नहीं है.’

बहरहाल, एलडीएफ ने विजयन के लिए ‘कैप्टन’ का तमगा सक्रिय रूप से आगे बढ़ाया— जो पूर्व के ‘कॉमरेड’ से अलग था. इसे लेकर एलडीएफ शिविर के अंदर थोड़ा विवाद भी रहा क्योंकि कुछ लोगों ने इसे पंथ-पूजा की ओर एक कदम मानते हुए सवाल उठाए और वामपंथी परंपराओं के खिलाफ करार दिया. विजयन खुद पंथ-पूजा के कटु आलोचक रहे हैं और इसे लेकर उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेता और केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन पर निशाना भी साधा था.

केरल के एक राजनीतिक विश्लेषक जे. प्रभाष कहते हैं, ‘केरल सहित देशभर में ‘एक मजबूत नेता’ की बढ़ती आकांक्षा ने भी एलडीएफ की मदद की है. विजयन ने राज्य में आने वाले सभी संकटों के दौरान अग्रिम मोर्चा संभाला था. उनके गंभीर और स्पष्ट दृष्टिकोण ने वास्तव में उन्हें खुद को एक मजबूत, बड़े नेता के तौर पर स्थापित करने में मदद की.’

हालांकि, एलडीएफ को लेकर संशय जताने वाले और आलोचक कई बार विजयन की कार्यशैली को सत्तावादी कहते रहे हैं. प्रभाष ने आगे कहा, ‘हैं या नहीं यह तो लोकतांत्रिक दृष्टिकोण से एक लंबी बहस का हिस्सा है लेकिन फिलहाल तो इस चुनाव के समय विजयन ने लोगों को वह दिया है जिसकी उन्हें जरूरत थी, एक कुशल प्रशासक.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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