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Wednesday, 1 January, 2025
होमराजनीतिमनमोहन सिंह के स्मारक मुद्दे पर तरलोचन सिंह ने कहा, ‘गुरुओं ने समानता पर जोर दिया, निजी प्रशंसा पर नहीं’

मनमोहन सिंह के स्मारक मुद्दे पर तरलोचन सिंह ने कहा, ‘गुरुओं ने समानता पर जोर दिया, निजी प्रशंसा पर नहीं’

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष ने डॉ. मनमोहन सिंह की पत्नी गुरशरण कौर को लिखे अपने पत्र में कहा कि ‘सिख धर्म में समाधि की भी अनुमति नहीं है’.

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गुरुग्राम: सिख धर्म ने लोगों को स्मारकों के माध्यम से किसी व्यक्ति के भौतिक अस्तित्व को महिमामंडित करने के बजाय उसके मूल्यों, शिक्षाओं और योगदान पर ध्यान केंद्रित करना सिखाया है, पूर्व राज्यसभा सांसद तरलोचन सिंह ने यह बात मनमोहन सिंह की पत्नी गुरशरण कौर को लिखे पत्र के कुछ दिनों बाद कही, जिसमें उन्होंने सुझाव दिया था कि स्मारकों का विचार सिख धर्म के मूल्यों के विपरीत है.

कांग्रेस पार्टी द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री के लिए स्मारक की मांग के बीच तरलोचन सिंह ने बुधवार को फोन पर दिप्रिंट से कहा, “हमारे गुरुओं ने व्यक्तिगत प्रशंसा के बजाय समानता और सामूहिक स्मरण पर जोर दिया.”

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर को 92 वर्ष की आयु में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली में निधन हो गया.

गुरशरण कौर को लिखे अपने पत्र में तरलोचन सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि परंपरागत रूप से सिख व्यक्ति के कद या योगदान की परवाह किए बिना उसके लिए स्मारक या समाधि नहीं बनाते हैं. उन्होंने कहा कि यह प्रथा सिख धर्म के समतावादी सिद्धांतों के अनुरूप है, जो मूर्ति पूजा से दूर रहते हैं और भौतिक संरचनाओं के माध्यम से व्यक्तियों की पूजा को हतोत्साहित करते हैं.

उन्होंने कथित तौर पर डॉ. सिंह के सम्मान में एक स्मारक के निर्माण की चर्चाओं और योजनाओं के जवाब में पत्र लिखा था, जो उनके अनुसार सिख परंपराओं और मान्यताओं के विपरीत है.

तरलोचन सिंह ने अपने पत्र में लिखा, “इस दुख की घड़ी में केवल गुरबानी ही सांत्वना है. सतगुरु के आशीर्वाद से आप स्वयं कीर्तन करें. डॉ. साहब स्वर्ग पहुंच गए हैं और सतगुरु नानक देव जी के चरणों में बैठे हैं.”

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष तरलोचन सिंह किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े नहीं हैं. 2004 में उन्होंने इनेलो, भाजपा और बसपा के समर्थन से एक निर्दलीय के रूप में राज्यसभा में प्रवेश किया. उन्हें 2021 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.

पत्र में कहा गया है, “स्मारक शब्द के इस्तेमाल को लेकर काफी भ्रम है, जो मुझे लगता है कि अनुचित है. पूरे राजघाट क्षेत्र में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के अंतिम संस्कार के लिए केवल एक फुट ऊंचे मंच हैं. वहां किसी भी तरह की कोई संरचना नहीं बनाई गई है. मैंने अनुरोध किया कि डॉ. साहब का अंतिम संस्कार राजघाट क्षेत्र में किया जाए. आप जानते हैं कि सिख धर्म में समाधि की भी अनुमति नहीं है. सिख धार्मिक नेताओं ने ज्ञानी जैल सिंह की समाधि को भी स्वीकार नहीं किया है.”

उन्होंने अपने पत्र में सुझाव दिया कि परिवार और डॉ. सिंह के प्रशंसक इसके बजाय भारत और दुनिया भर के छात्रों के लिए पूर्व प्रधानमंत्री के सम्मान में दिल्ली में अर्थशास्त्र या प्रशासन का एक स्कूल स्थापित करने का प्रस्ताव रख सकते हैं.

उन्होंने गुरशरण कौर को लिखा, “डॉ. साहब के जीवन और कार्यों पर एक स्थायी प्रदर्शनी इसका हिस्सा हो सकती है.”

कई लोग स्मारक और समाधियों को 15वीं शताब्दी में गुरु नानक देव द्वारा स्थापित सिख धर्म के सिद्धांतों के विपरीत मानते हैं. ऐतिहासिक रूप से, सिखों ने अपने गुरुओं और शहीदों को भौतिक स्मारकों के बजाय उनकी शिक्षाओं और बलिदानों को याद करके सम्मानित किया है.

डॉ. सिंह की मृत्यु के एक दिन बाद, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर सुझाव दिया था कि सरकार मोदी के पूर्ववर्ती की विरासत का सम्मान करने के लिए एक स्मारक स्थापित करे.

कांग्रेस ने पत्र को ‘एक्स’ पर भी पोस्ट किया.

बाद में, कांग्रेस नेताओं ने नई दिल्ली के निगमबोध घाट पर डॉ. सिंह के अंतिम संस्कार के लिए सरकार के तरीके की आलोचना की, इसे अनादर और कुप्रबंधन का “चौंकाने वाला प्रदर्शन” बताया — एक ऐसा आरोप जिसे भाजपा ने नकार दिया.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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