लखनऊ: उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास विभाग में कथित “दागी” अधिकारियों की “मलाईदार” पदों पर तैनाती को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. यह विवाद सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के एक विधान परिषद सदस्य और राज्य के एक कैबिनेट मंत्री के बीच खींचतान का रूप ले चुका है.
पूरे विभाग पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि इन तैनातियों से ऐसा लगता है कि सरकार को “जेल में रहने लायक आपराधिक अधिकारियों” को पसंद है. वहीं, औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता ‘नंदी’ ने साफ कर दिया है कि इन नियुक्तियों को रद्द करने का “कोई सवाल ही नहीं उठता.”
एमएलसी ने पिछले हफ्ते विधान परिषद सत्र के दौरान मंत्री गुप्ता से यह पूछा कि विभाग में महाप्रबंधक, क्षेत्रीय प्रबंधक और परियोजना अधिकारी के पदों पर कितने अधिकारियों को ट्रांसफर किया गया, इनमें से कितने सतर्कता जांच (विजिलेंस इंक्वायरी) का सामना कर रहे हैं, इन नियुक्तियों के पीछे क्या कारण हैं और क्या विभाग इन्हें रद्द करने पर विचार करेगा.
मंत्री गुप्ता तब असहज स्थिति में आ गए जब एमएलसी ने पूछा कि क्या यही “भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहिष्णुता” है.
दिप्रिंट के सवालों का मंत्री के द्वारा दिए गए जवाब के अनुसार, वरिष्ठ पदों जैसे क्षेत्रीय प्रबंधक और परियोजना अधिकारी के लिए स्थानांतरित किए गए 12 अधिकारियों में से 9 सतर्कता जांच का सामना कर चुके हैं. इनमें से कम से कम 7 के खिलाफ जांच अभी भी चल रही है.
इनमें से दो अधिकारियों को पहले निलंबित किया जा चुके हैं. एक अन्य अधिकारी को सेवा से बर्खास्त किया गया था, लेकिन सरकार के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट का रुख करने के बाद उन्हें बहाल कर दिया गया. हालांकि, उनके खिलाफ विभागीय जांच अभी भी जारी है.
यह भी पढ़ें: मोदी 3.0 के सुचारू संचालन के लिए भाजपा कैसे कर रही है नीतीश कुमार तक अपनी पहुंच को बेहतर
अधिकारी जांच का सामना कर रहे हैं
एक अधिकारी—क्षेत्रीय प्रबंधक सीके मौर्य—वर्तमान में सतर्कता जांच का सामना कर रहे हैं, और रिपोर्ट अभी लंबित है. मौर्य को 13 जुलाई, 2023 को आगरा में क्षेत्रीय प्रबंधक के रूप में पोस्टिंग की गई थी.
विनोद कुमार, जिन्हें आगरा से कानपुर के क्षेत्रीय प्रबंधक के रूप में ट्रांसफर किया गया था, को “नकारात्मक टिप्पणी” मिली थी और ऑनलाइन भूमि आवंटन प्रक्रिया में गड़बड़ी के कारण उनकी वेतन में कटौती की गई थी. विनोद को पिछले साल जुलाई में नई पोस्ट पर नियुक्त किया गया था.
मंत्री ने अपने जवाब में कहा, “कुमार को 25 सितंबर, 2023 को निलंबित किया गया था क्योंकि वह निवेशकों द्वारा परियोजनाओं की स्थापना में सामना किए जा रहे विभिन्न समस्याओं को हल करने में विफल रहे थे, और उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू की गई थी.”
इसके अलावा, अजय दीप सिंह, जिन्हें 17 जुलाई, 2023 को कानपुर से बिजनेस प्रमोशन पब्लिसिटी सेल (BPPC) से उन्नाव में परियोजना अधिकारी के रूप में स्थानांतरित किया गया, 2008-09 में सामान्य और बैकलॉग भर्ती में अनियमितताओं के संबंध में जांच का सामना कर रहे हैं, जैसा कि राज्य सतर्कता समिति की 170वीं बैठक में 11 मई, 2022 को निर्णय लिया गया था.
अजय दीप के खिलाफ 23 दिसंबर, 2021 को विभागीय जांच शुरू की गई थी, जब उन्हें प्लॉट से संबंधित मामलों में अनियमितताओं के लिए प्रथम दृष्टया जिम्मेदार पाया गया था. उसी दिन उन्हें निलंबित कर दिया गया था. निलंबन को इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील करने के बाद स्थगित कर दिया गया था, जबकि जांच अभी भी लंबित है.
अजय दीप के समान छह अन्य अधिकारियों के खिलाफ भी इसी प्रकार की कथित अनियमितताओं के लिए जांच चल रही है.
इनमें शामिल हैं: प्रदीप कुमार सत्यार्थी (जिन्हें प्रयागराज से गाजियाबाद क्षेत्रीय प्रबंधक के रूप में स्थानांतरित किया गया), रीमा सिंह (जिन्हें गाजियाबाद के परियोजना कार्यालय से अलीगढ़ क्षेत्रीय प्रबंधक के रूप में स्थानांतरित किया गया), गेहु (जिन्हें सूरजपुर से मुरादाबाद एसईजेड में क्षेत्रीय प्रबंधक के रूप में नियुक्त किया गया), अजय यादव (जिन्हें अलीगढ़ से अयोध्या क्षेत्रीय प्रबंधक के रूप में स्थानांतरित किया गया), और मंसूर कटियार (जिन्हें कानपुर से बरेली क्षेत्रीय प्रबंधक के रूप में स्थानांतरित किया गया).
शर्मिला पटेल, जिन्हें 14 जुलाई पिछले साल कानपुर के औद्योगिक सेक्शन से गाजियाबाद के परियोजना अधिकारी के रूप में स्थानांतरित किया गया था, को 26 नवंबर, 2014 को यूपी राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण से सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था, लेकिन हाई कोर्ट ने बर्खास्तगी को पलट दिया.
‘पूरा विभाग भ्रष्ट है’
विधान परिषद में पिछले हफ्ते बोलते हुए, एमएलसी देवेंद्र प्रताप ने कहा कि ऐसा लगता है कि “दागी” और “आपत्तिजनक” लोग, जिन पर आरोप लगाए गए हैं और जिनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई है, उन्हें “मालदार” पदों पर नियुक्त किया गया है.
“कुछ के खिलाफ जांच तो 10 साल से लंबित पड़ी है. इसका मतलब है कि सरकार में बैठे अधिकारी भ्रष्ट और दागी अधिकारियों को संरक्षण दे रहे हैं. अगर आरोपियों को मालदार पद मिले हैं, तो पूरा विभाग शक के घेरे में है,” उन्होंने कहा.
आरोपों का कड़ा जवाब देते हुए मंत्री गुप्ता ने कहा कि केवल पूर्व के लोग ही “मालदार” पद का परिभाषा बता सकते हैं. “मैं कहना चाहता हूं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति पर काम कर रही है और 12 तबादले जनहित में किए गए हैं.”
मंत्री के जवाब से संतुष्ट होने के बारे में पूछे जाने पर, एमएलसी ने दिप्रिंट से कहा कि अगर वह संतुष्ट होते तो उन्होंने सदन में सवाल नहीं पूछा होता.
“यह दिखाता है कि पूरा विभाग भ्रष्ट है. सरकार पर यह जिम्मेदारी है कि वह ऐसे अधिकारियों को पदस्थ करें जिनकी छवि साफ हो. विभागीय जांच से यह स्पष्ट हुआ है कि वे भ्रष्टाचार में लिप्त थे. यह दर्शाता है कि दागी अधिकारियों को सरकार प्रिय बनाकर रखा हुआ है, जबकि उन्हें जेल में होना चाहिए,” उन्होंने कहा.
उन्होंने यह भी कहा कि चार और अधिकारी हैं, जिन्हें क्षेत्रीय प्रबंधकों के पद दिए गए हैं, और वे जो 4,600 रुपए के ग्रेड पे पर होने चाहिए थे, उन्हें 5,200 का ग्रेड पे मिल रहा है.
“एक खुली सतर्कता जांच का मतलब है कि इन अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच में साक्ष्य मिले हैं,” उन्होंने कहा.
दिप्रिंट ने मंत्री और उनके जनसंपर्क अधिकारी से फोन कॉल्स और टेक्स्ट संदेश के माध्यम से संपर्क किया। इस रिपोर्ट को तब अपडेट किया जाएगा जब जवाब प्राप्त होगा.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: बिहार में गिरिराज सिंह की नियोजित ‘हिंदू स्वाभिमान यात्रा’ से BJP-JD(U) में क्यों हो रहा टकराव