चेन्नई: त्रिशूर से संसदीय चुनाव में पहली चुनावी जीत, तिरुवनंतपुरम में कांटे की टक्कर और अलप्पुझा व अत्तिंगल में वोट शेयर में उल्लेखनीय उछाल – हिंदी भाषी क्षेत्रों में असफलताओं का सामना करने के बावजूद, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पास इस लोकसभा चुनाव में केरल के प्रदर्शन से खुश होने के कई कारण हैं.
चुनाव आयोग (ईसी) के आंकड़ों के अनुसार, पार्टी ने इस बार 16 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसका वोट शेयर बढ़कर 16.68 प्रतिशत तक पहुंच गया. पिछली बार बीजेपी का वोट शेयर 13 प्रतिशत था जब उसने 15 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
उल्लेखनीय रूप से, भाजपा ने 11 विधानसभा क्षेत्रों में सबसे अधिक वोट प्राप्त किए – तिरुवनंतपुरम में पांच (नेमोम, कज़हकोट्टम, वट्टियुरकावु, अत्तिंगल और कट्टकडा) और त्रिशूर में छह (त्रिशूर, ओल्लूर, नटिका, इरिनजालक्कुडा, पुथुकाड और मनालूर).
इस उछाल ने केरल में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF) और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) दोनों को प्रभावित किया है. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ ने 2019 की जीत को दोहराते हुए 20 में से 18 सीटें जीतीं, लेकिन इस साल उसका वोट शेयर 2019 के 37.64 प्रतिशत से घटकर 35.06 प्रतिशत रह गया. इसी तरह, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) का वोट शेयर 2019 के 25.97 प्रतिशत से मामूली रूप से घटकर 25.82 प्रतिशत रह गया.
कोझिकोड के सरकारी कला एवं विज्ञान महाविद्यालय में इतिहास के स्नातकोत्तर विभाग के प्रमुख और राजनीतिक विश्लेषक पी.जे. विंसेंट ने कहा: “केरल में द्विध्रुवीय से त्रिध्रुवीय राजनीति की तरफ होता बदलाव स्पष्ट रूप से दिख रहा है.”
उन्होंने कहा कि सुरेश गोपी की त्रिशूर जीत का श्रेय उनके अभिनेता और फिलैन्थ्रॉपिस्ट होने को भी दिया जा सकता है, लेकिन बहुत सारे वोट राजनीतिक भी थे, जो कई अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा के वोट शेयर में वृद्धि में दिखाई देता है.
भाजपा के लिए, “यह केरल के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है”, विंसेंट ने कहा.
पार्टी के राज्य उपाध्यक्ष के.एस. राधाकृष्णन ने दिप्रिंट को बताया कि दोनों मोर्चों (एलडीएफ और यूडीएफ) ने कहा कि केरल में कमल कभी नहीं खिलेगा और भाजपा का सफाया हो जाएगा. “लेकिन हमारा वोट शेयर 20 प्रतिशत के करीब है.” मोदी फैक्टर, पार्टी कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत और उम्मीदवारों के प्रभाव को नतीजों का श्रेय देते हुए राधाकृष्णन ने कहा कि पार्टी ने 2025 के स्थानीय निकाय और 2026 के विधानसभा चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है.
राधाकृष्णन ने नतीजों का श्रेय मोदी फैक्टर, पार्टी कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत और उम्मीदवारों के प्रभाव को देते हुए कहा कि पार्टी ने 2025 के स्थानीय निकाय और 2026 के विधानसभा चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है.
प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में प्रदर्शन
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, भाजपा ने 2019 की तुलना में पांच प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में से चार – त्रिशूर, तिरुवनंतपुरम, अटिंगल, पथनमथिट्टा और पलक्कड़ में अपने वोट शेयर में सुधार किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से इन क्षेत्रों में प्रचार किया.
त्रिशूर में सुरेश गोपी का वोट शेयर 2019 में 28.19 प्रतिशत से बढ़कर इस साल 37.80 प्रतिशत हो गया. गोपी ने 70,000 से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की.
कांग्रेस को इस सीट पर काफी नुकसान हुआ क्योंकि 2019 में उसका वोट शेयर 39.83 प्रतिशत से घटकर इस साल 30.08 प्रतिशत रह गया. 2019 में कांग्रेस उम्मीदवार टी.एन. प्रतापन ने 4 लाख से अधिक वोटों के साथ सीट जीती थी, जबकि इस साल पार्टी के उम्मीदवार के. मुरलीधरन 3,28,124 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे.
इस बीच, एलडीएफ के वी.एस. सुनील कुमार ने त्रिशूर सीट पर पार्टी के वोटों में मामूली वृद्धि की और 2019 में प्राप्त 3.21 लाख से 3.37 लाख वोट प्राप्त किए.
तिरुवनंतपुरम में, जहां भाजपा करीबी मुकाबले के बाद दूसरे स्थान पर रही, राजीव चंद्रशेखर ने पार्टी के वोट शेयर को 2019 में 31.30 प्रतिशत से बढ़ाकर इस साल 35.5 प्रतिशत कर दिया.
यहां भी, कांग्रेस के विजयी उम्मीदवार शशि थरूर का वोट शेयर, जो 2019 में 41.19 प्रतिशत था, घटकर 37.19 प्रतिशत रह गया. हालांकि, एलडीएफ के वोटों में मामूली वृद्धि देखी गई और यह 2019 के 25.60 प्रतिशत से बढ़कर 25.72 प्रतिशत हो गया.
अत्तिंगल में, भाजपा के वी. मुरलीधरन का वोट शेयर 24.97 प्रतिशत से बढ़कर 31.64 प्रतिशत हो गया, जबकि यूडीएफ उम्मीदवार अदूर प्रकाश का वोट शेयर 38.34 प्रतिशत से घटकर 33.29 प्रतिशत हो गया और एलडीएफ का वोट शेयर 2019 के 34.50 प्रतिशत से घटकर 33.22 प्रतिशत हो गया.
पलक्कड़ में पांच साल में भाजपा का वोट शेयर 21.44 प्रतिशत से बढ़कर 24.31 प्रतिशत हो गया, जबकि कांग्रेस का वोट शेयर 39.17 प्रतिशत से मामूली बढ़कर 40.66 प्रतिशत हो गया. हालांकि, सीपीआई (एम) का वोट शेयर 2019 में 38.03 प्रतिशत से घटकर 33.39 प्रतिशत हो गया.
इन निर्वाचन क्षेत्रों के अलावा, अलप्पुझा सीट पर जहां भाजपा ने इस साल शोभा सुरेंद्रन को मैदान में उतारा, पार्टी ने 2019 में हासिल किए गए 17.24 प्रतिशत से अपना वोट शेयर बढ़ाकर 28.3 प्रतिशत कर लिया. हालांकि भाजपा तीसरे स्थान पर रही, लेकिन इसने सीपीआई (एम) को बड़ा झटका दिया, जो अलप्पुझा को अपना गढ़ मानती है.
हालांकि, कांग्रेस, जिसने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के महासचिव के.सी. वेणुगोपाल को मैदान में उतारा था, ने अलप्पुझा सीट जीत ली, लेकिन पार्टी को 2019 में 40 से लगभग दो प्रतिशत वोट शेयर का नुकसान हुआ और यह 38.2 प्रतिशत रह गया.
इस बीच, एलडीएफ के अलप्पुझा उम्मीदवार ए.एम. आरिफ का वोट शेयर भी पिछले पांच वर्षों में 40.96 प्रतिशत से घटकर 32.2 प्रतिशत रह गया.
इनके अलावा, कन्नूर में भाजपा ने लगभग पांच प्रतिशत और कासरगोड निर्वाचन क्षेत्रों में लगभग 4 प्रतिशत वोट शेयर में वृद्धि दर्ज की है.
हालांकि, भाजपा ने पथनमथिट्टा में खराब प्रदर्शन किया, जहां उसने कांग्रेस के दिग्गज ए.के. एंटनी के बेटे अनिल एंटनी को मैदान में उतारा. कांग्रेस के पूर्व पदाधिकारी अनिल कांग्रेस छोड़ने के दो महीने बाद अप्रैल 2023 में भाजपा में शामिल हुए थे.
भाजपा उम्मीदवार को 25.49 प्रतिशत वोट मिले, जबकि मौजूदा यूडीएफ सांसद एंटो एंटनी, जिन्होंने जीत हासिल की, ने 2019 में अपने वोट शेयर को 37.11 प्रतिशत से बढ़ाकर 39.98 प्रतिशत कर लिया, और एलडीएफ के थॉमस आइज़ैक को 32.79 प्रतिशत वोट मिले.
कन्नूर जिले के भाजपा अध्यक्ष एन. हरिदासन के अनुसार, पार्टी ने सभी निर्वाचन क्षेत्रों में लगातार प्रयास किए. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “जबकि सुरेश गोपी स्थानीय मुद्दों पर प्रतिक्रिया देते हुए त्रिशूर में लगातार मौजूद थे, मुरलीधरन ने भी लोकसभा चुनाव से पांच से छह महीने पहले अटिंगल में अपना काम शुरू कर दिया था.”
पथनमथिट्टा सीट के बारे में बात करते हुए, भाजपा के राधाकृष्णन ने दिप्रिंट से कहा कि पार्टी उम्मीदवार की छवि साफ थी, लेकिन अल्पसंख्यक वोटों के यूडीएफ के पक्ष में एकजुट होने से पार्टी की जीत हुई.
एलडीएफ की विफल रणनीति
केरल स्थित राजनीतिक विश्लेषक जोसेफ सी. मैथ्यू ने कहा कि भाजपा की बढ़त कोई रातों-रात नहीं हुई है, क्योंकि पार्टी हर चुनाव में लगातार अपने वोट शेयर में वृद्धि कर रही थी.
उन्होंने कहा कि जब तक यूडीएफ या एलडीएफ जैसी धर्मनिरपेक्ष पार्टियां राजनीतिक शिक्षा में शामिल नहीं होतीं, तब तक भाजपा राज्य में और आगे बढ़ती रहेगी. उनके अनुसार, राज्य में वामपंथी दलों की चुनावी रणनीति को भी झटका लगा, जिसके परिणामस्वरूप मौजूदा परिणाम सामने आए.
इस बीच, राजनीतिक विश्लेषक विंसेंट ने बताया कि वामपंथी दलों की चुनावी रणनीति को झटका लगा है क्योंकि उन्होंने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र को प्रभावी ढंग से संबोधित नहीं किया.
विंसेंट ने कहा, “वामपंथियों को अपने अभियान पर पुनर्विचार करना चाहिए. केरल में अल्पसंख्यक उत्तर या पूर्वोत्तर के अल्पसंख्यकों की तरह नहीं हैं. वे राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से शक्तिशाली हैं. इसलिए, उनकी रक्षा के बारे में बात करने के बजाय, वामपंथियों को धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और मोदी के फासीवादी शासन की रक्षा के बारे में बात करनी चाहिए थी.”
उनके अनुसार, वर्तमान में कांग्रेस के पास राज्य में मजबूत नेताओं की भी कमी है.
इसके अलावा, विश्लेषक ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ईसाई मतदाताओं का भाजपा की ओर झुकाव राज्य में पार्टी के पक्ष में हैं.
विशेष रूप से, चुनावों से पहले, केरल में सिरो-मालाबार चर्च के दो सूबाओं ने “जबरन धर्म परिवर्तन” के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विवादास्पद फिल्म द केरल स्टोरी का प्रदर्शन करने का फैसला किया. इस निर्णय ने विवाद को जन्म दिया.
इसके बाद, वाइपिन के संजोपुरम स्थित सेंट जोसेफ सिरो-मालाबार चर्च ने अपने छात्रों के लिए द क्राई ऑफ द ऑप्रेस्ड नामक एक डॉक्युमेंट्री दिखाने का विकल्प चुना, जो मणिपुर में जातीय संघर्षों पर केंद्रित है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
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