नई दिल्ली: गुजरात हाई कोर्ट ने गुरुवार को साल 2002 में गुजरात दंगों के दौरान भीड़ का नेतृत्व करने, भड़काने एवं नरोदा गाम में मुस्लिम समुदाय के 11 सदस्यों की हत्या के मामले में राज्य की पूर्व भाजपा मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी समेत सभी 86 आरोपी को बरी कर दिया.
गौरतलब है कि सभी वैसे भी पहले से ही जमानत पर जेल से बाहर ही थे. कुल 86 आरोपियों में से 18 की मौत हो चुकी है और मुकदमे के दौरान लगभग 182 अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में कोर्ट में पेश हुए.
माया कोडनानी जिसके लिए दी थी अमित शाह ने गवाही
गुजरात में बीजेपी से तीन बार विधायक रहीं माया कोडनानी नरेंद्र मोदी सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री रह चुकी हैं. अमित शाह 2017 में कोडनानी के लिए बचाव पक्ष के गवाह के रूप में कोर्ट पहुंचे थे और उनके पक्ष में गवाही दी थी.
अमित शाह ने कोर्ट में गवाही देते हुए बताया था कि माया घटना वाले दिन गुजरात के विधानसभा में मौजूद थीं और दंगों के दौरान वह नरोदा गाम में नहीं थी.
माया कोडनानी पेशे से डॉक्टर हैं और महिला की बीमारियों की विशेषज्ञ (गाइनकालजिस्ट )हैं . नरोदा में ही उनका अपना मेटर्निटी अस्पताल है, जिसमें वो काम करती थीं. लेकिन बाद में वह राजनीती में शामिल को गईं और दंगो के समय वह नरोदा से विधायक भी थीं.
दंगों के मामले में आरोपी पाए जाने और गिरफ्तारी के दौरान उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
2012 में, कोडनानी को गुजरात दंगों के दौरान नरोदा हिंसा में भाग लेने के आरोप में 28 साल की कैद की सजा सुनाई गई थी, लेकिन 2018 में गुजरात हाई कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था.
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RSS से संबंध
दंगा और हत्या करने के अलावा, कोडनानी पर नरोदा गाम मामले में हत्या की कोशिश व आपराधिक षडयंत्र रचने का भी आरोप है. माया आरएसएस के कार्यकर्ता के रूप में भी जानी जाती हैं और आरआरएस के साथ उनके विशेष संबंध भी माने जाते है.
मामले में दोषी ठहराए जाने वाले लोगो में से सबसे हाई-प्रोफाइल व्यक्तियों में से एक कोडनानी थीं, साथ ही आरोपियों में वह एकमात्र महिला भी थीं.
नरोदा ग्राम मामले में आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 143 (गैरकानूनी जमावड़ा), 147 (दंगा), 148 (घातक हथियारों से लैस होकर दंगा करना), 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत मुकदमा चलाया जा रहा था.
माया ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1995 के स्थानीय चुनावों से की थी जिसके बाद उन्होंने 2007 के गुजरात विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल की और गुजरात सरकार में मंत्री बन गईं थीं.
कोडनानी का परिवार भारत-पाकिस्तान के बंटवारे से पहले पाकिस्तान के सिंध प्रांत में रहता था, लेकिन 1947 में बंटवारे के बाद वे गुजरात में बस गए. माया ने अपने मेडिकल की पढ़ाई भी गुजरात के ही बड़ौदा मेडिकल कॉलेज से की और बाद में उन्होंने नरोदा में अपना अस्पताल भी खोला.
11 लोगों की अहमदाबाद के नरोदा गाम में साम्प्रदायिक हिंसा में 28 फरवरी 2002 को हत्या कर दी गई थी. यह घटना अयोध्या से लौट रहे 58 यात्रियों को गोधरा ट्रेन में आग लगाए जाने के विरोध में ‘बंद’ का आह्ववान के बाद हुई थी. इस मामले में कोडनानी के साथ पूर्व बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के नेता जयदीप पटेल जैसे कई अहम आरोपी हैं.
अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष ने 2010 में शुरू हुए मुकदमे में लगभग 187 और 57 गवाहों की जांच की और लगभग 13 वर्षों तक चले इस मामले की छह न्यायाधीशों ने अध्यक्षता की.
नरौदा गाम में नरसंहार 2002 के नौ प्रमुख सांप्रदायिक दंगों के मामलों में से एक था, जिसकी एसआईटी ने जांच की और विशेष अदालतों ने सुनवाई की.
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