भोपाल: अप्रैल 2013 में, मध्य प्रदेश सरकार में तत्कालीन आदिवासी मामलों के मंत्री कुंवर विजय शाह उस समय भी सुर्खियों में थे जब उन्होंने महिलाओं, जिनमें मुख्यमंत्री (सीएम) की पत्नी भी शामिल थीं, के खिलाफ कई आपत्तिजनक और सेक्सिस्ट टिप्पणियां की थीं.
और भी बुरा यह था कि शाह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पत्नी साधना सिंह और बीजेपी पदाधिकारी निर्मला भूरिया को लेकर ये आपत्तिजनक टिप्पणियां झाबुआ ज़िले में एक समर कैंप में आदिवासी लड़कियों को संबोधित करते हुए की थीं.
उनकी टिप्पणियों को लेकर इतना विवाद हुआ कि शाह को बीजेपी के नेतृत्व वाले राज्य मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा. हालांकि, सिर्फ चार महीने बाद, अगस्त 2013 में, मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान शाह को फिर से बहाल कर दिया गया. बताया गया कि उस समय के प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के नेतृत्व में पार्टी की जांच ने शाह को किसी भी गलत कार्य से मुक्त कर दिया था. यह घटना शाह के राजनीतिक प्रभाव को उजागर करती है.
एक दशक बाद, शाह — जो 2003 से कुछ वर्षों को छोड़कर लगातार कैबिनेट मंत्री रहे हैं — एक बार फिर सुर्खियों में हैं, इस बार सांप्रदायिक टिप्पणियों को लेकर.
इस सप्ताह की शुरुआत में महू में एक भाषण के दौरान उन्होंने कहा कि भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के जिम्मेदार लोगों को “उनकी ही बहन” के ज़रिए सबक सिखाया. यह समझा गया कि वह कर्नल सोफिया कुरैशी की ओर इशारा कर रहे थे, जिन्होंने ऑपरेशन सिंदूर पर जनता को जानकारी दी थी.
उनकी इस टिप्पणी की चारों तरफ से आलोचना और निंदा हुई, जिससे शाह को ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर माफ़ी मांगनी पड़ी. मध्य प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वीडी शर्मा ने उन्हें अपने निवास पर तलब किया और पार्टी सूत्रों के अनुसार, उन्हें कड़ी चेतावनी दी गई. पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन हुए, कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने शाह का पुतला फूंका.
राज्य कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ भोपाल के श्यामला हिल्स थाने पहुंचे और एफआईआर की मांग की, लेकिन पुलिस ने बुधवार को उनकी लिखित शिकायत पर संज्ञान लेकर उन्हें लौटा दिया.
शर्मा ने शाह के इस्तीफे को लेकर मीडिया के सवालों को टाल दिया. उन्होंने कहा, “बीजेपी के पास संवेदनशील नेतृत्व है. अगर ऐसे मामले होते हैं तो तुरंत चर्चा होती है. केंद्रीय नेतृत्व ने इस पर ध्यान दिया है. वह बहन देश की बेटी है, और जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में काम करते हैं, वे हमारे लिए गर्व की बात हैं.”
बुधवार को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शाह की टिप्पणी का स्वत: संज्ञान लिया और पुलिस को उनके खिलाफ मामला दर्ज करने का निर्देश दिया.
बीजेपी के सूत्रों ने बताया कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने शर्मा से इस मामले पर रिपोर्ट मांगी है और अब प्रदेश इकाई को केंद्रीय नेतृत्व के निर्देशों का इंतजार है.
जब शाह के खिलाफ कार्रवाई के बारे में पूछा गया, तो बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से कहा: “हाईकोर्ट ने जब इस मामले का संज्ञान ले लिया है और एफआईआर के आदेश दे दिए हैं, तो अब कुछ न कुछ होना तय है.”
शाह का राजनीतिक करियर और प्रभाव
कुंवर विजय शाह, जो मकराई रियासत की राज गोंड आदिवासी शाही परिवार के वंशज हैं, समय के साथ मध्य प्रदेश में बीजेपी के सबसे प्रमुख आदिवासी चेहरे बन चुके हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, गोंड समुदाय — जिसकी संख्या 43 लाख से अधिक है — मध्य प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा आदिवासी समूह है.
शाह ने पहली बार 1990 में चुनाव लड़ा और तब से हरसूद से लगातार आठ बार विधायक चुने जा चुके हैं. उन्हें पहला मंत्री पद 2003 में उमा भारती सरकार में मिला, जब उन्हें संस्कृति मंत्री बनाया गया. इसके बाद वे आदिवासी मामलों के मंत्री (2008–2013), स्कूल शिक्षा मंत्री (2013–2018), और 2020 के बाद बीजेपी की वापसी पर वन मंत्री बने.
2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद, शाह को तीन जिम्मेदारियां दी गईं: आदिवासी मामलों का विभाग, सरकारी संपत्ति संभालने का काम, और भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ी राहत और मदद का काम.
शाह की पत्नी भावना कुशवाहा पहले खंडवा की महापौर रह चुकी हैं, और उनके बेटे दिव्यदिता खंडवा जिला पंचायत के सदस्य हैं.
मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 47 आदिवासी आरक्षित हैं, और लगभग 30 ऐसी हैं जहां आदिवासी वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इस कारण, शाह का आदिवासी नेता के रूप में भूमिका बीजेपी के लिए रणनीतिक रूप से अहम है. 2018 में, जब आदिवासी वोट कांग्रेस के पक्ष में एकजुट हुए, तो बीजेपी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा और उसकी आदिवासी सीटें 2013 की 31 से घटकर केवल 16 रह गईं.
मध्य प्रदेश सामाजिक विज्ञान अनुसंधान संस्थान के निदेशक प्रो. यतिन्द्र सिसोदिया ने दिप्रिंट से कहा, “230 सीटों में से लगभग 73 सीटें आदिवासी वोटों से प्रभावित होती हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “हालांकि शाह का अपने निर्वाचन क्षेत्र से बाहर प्रभाव बहस का विषय है, लेकिन बीजेपी के भीतर वे सबसे दृश्यमान आदिवासी चेहरों में से एक हैं — खासकर पश्चिमी मध्य प्रदेश में, जहां मतदान का रुझान अक्सर बदलता रहता है.”
सिसोदिया ने यह भी जोड़ा कि शाह की राजनीतिक वरिष्ठता और आदिवासी पहचान ने उन्हें बीजेपी में एक विशेष स्थान दिलाया है, भले ही वे अपनी कई विवादास्पद टिप्पणियों के चलते पार्टी के लिए असहज स्थिति पैदा करते रहे हैं.
शाह के पिछले विवाद
2020 में, जब शाह वन मंत्री थे, तो उन पर फिल्म ‘शेरनी’ की शूटिंग रोकने का आरोप लगा था, जिसमें विद्या बालन मुख्य भूमिका में थीं. कहा गया कि शाह ने यह कदम तब उठाया जब बालन ने उनके साथ डिनर करने के निमंत्रण को ठुकरा दिया. हालांकि, शाह ने इस आरोप से इनकार किया और दावा किया कि उन्हें बालन की टीम ने बुलाया था और उन्होंने व्यस्तता के चलते मना कर दिया था.
तीन साल बाद, दिसंबर 2023 में, प्रमुख वन संरक्षक असीम श्रीवास्तव को एक जांच का आदेश देना पड़ा जब एक वीडियो सामने आया जिसमें शाह बताए जा रहे एक व्यक्ति को टाइगर रिजर्व के अंदर पार्टी करते हुए दिखाया गया, और पास में वन रक्षक खाना बना रहे थे. यह मामला तब सामने आया जब वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे ने शाह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई.
2017 में, जब शाह चौहान की कैबिनेट में स्कूल शिक्षा मंत्री थे, तो उन्होंने बच्चों में देशभक्ति की भावना जगाने के लिए सतना जिले के स्कूलों में छात्रों को हाज़िरी के जवाब में “यस मैम” की जगह “जय हिंद” कहने का आदेश दिया था.
सिसोदिया ने कहा: “पिछले कुछ महीनों में, बीजेपी ने अपने नेताओं को भड़काऊ बयान देने में काफी छूट दी है — चाहे वो प्रीतम सिंह लोधी हों या चिंतामणि मालवीय. अब सवाल ये है: क्या शाह के मामले में पार्टी अपवाद बनाएगी?”
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