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Tuesday, 7 May, 2024
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‘उन्होंने वह कर दिया जो औरंगजेब ने भी नहीं किया’- गया के मंदिर में मुस्लिम मंत्री के प्रवेश पर BJP ने बोला नीतीश पर तीखा हमला

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि नीतीश से अलग होने के बाद भाजपा, बिहार की सत्तारूढ़ महागठबंधन सरकार को गिराने के लिए ध्रुवीकरण के अपने जांचे-परखे तरीके का इस्तेमाल कर रही है.

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गया: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक और राजनीतिक तूफान में फंस गए हैं – इस बार वह एक मुस्लिम मंत्री को गया के उस विष्णुपद मंदिर के गर्भगृह तक ले जाने के लिए विवादों के घेरे में हैं जहां गैर-हिंदुओं के प्रवेश की सख्त मनाही है.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने मंगलवार को हिंदू भावनाओं को आहत करने के लिए मुख्यमंत्री की आलोचना करते हुए उनकी तरफ से माफी की मांग की.

नीतीश ने 9 सितंबर से शुरू होने वाले 15 दिवसीय पितृपक्ष मेले की तैयारियों की समीक्षा करने के लिए सोमवार को मंदिर का दौरा किया था और उनके साथ राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सदस्य और राज्य के सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री मोहम्मद इसराइल मंसूरी भी मंदिर के गर्भगृह तक चले गए थे.

भाजपा विधायक हरिभूषण ठाकुर बचोल ने इस मुद्दे पर राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करने की धमकी देते हुए दिप्रिंट को बताया, ‘नीतीश कुमार ने वह कर दिया है जो औरंगजेब और ब्रिटिश सरकार ने भी कभी नहीं किया. (उन्होंने) मंदिर की पवित्रता को अपवित्र कर दिया.’

जब से नीतीश ने 9 अगस्त को भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के साथ अपना गठबंधन समाप्त कर राजद के साथ हाथ मिला लिया था, तभी से भाजपा नेताओं ने नीतीश के जनता दल (यूनाइटेड), या जद (यू), और उनके नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार के खिलाफ आरोपों की बौछार शुरू कर दी है.

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इन आरोपों में यह दावा भी शामिल है कि उनकी सरकार के इस्लामिक समूह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीऍफ़आई) से संबंध हैं, और यह भी कि बिहार में एक ‘आतंकवादी नेटवर्क’ चल रहा है. भाजपा ने नीतीश पर मुस्लिम बहुल सीमांचल इलाके के सरकारी स्कूलों में शुक्रवार को सार्वजनिक छुट्टी करने की इजाजत देकर बिहार में ‘शरिया कानून’ लाने का भी आरोप लगाया है.

इस सब के बीच, बुधवार को, नीतीश ने बिहार विधानसभा में नई महागठबंधन गठबंधन सरकार का बहुमत साबित करने के लिए पेश किया गया विश्वास मत जीत लिया.

अपने पिछले अवतार में – जब जद (यू) ने 2015 के राज्य विधानसभा चुनावों के लिए राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था – महागठबंधन ने भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की तुलना में लगभग 8 प्रतिशत अधिक वोट हासिल किए थे और राजग ने राज्य की 243 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 58 पर जीत हासिल की थी.

सत्तारूढ़ गठबंधन के पास भाजपा की तुलना में बहुत बड़ा सामाजिक आधार होने के कारण, राजनीतिक पर्यवेक्षकों को लगता है कि भाजपा अब सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण वाले अपने ‘जांचे-परखे हुए तरीके’ का उपयोग करने की इच्छुक होगी. जदयू मंत्री अशोक चौधरी ने भी ऐसा ही आरोप लगाया है. इस बात पर जोर देते हुए कि यह कोई ‘बड़ा मुद्दा’ नहीं है, उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि ‘मंत्री ने गलती से मुख्यमंत्री जी के साथ प्रवेश कर लिया होगा.’ इस बीच, राजद के शिवानंद तिवारी ने कहा कि इस मुद्दे पर शोर मचाने वाले लोग ‘वही हैं जो पहले दलितों को मंदिर में प्रवेश करने से रोकते थे’.

जद (यू) के एक अन्य नेता ने उनका नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया: ‘भाजपा द्वारा ध्रुवीकरण के मुद्दे और अधिकता से उठाए जाएंगे, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विष्णुपद मंदिर विवाद से बचते तो अच्छा होता.’


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प्राचीन काल से ही गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर है मनाही

भगवान विष्णु की अप्रतिम नक्काशी के साथ गया का विष्णुपद मंदिर पितृ पक्ष – एक ऐसा पखवाड़ा जिसके दौरान हिंदू अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं – मनाने आने वाले श्रद्धालुओं के लिए अंतिम पड़ाव है.

अष्टकोणीय आकार में काले ग्रेनाइट, 30 मीटर खड़ी ऊंचाई और 51 किलोग्राम सोने से बने ध्वज के साथ बनी इस मंदिर की वर्तमान संरचना साल 1787 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा बनवाई गई थी.

मंदिर में गैर-हिन्दू धर्मावलंबियों का प्रवेश सख्त वर्जित है और इसकी घोषणा करने वाला एक साइन बोर्ड (सूचना पट्ट) इसके मुख्य द्वार पर लगाया गया है. खबरों के मुताबिक सोमवार को मुख्यमंत्री के साथ चल रहे बिहार के मुख्य सचिव आमिर सुभानी मंदिर के गेट पर ही रुक गए थे.

विष्णुपद मंदिर प्रबंधन समिति ने कहा है कि मंसूरी को गर्भगृह में प्रवेश करने से रोकना अधिकारियों की जिम्मेदारी थी. विष्णुपद मंदिर प्रबंधन समिति के कार्यकारी अध्यक्ष एस.एल. विट्टल ने दिप्रिंट को बताया, ‘जब मुख्यमंत्री जी ने मंदिर का दौरा किया था, तो हमें उनके (मंसूरी के) धर्म का पता नहीं था. वे नए मंत्री हैं जिन्हें हम नहीं पहचानते. यह अधिकारी थे जिन्हें मंत्री महोदय को रोकना चाहिए था.’

विट्ठल ने कहा, ‘दोषियों को माफी मांगनी चाहिए,’ साथ ही, उन्होंने कहा कि बहुत सारे वीआईपी लोग पहले भी मंदिर में आ चुके हैं, लेकिन ‘गर्भगृह में किसी गैर-हिंदू द्वारा प्रवेश करने का वाकया पहले कभी नहीं हुआ था.’

प्रबंधन समिति के सचिव जीएल पाठक ने कहा कि मंदिर में गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने की परंपरा ‘प्राचीन काल’ में स्थापित की गई थी. दिप्रिंट के साथ बात करते हुए पाठक ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि मंत्री महोदय को रोका क्यों नहीं गया और पुजारियों को उनकी उपस्थिति के बारे में सूचित क्यों नहीं किया गया?

इस बीच, मंगलवार को मीडियाकर्मियों से बात करते हुए, मंसूरी ने कहा कि वह विष्णुपद मंदिर के अंदर जाने के बाद ‘सम्मानित’ महसूस करते हैं. उन्होंने कहा, ‘मेरा मकसद किसी की भी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था.‘

गया के मिर्जा गालिब कॉलेज में पढ़ाने वाले अब्दुल कादिर के मुताबिक 20वीं सदी की शुरुआत में गैर-हिंदुओं के लिए एक अलग गेट बनाया गया था, जो की गर्भगृह तक जाता था. उन्होंने कहा कि वह रास्ता ब्रिटिश शासन काल में मंदिर में वायसराय के प्रवेश की सुविधा के लिए बनाया गया था. उन्होंने कहा, ‘लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, अतिक्रमणकारियों ने उस गेट के आसपास के इलाके पर कब्जा कर लिया.’

कादिर ने यह भी दावा किया कि जब लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री के रूप में इस मंदिर में गए थे, तो उनके साथ एक मुस्लिम मंत्री इलियास हुसैन भी थे. उन्होंने बताया, ‘लेकिन उस समय कोई हो-हल्ला नहीं हुआ था.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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