गुवाहाटी: असम के मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता हिमंत बिस्वा सरमा के लिए असम में बढ़ती मुस्लिम आबादी केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि “ज़िंदगी और मौत” का मामला है. भाजपा के झारखंड चुनाव सह-प्रभारी सरमा ने बुधवार को बढ़ती मुस्लिम आबादी के कारण “असम की बदलती जनसांख्यिकी” पर प्रकाश डाला, एक ऐसा मुद्दा जो उनके और पूरे भारत में पार्टी के चुनावी अभियान के लिए एक प्रेरक शक्ति रहा है.
रांची में पत्रकारों को संबोधित करते हुए सरमा ने कहा, “…जनसांख्यिकी बदलना मेरे लिए एक बड़ा मुद्दा है. असम में आज मुस्लिम आबादी 40 प्रतिशत तक पहुंच गई है. 1951 में यह 12 प्रतिशत थी. हमने कई जिले खो दिए हैं. यह मेरे लिए कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है. यह ज़िंदगी और मौत का मामला है.”
कार्यकर्ताओं के अभिनंदन कार्यक्रमों और हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों में पार्टी की सफलता का जश्न मनाने के लिए आयोजित ‘विजय संकल्प सभा’ में भाग लेने के लिए — सरमा झारखंड के दो दिवसीय दौरे पर हैं.
सीएम ने विभिन्न राज्यों में पार्टी के लिए प्रचार करते समय अक्सर अवैध इमिग्रेशन के मुद्दे की घोषणा की है और इस पर खुलकर चर्चा की है.
2011 की जनगणना के अनुसार, असम में मुस्लिम — जिनमें स्वदेशी असमिया मुस्लिम, हिंदी भाषी मुस्लिम और बंगाली मूल के लोग शामिल हैं, जो सबसे बड़ा उपसमूह है — कुल आबादी का 34 प्रतिशत से अधिक हिस्सा हैं.
कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने सोशल मीडिया पोस्ट के ज़रिए सरमा को याद दिलाया कि संसदीय चुनाव के दौरान उन्होंने असम के अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में प्रचार किया था.
सरमा ने मध्य असम के नागांव से लेकर उत्तर में दरांग-उदलगुरी तक मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों में अपने डांस मूव्स और नाटकीय अंदाज़ से भारी भीड़ खींची थी.
19 अप्रैल को नागांव लोकसभा सीट पर सरमा के प्रचार की तस्वीरें शेयर करते हुए गोगोई ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, “रांची में हिमंत बिस्वा सरमा को भूलने की बीमारी लग रही है. सिर्फ दो महीने पहले ही उन्हें असम के अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में नाचते-गाते देखा गया था. साफ है कि जब वे बीजेपी के लिए वोट मांग रहे थे तो यह उनके लिए ज़िंदगी और मौत का सवाल नहीं था.”
असम में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए ने 14 में से 11 सीटें जीतकर लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस ने तीन सीटें जीतीं. भाजपा ने 2019 के चुनावों की तरह ही नौ सीटें बरकरार रखीं, जबकि उसके सहयोगी, क्षेत्रीय यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) और असम गण परिषद (एजीपी) एक-एक सीट पर विजयी हुए.
इससे पहले 4 जून को, परिणाम घोषित होने के तुरंत बाद, सरमा ने जनादेश का सारांश इस प्रकार दिया कि एनडीए ने असम में अपने कुल वोट शेयर में सुधार करते हुए लगभग 46 प्रतिशत तक पहुंचा दिया है — “2019 के लोकसभा में हासिल किए गए 39 प्रतिशत और 2021 के विधानसभा चुनावों में 44 प्रतिशत से एक बड़ी छलांग.”
सरमा ने कहा था, “राज्य में 40 प्रतिशत अल्पसंख्यक आबादी के बावजूद हमने यह हासिल किया है.”
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असम कांग्रेस के नेता प्रद्युत बोरडोलोई ने भी सरमा की राजनीति पर सवाल उठाते हुए एक्स का सहारा लिया.
उन्होंने लिखा, “इसमें कोई हैरानी नहीं है कि सीएम हिमंत बिस्वा सरमा अपने विभाजनकारी सांप्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए जनगणना के आंकड़ों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की हद तक जा सकते हैं. क्या उनकी राजनीति कभी हिंदू और मुसलमानों से आगे देखेगी? क्या वे महंगाई, बेरोज़गारी, बाढ़ और कटाव के मुद्दों पर बात करेंगे?”
असम में घुसपैठ के मुद्दे का ज़िक्र करते हुए सरमा ने कहा था कि अवैध प्रवासियों का “पता लगाना और उन्हें वापस भेजना” राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है.
उन्होंने रांची में संवाददाताओं से कहा, “असम एक सीमावर्ती राज्य है. मैं हर दिन ‘घुसपैठियों’ से निपटता हूं. घुसपैठिए पहले असम, पश्चिम बंगाल आते हैं और फिर झारखंड, बिहार और छत्तीसगढ़ जाते हैं. जब घुसपैठिए अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करते हैं तो उन्हें रोकना बीएसएफ की ज़िम्मेदारी है, लेकिन एक बार जब वे राज्य में प्रवेश कर जाते हैं, तो उन्हें पता लगाना और वापस भेजना राज्य सरकार का कर्तव्य है.”
पिछले साल जून में सरमा ने इसके कार्यान्वयन से पहले मसौदा परिसीमन प्रस्ताव की सराहना करते हुए कहा था कि यह “ऊपरी असम, निचले असम, मध्य असम, बराक और ब्रह्मपुत्र घाटियों में पहाड़ी जनजातियों और जातीय समूहों सहित स्वदेशी असमिया समुदायों की सुरक्षा के लिए है”.
पिछले साल अगस्त में भारतीय निर्वाचन आयोग ने असम में विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के लिए अंतिम परिसीमन आदेश प्रकाशित किया. सत्तारूढ़ भाजपा को उम्मीद थी कि परिसीमन प्रक्रिया के हिस्से के रूप में विभिन्न विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में सीमाओं के पुनर्निर्धारण के साथ असम का चुनावी नक्शा बदल जाएगा.
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