नोएडा: पिछले साल मार्च में गिरफ्तार होने के बाद पुलिस की गाड़ी में रोने से लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) द्वारा माला पहनाकर स्वागत किए जाने तक, खुद को ‘बिहार का बेटा’ कहने वाले त्रिपुरारी कुमार तिवारी उर्फ मनीष कश्यप ने एक लंबा सफर तय किया है. जेल ने उन्हें और भी अनुभवी बना दिया है. 34-वर्षीय मनीष के बालों में और निखार आया है और अब वे राजनीति के लिए तैयार दिखाई दे रहे हैं.
बिहार के इस यूट्यूबर के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता. आखिरकार, मार्च 2023 में उनके द्वारा पोस्ट किए गए फर्ज़ी वीडियो ने बिहार पुलिस की नाक में दम कर दिया था, बिहार और तमिलनाडु को ‘घरेलू कूटनीति’ संकट के कगार पर ला खड़ा किया और बिहार विधानसभा में हलचल मचा दी.
कश्यप के वीडियो में दावा किया गया था कि तमिलनाडु में हिंदी भाषी प्रवासी श्रमिकों पर हमला किया जा रहा है. जांच के बाद तमिलनाडु पुलिस ने निष्कर्ष निकाला कि वह सामाजिक तनाव पैदा करने के लिए फर्ज़ी खबरें फैला रहे थे. इसके बाद, कश्यप के झूठ का अंत जेल में हुआ. उन्होंने बिहार और तमिलनाडु में नौ महीने जेल में बिताए और उनके खिलाफ कई एफआईआर दर्ज हैं. दिसंबर में पटना हाई कोर्ट ने उन्हें एक मामले में ज़मानत दे दी.
जेल से ही कश्यप राजनीति में आए और तमिलनाडु में मतदान समाप्त होने के कुछ ही दिनों बाद भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उन्हें गले लगा लिया. सोशल मीडिया पर उनकी प्रभावशाली फॉलोइंग और जोशीले वीडियो ने उन्हें बिहार में एक सेलिब्रिटी बना दिया है.
वो जहां भी जाते हैं, लोग उनके पास आते हैं, ऑटोग्राफ लेते हैं, सेल्फी खिंचवाते हैं. कश्यप के एक पहलवान सहयोगी ने भारी हरियाणवी लहज़े में कहा, “सिर्फ बिहार ही नहीं, नोएडा में उनके साथ चलना भी सुरक्षा के लिहाज़ से बुरा सपना है.”
कश्यप बिहार में डिजिटल बाहुबलियों की एक फौज में शामिल हैं, जिन्होंने मुख्यधारा की खबरों के विकल्प के तौर पर यूट्यूब का इस्तेमाल किया है. वे खुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं, जिनमें मुश्किल सवाल पूछने, भ्रष्टाचार और निष्क्रियता को उज़ागर करने के लिए सरकारी दफ्तरों में जाने और लोगों के मुद्दों पर विजुअली दिखाने का साहस है. वे दूरदराज के इलाकों में बेहद लोकप्रिय हैं और उन्हें स्थानीय नायक माना जाता है. लाखों दर्शकों और इन्फ्लुएंस के साथ, राजनीति में उनका आगाज़ सच में थोड़ा आसाना है.
नोएडा में अपने घर पर, जहां उन्होंने भगवा-सफेद-हरे रंग की दीवारों के साथ एक रिकॉर्डिंग स्टूडियो बनाया है, कश्यप जेल में बिताए अपने समय के बारे में बात करते हैं, जिसे वे “नरक” बताते हैं. उन्होंने बताया कि जेल के दौरान उन्हें अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना आ गया है.
कश्यप ने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा, “जेल ने मुझे बहुत सुधार दिया है. हमारी जेल प्रणाली में सुधार की ज़रूरत है; एक बार ऐसा हो जाए, तो 100 में से 99 लोग जेल से सुधर कर बाहर निकलेंगे.”
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राजनीतिज्ञ के लक्षण
भले ही उन्होंने अभी-अभी भाजपा के साथ अपना राजनीतिक करियर शुरू किया है, लेकिन कश्यप की झूठ बोलने की प्रवृत्ति और सपाट चेहरे वाले खंडन उन्हें एक अनुभवी राजनेता बनाते हैं. कश्यप ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में पश्चिम चंपारण के चनपटिया निर्वाचन क्षेत्र से बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा था और उन्हें 9,239 वोट मिले थे. वर्तमान में फर्ज़ी प्रवासी वीडियो मामले में ज़मानत पर बाहर, वे हर एक इंटरव्यू में दोहराते हैं कि उन्हें मामले में बरी कर दिया गया है. हालांकि, कोई बरी नहीं हुआ है और पटना हाई कोर्ट में मुकदमा अभी शुरू भी नहीं हुआ है.
कश्यप ने कथित तौर पर तमिलनाडु में बिहारी प्रवासी मजदूरों पर हमले का दावा करते हुए एक वीडियो बनाया था, जिससे दोनों राज्यों में तनाव पैदा हो गया था. कश्यप चिल्लाते हैं, “क्या किसी मीडिया के पास वीडियो है? वीडियो कहां खत्म हुआ? मंगल ग्रह पर? या पृथ्वी ने उसे निगल लिया? अफवाहों के आधार पर मुझे बदनाम किया गया.” दरअसल, वीडियो को उसकी संवेदनशील प्रकृति के कारण हटा दिया गया था.
यह एकमात्र वीडियो नहीं था जिसने उन्हें मुसीबत में डाला. उन पर पुलवामा हमले के बाद बिहार में एक कश्मीरी शॉल विक्रेता की कथित तौर पर पिटाई करने और किंग एडवर्ड सप्तम की मूर्ति को तोड़ने की वकालत करने, एक पुलिसकर्मी की जान को खतरे में डालने के मामले का सामना करना पड़ रहा है. अब वे दावा करते हैं, “मैंने इनमें से कुछ भी नहीं किया.”
बिहार का 20-30 साल का युवा वर्ग उन्हें अपना आदर्श मानता है. वे यहां अगड़ी जाति के वोट बैंक को प्रभावित कर सकते हैं. हालांकि, उनकी अपील हाशिए पर मौजूद वर्गों के बीच सीमित है
— संजय कुमार, दक्षिण बिहार के एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर
भले ही कश्यप 2020 का चुनाव हार गए, लेकिन उन्होंने बिहार की राजनीति और नेताओं की सोच पर कब्ज़ा कर लिया है. बिहार बीजेपी ने बिहार में तत्कालीन महागठबंधन सरकार को घेरने के लिए वायरल फर्ज़ी वीडियो को हथियार की तरह इस्तेमाल किया. कश्यप द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच की मांग करते हुए विधायकों ने विधानसभा पर कब्ज़ा कर लिया और रिपोर्टिंग स्टाफ की मेज पर कुर्सियां उठाकर कहीं ओर रख दीं. यहां तक कि बिहार के राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर ने भी उनके लिए वकालत की और एक कार्यक्रम में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के प्रति नरम रुख अपनाते हुए फर्ज़ी खबरें फैलाने के लिए उन्हें दंडित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायत की. कश्यप खुद को तेजस्वी यादव का सीधा प्रतिद्वंद्वी मानते हैं. गिरफ्तारी से पहले वीडियो में उन्होंने राजद नेता को धमकी देते हुए कहा था कि अगर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया तो वे सरकार गिरा देंगे.
वे अपने आगामी करियर के बारे में आत्मविश्वास से कहते हैं, “राजनीति में मेरा कोई गॉडफादर नहीं है, लेकिन नरेंद्र मोदी का भी नहीं है.”
जातिगत सीमाओं को दरकिनार करते हुए
जाति-संवेदनशील बिहार की राजनीति में ब्राह्मण उम्मीदवार होना आसान नहीं हो सकता, लेकिन एक यूट्यूबर के रूप में मनीष कश्यप की लोकप्रियता पश्चिमि चम्पारण के युवाओं के बीच कई जातिगत सीमाओं को दरकिनार कर देती है. दक्षिण बिहार के एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर संजय कुमार बताते हैं कि कश्यप की उच्च जाति के युवाओं के बीच अच्छी पकड़ है. कुमार ने दिप्रिंट से कहा, “बिहार के 20-30 साल के युवा समूह उन्हें अपना आदर्श मानते हैं. वे यहां अगड़ी जाति के वोट बैंक को प्रभावित कर सकते हैं. हालांकि, हाशिए के वर्गों में उनकी अपील सीमित है.”
इन सबके बीच कश्यप अपनी ज़मीन से जुड़े रहने की कोशिश करते हैं. जेल से रिहा होने के बाद वे बालकनी में खड़े थे और सैकड़ों लोग उनका स्वागत करने आए थे.
उन्होंने कहा, “मुझे खेद है कि मैं इस तरह छत पर खड़ा हूं जबकि आप नीचे खड़े हैं. मुझे यह पसंद नहीं है. मैं आपके बीच आना चाहता हूं, लेकिन चूंकि इतनी भीड़ जमा हो गई है, इसलिए मैं सुरक्षा कारणों से वहां नहीं आ सकता.”
कश्यप का दृष्टिकोण पारिवारिक है, एक ज़मीनी नेता की तरह जो अपनी श्रेष्ठता नहीं दिखाना चाहता. वे जनता को याद दिलाते रहते हैं कि वे उनमें से ही एक हैं. भाजपा में शामिल होने से पहले एक अभियान वीडियो में उन्होंने कहा था, “अगर मैं सांसद बन गया, तो आप सभी सांसद बन जाएंगे.”
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बाहुबली यूट्यूबर्स
बिहार में सामाजिक न्याय योद्धाओं की नवीनतम पीढ़ी आंदोलनों, विरोध प्रदर्शनों या विद्रोह से उभरने वाले नेता नहीं हैं; वे यूट्यूबर्स हैं — आधे पत्रकार, आधे कार्यकर्ता. वे सोशल मीडिया के इन्फ्लुएंसर्स हैं जिन्होंने शानदार प्रदर्शन के जरिए लोकप्रियता हासिल की है. हर एक वीडियो पर लाखों व्यूज़ के साथ, ये YouTubers भ्रष्टाचार को खत्म करने, पुलिस पर नियंत्रण रखने और न्याय और सामाजिक सुधार की मांग करते हैं.
कश्यप कार्यकर्ता-पत्रकार-योद्धाओं की उसी श्रेणी से आते हैं. उन्होंने 2016 में इस काम को चुना. इससे पहले, कश्यप 9-5 की सामान्य ज़िंदगी जी रहे थे. वे सेना के जवानों के परिवार से आते हैं, उनके दादा एक सैनिक थे जबकि उनके पिता अभी भी सेवा में हैं. कश्यप का ड्राइविंग लाइसेंस खो गया था और वे उसकी एक कॉपी बनवाने के लिए बिहार के पश्चिम चंपारण स्थित अपने घर लौटे थे. तभी 26-वर्षीय का बिहार में भ्रष्टाचार से आमना-सामना हुआ.
कश्यप ने कहा, “आज भी, अगर आप ड्राइवर का लाइसेंस मांगते हैं, तो आपको एक बाबू को रिश्वत देनी होगी. यह सच है.”
एक युवा आईटी पेशेवर, कश्यप ने पहली बार बिहार के समाज को वैसा ही देखा जैसा वो है —गरीब और भ्रष्टाचार से जूझता हुआ राज्य. उन्होंने इसके बारे में कुछ करने का फैसला किया और वीडियो बनाना शुरू कर दिया और उस यात्रा ने उन्हें राज्यव्यापी प्रसिद्धि दिलाई, 8.71 मिलियन फॉलोअर्स मिले और उनकी छवि एक संकटमोचक की भी बन गई. कश्यप कहते हैं, उनके 40 फीसदी फॉलोअर्स बिहार से हैं.
वे अपनी लोकप्रियता का आनंद लेते हैं. वो जहां भी जाते हैं, लोग उनके पास आते हैं, ऑटोग्राफ लेते हैं, सेल्फी खिंचवाते हैं. कश्यप के एक पहलवान सहयोगी ने भारी हरियाणवी लहज़े में कहा, “सिर्फ बिहार ही नहीं, नोएडा में उनके साथ चलना भी सुरक्षा के लिहाज़ से बुरा सपना है.”
कुछ यूट्यूबर्स उनका सम्मान करते हैं, जबकि अन्य उन्हें बीजेपी का चमचा बुलाते हैं. बिहार के एक YouTuber ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “मनीष ने बहुत पहले ही यूट्यूबर और सामाजिक न्याय योद्धा बनना बंद कर दिया और भाजपा से हाथ मिला लिया. वो अब मेरे प्रतिस्पर्धी नहीं हैं; वो अब एक नेता (राजनेता) हैं और मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं.”
कश्यप ज़मीन पर लोगों से जुड़ना जानते हैं. उनका दृष्टिकोण पारिवारिक है, एक ज़मीनी स्तर के नेता की प्रतिध्वनि है जो ऊपरी हाथ नहीं दिखाना चाहता बल्कि भीड़ में घुलना-मिलना चाहता है. वे भीड़ को याद दिलाते रहते हैं कि वे उनमें से ही एक हैं. भाजपा में शामिल होने से पहले एक अभियान वीडियो में उन्होंने कहा था, “अगर मैं सांसद बन गया, तो आप सभी सांसद बन जाएंगे. सिर्फ मैं ही नहीं, हम सब, पूरा बिहार. इसे याद रखें.”
वे नदियों से घिरे एक गांव में पले-बढ़े हैं. इसलिए जब बिहार के लोगों की सेवा करने की बात आती है तो उनकी चेकलिस्ट में सबसे पहली चीज़ राज्य में आने वाली वार्षिक बाढ़ को नियंत्रित करना है. वे यह भी चाहते हैं कि बिहार में बेहतर कनेक्टिविटी के लिए एक्सप्रेसवे हों.
उन्होंने कहा, “उत्तर प्रदेश में अब छह एक्सप्रेसवे हैं — कुल मिलाकर 13 प्रस्तावित हैं. मैं चाहता हूं कि बिहार में भी इसी तरह का बुनियादी ढांचा विकास और कनेक्टिविटी हो.”
जब उनसे उनके टिकट के बारे में पूछा गया तो कश्यप मुस्कुराए, लेकिन ईमानदारी से जवाब दिया. वे निर्दलीय की दौड़ से तो हट गए, लेकिन भाजपा से उन्हें टिकट नहीं मिला.
उन्होंने कहा, “मैंने टिकट मांगा था, लेकिन पार्टी को लगा कि मैं अभी तैयार नहीं हूं. यह ठीक है; जब भी उन्हें लगेगा कि मैं इसके लिए तैयार हूं तो मैं चुनाव लड़ूंगा.”
कश्यप को भरोसा है कि उन्होंने पश्चिम चंपारण निर्वाचन क्षेत्र में निर्दलीय उम्मीदवार बनकर कम से कम 5 लाख वोट जीते होंगे और तीन-चार अतिरिक्त सीटों पर अंतर पैदा किया होगा. ऐसा लगता है कि वे राष्ट्रीय सुर्खियां बनने वाली बातचीत पर टिप्पणी करने और बिहार और दिल्ली से भाजपा की सेवा करने के लिए तैयार हैं. अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर, वे “अखंड भारत” की वकालत करते हैं और पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल और म्यांमार को भारत के “बच्चे” मानते हैं जिन्हें देश में वापस लाने की ज़रूरत है.
उन्होंने कहा, “2029 तक, मोदी जी पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर को भारत का हिस्सा बना देंगे. हमने पूरे पाकिस्तान पर कब्ज़ा करने का रोडमैप भी तैयार कर लिया है. अगले 10 साल में पूरा पाकिस्तान भारत का हिस्सा होगा. आप देख लीजिएगा.”
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