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Monday, 4 November, 2024
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बिना टेंडर के फ्री में हो सकेगा स्वर्ण मंदिर की गुरबाणी का प्रसारण, मान सरकार ने पारित किया विधेयक

गुरबाणी के प्रसारण अधिकार वर्तमान में शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल के स्वामित्व वाले पंजाबी टेलीविजन नेटवर्क पीटीसी के पास हैं. पीटीसी का अनुबंध जुलाई में समाप्त हो रहा है.

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चंडीगढ़: पंजाब की भगवंत मान सरकार ने 1925 के सिख गुरुद्वारा अधिनियम में संशोधन कर दिया है, जिसके तहत प्रसारण अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से गुरबाणी के प्रसारण का अधिकार कई चैनलों को मिल जाएगा. अभी यह अधिकार सिर्फ एक ही चैनल के पास है.

गुरबाणी गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ है, जिसे जीवित गुरु माना जाता है, और इसे गुरुद्वारों में भजनों के रूप में गाया जाता है. सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925, पंजाब विधान परिषद द्वारा पारित एक ब्रिटिश युग का कानून था.

सोमवार दोपहर यहां एक कैबिनेट बैठक के बाद एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा था कि संशोधन – जिसे सिख गुरुद्वारा (संशोधन) अधिनियम, 2023 कहा जाता है – इस तरह से किया जाएगा ताकि सभी “लोग” अलग-अलग माध्यमों से इसे लाइव सुन सकें और देख सकें.

मान की घोषणा के एक दिन बाद उन्होंने ट्वीट किया था कि गुरबाणी के प्रसारण को टेंडरिंग की प्रक्रिया से मुक्त करने के लिए संशोधन किया जा रहा है.

सिखों के सबसे पवित्र स्थान, स्वर्ण मंदिर में होने वाली गुरबाणी के प्रसारण का अधिकार वर्तमान में PTC के पास है – जो कि शिरोमणि अकाली दल (SAD) के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल के स्वामित्व वाला एक पंजाबी टेलीविज़न नेटवर्क है. इसे 2012 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) द्वारा अधिकार प्रदान किए गए थे, जो 1925 के अधिनियम के तहत पंजाब, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ में गुरुद्वारों के प्रबंधन के लिए बनाई गई संस्था थी.

पीटीसी का कॉन्ट्रैक्ट जुलाई में समाप्त हो रहा है.

पंजाब सरकार ने यह घोषणा ऐसे समय में की थी जब गुरबाणी के प्रसारण को लेकर विवाद हो रहा है. एसजीपीसी ने सरकार की घोषणा पर आपत्ति जताते हुए मान और उनकी आम आदमी पार्टी सरकार पर अपने स्वयं के राजनीतिक हितों को पूरा करने के लिए सिख धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया है.


यह भी पढ़ेंः गुरबाणी के प्रसारण के अधिकारों को लेकर SGPC और सीएम मान में जंग क्यों?


रविवार शाम एक ट्वीट में, SGPC के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने दावा किया कि 1925 के अधिनियम में कोई भी बदलाव केवल SGPC के जनरल हाउस की सिफारिशों पर संसद द्वारा लाया जा सकता है.

 

राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने यह भी पूछा कि क्या मान की सरकार के पास इस तरह का संशोधन करने की शक्ति है. कांग्रेस के सुखपाल खैरा ने दावा किया कि सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 एक केंद्रीय कानून था और राज्य के दायरे से बाहर है.

इस बीच, एसएडी प्रमुख सुखबीर बादल ने इसे एसजीपीसी की संप्रभुता पर ‘हमला’ कहा और “गुरु घर” (गुरु का घर) के अधिकार को चुनौती बताया.

हालांकि, कानूनी विशेषज्ञों का दावा है कि संशोधन पंजाब विधानमंडल की विधायी शक्तियों के भीतर था. वरिष्ठ अधिवक्ता अनुपम गुप्ता के अनुसार, हरियाणा के गुरुद्वारों पर सुप्रीम कोर्ट के सितंबर के फैसले को देखते हुए पंजाब का कदम संवैधानिक रूप से वैध है.

गुप्ता के अनुसार, 20 सितंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने उन दलीलों को खारिज कर दिया था कि सिख गुरुद्वारा अधिनियम एक केंद्रीय कानून था और हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधन अधिनियम 2014 – जिस कानून को अदालत में चुनौती दी जा रही थी – ने कानून का उल्लंघन किया था. हरियाणा कानून ने हरियाणा में गुरुद्वारों के प्रबंधन के लिए एक अलग निकाय को लागू किया, जो तब तक एसजीपीसी के अधीन था.

गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया, “मुख्यमंत्री के ताजा प्रस्ताव पर एसजीपीसी, अकाली दल और कांग्रेस द्वारा उठाई गई विधायी शक्तियों पर आपत्तियां भी हरियाणा मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उठाई गई थीं.”

उन्होंने कहा: “गहराई से विचार करने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी सभी दलीलों को खारिज कर दिया और उक्त कानून को लागू करने के लिए हरियाणा विधानसभा की क्षमता की दृढ़ता से पुष्टि की. चूंकि संविधान के तहत सभी राज्य विधानमंडलों के पास समान विधायी क्षमता है, इसलिए जो हरियाणा के बारे में सच है उसे पंजाब के लिए भी सच माना जाना चाहिए.

‘राजनीतिक रंग’

सोमवार को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में, मान ने कहा कि उनके कैबिनेट ने सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 में धारा 125ए जोड़ने को मंजूरी दे दी है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्वर्ण मंदिर से गुरबाणी का प्रसारण फ्री हो. उन्होंने 2022 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए विपक्ष की सभी आपत्तियों को भी खारिज कर दिया.

मान के अनुसार, नया संशोधन एसजीपीसी के कर्तव्य के रूप में निर्धारित करेगा कि “सभी मीडिया घरानों, आउटलेट्स, प्लेटफॉर्म, चैनल आदि जो कोई भी इसे प्रसारित करना चाहता है, उसे श्री हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) से पवित्र गुरबाणी की निर्बाध लाइव फीड फ्री में उपलब्ध कराकर गुरुओं की शिक्षाओं का प्रचार करें.”

उन्होंने बादल परिवार पर पीटीसी को विशेष अधिकार देकर सिख धार्मिक भावनाओं का फायदा उठाने की कोशिश करने का भी आरोप लगाया.

इस बीच एसजीपीसी ने दावा किया कि मान सिखों के धार्मिक मामलों को “राजनीतिक रंग” देकर दिल्ली में अपने आकाओं को खुश करना चाहते हैं.

सोमवार को मान की घोषणा पर अमृतसर में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, एसजीपीसी प्रमुख धामी ने दावा किया कि गुरबाणी पहले से ही स्वर्ण मंदिर से मुफ्त में दुनिया भर में प्रसारित की जा रही है और देश और विदेश दोनों में संगत (सिख समुदाय) इससे संतुष्ट हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने पहले ही 2008 में गुरबाणी के प्रसारण पर एक याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें एसजीपीसी को इन मामलों पर निर्णय लेने के लिए सक्षम संगठन घोषित किया गया था.

वरिष्ठ अधिवक्ता गुप्ता के अनुसार, इस विषय पर पंजाब विधानसभा की शक्तियों पर कोई संदेह नहीं था और भारत में अदालतें, चाहे वह उच्च न्यायालय हों या सर्वोच्च न्यायालय, ने बार-बार इस तर्क को खारिज कर दिया था कि केवल संसद ही 1925 में संशोधन कर सकती है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “(साथ ही), मेरे विचार से, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के निर्णयों से अलग, प्रस्तावित बिल संविधान की 7वीं अनुसूची में समवर्ती सूची की एंट्री संख्या 28 के अंतर्गत आता है.”

यह एंट्री चैरिटी और चैरिटेबल संस्थानों, धर्मार्थ और धार्मिक बंदोबस्त और धार्मिक संस्थानों से संबंधित है.

“सिख गुरुद्वारा अधिनियम 1925 इसी एंट्री के अंतर्गत स्पष्ट रूप से कवर किया गया है. संसद और राज्य विधानमंडल दोनों समवर्ती सूची के किसी भी विषय पर कानून पारित करने के लिए सक्षम हैं.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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