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Sunday, 3 November, 2024
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हुड्डा-तंवर के आपसी मतभेद ने कर दिया है राहुल गाँधी की नाक में दम

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कांग्रेस 2019 से पहले अपने सहयोगियों के साथ मिलकर चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमाने से काफी दूर है और पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा तथा राज्य कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष अशोक तंवर के बीच में जारी घमासान इस स्थिति को और बदतर कर रही है।

नई दिल्लीः बतौर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के लिए हरियाणा को सम्भालना एक बहुत ही टेढ़ी खीर बन रहा है।

राज्य कांग्रेस के दो शीर्ष नेता, पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा और हरियाणा राज्य इकाई के अध्यक्ष अशोक तंवर पार्टी में सर्वोच्चता के लिए लड़ाई में शामिल हो चुके हैं, जो कभी-कभी हिंसक हो जाते हैं और यहाँ तक कि इनकी इस लड़ाई में एक कानूनी पहलू भी है।

बिना किसी नियम की इस लड़ाई ने राहुल गाँधी को मुश्किलों में डाल दिया है क्योंकि हरियाणा एक ऐसा राज्य है जहाँ 2019 के आम चुनाव से पहले कांग्रेस को अपनी हालत में फिर से सुधार की उम्मीद है। लेकिन इस तरह से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि पार्टी के पास 2014 से ब्लॉक स्तरीय या जिला स्तरीय समिति का अभाव है।

पूर्व प्रभारी कमलनाथ को मध्य प्रदेश का कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने के बाद से राज्य में प्रभारी का पद भी रिक्त है।

हालांकि, तंवर ने दिप्रिंट को बताया कि स्थानीय समितियों पर गतिरोध जल्द ही समाप्त हो जाएगा।

तंवर ने बताया कि, “हमने समितियों की सूची कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को सौंप दी है। राज्य को प्रभारी प्राप्त होते ही नामों की घोषणा कर दी जाएगी।“

यात्रा संघर्ष

हुड्डा और तंवर दोनों ने राज्य में अपनी शक्ति के प्रदर्शन के लिए रोड शो का आयोजन किया है। पिछले साल दिसंबर में अपनी ’जन क्रान्ति यात्रा’ की घोषणा करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री ने इस साल 25 फरवरी को अपनी इस यात्रा का आगाज किया था।

कुछ दिनों के बाद 5 मार्च को तंवर ने ’हरियाणा बचाओ परिवर्तन लाओ’ साइकिल यात्रा का शुभारंभ किया था।

तंवर और हुड्डा भी राज्य में प्रभारी पार्टी के कैडर के प्रदर्शन के लिए यात्रा का इस्तेमाल कर चुके हैं। तंवर हुड्डा पर सीधे हमला नहीं करते हैं, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री अपनी सारी लोकप्रियता का श्रेय राज्य कांग्रेस अध्यक्ष को देते हैं।

हालांकि, दोनों नेताओं का कहना है कि उनकी रैलियाँ एक-दूसरे के खिलाफ नहीं हैं।

तंवर ने कहा, “किसी के द्वारा भी रैलियाँ करने से कोई नुकसान नहीं है क्योंकि उद्देश्य एक ही है – भाजपा को हराना और कांग्रेस को शसक्त बनाना। विभिन्न नेताओं के पास राज्य में कांग्रेस की मौजूदगी को बढ़ाने के लिए अलग-अलग तरीके हैं और सभी ठीक है।“

हुड्डा ने भी अपनी यात्रा को लेकर ऐसा ही जवाब दिया।

“मेरी यात्रा के कार्यक्रम को बहुत पहले ही अंतिम रूप दिया गया था और हर किसी को इसके बारे में पता था। पार्टी के लिए यही बेहतर होगा कि हर कोई एक समान एजेंडे के साथ मैदान में उतरे।“

वर्षों से चला आ रहा झगड़ा

एक दलित नेता तंवर को गांधी ने चुना था और 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय राष्ट्रीय लोक दल (आईएनएलडी) के गढ़, सिरसा से मैदान में उतार दिया था।

वह 40,000 वोट जीते और तब से उनका राजनीतिक सितारा चमक रहा है।

राज्य के बाहर चल रही गहमागहमी के चलते – उन्होंने यूथ कांग्रेस और राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया  – गांधी के भरोसेमंद सहयोगी तंवर को फरवरी 2014 में हरियाणा का कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। तब हुड्डा वहां के मुख्यमंत्री थे।

दोनों नेताओं ने सकारात्मक शुरुआत की। उस साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव से पहले, हुड्डा का टिकट वितरण और चुनाव प्रचार पर अधिकार था। लेकिन जब पार्टी ने चुनाव हार गई और बीजेपी पहली बार सत्ता में आई, तब दोनों के बीच विवाद शुरू हो गया।

हार से तिलमिलाए, हुड्डा ने तंवर को निशाना बनाया और पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाने की मांग की। जब भी वे दिल्ली में गांधी परिवार से मिलते थे, इस बात का जिक्र जरूर करते थे। सच्चाई यही है कि हुड्डा राज्य के अध्यक्ष बनना चाहते थे।

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि गांधी नेतृत्व में बदलाव करने के इच्छुक हैं लेकिन वह तंवर को हुड्डा से बदलना नहीं चाहते हैं। 2014 में बीजेपी के द्वारा गैर-जाट वोट हथियाने के बाद, पार्टी राज्य का नेतृत्व किसी जाट नेता को सौंपने को तैयार नहीं है वह इसके बजाय दलित नेता पर अपना दांव खेलने का तैयार है।

हुड्डा ने कहा, “हरियाणा कांग्रेस पहले से ही एक प्रस्ताव पारित कर चुकी है और राहुल जी को नया अध्यक्ष नामित करने का अधिकार देता है। यह फैसला लेना अब उनके ऊपर है।”

लेकिन तंवर के समर्थक इसे दबाव की रणनीति के रूप में बता रहे हैं और ऐसे दावों को अस्वीकार कर रहे हैं।

हरियाणा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा, “तंवरजी ने राज्य में कांग्रेस की मौजूदगी को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया है, जबकि हुड्डाजी के पास केवल एक ही एजेंडा है और वह यह कि तंवर को हटाना है।”

“जितना अधिक हुड्डा जी इस मुद्दे को उठा रहे हैं उतना ही दोनों पक्षों के समर्थकों के बीच खटास आ रही है। हुड्डा जी इस कारण से अपने समर्थकों के बीच भी विश्वसनीयता खो रहे हैं।”

पार्टी हाई कमान राज्य में कांग्रेस प्रभारी घोषित करने के लिए तैयार है, लेकिन अध्यक्ष पद पर अभी तक फैसला लिया जाना बाकी है। इस मुद्दे को समाप्त करने के लिए इस साल 12 मई को राहुल गाँधी ने दिल्ली के ताज मान सिंह होटल में पार्टी प्रभारी अशोक गहलोत की उपस्थिति में हुड्डा से मुलाकात की थी। हालांकि, इस मुलाकात से कोई नतीजा नहीं निकला।

एक एफआईआर और एक पूछताछ

हमले के आरोप में दोनों नेताओं को पुलिस मामले में भी शामिल किया गया है, जो कि अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 के तहत आता है।

यह 6 अक्टूबर 2016 को एक घटना की वजह से उत्पन्न हुआ, जब गांधी अपनी देवरिया से दिल्ली की यात्रा पूरी करने के बाद दिल्ली आ रहे थे।

एक बार गांधी का काफिला दिल्ली में प्रगति मैदान के पास पहुँचा, तो हुड्डा और तंवर दोनों के समर्थकों ने अपने नेताओं के पक्ष में नारे लगाने शुरू कर दिए। दोनों समूहों के बीच हाथापाई शुरू हो गई और देखते ही देखते, भीड़ में लाठी-डंडे चलने लगे।

तंवर के सिर में चोट लग गई और उन्हें राजधानी के आरएमएल अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया। उनके समर्थकों ने हुड्डा, उनके बेटे और पार्टी के सांसद दीपेन्द्र हुड्डा एवं उनके निजी सुरक्षा अधिकारियों के नाम एक पुलिस शिकायत दर्ज कराई।

तब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसकी जाँच करने और रिपोर्ट जमा करने के लिए पूर्व गृह मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुशील कुमार शिंदे के साथ एक सदस्यीय जाँच समिति बनाई थी। शिंदे ने यह कहते हुए कि, तंवर को दोनों पक्षों को शांत कराने की कोशिश करते समय क्रॉसफायर करते हुए पकड़ा गया था, हुड्डा को क्लीन चिट दे दी।

प्रारंभ में कोई मामला दर्ज नहीं हुआ था, लेकिन तंवर के एक समर्थक कमलजीत ने अनुसूचित जाति के राष्ट्रीय आयोग से संपर्क किया और आयोग ने पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया। इसके बाद, फरवरी 2017 में एससी / एसटी अधिनियम के तहत नई दिल्ली में तिलक मार्ग पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज की गई।

इस वर्ष 20 मार्च को जब सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति अधिनियम के दुरुपयोग को रोकने के लिए निर्देश जारी किए, तो तंवर ही ने पहली बार उच्चतम न्यायालय के निर्णय के खिलाफ ट्वीट किया था।

तंवर ने कहा, “मेरे मामले में पुलिस ने मामला दर्ज करने में सिर्फ चार महीने ही लगाए, पर उन लोगों के बारे में सोचें जिनके पास संसाधन नहीं हैं और वे गरीब हैं। पुलिस जाँच सिर्फ मामले में देरी करने वाली एक अंतहीन प्रक्रिया है।

दिल्ली पुलिस के संयुक्त आयुक्त अजय चौधरी ने कहा, “इस मामले में पुलिस जाँच अभी भी चल रही है। हमने बयान दर्ज किए हैं और सबूतों की जाँच की है। मामला अभी भी परीक्षण चरण में है।”

तंवर इस मामले के बारे में अब बात नहीं करना चाहते। हालांकि, आज तक दिल्ली पुलिस के किसी भी व्यक्ति ने उनका हाल जानने के लिए उनसे संपर्क नहीं किया है। उनका एक समर्थक पूछता है, “यह किस तरह की पूछताछ है? वहाँ लोग उपस्थित थे और मीडिया द्वारा दर्ज घटना के वीडियो फुटेज भी हैं, इसके बावजूद भी कुछ नहीं हुआ।”

Read in English : Hooda and Tanwar are giving Rahul Gandhi a Haryana headache

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