नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक और भाजपा ने बुधवार को राज्य की विधानसभा भंग करने में हड़बड़ी दिखाई. उन्होंने ऐसा किसी भी गैरभाजपा गठबंधन को सत्ता में आने से रोकने के लिए किया. लेकिन यह एक परेशानी में डालने वाली प्रतिक्रिया थी, क्योंकि भावी गठबंधन में शामिल होने जा रहे दल अभी तक न तो किसी समझौते तक पहुंचे थे, न ही कोई सहमति बन पाई थी.
तीनों दलों की इस मंत्रणा में शामिल नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि कांग्रेस पार्टी की महासचिव और जम्मू—कश्मीर की प्रभारी अंबिका सोनी, पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला के बीच टेलीफोन पर बातचीत हुई थी. भाजपा कथित तौर पर खरीद-फरोख्त करके सत्ता में आने की कोशिश कर रही थी, जिसे रोकने के लिए ये तीनों दल एक ‘लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष’ सरकार बनाने पर सहमत हुए थे. लेकिन यह बातचीत अभी आरंभिक अवस्था में ही थी.
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तीनों नेताओं में अभी यह भी चर्चा नहीं हुई थी कि कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार में रहेंगे या बाहर से समर्थन देंगे. यहां तक कि अभी तक मुख्यमंत्री कौन बनेगा, इस पर भी चर्चा नहीं हुई थी.
सहमति सिर्फ इस बात पर बनी थी कि प्रत्येक दल से दो या तीन सदस्यों को लेकर एक कमेटी बनेगी और वह तय करेगी कि आगे क्या किया जाए. कांग्रेस ने अपने 40 वरिष्ठ नेताओं के साथ दिल्ली में शुक्रवार को एक बैठक बुलाई थी ताकि वह उनकी प्रतिक्रिया जान सके.
मामले पर नजर रख रहे नेताओं ने बताया कि राज्यपाल को मुफ्ती का पत्र, जो कि उन तक पहुंचा नहीं, सरकार बनाने की ‘इच्छा की अभिव्यक्ति’ थी. उसका मकसद इस बात को रिकॉर्ड पर लाना भी था कि 87 सदस्यीय विधानसभा में 56 गैरभाजपा सदस्य एक साथ हैं इसलिए अगर भाजपा सरकार बनाने का दावा करती है तो राज्यपाल उसे न्यौता न दें.
एक कांग्रेस नेता ने कहा, ‘हम जान रहे थे कि सज्जाद लोन और भाजपा जो करने जा रहे थे. (पीपुल्स कॉन्फ्रेंस नेता सज्जाद लोन ने दावा किया था कि भाजपा के 25 और 18 अन्य विधायक उनके साथ हैं.) हमारी प्राथमिकता थी कि उन्हें सरकार बनाने का मौका देने से राज्यपाल को रोका जाए. इसलिए महबूबा मुफ्ती ने राज्यपाल को पत्र भेजा था.’
उन्होंने कहा, ‘हमें नहीं मालूम है कि अगर राज्यपाल विधानसभा भंग न करते तो हवा का रुख किधर होता. लेकिन उन्होंने जो किया उससे हम खुश हैं. हम अब जल्दी से चुनाव चाहते हैं.’
कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस को फायदा
राज्यपाल ने स्पष्ट तौर पर राज्य को चलाने में नासमझी का प्रदर्शन किया और महबूबा मुफ्ती के जाल में फंस गए.
क्योंकि कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन बनाने के बारे में सोच रहे हैं इसलिए वे फायदे में दिख रहे हैं. पीडीपी ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था, इसके चलते घाटी में पीडीपी की जो छवि बनी है, इसका गठबंधन को फायदा मिलता दिख रहा है.
यह समझना मुश्किल है कि ये दोनों दल पीडीपी को एक गैरभाजपा गठबंधन चलाने देकर उसकी छवि सुधारने में मदद कैसे करते. अगर सरकार बनाने और चलाने की मध्यस्थता के लिए कमेटी बनती तब भी, और कांग्रेस व नेशनल कॉन्फ्रेंंस की आंतरिक चर्चाओं में यह मसला सामने आता और इस पर गंभीर बहस होती.
इस गठबंधन के लिए हो रहे समझौते में अंतर्निहित यह विरोधाभास जल्दी ही सामने आ जाता. लेकिन राज्यपाल और भाजपा ने दोनों पार्टियों को इस शर्म से बचा लिया.
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