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Wednesday, 11 December, 2024
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बिना धर्मांध बने धर्म का पालन करना सीखा है, BJP में तालमेल बिठाना मुश्किल : बीरेंद्र सिंह

दस साल तक भाजपा में रहने के बाद हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह ने दिप्रिंट को दिए विशेष इंटरव्यू में दोनों पार्टियों के राजनीति करने के तरीके, किसान आंदोलन और आगामी लोकसभा चुनावों में अंतर के बारे में बात की.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में दस साल तक रहने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह ने इस हफ्ते की शुरुआत में इसे अलविदा कह दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए. उनके अनुसार, भाजपा में जो नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से नहीं हैं उन्हें अक्सर बाहरी माना जाता है.

दिप्रिंट को दिए एक विशेष इंटरव्यू में पूर्व मंत्री ने कहा कि भाजपा में मुद्दों को जाति के चश्मे से देखा जाता है और उनके जैसे लोग, जिनका पालन-पोषण इस विश्वास के साथ हुआ है कि कोई भी व्यक्ति “धर्मांध” हुए बिना भी अपने धर्म का पालन कर सकता है, उन्हें इसमें तालमेल बिठाना मुश्किल लग रहा था.

इस दौरान उन्होंने कहा कि भाजपा ने किसानों और गरीबों के लिए “ग्लिसरीन के आंसू” बहाए.

अपने सांसद बेटे बृजेंद्र सिंह के आधिकारिक आवास पर हरियाणा के वरिष्ठ नेता ने बीजेपी से अपने मोहभंग के कारण, कांग्रेस और भाजपा में राजनीति के तरीके में अंतर, किसान आंदोलन, पहलवानों का विरोध और आगामी लोकसभा चुनाव जैसे मुद्दों को हल करने के अपने प्रयासों के बारे में बात की.

सिंह, जो 2014 में भाजपा में शामिल होने से पहले 37 साल से अधिक समय तक (1977 में अपने पहले चुनाव के बाद से) कांग्रेस में थे, यहां लौटना उनके लिए सिर्फ घर वापसी नहीं है, बल्कि “विचारधारा वापसी” भी है.

बीरेंद्र सिंह से पहले उनके पिता नेकी राम शेओकंद भी एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता थे, जो 1966 से पहले संयुक्त पंजाब में मंत्री थे और फिर 1968 में बंसी लाल के अधीन मंत्री थे.

बीरेंद्र सिंह ने कहा कि उनका पालन-पोषण ऐसे माहौल में हुआ है, जहां आर्य समाज के प्रभाव के कारण कोई भी धर्मांध हुए बिना अपने धर्म का पालन कर सकता है. हालांकि, उन्होंने कहा कि बीजेपी की विचारधारा इससे मेल नहीं खाती.

इसके अलावा, उन्होंने कहा, “भाजपा में शामिल होने वाले विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को आरएसएस कैडर के लोगों द्वारा कभी भी अपना नहीं माना जाता. जिन लोगों की पृष्ठभूमि आरएसएस से नहीं है, उन्हें भाजपा में हमेशा बाहरी माना जाता है.”

उन्होंने यह भी कहा कि बाहर से लोगों को लाना 2014 से भाजपा द्वारा एक उपयोगी प्रयोग रहा है और इससे पार्टी को सत्ता में आने में मदद मिली है और इसे 10 साल तक बनाए रखने में भी मदद मिली है. सिंह ने कहा, “भाजपा को चुनाव जीतने में सक्षम अपने नेता तैयार करने में कई दशक लग गए होंगे. इसके बजाय, वे अन्य दलों से ऐसे नेताओं को लाते हैं जो जीतने की क्षमता रखते हैं और उन्हें उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारते हैं.”

सिंह ने कहा कि एक और चीज़ जो उन्हें भाजपा में पसंद नहीं है वो यह कि पार्टी “फ्रीबीज़” देने में विश्वास करती है.

उन्होंने कहा, “भाजपा ने फ्रीबीज़ में महारत हासिल कर ली है. वह लोगों को निर्भर बना रहे हैं और उनकी स्थितियों में सुधार के लिए उनके स्वाभाविक संघर्ष पर अंकुश लगा रहा है. लोगों को मुफ्त राशन देना ऐसा है, ‘हम उन्हें भूखा नहीं रहने देंगे, लेकिन हम उन्हें ज़िंदगी में आगे भी नहीं बढ़ने देंगे’. उन्होंने पूछा, मुझे समझ नहीं आता…जब मोदी दावा कर रहे हैं कि 13.5 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया है, तो मुफ्त राशन पाने वाले लोगों की संख्या में कमी कैसे नहीं आई?”

बीरेंद्र सिंह ने कहा कि उन्होंने देखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अधीन मंत्री कैसे काम करते हैं. उन्होंने मनमोहन सिंह और राजीव गांधी जैसे पूर्व प्रधानमंत्रियों के तहत भी काम किया है और इसमें उन्हें कई अंतर दिखाई दिए.

भाजपा और कांग्रेस के बीच एक बड़ा अंतर बताते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस में रहते हुए लोग पार्टी के नेतृत्व से अलग विचार रख सकते हैं, लेकिन भाजपा में यह संभव नहीं है, यह एक कैडर-आधारित यानी कि “एक नियंत्रित पार्टी” है.

सिंह ने कहा, “मैंने उस समय पेयजल और स्वच्छता जैसे महत्वपूर्ण विभागों को संभाला, जब मोदी ने स्वच्छता अभियान, ग्रामीण विकास और पंचायती राज शुरू किया था. मेरे पास कई विचार थे जिनके बारे में मुझे लगता था कि इससे लोगों को फायदा हो सकता है, लेकिन जब इन विचारों को लागू करने की बात आई तो मुझे बाधाओं का सामना करना पड़ा और इसका असर शासन व्यवस्था पर भी पड़ा. मोदी सरकार के तहत, एक मंत्री से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वे अपने विचारों को लागू करे या अपनी नीतियां बनाए. एक मंत्री को कार्यान्वयन में प्रभावी होना चाहिए, लेकिन किसी को विचारों पर विचार करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि विचारधारा ऊपर से आती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि भाजपा आरएसएस द्वारा समर्थित एक कैडर-आधारित पार्टी है और इसकी कुछ विचारधाराएं हैं जो नीतियों में तब्दील होती हैं.”

जब दिप्रिंट ने उनसे उनके इस अवलोकन के बारे में विस्तार से पूछा कि जाति इस बात को प्रभावित करती है कि भाजपा मुद्दों को कैसे देखती है, तो सिंह ने कहा कि जब महिला पहलवान भाजपा सांसद और पूर्व कुश्ती महासंघ के हाथों अपने साथ हुए कथित यौन उत्पीड़न के लिए न्याय की मांग करते हुए धरने पर बैठी थीं. भारत (डब्ल्यूएफआई) के प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से कई बार बात की, वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें वे अपना मित्र बताते हैं. उन्होंने कहा कि उन्होंने केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से भी समय मांगा, लेकिन उन्हें समय नहीं मिला.

इसका ज़िक्र करते हुए कि कैसे भाजपा हरियाणा और राजस्थान में जाटों की अनदेखी कर रही है, मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिए अन्य जातियों को उनके खिलाफ खड़ा कर दिया है। संयोगवश, विरोध करने वाले सभी पहलवान जाट थे, कांग्रेस नेता ने कहा, “पहलवान तो पहलवान होता है. औरत तो औरत होती है. जाति का इससे कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए.”


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‘400 पार दूर के ढोल’

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) मुख्यालय में कांग्रेस में दोबारा शामिल होते हुए बीरेंद्र सिंह ने लोगों से “लोकतंत्र और संविधान को बचाने” के लिए हाथ मिलाने की अपील की थी. इस बारे में दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार की कुछ कार्रवाइयां, जैसे विपक्ष शासित राज्य सरकारों को अस्थिर करने की कोशिश, चुनावी बॉन्ड योजना और भारत के मुख्य न्यायाधीश को पैनल से बाहर करके चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करना लोकतंत्र और भविष्य में संविधान खतरे में पड़ सकता है.

Former Union minister Birender Singh at the official residence of his MP son Brijendra Singh | Photo: Suraj Singh Bisht, ThePrint
पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह अपने सांसद पुत्र बृजेंद्र सिंह के सरकारी आवास पर | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

सिंह ने किसानों और गरीबों के प्रति भाजपा की सहानुभूति की तुलना “ग्लिसरीन-वाले आंसुओं” से अधिक कुछ नहीं की. 2021-22 के किसान आंदोलन के दौरान अपने प्रयासों के बारे में बात करते हुए, सिंह ने बताया कि कैसे, किसान नेताओं के अनुरोध पर, उन्होंने तत्कालीन कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से बात की थी. अगर सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सुनिश्चित नहीं कर पाती है तो उन्होंने प्रत्येक फसल के लिए खरीद मूल्य के लिए एक बेंचमार्क तय करने का प्रस्ताव रखा. हालांकि, उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया, सरकार ने मुक्त-बाज़ार दृष्टिकोण को प्राथमिकता दी.

कांग्रेस के बारे में बात करते हुए सिंह ने राहुल गांधी की अखिल भारतीय लोकप्रियता के बारे में बात की. उनके अनुसार, भाजपा ने राहुल को केवल इसलिए निशाना बनाया क्योंकि पार्टी “जानती है कि नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकती है”.

उन्होंने कहा, “राजीव गांधी की मृत्यु के बाद, भाजपा नेता सुषमा स्वराज एक बार किसी सामाजिक सभा में मुझसे मिलीं और पूछा कि क्या सोनिया गांधी राजनीति में शामिल होंगी. जब मैंने कहा कि तुरंत नहीं, लेकिन हां, वे ऐसा करेंगी, तो स्वराज ने जवाब दिया कि अगर ऐसा होता, तो कांग्रेस एक और कार्यकाल के लिए सत्ता में आएगी.”

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिए 400 से अधिक सीटें जीतने के भाजपा के दावों को खारिज करते हुए सिंह ने कहा कि राजनीति में 50 साल से अधिक का अनुभव रखने वाले व्यक्ति के रूप में वे दावे के साथ कह सकते हैं कि “राजनीति करवट ले रही है”. उन्होंने कहा, “अगर इसने गति पकड़ ली, तो लोगों को आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिलेंगे, लेकिन अगर यह धीमा रहा, तो भी भाजपा का लक्ष्य दूर का ढोल ही साबित होगा”

(इस इंटरव्यू को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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