scorecardresearch
Monday, 6 May, 2024
होमराजनीतिहरियाणा ने 57 वर्षों में सिर्फ 6 महिलाओं को लोकसभा के लिए चुना, पंजाब और हिमाचल के आंकड़े भी लगभग समान

हरियाणा ने 57 वर्षों में सिर्फ 6 महिलाओं को लोकसभा के लिए चुना, पंजाब और हिमाचल के आंकड़े भी लगभग समान

हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों में से 6 के मतदाताओं ने कभी भी किसी महिला सांसद को लोकसभा के लिए नहीं चुना है. विशेषज्ञ बताते हैं कि आज तक केवल 4 महिलाओं ने राज्यसभा में राज्य का प्रतिनिधित्व किया है.

Text Size:

गुरुग्राम: भले ही संसद के दोनों सदनों ने महिला आरक्षण विधेयक पारित कर दिया है, लेकिन भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) के आंकड़ों पर बारीकी से नजर डालने से पता चलता है कि 1966 में राज्य के निर्माण के बाद से हरियाणा से केवल छह महिलाएं लोकसभा के लिए चुनी गई हैं. इसी तरह पड़ोसी राज्यों पंजाब और हिमाचल प्रदेश में भी स्थिति लगभग समान ही है.

हरियाणा की अब तक की छह महिला सांसदों में से, चंद्रावती को भिवानी से, सुधा यादव को महेंद्रगढ़ से, श्रुति चौधरी को भिवानी-महेंद्रगढ़ से, कैलाशो देवी को कुरुक्षेत्र से, सुनीता दुग्गल को सिरसा से, और कुमारी शैलजा को सिरसा और बाद में अंबाला से चुना गया था.

राज्य की 10 लोकसभा सीटों में से छह करनाल, सोनीपत, रोहतक, हिसार, गुड़गांव और फरीदाबाद में मतदाताओं ने कभी भी किसी महिला सांसद को नहीं चुना है. इनमें से तीन संसदीय क्षेत्र – सोनीपत, रोहतक और हिसार – हरियाणा के जाट गढ़ हैं, जहां विवादों का फैसला अक्सर खाप पंचायतें ही करती हैं.

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में महिला अध्ययन की प्रोफेसर रीचा तंवर के अनुसार, हरियाणा का डेटा कोई आश्चर्य की बात नहीं है, यह देखते हुए कि राज्य के अधिकांश हिस्सों में पितृसत्तात्मक मानदंड कितने स्पष्ट हैं.

वुमेन इन स्टेट पॉलिटिक्स इन इंडिया: मिसिंग इन द कॉरिडोर ऑफ पावर पुस्तक के एक अध्याय में तंवर ने हरियाणा की राजनीति में महिलाओं की कम भागीदारी के लिए “चुनाव और चुनावी प्रक्रिया के बारे में ज्ञान और जागरूकता की कमी” को जिम्मेदार ठहराया है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

तंवर लिखती हैं, “भारत में चुनाव, अन्य सभी आधुनिक लोकतंत्रों की तरह, बहुत जटिल, हिंसक, गंदे और महंगे हो गए हैं, जिससे उनके वित्तपोषण और प्रबंधन के लिए कई कानूनी और कई गैर-कानूनी तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है. महिलाएं स्पष्ट रूप से चुनावों के इस मैट्रिक्स में फिट नहीं हो सकती हैं.” कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के महिला अध्ययन अनुसंधान केंद्र की पूर्व निदेशक कहती हैं कि भागीदारी लागत “बहुत अधिक” है और कई क्षेत्रों में हिंसा “चुनावों पर हावी” हो गई है.

“परिणामस्वरूप, महिलाओं में अपनी ताकत के दम पर चुनाव लड़ने के लिए आवश्यक कौशल और आत्मविश्वास की कमी है.”

पाम राजपूत और उषा ठक्कर द्वारा संपादित यह पुस्तक इस साल जनवरी में जारी की गई थी.

तंवर यह भी लिखती हैं कि हरियाणा एक “ग्रामीण कृषि प्रधान राज्य है जहां पितृसत्तात्मक मानदंड अधिक स्पष्ट हैं, जहां निर्णय लेने की शक्तियों और पदों को पुरुषों का क्षेत्र माना जाता है”.

वह दिप्रिंट को बताती हैं, “हालांकि, चीजें अब धीरे-धीरे बदल रही हैं और महिलाओं ने अब अपनी शक्तियों का इस्तेमाल खुद करना शुरू कर दिया है.”

इस बीच, 2014 से 2019 तक हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के मंत्रिमंडल में मंत्री रहीं कविता जैन का कहना है कि इस तथ्य को कोई कम नहीं आंक सकता कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महिला आरक्षण विधेयक पर राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति बनाने में सक्षम थे.

20 सितंबर को लोकसभा में और अगले दिन राज्यसभा में नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित हुआ, जो संविधान (128वां संशोधन) विधेयक, 2021 – लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में सभी सीटों में से एक तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान करता है.


यह भी पढ़ें: ‘सिविल सर्विस में ‘थर्ड जेंडर’ केटेगरी जोड़ें’, NHRC ने कहा- ट्रांस लोगों को पैतृक भूमि विरासत में मिले


हरियाणा की महिला सांसद

चंद्रावती हरियाणा से पहली महिला लोकसभा सांसद बनीं, जब उन्होंने जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में 1977 में भिवानी में बंसीलाल को हराया था. वह तब इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री थे.

1928 में जन्मी चंद्रावती 1968 में राज्य विधानसभा के लिए चुनी जाने वाली पहली महिला भी थीं. हरियाणा के पंजाब से अलग होने के बाद, वह 1968 में कांग्रेस के टिकट पर राज्य विधानसभा के लिए चुनी गईं और फिर 1991 जनता दल के टिकट पर चुनी गईं.

उन्होंने 1964 से 1966 तक पंजाब सरकार में और 1972 से 1974 तक हरियाणा सरकार में मंत्री के रूप में भी कार्य किया. इसके अलावा, वह फरवरी 1990 से दिसंबर 1990 तक पुडुचेरी की उपराज्यपाल रहीं. कोविड-19 से जूझने के बाद 92 वर्ष की आयु में चंद्रावती का नवंबर 2020 में निधन हो गया.

इस बीच, शैलजा एकमात्र महिला हैं जो हरियाणा से चार बार लोकसभा के लिए चुनी गईं – 1991 और 1996 में सिरसा से, और 2004 और 2009 में अंबाला से. वह कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की सदस्य भी रहीं और 2014 से 2020 तक राज्यसभा सांसद के रूप में भी कार्यरत रहीं.

उनके अलावा, कैलाशो देवी 1998 और 1999 में इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) के टिकट पर कुरूक्षेत्र से, 1999 में महेंद्रगढ़ से भाजपा की सुधा यादव और 2009 में भिवानी-महेंद्रगढ़ से कांग्रेस की श्रुति चौधरी लोकसभा के लिए चुनी गईं.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), रूड़की से रसायन विज्ञान में एमएससी और पीएचडी करने वाली यादव उस समय लेक्चरर थीं, जब उनके पति सीमा सुरक्षा बल में डिप्टी कमांडेंट थे और कारगिल युद्ध में मारे गए थे. वह वर्तमान में पार्टी के केंद्रीय संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति की सदस्य हैं.

कैलाशो देवी भी एक कॉलेज शिक्षिका थीं, जिसके बाद INLD – जिसे तब हरियाणा लोक दल (राष्ट्रीय) के नाम से जाना जाता था – ने उन्हें 1998 में कुरुक्षेत्र संसदीय सीट से मैदान में उतारा था.

इस बीच, भाजपा की सुनीता दुग्गल, जिन्होंने 2019 में एक बड़े अंतर से अपनी सीट जीती थी, वह सिरसा से मौजूदा सांसद हैं. वह एक भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) अधिकारी थी, लेकिन भाजपा के टिकट पर सिरसा से आम चुनाव लड़ने के लिए 2014 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी.

भाजपा के साथ सीट-बंटवारे की व्यवस्था के तहत सीट कुलदीप बिश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस के पास जाने के बाद, दुग्गल ने उस साल के अंत में भाजपा के टिकट पर रतिया सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन मामूली अंतर से हार गए.

इन छह महिलाओं में से कुमारी शैलजा और श्रुति चौधरी राजनीतिक राजवंशों से हैं.

शैलजा के पिता, चौधरी दलबीर सिंह, चार बार (1967, 1971, 1980 और 1984) सिरसा से लोकसभा के लिए चुने गए, जबकि चौधरी के दादा बंसी लाल ने 1980 से 1989 तक निचले सदन में भिवानी का प्रतिनिधित्व किया. उनके पिता सुरेंद्र सिंह ने 1996 में यह सीट जीती थी और 1998 के आम चुनाव में इसे बरकरार रखा.

तंवर के अनुसार, हरियाणा के जिन जिलों में जाट प्रमुख समुदाय हैं, वहां कभी भी किसी महिला को लोकसभा के लिए नहीं चुना गया क्योंकि समुदाय के भीतर पुरुषों का वर्चस्व अधिक स्पष्ट है. वह कहती हैं, इसमें जाट सिख भी शामिल हैं,  जिससे पता चलता हैं कि पड़ोसी राज्य पंजाब से निचले सदन के लिए कई महिलाएं क्यों नहीं चुनी गई हैं.

तंवर ने दिप्रिंट को बताया, “अकेले लोकसभा के बारे में बात क्यों करें जहां लोगों के वोट मायने रखते हैं? यहां तक कि राज्यसभा में जहां पार्टी नेताओं को उम्मीदवार तय करने होते हैं, हरियाणा से आज तक केवल चार महिलाएं चुनी गई हैं: सुषमा स्वराज (1990-1996), विद्या बेनीवाल (1990-1996), सुमित्रा महाजन (2002-2008) और कुमारी शैलजा (2014-2020) में.”

वह कहती हैं कि हरियाणा में पितृसत्तात्मक मानसिकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब राज्य में महिलाएं पंचायतों के लिए चुनी जाती थीं, तब भी परिवार के पुरुष शायद ही कभी उन्हें अपनी शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति देते थे. महिला की शैक्षिक योग्यता कुछ भी हो, पुरुष निर्वाचित महिलाओं के स्थान पर पंचायत बैठकों में प्रॉक्सी के रूप में बैठते हैं.

राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण के महत्व पर जोर देते हुए वह कहती हैं कि महिलाएं कई नीतिगत मुद्दों को बेहतर ढंग से समझती हैं. उदाहरण के तौर पर वह कहती हैं कि आजादी के 76 साल बाद भी कई राज्य सरकारें पाइप से पीने का पानी मुहैया नहीं करा पाई हैं, क्योंकि ”दूर-दराज से पानी भरकर लाना महिलाओं का काम माना जाता है.”

“अगर दूर-दराज के इलाकों से पानी लाना आदमी का काम होता, तो हर घर में पीने का पानी बहुत पहले ही उपलब्ध करा दिया गया होता. लेकिन पुरुषों से भरे हुए बहुमत वाली विधायिकाओं के लिए यह कभी भी प्राथमिकता नहीं थी.”


यह भी पढ़ें: बहुविवाह, हलाला के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ने के लिए कैसे दो मुस्लिम महिलाओं को चुकानी पड़ी भारी कीमत


पंजाब, हिमाचल से महिला सांसद

महिला सांसदों के मामलें में हरियाणा का निराशाजनक रिकॉर्ड पड़ोसी पंजाब और हिमाचल प्रदेश के बराबर है.

पंजाब के 13 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से छह में मतदाताओं ने कभी भी किसी महिला सांसद को नहीं चुना है, जबकि शेष सात में मतदाताओं ने आज तक केवल नौ महिलाओं को निचले सदन के लिए चुना है.

इसी तरह, हिमाचल प्रदेश की चार लोकसभा सीटों में से दो – शिमला और हमीरपुर से कोई भी महिला लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाई है. वहीं, बाकी दो सीटों कांगड़ा और मंडी से तीन महिलाएं निचले सदन के लिए चुनी गई हैं.

पंजाब के मामले में, 1967 के आम चुनावों में अकाली दल की निरलेप कौर (संत फतेह सिंह) ने संगरूर से और कांग्रेस की मोहिंदर कौर ने पटियाला से जीत हासिल की.

पटियाला से मौजूदा सांसद कांग्रेस की परनीत कौर ने पहली बार 1999 में यह सीट जीती थी और 2004, 2009 और 2019 में इसे बरकरार रखा.

इसी तरह, कांग्रेस की सुखबंस कौर भिंडर 1980, 1984, 1989, 1991 और 1996 में गुरदासपुर सीट से लोकसभा के लिए चुनी गईं. वहीं कांग्रेस की गुरबिंदर कौर बराड़ भी थीं, जो 1980 में फरीदकोट से लोकसभा के लिए चुनी गईं. शिरोमणि अकाली दल (मान) की राजिंदर कौर बुलारा ने 1989 में लुधियाना सीट जीती थी.

2009 में, पंजाब में मतदाताओं ने दो महिलाओं को निचले सदन के लिए चुना – अकाली दल की परमजीत कौर गुलशन को फरीदकोट से और कांग्रेस की संतोष चौधरी होशियारपुर से.

इस बीच, बठिंडा से मौजूदा सांसद अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल ने पहली बार 2009 में यह सीट जीती और 2014 और 2019 में इसे बरकरार रखा.

हिमाचल प्रदेश से लोकसभा के लिए चुनी गई तीन महिलाओं में से सभी ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की थी. राजकुमारी अमृत कौर ने 1951 में मंडी से और चंद्रेश कुमारी कटोच ने 1984 में कांगड़ा से जीत हासिल की थी. मंडी से मौजूदा सांसद प्रतिभा सिंह ने 2004 में और फिर 2013 में हुए उपचुनाव में यह सीट जीती थी. नवंबर 2021 में, वह उपचुनाव में तीसरी बार इस सीट से लोकसभा के लिए चुनी गई थीं.

कोटा 2029 या 2039 में मिलेगा?

महिला आरक्षण विधेयक पर, अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ (एआईडीडब्ल्यूए) की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जगमती सांगवान, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की महिला शाखा का कहना है कि लोकसभा में महिला सांसदों की कम संख्या से पता चलता है कि क्यों उनके लिए कोटा जरूरी है. वह कहती हैं कि यह महिलाओं को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने और उन नीतियों को प्रभावित करने की अनुमति देता है जो देश की आधी आबादी के लिए महत्वपूर्ण हैं.

हालांकि, सांगवान को महिला आरक्षण विधेयक में परिसीमन नियम को लेकर संदेह है. वह कहती हैं, “जिस तरह से सरकार जनगणना और परिसीमन के बाद इस कानून को लागू करना चाहती है, उसके 2039 से पहले लागू होने की संभावना नहीं है, क्योंकि परिसीमन एक लंबी प्रक्रिया है और जनगणना कराने की प्रक्रिया कब शुरू होगी, इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है.”

दूसरी ओर, सिरसा से भाजपा सांसद दुग्गल का कहना है कि महिलाएं 2029 से कोटा का लाभ उठा सकेंगी. “हमारी पार्टी के अध्यक्ष जे.पी.नड्डा जी ने भाजपा सांसदों के बीच घोषणा की है कि महिलाओं के लिए आरक्षण 2029 के लोकसभा चुनावों से शुरू होगा. कोविड-19 के कारण जनगणना प्रक्रिया में देरी हुई. यह जल्द ही शुरू हो सकता है.”

वह कहती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा ने “हमेशा महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व दिया है”. दुग्गल कहती हैं कि भाजपा के पास आज केंद्रीय मंत्रिमंडल में 11 महिला मंत्रियों के अलावा 41 महिला सांसद हैं.

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: लोकतंत्र में आरक्षण के लिए समय सीमा नहीं, भागवत को पता होना चाहिए. RSS इसका विरोध करने वाला पहला नहीं है


 

share & View comments