लखनऊ/नई दिल्ली: बिहार चुनाव के दूसरे चरण के लिए नामांकन सोमवार को खत्म हो गया. लेकिन राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे पर अब तक अंतिम फैसला नहीं हुआ है.
रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावारु ने सीट बंटवारे की बातचीत में सख्त रुख अपनाया, जिसके कारण गतिरोध पैदा हुआ.
कांग्रेस के अंदर एक वर्ग अल्लावारु की भूमिका से नाखुश है, खासकर गठबंधन वार्ता और टिकट बंटवारे के तरीके को लेकर. यह नाराजगी उस समय खुलकर सामने आई जब कटिहार सांसद तारिक अनवर ने टिकट वितरण प्रक्रिया पर सवाल उठाए. बिहार कांग्रेस के रिसर्च विंग के प्रमुख आनंद माधव और पूर्व विधायक गजानंद शाही सहित कई स्थानीय नेताओं ने विरोध में इस्तीफा दे दिया.
बुधवार शाम को पटना एयरपोर्ट पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और विधायक दल के नेता शकील अहमद खान के साथ पहुंचे अल्लावारु को कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करना पड़ा. इस दौरान कार्यकर्ताओं के बीच पक्षपात और टिकट बिक्री के आरोपों को लेकर झड़प भी हुई.
एक वरिष्ठ बिहार नेता ने कहा, “कई मुद्दों पर टकराव हुआ और अल्लावारु समझौते के लिए तैयार नहीं हुए. आरजेडी कांग्रेस को 55 सीटें देने को तैयार थी, लेकिन अल्लावारु ने 61 सीटों पर जोर दिया.”
“लालगंज, वैशाली, बछवारा, कहलगांव, बिहार शरीफ और गौरा बौराम वे सीटें हैं, जहां कांग्रेस चुनाव लड़ना चाहती है, जबकि आरजेडी या तो अपने उम्मीदवार उतार रही है या ये सीटें वामदलों को दे रही है. नतीजतन, इन जगहों पर दोस्ताना मुकाबला संभव है.”
सोमवार को आरजेडी ने बिहार चुनाव के दूसरे और आखिरी चरण के लिए 143 उम्मीदवारों की सूची जारी की. कांग्रेस ने 60 उम्मीदवारों की घोषणा की है.
बिहार विधानसभा चुनाव-2025 के लिए राष्ट्रीय जनता दल द्वारा चयनित प्रत्याशियों की सूची।
सभी उम्मीदवारों को हार्दिक बधाई एवं विजय की अग्रिम शुभकामनाएं। #Bihar #RJD pic.twitter.com/QI7ckgoIQ6
— Rashtriya Janata Dal (@RJDforIndia) October 20, 2025
एक और विवाद का मुद्दा महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा है, क्योंकि आरजेडी चाहती है कि तेजस्वी यादव गठबंधन का नेतृत्व करें. ऊपर जिक्र किए गए नेता ने कहा, “नामांकन का दूसरा चरण लगभग खत्म हो गया है, लेकिन अब तक कोई घोषणा नहीं हुई है. अल्लावारु कांग्रेस की ओर से किसी तरह की घोषणा नहीं चाहते थे.”
पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी का चुनाव चिन्ह वरिष्ठ नेताओं को बताए बिना ही बांटा गया. “हमारा आरजेडी के साथ गठबंधन समझौता आखिरी समय तक अधर में रहा, जिससे मतदान से पहले अच्छा संदेश नहीं गया. इसके लिए जिम्मेदार कौन है? अब नतीजों का इंतजार करते हैं.”
हालांकि, बिहार कांग्रेस प्रवक्ता ज्ञान रंजन ने प्रदेश प्रभारी को लेकर किसी असहमति का जिक्र करने से परहेज किया.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “फरवरी में राज्य प्रभारी का कार्यभार संभालने के तुरंत बाद अल्लावारु ने पार्टी कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना शुरू किया. उन्होंने न केवल यात्राओं की योजना बनाई बल्कि ‘घर घर झंडा’ अभियान भी शुरू किया, जिसमें कार्यकर्ताओं को अपने घरों या छतों पर कांग्रेस का झंडा लगाने के लिए प्रेरित किया गया. अभियान की प्रगति पर नजर रखने के लिए जीपीएस आधारित मॉनिटरिंग सिस्टम भी शुरू किया गया.”
“पिछले छह महीनों में अल्लावारु जी ने जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को संगठित करने के लिए पूरी मेहनत की. वह लो-प्रोफाइल रहते हैं और कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता देते हैं. उम्मीदवारों की पहली सूची में किसी भी बड़े नेता के बेटे या बेटी का नाम नहीं है. उन्होंने उन्हीं को प्राथमिकता दी जो जमीन पर सक्रिय रहे हैं. इसी वजह से हमें इस बार वे सीटें मिलीं, जिन पर हम चुनाव लड़ना चाहते थे.”
दिप्रिंट ने अल्लावारु से फोन पर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई. जवाब मिलने पर इस लेख को अपडेट किया जाएगा.
ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (AICC) के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “शुरुआत में हमारी पार्टी जूनियर पार्टनर के रूप में कमजोर दिख रही थी. आरजेडी शुरू में 40 से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं थी, लेकिन अंत में कांग्रेस ने लगभग 60 सीटें हासिल कीं. इसका कारण अल्लावारु का सख्त रुख था.”
“इसी वजह से उन्हें पार्टी के अंदर विरोध का सामना करना पड़ा. अब कई लोग उन्हें पिछले दो दशकों में पहला प्रदेश प्रभारी मानते हैं, जिन्होंने लालू परिवार से कोई समझौता नहीं किया.”
राहुल अनुयायी
जब अल्लावारु ने बिहार में वरिष्ठ कांग्रेस नेता मोहन प्रकाश की जगह ली, तो पार्टी के कई नेता हाईकमान के फैसले से हैरान रह गए. अब 51 साल के अल्लावारु को राहुल गांधी की ‘वोट अधिकार यात्रा’ के प्रमुख रणनीतिकारों में से एक माना जाता है. हालांकि वे आधिकारिक तौर पर 2018 में संयुक्त सचिव बने, लेकिन उससे पहले ही वे राहुल के मार्गदर्शन में युवा कांग्रेस की कोर टीम का हिस्सा रहे थे.
एक बिहार सांसद ने दिप्रिंट से कहा, “जब हमें उनके राज्य प्रभारी बनने की जानकारी मिली, तो हम थोड़े हैरान थे. कागजों पर वे सिर्फ संयुक्त सचिव और युवा कांग्रेस प्रभारी थे, न कि महासचिव. उन्होंने पहले कभी किसी बड़े राज्य को संभाला भी नहीं था. लेकिन हाईकमान (यानी राहुल गांधी) के नजदीकी होने के कारण किसी ने सवाल नहीं उठाया. फिर भी हममें से कई लोगों का मानना था कि बिहार जैसे राज्य के लिए एक अनुभवी नेता की जरूरत थी, न कि केवल एक बैकरूम रणनीतिकार की.”
उत्तर भारत से जुड़े एक वरिष्ठ पर्यवेक्षक, जो बिहार में काम कर रहे हैं, ने इस राय से सहमति जताई. उन्होंने कहा, “अल्लावारु ने युवा कांग्रेस में अच्छा काम किया होगा, लेकिन बिहार अलग मैदान है. यहां वही टिकता है जिसके पास मजबूत राजनीतिक समझ हो. वे काफी संकोची स्वभाव के हैं, जबकि यूपी और बिहार जैसे राज्यों में लोग ऐसे नेताओं को पसंद करते हैं जो संवादप्रिय और मिलनसार हों.”
2010 में इंडियन यूथ कांग्रेस में राष्ट्रीय कार्यकारी सदस्य के रूप में शामिल होने से पहले, अल्लावारु ने सिंगापुर में बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप में पांच साल तक सलाहकार के रूप में काम किया. उससे पहले वे केपीएमजी इंडिया में वरिष्ठ सलाहकार थे और मुंबई में Shaadis.com प्राइवेट लिमिटेड के सह-संस्थापक भी रहे, जैसा कि उनके लिंक्डइन प्रोफाइल में दर्ज है.
फिर भी, अल्लावारु ने संगठन के जमीनी कार्यकर्ताओं से जुड़ने के लिए व्यापक दौरे किए. नियुक्ति के एक महीने के भीतर ही पार्टी ने दलित विधायक राजेश राम को बिहार प्रदेश अध्यक्ष बनाया. कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, अल्लावारु ने राम की नियुक्ति के लिए जोरदार सिफारिश की थी. इससे पहले अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह थे, जिन्हें आरजेडी प्रमुख लालू यादव का करीबी माना जाता था.
उन्होंने बिहार में युवा नेता कन्हैया कुमार की राजनीतिक सक्रियता को फिर से शुरू करने में भी अहम भूमिका निभाई. उन्होंने ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ पदयात्रा की योजना बनाई. उनके करीबी लोगों के अनुसार, कुछ ही महीनों में अल्लावारु ने पार्टी कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा भर दी.
कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने बताया कि अल्लावारु ने युवा कांग्रेस के प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार करने में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने ‘वन यूनिट मैनेजमेंट’ मॉडल शुरू किया, जिसका फोकस देशभर में जिला, ब्लॉक और बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत करने पर था.
पदाधिकारी ने कहा, “मुझे याद है, वे सदस्यों को सिखाते थे कि कैसे जिला, ब्लॉक और बूथ स्तर पर मुद्दे उठाने और सरकारों के खिलाफ प्रदर्शन आयोजित करने की रणनीति बनाई जाए. वे युवाओं की राजनीति में भागीदारी पर जोर देते थे. उनके प्रशिक्षण मॉड्यूल इतने लोकप्रिय थे कि उन्हें ‘ट्रेनिंग मास्टर’ कहा जाने लगा.”
कई लोगों का मानना है कि उन्होंने 2010 में राहुल गांधी से मुलाकात के बाद पार्टी जॉइन की थी, जब राहुल युवा कांग्रेस और एनएसयूआई की जिम्मेदारी संभाल रहे थे.
पूर्व युवा कांग्रेस नेता ने दिप्रिंट से कहा, “कैसे उन्होंने राहुल से मुलाकात की और कॉर्पोरेट करियर छोड़कर राजनीति में आए, यह साफ नहीं है, लेकिन कहा जाता है कि उस मुलाकात ने उनके जीवन का नजरिया बदल दिया. राहुल उन पर भरोसा करते हैं क्योंकि उन्होंने एक शानदार नौकरी छोड़कर सामाजिक जीवन चुना. जहां तक मुझे याद है, वे 2013 की उत्तराखंड बाढ़ के दौरान राहत कार्यों में सक्रिय थे.”
आंध्र प्रदेश के रहने वाले अल्लावारु 2021 में चर्चा में आए, जब कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें पंजाब में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद पर्यवेक्षक बनाकर भेजा. कांग्रेस के कई नेताओं का मानना है कि अल्लावारु ने ही राहुल को चरणजीत चन्नी का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए सुझाया था.
पूर्व युवा कांग्रेस अध्यक्ष श्रीनिवास बी.वी., जिन्होंने अल्लावारु के साथ एक दशक से अधिक समय तक काम किया, ने कहा कि वे ज्यादा बोलने के बजाय सुनने में विश्वास रखते हैं. उन्होंने कहा, “वे काम पूरा करने में यकीन रखते हैं. उनके नेतृत्व में युवा कांग्रेस ने प्रवक्ताओं की नियुक्ति शुरू की. उन्होंने ‘यंग इंडिया के बोल’ कार्यक्रम शुरू किया ताकि युवा अपनी राय खुलकर रख सकें.”
कर्नाटक युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष मोहम्मद हारिस नलापद ने कहा, “अल्लावारु परिणाम देने वाले व्यक्ति हैं जो चापलूसी में विश्वास नहीं करते. वे पार्टी और राहुल गांधी के लिए चौबीसों घंटे काम करते हैं. वे अपनी उपलब्धियों का दिखावा नहीं करते और हमेशा लो-प्रोफाइल रहते हैं. मुझे याद है कि युवा कांग्रेस की सदस्यता अभियान के दौरान उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि अभियान से मिलने वाली सारी राशि संगठन के उपयोग के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट में रखी जाए.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: ‘मेहमानों का स्वागत चाय और अखबार से करें’ — हरियाणा DGP का आला अधिकारियों को खुला पत्र
