वडनगर/उंझा, गुजरात: दोपहर ठीक 1.30 बजे स्कूल की घंटी बजती है और बी.एन. मेहसाणा जिले के वडनगर शहर में हाई स्कूल में 45 मिनट के दोपहर के अवकाश की घोषणा हो जाती है. जैसे ही छात्र अपनी कक्षाओं से शोरगुल से बाहर निकलते हैं, यहां के प्राचार्य बी.वी. प्रजापति अपने उस छोटे से कार्यालय में प्रवेश करते हैं, जहां की दीवारों में से एक पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो इस स्कूल के सबसे प्रसिद्ध पूर्व छात्र हैं, की फ्रेम की हुई तस्वीर प्रमुखता से लटकी हुई है.
गर्व से मुस्कुराते हुए प्रजापति ने बताया कि यह तस्वीर तब ली गई थी जब मोदी 2017 में प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान इस स्कूल में आए थे. प्रजापति ने याद करते हुए कहा, ‘उन्होंने अपनी सुरक्षा के सारे लाव लश्कर को पीछे छोड़ दिया; फिर स्कूल परिसर में प्रवेश किया, नीचे झुके, जमीन से कुछ मिट्टी ली और उसे अपने माथे पर मल लिया.’
एक किशोर के रूप में, साल 962 और 1967 के बीच, मोदी ने कक्षा आठवीं से ग्यारहवीं – जो उस समय गुजरात में स्कूली शिक्षा का अंतिम वर्ष था- तक इस स्कूल में पढ़ाई की थी. प्रजापति ने दावा किया कि यह स्कूल अब न केवल भारत में बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रसिद्ध हो गया है. उन्होंने कहा, ‘हमें हर समय ऐसे आगंतुक देखने को मिलते हैं जो मोदीजी के स्कूल को देखने आते हैं. यह हमारे छात्रों के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है.’
बाकी शहर के बारे में भी यही कहा जा सकता है. यहां के सभी मुख्य आकर्षण प्रधानमंत्री मोदी के साथ ही जुड़े हुए हैं – वह घर जहां उनका जन्म हुआ था, वह घर जिसमें वह बड़े हुए, रेलवे स्टेशन का वह स्टॉल जहां उन्होंने चाय बेची और शर्मिष्ठा झील जहां के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने वहां एक बार मगरमच्छ के बच्चे को उठा लिया था. इस कस्बे में, लगभग कोई भी आपको दिशा-निर्देश देता मिलेगा. यहां तक कि स्थानीय गौरव के इन स्थलों तक जाने में आपका भी साथ देगा और अक्सर इन स्थानों के महत्व पर सजीव टिप्पणी की पेशकश भी कर सकता है.
इसीलिए, मोदी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को साल 2017 में मेहसाणा जिले की उंझा विधानसभा सीट, जिसके अंतर्गत वडनगर आता है, पर कांग्रेस से मिली हार के कारण सभी को जबरदस्त झटका लगा था.
उस चुनाव में कांग्रेस की उम्मीदवार आशा पटेल ने भाजपा के नारायणभाई पटेल – जो साल 1995 से ही इस सीट से विधायक थे- के खिलाफ 19,000 से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की थी. हालांकि, साल 2017 में भाजपा ने लगातार छठे कार्यकाल के साथ गुजरात में अपनी सरकार बना ली थी पर इस सीट से मिली हार उसके लिए एक बड़ी शर्मिंदगी की बात थी.
पांच साल बाद, उंझा में 5 दिसंबर को फिर से मतदान होने जा रहा है और भाजपा यहां एक नई रणनीति आजमाने की कोशिश कर रही है. भाजपा नेताओं का कहना है कि पार्टी ने अपने वैचारिक स्रोत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संपर्क साधते हुए इसके वरिष्ठ कार्यकर्ता 67 वर्षीय किरीटकुमार केशवलाल पटेल को मैदान में उतारा है.
यह पहली बार है जब किरीटभाई, जिस नाम से वे आम तौर पर जाने जाते हैं, यहां से चुनाव लड़ेंगे. वे पिछले 35 वर्षों से आरएसएस से जुड़े हुए हैं और संगठन के प्रमुख मोहन भागवत के करीबी माने जाते हैं.
किरीटभाई को चुनावी अखाड़े में उतारे जाने ने यह काम जरूर किया है कि आरएसएस के तमाम कार्यकर्ताओं ने यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी भरपूर ताकत लगा दी है कि कांग्रेस के अरविंद अमरतलाल पटेल और नवागंतुक आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी उर्विश पटेल के खिलाफ चुनावी लड़ाई का सामना करते समय साल 2017 का परिणाम दोहराया न जाये.
पर सवाल ये भी है कि मोदी की अपार लोकप्रियता के बावजूद भाजपा साल 2017 में उंझा सीट क्यों हार गई? तब से इस निर्वाचन क्षेत्र में क्या बदलाव आया है? और पार्टी यह सुनिश्चित करने के लिए क्या कर रही है कि वह इस क्षेत्र में अपनी पकड़ और मजबूत करे?
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‘यहां हम मोदी जी को वोट देते हैं’ – पर हमेशा नहीं
करीब एक महीने पहले तक, प्राचार्य प्रजापति के कार्यालय के ठीक बाहर की दीवार को मोदी के तीन चित्रों के फ्रेम किए गए कोलाज से सजाया गया था. प्रजापति के अनुसार छात्रों के एक समूह ने इन्हें यह सम्मान दिया था, लेकिन चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद इन्हें हटा दिया गया है.
लेकिन मोदी की मौजूदगी मानो अभी भी हर जगह साफ नजर आती है और शायद ही कोई छात्र होगा जो इस स्कूल की सबसे मशहूर कड़ी के बारे में न जानता हो. कक्षा ग्यारहवीं (कला) के छात्र कार्तिक भरोट ने कहा, ‘निश्चित रूप से मुझे पता है कि मोदीजी ने यहां अध्ययन किया था. यह हमें आशा देता है कि वह इस जगह को और विकसित करेंगें.’
वडनगर नागरिक मंडल नाम के एक ट्रस्ट द्वारा संचालित बी.एन. हाई स्कूल अभी भी एक साधारण सी जगह है. इसके 700 छात्रों की शिक्षा की देखरेख करने वाले 17 शिक्षकों के साथ केवल कला और वाणिज्य विषयों की पढ़ाई होती है.
वडनगर शहर अपने आप में छोटा और प्रांतीय शहर है, लेकिन मोदी के साथ जुड़ी इसकी जड़ों की बदौलत कई स्थानीय लोगों को लगता है कि वे एक बहुत बड़ी कहानी का हिस्सा हैं.
वडनगर के स्टेशन रोड पर एक किराने की दुकान चलाने वाले नीलेश पटेल ने कहा, ‘पीएम मोदी हमारे शहर का गौरव हैं. वह अब दुनिया भर में जाने जाते है और हमें गर्व है कि यह उनका गृहनगर है. ‘ उन्होंने मोदी को उन सभी ‘विकास कार्यों’ का श्रेय दिया, जो इस शहर ने पिछले कुछ वर्षों में देखे हैं.
वे कहते हैं, ‘क्या आप इस बात को देख नहीं सकते कि मोदी जी ने हमारे लिए कितना काम किया है,? एक नया अस्पताल बनाया गया है, रेलवे ट्रैक में सुधार किया गया है, नई ट्रेनों का उद्घाटन किया गया है, एक नया टावर लगाया गया है, और शर्मिष्ठा झील का कायाकल्प किया गया है.’
यह मोदी से जुड़े उन कई स्थलों के बारे में सच है, जो अब पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं. उदाहरण के लिए, वडनगर रेलवे स्टेशन को नया रंग रूप दिया गया है और जिस चाय की दुकान पर मोदी काम करते थे, उसे फिर से बहाल कर दिया गया है. इसी तरह, शर्मिष्ठा झील के आसपास के क्षेत्र का पुनर्विकास किया गया है और यहां नौका विहार की सुविधा और बैठने की व्यवस्था भी उपलब्ध करवाई गई है.
एक और परियोजना जिसके बारे में बात करने में स्थानीय लोग गर्व महसूस करते हैं, वह है उस वडनगर प्राथमिक विद्यालय का जीर्णोद्धार, जहां प्रधानमंत्री ने एक बच्चे के रूप में पढाई की थी. साल 1882 में निर्मित, इस स्कूल को एक धरोहर वाला तमगा दिया गया है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) इसके मूल गौरव को फिर से बहाल कर रहा है.
इस परियोजना स्थल पर काम कर रहे एक एएसआई अधिकारी ने उनका नाम न जाहिर किए जाने की शर्त पर कहा ‘स्कूल का नाम बदलकर प्रेरणा स्कूल कर दिया गया है. पुनरुद्धार का काम अपने अंतिम चरण में है.’
वडनगर रेलवे स्टेशन के पास अपने परिवार के साथ रहने वाले 40 वर्षीय भूमिहीन किसान रमेशभाई ने कहा, ‘यहां, हम सब मोदी जी को वोट देते हैं.’ उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता कि उंझा से भाजपा का उम्मीदवार कौन है और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. वे कहते हैं , ‘ देखिए मोदी ने किस तरह इलाके का विकास किया है.’
फिर भी, साल 2017 में, उंझा सीट जीतने के लिए मोदी वाला कारक पर्याप्त नहीं रहा था.
इस हार के कारण के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब इस बात पर निर्भर करता है पार्टी की स्थानीय इकाई में आप किससे इसे पूछते हैं, मगर इसमें पाटीदार आंदोलन के प्रभाव से लेकर तत्कालीन मौजूदा विधायक के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर जैसे विभिन्न साजिश के सिद्धांत शामिल हैं.
सिर्फ एक बुरा साल
उंझा विधानसभा क्षेत्र में 2.12 लाख मतदाता हैं, जिनमें पाटीदार समुदाय की अच्छी खासी उपस्थिति है. कुल मतदाताओं में पाटीदारों की संख्या 77,000 और ठाकोर समुदाय के 50,000 मतदाता हैं. शेष वोट अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), मुस्लिम और अन्य समुदायों के बीच बंटा है .
पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान उंझा में भाजपा के खराब प्रदर्शन के बारे में पूछे जाने पर, पार्टी के वर्तमान उम्मीदवार किरीटभाई पटेल ने इसके लिए साल 2015 में शुरू हुए उस पाटीदार आरक्षण आंदोलन को जिम्मेदार ठहराया, जिसने समूचे गुजरात को झकझोर कर रख दिया था.
साल 2017 में कांग्रेस की उम्मीदवार बनीं आशा पटेल इस आंदोलन में एक जाना माना चेहरा थीं और कथित तौर पर उस आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल की करीबी भी मानी जाती थीं.
जैसा कि किरीटभाई ने बताया, पाटीदारों के इस आंदोलन ने अन्य सीटों पर भी पार्टी के प्रदर्शन को प्रभावित किया था.
साल 2017 में, गुजरात में भाजपा की सीटों की कुल संख्या 99 पर आ गई थी , जो साल 1995 के बाद से 182 सदस्यीय राज्य विधान सभा में इसकी सबसे कम सीटें थीं . कांग्रेस से हुए भारी दलबदल के बाद, भाजपा की संख्या अंततः 111 हो गई. इस संख्या में आशा पटेल का नाम शामिल नहीं है क्योंकि उन्होंने भाजपा का दामन थामने के बाद साल 2019 के उपचुनाव में उंझा से भाजपा के टिकट पर जीत जरूर हासिल की, थी मगर उनका पिछले साल दिसंबर में निधन हो गया था.
उंझा से साल 2017 के हुई हार के विषय पर, स्थानीय भाजपा नेता नीरज पटेल ने भी पांच बार के पूर्व विधायक नारायणभाई पटेल के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर की ओर इशारा किया.
नीरज पटेल ने दावा किया, ‘वह किसी और को सामने ही नहीं आने दे रहे थे.’
लेकिन साल 2022 भाजपा के लिए नई प्रतिभाओं का मौसम है, जिसने अपनी नयी रणनीति – जो पिछली जीत के इतिहास के बदले ‘जीतने की क्षमता’ को प्राथमिकता देती है- के तहत इस चुनाव में कई दिग्गजों को टिकट नहीं देने का फैसला किया है. ऐसा ही एक नया चेहरा, कम से कम चुनावी अर्थों में, उंझा के किरीटभाई पटेल हैं.
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‘लोगों ने मुझे जीवन भर सामाजिक कार्य करते देखा है’
जब दिप्रिंट ने रविवार को उंझा का दौरा किया, तो भाजपा उम्मीदवार किरीटभाई पटेल एक पारिवारिक मित्र द्वारा चलाए जा रहे पुराने एक्टिवा स्कूटर पर पीछे बैठकर चुनाव प्रचार कर रहे थे.
प्रशिक्षण से एक सिविल इंजीनियर रहे किरीट भाई ने एक निर्माण व्यवसाय चलाया और जिले में वंचित समाज की लड़कियों के लिए एक स्कूल और कॉलेज भी चलाया हुआ है. वह आरएसएस की शिक्षा शाखा ‘विद्या भारती’ की गुजरात इकाई के ट्रस्टी हैं, और इस संस्था द्वारा चलाये जा रहे ‘सरस्वती शिशु मंदिर’ नामक निजी स्कूलों के नेटवर्क के सदस्य भी हैं.
वे कहते हैं, ‘मेरी तीन बेटियाँ हैं, जिनमें से सभी की शादी हो चुकी है. मैं अब अपने निर्माण व्यवसाय में भी शामिल नहीं हूं. मैं केवल सामाजिक कार्य करता हूं. इसलिए, जब पार्टी ने मुझे चुनाव लड़ने के लिए कहा, तो मैं सहमत हो गया.’
अपने चुनावी अनुभव की कमी के बावजूद, उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि वे जीतेंगे और इसके लिए वे आंशिक रूप से मोदी प्रभाव को भी एक कारण बताते हैं.
पटेल ने कहा, ‘मोदीजी का अपना गृहनगर इस निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है. उन्होंने यहां कितने विकास कार्य किए हैं. जहां तक चुनाव लड़ने की बात है तो मैं पहली बार चुनाव लड़ने वाला शख्स हो सकता हूं, लेकिन यहां के लोगों ने मुझे जीवन भर सामाजिक कार्य करते हुए देखा और जाना है.’
उन्होंने कहा कि उनके परिवार के अन्य सदस्य भी लंबे समय से सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं. वे कहते हैं, ‘यह मेरे पिता जी थे जिन्होंने साल 1955 में लड़कियों के लिए स्कूल की स्थापना की थी. आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की लगभग 3,000 लड़कियां वहां पढ़ती हैं. मैं बातें करने के बजाय अपने काम को प्राथमिकता देता हूं.’
जमीन पर का माहौल
भाजपा की भारी भरकम चुनाव अभियान मशीनरी के काम पर लगे होने और आरएसएस से पर्दे के पीछे की मदद के बावजूद, उंझा निर्वाचन क्षेत्र में कई लोगों के लिए भाजपा का मायने अभी भी मोदी से है. सभी स्थानीय लोगों ने किरीटभाई पटेल का नाम नहीं सुना है.
रमेशभाई नाम के जिस किसान का ज़िक्र पहले किया गया है उन्होंने कहा कि मोदी में लोगों का विश्वास ही भाजपा को जीत दिलाएगा, चाहे उम्मीदवार कोई भी हो.
उन्होंने कहा, ‘यह सच है कि महंगाई बहुत ज्यादा है, लेकिन हम नरेंद्र मोदी पर विश्वास करते हैं, मुझे यकीन है कि उन्होंने हमारे लिए कुछ योजना बनाई है. इससे भी कुछ अच्छा ही निकलेगा.’
लेकिन सभी लोग इसी तरह से आश्वस्त नहीं हैं, मिसाल के लिए 22 वर्षीय राहुल सेनमा, जो दक्षिण वडनगर में टाना-रीरी मेमोरियल के पास एक सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करते हैं और अपने 10 सदस्यों के परिवार के साथ नवापुरा गांव में रहते हैं.
सेनमा ने कहा कि उनकी और उनके भाई की मासिक कमाई संयुक्त रूप से लगभग 16,000 रुपये है.उन्होंने कहा, ‘हम परिवार में केवल दो कमाने वाले सदस्य हैं और हम जो कमाते हैं वह हमारे परिवार को चलाने के लिए पर्याप्त नहीं है. महंगाई ने जिंदगी को बेहद मुश्किल बना दिया है.’
इसलिए उन्होंने कहा कि वह इस बार आम आदमी पार्टी (आप) को एक मौका देना चाहते हैं. वे कहते हैं, ‘मैं यह देखना चाहता हूं कि क्या मुफ्त बिजली और स्वास्थ्य सेवा के उनके वादे सच हैं.’
हालांकि, जिस किसी से भी दिप्रिंट ने बात की, उनमें से कोई भी उंझा से आप उम्मीदवार उर्विश पटेल का नाम नहीं जानता था.
यहां तक कि कांग्रेस की जमीनी उपस्थिति भी कमजोर नजर आ रही है. रविवार शाम जब दिप्रिंट ने उंझा मुख्य बाजार स्थित कांग्रेस के प्रचार कार्यालय का दौरा किया, तो पार्टी उम्मीदवार अरविंद अमृतलाल पटेल 10-12 समर्थकों की छोटी सी भीड़ के साथ बैठे थे.
एक छोटे किसान रहे अरविंद अमृतलाल पटेल ने कहा कि वे फिलहाल ‘संगठन’ को सक्रिय करने की प्रक्रिया में हैं.
कांग्रेस प्रत्याशी ने कहा, ‘यह सच है कि हमारे पास भाजपा की तरह पैसा और जनशक्ति नहीं है. लेकिन मैं स्थानीय हूं और जमीन पर काम करता हूं. गांवों में लोग मुझे जानते हैं. भाजपा प्रत्याशी स्थानीय नहीं है. वह पिछले 30 साल से अहमदाबाद में रह रहे हैं.’
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(अनुवाद- रामलाल खन्ना)
(संपादन-अलमिना खातून)
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