scorecardresearch
Monday, 16 December, 2024
होमराजनीतिबोटी-बोटी से रोज़ी-रोटी तक — कांग्रेस के सहारनपुर उम्मीदवार इमरान मसूद के सुर कैसे बदले

बोटी-बोटी से रोज़ी-रोटी तक — कांग्रेस के सहारनपुर उम्मीदवार इमरान मसूद के सुर कैसे बदले

मसूद ने आखिरी बार 2007 में चुनाव जीता था. लगातार चुनाव हारने के बावजूद, स्थानीय भाजपा नेता मानते हैं कि सहारनपुर में उनका मजबूत आधार है, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए उन पर निशाना साधा कि उन्होंने साल में 3 पार्टियां बदलीं हैं.

Text Size:

सहारनपुर: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुख्य शहर सहारनपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर फैज़ाबाद — एक मुस्लिम बहुल गांव में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए इस सोमवार को मुजफ्फराबाद के पूर्व विधायक और कांग्रेस के लोकसभा उम्मीदवार इमरान मसूद ने कहा, “पद के लिए नहीं आपके हक के लिए जंग लड़ने का ज़ज्बा है.” उनके भाषण पर जोरदार तालियां बजीं.

जैसे ही मसूद के समर्थकों ने उन्हें कंधों पर उठाया, 15-वर्षीय इमरान अहमद ने दिप्रिंट से कहा, “हम तो इनके दीवाने हैं”.

2007 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपनी सफल चुनावी शुरुआत के बाद से 53-वर्षीय इमरान मसूद चार चुनाव हार चुके हैं — 2012 विधानसभा चुनाव, 2014 संसदीय चुनाव, 2017 विधानसभा चुनाव और 2019 लोकसभा चुनाव, लेकिन इन हारों ने न तो उनके जज्बे को कम किया और न ही राज्य के इस हिस्से के लोगों — ज्यादातर मुस्लिम मतदाताओं — पर उनकी पकड़ कमजोर हुई है.

मसूद ने दिप्रिंट से कहा, “यह जीत या हार के बारे में नहीं है बल्कि लोगों के बीच प्रासंगिक बने रहने के बारे में है और मैं अभी भी प्रासंगिक हूं.”

Residents attend Congress leader Imran Masood's public meeting at Faizabad, Saharanpur | Krishan Murari | ThePrint
फैज़ाबाद, सहारनपुर में कांग्रेस नेता इमरान मसूद की जनसभा में शामिल जनता | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

सहारनपुर में 19 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के पहले चरण के लिए मतदान होगा और मसूद का भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राघव लखनपाल शर्मा और बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) के माजिद अली के साथ त्रिकोणीय मुकाबला होगा.

2014 में मसूद को वायरल वीडियो में विवादास्पद रूप से यह कहने के लिए गिरफ्तार किया गया था कि वे “प्रधानमंत्री की बोटी-बोटी कर देंगे”. हालांकि, वे अपने भाषणों और टिप्पणियों के लिए चर्चा में रहते हैं, लेकिन इस चुनाव में उनके शब्द अधिक नपे-तुले हैं.

उनकी एक प्रमुख बात यह है कि भाजपा भारत के संविधान के लिए खतरा पैदा कर रही है. उन्होंने फैजाबाद में अपने भाषण में कहा, “अगर इस बार चूक गए तो दोबारा मौका नहीं मिलेगा. संविधान बचेगा तो ही लोकतंत्र बचेगा. इसलिए अपने बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अपना वोट डालें.” — एक लाइन जो वे अपने हर भाषण में दोहराते हैं.

कांग्रेस और भाजपा दोनों ही उस सीट को जीतने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिसे 2019 में बसपा के हाज़ी फजलुर रहमान ने जीता था. भाजपा पहले ही निर्वाचन आयोग से शिकायत कर चुकी है कि मसूद धार्मिक आधार पर लोगों को “भड़काने” की कोशिश करते रहते हैं.

लेकिन अभी तक न तो मुजफ्फराबाद के पूर्व विधायक और न ही उनकी पार्टी कांग्रेस इस ओर कोई ध्यान देती दिख रही है. स्थानीय कांग्रेस नेता इसे भाजपा की ध्रुवीकरण की कोशिश बताते हैं और दावा कर रहे हैं कि मसूद “सभी जातियों को साथ लेकर चल रहे हैं”.

दरअसल, पार्टी न केवल सहारनपुर के मुस्लिम बल्कि अपने महत्वपूर्ण दलित मतदाता आधार को सुरक्षित करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है.

इस निर्वाचन क्षेत्र में दलित और मुस्लिमों की संख्या 64 प्रतिशत है. इसमें से हालांकि, मुस्लिमों की संख्या सबसे बड़ी 42 प्रतिशत है, लेकिन दलितों की भी बड़ी आबादी है.

कांग्रेस के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हम गांव-गांव जा रहे हैं और छोटी-छोटी बैठकें कर रहे हैं. जितनी बड़ी सभाएं होंगी, ध्रुवीकरण की संभावना उतनी ही अधिक होगी. यही तो बीजेपी कर रही है. इस बार, हम कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते.”

हालांकि, कैराना के विजय सिंह पथिक गवर्नमेंट पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज में राजनीति विज्ञान के सहायक प्रोफेसर उत्तम कुमार के अनुसार, दलित वोट प्राप्त करना जितना आसान कहा जा सकता है उतना आसान नहीं है.

उन्होंने कहा, “इस सीट पर दलित फैक्टर बहुत महत्वपूर्ण है और जो इसे संभाल लेता है, वही जीतता है. हालांकि, 2012 के बाद से बसपा कमजोर हो गई है, लेकिन उसका मुख्य वोट अभी भी वहां है, यहां तक कि दलितों के बीच भी. इसके अलावा, भाजपा ने कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से इसमें सेंध लगाई है.”


यह भी पढ़ें: पश्चिमी यूपी में मुसलमान बोले-  कानून व्यवस्था तो सुधरी है, पर बीजेपी को वोट देना हमारे ईमान के खिलाफ


मसूद के सियासी सुर बदले

मसूद सहारनपुर के एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आते हैं — उनके चाचा रशीद मसूद नौ बार सांसद रहे हैं.

Congress leader Imran Masood addressing a public meeting at Raipur, Saharanpur | Krishan Murari | ThePrint
कांग्रेस नेता इमरान मसूद रायपुर, सहारनपुर में रैली को संबोधित करते हुए | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

2022 के बाद से मसूद ने तीन पार्टियां बदली हैं. हालांकि, उन्होंने अपना करियर कांग्रेसी नेता के रूप में शुरू किया, लेकिन जनवरी 2022 में वे समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए, फिर पिछले अक्टूबर में कांग्रेस में फिर से शामिल होने से पहले उसी साल अक्टूबर में वे बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में चले गए.

भाजपा इस चुनाव में 2014 के इस विवादास्पद बयान के लिए मसूद को निशाने पर ले रही है, लेकिन मुजफ्फराबाद के पूर्व विधायक ने इस चुनाव में अपनी राजनीतिक भाषा बदल दी है — वे न केवल संविधान के लिए कथित खतरे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी पर निशाना साध रहे हैं, बल्कि वे राम और रोजी-रोटी के बारे में भी बोल रहे हैं.

उन्होंने बीजेपी के नारे “जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे’ पर विशेष आपत्ति जताई है.” उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “राम को लाने वाले वह कौन होते हैं? राम भगवान हैं. क्या कोई उन्हें “ला सकता है”? राम आस्था के प्रतीक हैं. आप उन्हें मंदिरों में नहीं बल्कि शबरी के बेर में पा सकते हैं.” उन्होंने आगे कहा, “राम मिलेंगे मर्यादा से जीने में, राम मिलेंगे हनुमान के सीने में.”

साथ ही, वे राजपूतों को भी लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, जो विभिन्न अनुमानों के मुताबिक, सहारनपुर की आबादी का 8 प्रतिशत हैं और जो वर्तमान में भाजपा से अभी थोड़े नाराज़ भी हैं.

संसदीय क्षेत्र के रायपुर गांव में एक बैठक में मसूद ने दो विवादों का ज़िक्र किया — 9वीं सदी के हिंदू राजा मिहिर भोज की पहचान पर विवाद और केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला की विवादास्पद टिप्पणी जिसमें उन्होंने दावा किया कि तत्कालीन “महाराजाओं” ने अंग्रेज़ों से नाता तोड़ लिया था और अपनी बेटियों की शादी उनसे कर दी.

उन्होंने दावा किया कि राजपूतों ने उन्हें वोट देने का फैसला किया है. उन्होंने कहा, “राजपूत कह रहे हैं कि रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाए.”

स्थानीय नेताओं के मुताबिक, यह चुनाव मसूद के राजनीतिक भविष्य को तय करने में महत्वपूर्ण है.

कांग्रेस के एक अन्य नेता ने दिप्रिंट को बताया, “हालांकि, मसूद लोकप्रिय बने हुए हैं, लेकिन चुनाव जीतना भी बहुत महत्वपूर्ण है. अगर मुस्लिम और दलित एक साथ आते हैं, तो स्थिति (हमारे पक्ष में) हो जाएगी.”

हालांकि, यह एक चुनौती हो सकती है. उनके चाचा रशीद मसूद को न केवल मुसलमानों बल्कि हिंदुओं का भी समर्थन था, लेकिन इमरान मसूद अब तक उस तरह का समर्थन जुटाने में असफल रहे हैं.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, अपनी ओर से मसूद को अपने संविधान की पिच का उपयोग करके ऐसा करने की उम्मीद है. भाजपा संविधान को खत्म करना चाहती है. इसलिए जो दलित आंबेडकर का अनुसरण करते हैं, वे उनके साथ नहीं जाएंगे.”

पूर्व विधायक ने पूर्व मुख्यमंत्री मायावती पर “बीजेपी की बंधक” होने का भी आरोप लगाया. उन्होंने कहा, “वे वही करती हैं जो भाजपा उनसे कहती है.”

वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी मसूद को कड़ी चुनौती देगी. उक्त सहायक प्रोफेसर उत्तम कुमार के अनुसार, भाजपा अपने पारंपरिक वोट बैंक ओबीसी पर निर्भर है.

विशेष रूप से पार्टी को उम्मीद है कि पूर्व विधायक धर्म सिंह सैनी की इस हफ्ते पार्टी में वापसी से ये वोट उसके पक्ष में आ जाएंगे. अनुमान के मुताबिक, सैनी निर्वाचन क्षेत्र की आबादी का 5 प्रतिशत हैं.

उन्होंने कहा, “साथ ही, इस क्षेत्र में सुरक्षा, कानून व्यवस्था और बुनियादी ढांचे का काम उन मुख्य मुद्दों में से हैं जो भाजपा को बढ़त दिला सकते हैं.”

मसूद के लिए सहारनपुर में एक और चुनौती हो सकती है — बसपा के लोकसभा उम्मीदवार माजिद अली. अभिनेता कमाल राशिद खान के भाई अली देवबंद के रहने वाले हैं और उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पहले चरण में सबसे अमीर उम्मीदवारों में से हैं.

पिछले हफ्ते केआरके के नाम से मशहूर कमाल राशिद खान ने एक्स पर पोस्ट किया था कि मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को देश के सभी मदरसों को बंद कर देना चाहिए.

हालांकि, पोस्ट अब डिलीट हो गई है, लेकिन मसूद ने अपने प्रतिद्वंद्वी पर निशाना साधने के लिए इसे चुनावी मुद्दा बना लिया है.

फैज़ाबाद में अपने भाषण में उन्होंने कहा, “जो दुनिया में दीन की रोशनी फैलाते हैं, उस पर सवाल उठ रहे हैं.”

‘केवल अपने हितों के लिए काम करता है’

कांग्रेस की तरह, भाजपा भी सहारनपुर पर कब्जा करने के लिए प्रतिबद्ध है, यह सीट उसने आखिरी बार 2014 में जीती थी. पिछले 15 दिन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चार बार निर्वाचन क्षेत्र का दौरा किया है, यहां तक कि इस हफ्ते की शुरुआत में एक रोड शो भी किया था.

बीजेपी को उम्मीद है कि सपा और बसपा के अलग-अलग चुनाव लड़ने से वोटों का बंटवारा होगा, जिसका फायदा आखिरकार उसे ही होगा.

सहारनपुर में बीजेपी के संयोजक बिजेंद्र कश्यप ने दिप्रिंट को बताया, “बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व यह सीट चाहता है. पिछली बार हम हार गए क्योंकि सपा और बसपा गठबंधन में थे, लेकिन इस बार सब अलग-अलग लड़ रहे हैं.”

सहारनपुर के 19 लाख मतदाताओं में से 6.8 लाख मुस्लिम हैं जबकि बाकी हिंदू हैं, जहां भाजपा को हिंदू वोटों को भुनाने की उम्मीद है, वहीं कांग्रेस और सपा के साथ-साथ बसपा और इंडिया गुट मुसलमानों और दलितों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.

इस बीच, भाजपा अपने घोषणापत्र को लेकर कांग्रेस पर निशाना साध रही है — अपने भाषण में मोदी ने दस्तावेज़ को “झूठ का पुलिंदा” कहा और कहा कि इस पर मुस्लिम लीग की “छाप” है.

यह दावा भाजपा प्रत्याशी और पूर्व सांसद राघव लखनपाल शर्मा ने इसी महीने देवबंद में दोहराया था.

उन्होंने कहा, “सहारनपुर में कुल मतदाता 19 लाख हैं, जिनमें से 6.8 लाख मुस्लिम हटा दिए गए हैं. 13 लाख मतदाता बचे हैं. फिर समस्या कहां है. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सहारनपुर की एक रैली में कहा कि कांग्रेस के घोषणापत्र पर मुस्लिम लीग की छाप है.”

हालांकि, सार्वजनिक रूप से कांग्रेस और उसके उम्मीदवार पर हमला करते हुए भी, स्थानीय भाजपा नेता मानते हैं कि चुनावी हार के बावजूद इमरान मसूद का सहारनपुर में एक मजबूत आधार है, लेकिन वे यह भी बताते हैं कि कैसे मसूद ने बहुत ही कम समय में तीन पार्टियां बदल लीं.

कश्यप ने कहा, “इमरान एक मजबूत नेता हैं और इस बार वे सभी वर्गों के लोगों तक पहुंच रहे हैं. हालांकि, उन्होंने एक साल के भीतर तीन पार्टियां बदली हैं और लोग समझ गए हैं कि वे केवल अपने हित के लिए काम कर रहे हैं.”

लेकिन मसूद आलोचना से बेफिक्र हैं. जब उनसे नेतृत्व पदों पर भारतीय मुसलमानों की घटती भूमिका के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “एक हिंदू एक मुस्लिम के लिए एक अच्छा नेता हो सकता है और एक मुस्लिम एक हिंदू के लिए एक अच्छा नेता हो सकता है. यही है हमारा हिंदुस्तान.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: आरक्षण खत्म होने के डर को दूर करने के लिए मोदी और शाह कैसे कर रहे हैं BJP की अगुवाई


 

share & View comments