रांची: यह भारत के विशाल लोकसभा चुनाव का आखिरी चरण है और झारखंड के एक प्रमुख आदिवासी निर्वाचन क्षेत्र राजमहल में, हर किसी के मन में केवल एक ही सवाल है. क्या धनशोधन के आरोपों से जूझ रहा झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम)-कांग्रेस गठबंधन अपना गढ़ बरकरार रख पाएगा?
इधर, झामुमो के दो बार के सांसद विजय हंसदक को हैट्रिक की उम्मीद है. उनका मुकाबला भाजपा के पूर्व राज्य प्रमुख ताला मरांडी से है, जिन्हें कई विवादों में फंसने के बाद 2016 में पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए चुनाव ऐसे महत्वपूर्ण समय पर हैं — यह जनवरी में पूर्व सीएम और जेएमएम नेता हेमंत सोरेन और इस महीने की शुरुआत में कांग्रेस कैबिनेट मंत्री आलमगीर आलम की गिरफ्तारी के बाद हुआ है.
झामुमो के लिए, जो इस बार बड़े इंडिया ब्लॉक के हिस्से के रूप में यह चुनाव लड़ रहा है, यह सीट शक्तिशाली सोरेन परिवार की साख और प्रतिष्ठा से जुड़ी है — जिसमें न केवल हेमंत बल्कि उनके पिता, पार्टी प्रमुख और झारखंड के पूर्व सीएम शिबू सोरेन भी शामिल हैं.
पूर्व सीएम अब जेल में हैं और पार्टी के मुखिया स्वास्थ्य कारणों से इन चुनावों में कमज़ोर पड़ रहे हैं. पार्टी स्टार प्रचारक — हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना पर भरोसा कर रही है, जो कि तेज़तर्रार वक्ता हैं जिनके राजनीतिक कौशल ने कई लोगों को हैरान कर दिया है. राजनीतिक प्रतिभा की धनी कल्पना झामुमो के चुनाव अभियान को अपने कंधों पर उठा रही हैं और अनुभवी राजनीतिज्ञ के कौशल के साथ रैली दर रैली संबोधित कर रही हैं.
अनुभवी झामुमो नेता और संथाल परगना में पार्टी के चुनाव रणनीतिकार स्टीफन मरांडी के अनुसार — प्रशासनिक प्रभाग जिसके अंतर्गत राजमहल आता है — राज्य के आदिवासी हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को भाजपा की चाल के रूप में देखते हैं.
गौरतलब है कि बरहेट, जिस सीट का पूर्व सीएम प्रतिनिधित्व करते हैं, वे राजमहल लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है.
मरांडी ने कहा, “हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से आदिवासी समुदाय आहत है. उन्होंने जोर देकर कहा कि लोगों के साथ पार्टी का समीकरण मजबूत है और वह सीट बरकरार रखेगी.”
इस बीच, भाजपा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर भरोसा करने की उम्मीद है. राजमहल विधानसभा सीट से भाजपा विधायक अनंत कुमार ओझा ने भी झामुमो-कांग्रेस पर वोट के लिए तुष्टीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया. उन्होंने आगे कहा, “इस चुनाव में हम मोदी जी का ‘सबका साथ, सबका विश्वास’ का संदेश जनता तक पहुंचा रहे हैं.”
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राजमहल क्यों महत्वपूर्ण है?
राजमहल निर्वाचन क्षेत्र में संथाल परगना के तीन जिले-साहिबगंज, गोड्डा और दुमका शामिल हैं. इस क्षेत्र की सीमा पश्चिम बंगाल और बिहार से लगती है. आदिवासी-बहुल निर्वाचन क्षेत्र में ईसाई और मुस्लिम वोटों की अच्छी-खासी संख्या है, साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की भी अच्छी-खासी मौजूदगी है.
राजमहल लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत छह विधानसभा सीटें हैं — राजमहल, बोरियो, बरहेट, लिटिपारा, पाकुड़ और महेशपुर.
इनमें से केवल राजमहल बीजेपी के पास है. अन्य में से, झामुमो के पास वर्तमान में चार — बोरियो, बरहेट, लिटिपारा और महेशपुर की आरक्षित आदिवासी सीटें हैं.
वहीं, कांग्रेस नेता आलम पाकुड़ का प्रतिनिधित्व करते हैं.
2004 तक कांग्रेस और झामुमो दोनों संसदीय क्षेत्र में समान रूप से मजबूत थे, सीट, फिर अविभाजित बिहार में 1957 से 1998 तक बारी-बारी से उनके पास जाती रही. इस ट्रेंड का एकमात्र अपवाद 1977 में था जब एंथोनी मुर्मू भारतीय लोक से थे दल जीत गया.
भाजपा ने 1998 में पहली बार यह सीट जीती थी, जब उसके उम्मीदवार सोम मरांडी ने कांग्रेस के थॉमस हंसडक को सिर्फ नौ वोटों के अंतर से हराया था. हालांकि, उनकी जीत संक्षिप्त थी, अगले वर्ष हंसडैक की वापसी हुई.
पिछले दो दशकों में झामुमो ने यहां अपनी पकड़ मजबूत की है, जबकि कांग्रेस की उपस्थिति कम हुई है. गौरतलब है कि 2009 से 2014 (जब यह बीजेपी के पास गई) के बीच के वर्षों को छोड़कर, राजमहल सीट काफी हद तक पार्टी के पास ही रही है.
यह उसके वोटिंग रुझानों में भी दिखता है, जेएमएम का वोट शेयर 2014 में 39.88 प्रतिशत से बढ़कर 2019 में 48.47 प्रतिशत हो गया है.
भाजपा को इस चुनाव में अपनी किस्मत पलटने की उम्मीद है और वह ताला मरांडी पर अपना दांव लगा रही है, जो ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन में राजनीतिक कार्यकाल के बाद इस साल पार्टी में लौटे हैं.
मरांडी को 2016 में भाजपा की राज्य इकाई का प्रमुख नियुक्त किया गया था जब रघुबर दास राज्य सरकार का नेतृत्व कर रहे थे. हालांकि, उनका कार्यकाल संक्षिप्त था और उनके बेटे के खिलाफ यौन शोषण के आरोप सहित कई विवादों ने उन्हें नैतिक आधार पर इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया.
झामुमो की तरह, भाजपा भी राजमहल को एक स्टेटस सिंबल के रूप में देखती है — न केवल हेमंत सोरेन का गढ़ बरहेट इसके अंतर्गत आता है, बल्कि सोरेन, विशेष रूप से पितामह शिबू सोरेन का भी इस पर महत्वपूर्ण प्रभाव बना हुआ है.
सोरेन परिवार की यह मजबूत पकड़ 2014 में भी ढीली नहीं हुई, जब देश भर में चली मोदी लहर ने भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को राज्य की 14 लोकसभा सीटों में से 12 पर जीत दिलाई.
चंदनकियारी विधायक और झारखंड विधानसभा में भाजपा विधायक दल के नेता अमर कुमार बाउरी के अनुसार, पार्टी राजमहल को झामुमो से छीनने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है.
उन्होंने कहा, “इसके बाद हम (इस साल के अंत में होने वाले) विधानसभा चुनाव में भी झामुमो को सत्ता से बाहर कर देंगे.”
सीट के लिए कड़ी लड़ाई को देखते हुए, झामुमो ने इस बार अपनी चुनावी रणनीति बदल दी है, इसके कैडर लगातार निर्वाचन क्षेत्र के दूरदराज और पहाड़ी इलाकों में मतदाताओं से जुड़ रहे हैं. उसे कल्पना सोरेन के जोरदार चुनाव अभियान से भी उम्मीदें हैं
महेशपुर विधायक स्टीफन मरांडी ने दिप्रिंट को बताया, “झामुमो कार्यकर्ताओं और आदिवासियों की गोलबंदी के कारण भाजपा की ताकत खत्म हो रही है। कल्पना सोरेन के अभियान ने पार्टी को थका दिया है.”
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धनशोधन के आरोप, आंतरिक विद्रोह
झामुमो के लिए यह चुनाव कोई सुनहरा मौका नहीं है, क्योंकि हेमंत सोरेन और हाल ही में कांग्रेस नेता और मंत्री आलमगीर आलम की गिरफ्तारी से इसकी स्थिति खराब हो गई है.
आलम एक प्रमुख मुस्लिम चेहरा होने के साथ-साथ झारखंड कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार भी माने जाते हैं.
जबकि गिरफ्तारियों ने भाजपा को पर्याप्त गोला-बारूद दिया है, सत्तारूढ़ गठबंधन ने दोनों नेताओं का बचाव किया है, इसके बजाय भाजपा पर चल रहे चुनावों से घबराने का आरोप लगाया है.
लेकिन झामुमो को केवल दो गिरफ्तारियों से ही नहीं जूझना है. इसे बगावत का भी सामना करना पड़ रहा है — चुनाव लड़ने के लिए टिकट से इनकार किए जाने के बाद, पार्टी के पांच बार के बोरियो विधायक लोबिन हेम्ब्रोम ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला किया है.
यह विद्रोह पार्टी प्रमुख शिबू सोरेन की बड़ी बहू और झारखंड की आदिवासी जामा सीट से विधायक सीता सोरेन के भाजपा में शामिल होने के कुछ महीनों बाद हुआ.
17 मई को झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन ने हेम्ब्रोम और सीता, जो अब दुमका से भाजपा उम्मीदवार हैं, दोनों को छह साल के लिए निलंबित कर दिया.
झामुमो अब पार्टी में हेम्ब्रोम के समर्थन आधार को खत्म करने और उन्हें अलग-थलग करने की कोशिश कर रहा है. अपनी ओर से बोरियो विधायक का दावा है कि उन्होंने पार्टी को बता दिया था कि राजमहल के मतदाता मौजूदा सांसद विजय हंसदक से नाखुश हैं.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “मैंने पार्टी से कहा था कि जनता वर्तमान सांसद विजय कुमार हंसदक से खुश नहीं है, उन्होंने कोई विकास कार्य नहीं किया है, लेकिन पार्टी ने नहीं सुनी. अब, मुझे हर जगह जनता और कार्यकर्ताओं से समर्थन मिल रहा है.”
हालांकि, विजय कुमार हंसदक ने आरोपों से इनकार करते हुए दावा किया कि पार्टी के लिए विकास एक प्रमुख मुद्दा है. झामुमो सूत्रों का यह भी दावा है कि पार्टी संथाल परगना के आदिवासी इलाकों में अजेय है.
हेमलाल मुर्मू के मुताबिक, हेम्ब्रोम का पार्टी या उसके अभियान पर कोई असर नहीं पड़ेगा. राजमहल से पूर्व सांसद और बरहेट से चार बार विधायक रहे मुर्मू ने 2014 में झामुमो छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए और उन्हें उस वर्ष के साथ-साथ 2019 में भी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा गया.
वह हंसदक से दोनों चुनाव हार गए. आज, वह बोरियो में अपने प्रतिद्वंद्वी के चुनाव अभियान को संभाल रहे हैं, पिछले साल झामुमो में लौट आए थे.
उन्होंने कहा, “कोई भी झामुमो कार्यकर्ता उनके साथ नहीं है.”
हालांकि, वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अनुज कुमार स्थिति को समझने में अधिक सतर्क हैं. उनका मानना है कि पिछले कुछ साल में निर्वाचन क्षेत्र में आदिवासी और मुस्लिम वोटों का संयोजन झामुमो के पक्ष में रहा है, लेकिन यह देखना बाकी है कि क्या हेम्ब्रोम बोरियो के बाहर कोई बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं.
उन्होंने कहा, दूसरी ओर, भाजपा को मोदी के नाम पर वोट हासिल करने का भरोसा है.
उन्होंने कहा, “भाजपा कार्यकर्ता ज़मीनी स्तर पर निर्वाचन क्षेत्र के वोट-बैंक समीकरणों को अपने पक्ष में करने में असमर्थ रहे हैं.”
झामुमो का तुरुप का पत्ता — कल्पना सोरेन
पिछले दिसंबर में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से पार्टी को झटका लगने और इस चुनाव में उसके अभियान को झटका लगने की आशंका थी. यह तब बदल गया जब उनकी पत्नी कल्पना सोरेन आगे आईं.
सोरेन की गिरफ्तारी के बाद राजनीति में प्रवेश करने के लिए मजबूर, कल्पना, जो पहले एक गृहिणी थी, राजनीति में उभरता सितारा बन गई हैं. उन्होंने पिछले चार दिनों में राजमहल में आठ चुनावी रैलियां की हैं और भीड़ को हिंदी, बांग्ला और संथाली में संबोधित किया है.
इन अभियानों में उन्होंने न केवल अपने पति को “फंसाने” के लिए मोदी सरकार पर हमला किया है, बल्कि यह भी बताया है कि केंद्र कैसे राज्य का फंड रोक रहा है.
वह आदिवासी शहीदों के नाम बताने और अपने पति, हेमंत और अपने ससुर शिबू सोरेन, जो झारखंड राज्य के लिए आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति थे, के योगदान को सूचीबद्ध करने में भी सावधानी बरतती हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, उनकी मौजूदगी से पार्टी में नई ताकत का संचार होता दिख रहा है. कल्पना खुद मानती हैं कि पिछले दो चुनावों के दौरान देश में जो मोदी लहर थी, वह कम हो गई है. वो यह भी मानती हैं कि राजमहल पर उनके ससुर की अमिट छाप है.
उन्होंने कहा, यह सब भाजपा को परेशान कर रहा है.
कल्पना ने कहा, “राजमहल सिदो मुर्मू और कान्हू मुर्मू (संथाल विद्रोह के) जैसे बहादुर आदिवासी शहीदों की भूमि रही है और इसने हमेशा गुरुजी का सम्मान किया है (शिबू सोरेन) हमारे पूर्वजों ने हमें लड़ना सिखाया है और हम तानाशाही ताकतों से ज़रूर लड़ेंगे. इस बार भी बीजेपी यहां चुनाव हारेगी.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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