नई दिल्ली: हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कांग्रेस की हरियाणा इकाई की अध्यक्ष कुमारी शैलजा के राजनीतिक संबंधों में कुछ खास गर्माहट नहीं रही है. मगर, अब राज्य के दोनों वरिष्ठ नेता 21 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा से सत्ता वापस हासिल करने के लिए अपने मतभेदों को एक तरफ रखते हुए एक साथ प्रयास कर रहे हैं.
हरियाणा में 2014 के बाद से विधानसभा और लोकसभा चुनावों में हार का स्वाद चखने के बाद कांग्रेस ने अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए दलित नेता शैलजा को राज्य इकाई प्रमुख व हुड्डा को कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) का नेता नियुक्त किया. तब से दोनों राज्य में एक साथ समन्वय के साथ चुनावी अभियान में हिस्सा ले रहे हैं.
कांग्रेस नेताओं को लगता है कि विभिन्न गुटों में बंटी राज्य इकाई में यह दोनों नेता सबसे अच्छे सहयोगी हैं.
हुड्डा के पास राज्य की बहुत अधिक जिम्मेदारी है. कांग्रेस के दिग्गज नेता हुड्डा ने ही पार्टी नेतृत्व पर दबाव डाला कि प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर अशोक तंवर की जगह शैलजा को लिया जाए और एक दलित के स्थान पर दूसरे दलित चेहरे को ही राज्य में पार्टी की कमान सौंपी जाए.
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कांग्रेस कार्यकर्ता हुड्डा और शैलजा के साथ फिर से सक्रिय हो गए हैं.
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पार्टी नेता ने कहा कि हुड्डा को चुनाव प्रबंधन समिति का अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने मजबूत नेतृत्व का स्पष्ट संकेत दिया है जो राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले आवश्यक था. एक अन्य पार्टी नेता ने कहा कि हुड्डा, जो 2004 से 2014 तक दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे, उनके कंधों पर बहुत अधिक जिम्मेदारी है.
2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से कांग्रेस को हरियाणा में हार का सामना करना पड़ा, चाहे वह 2014 का विधानसभा चुनाव हो या 2019 का लोकसभा चुनाव. पार्टी नेता ने कहा कि हुड्डा को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह रोहतक और सोनीपत के अपने पारंपरिक गढ़ों में पार्टी को पुनर्जीवित करने में सक्षम हों, जहां भाजपा द्वारा 2019 के लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज की गई.
हुड्डा खुद सोनीपत लोकसभा सीट से हार गए थे, जबकि उनके बेटे और तीन बार सांसद रहे दीपेंद्र सिंह हुड्डा की रोहतक सीट से हार हुई. पार्टी के नेताओं को हालांकि लगता है कि चार बार लोकसभा चुनाव सहित आठ चुनावों में जीत हासिल करने वाले हुड्डा की राह आसान नहीं है.