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Friday, 26 April, 2024
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यूथ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष, ‘राहुल गांधी के करीबी’ और अब पंजाब कांग्रेस के नए मुखिया- कौन हैं अमरिंदर राजा वडिंग

गिद्दड़बाहा से तीन बार के विधायक राजा वडिंग को पार्टी को एकजुट बनाए रखने की कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा. पंजाब में कांग्रेस को मिली हार के बाद उन्हें प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गई है. पार्टी अंदरूनी कलह से जूझ रही है.

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नई दिल्ली: 44 साल के अमरिंदर सिंह राजा वडिंग ने शनिवार को पंजाब कांग्रेस के नए अध्यक्ष की दौड़ में शामिल कई दिग्गज दावेदारों को पछाड़ते हुए पार्टी में नवजोत सिंह सिद्धू की जगह ली है. सिद्धू को हाल ही में राज्य विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद इस्तीफा देने के लिए कहा गया था.

भारतीय युवा कांग्रेस (आईवाईसी) के पूर्व अध्यक्ष वडिंग चरणजीत सिंह चन्नी की सरकार में परिवहन मंत्री रह चुके हैं. मार्च में आम आदमी पार्टी की मिली भारी जीत के बाद कांग्रेस सत्ता से बाहर है.

चन्नी और सिद्धू ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन वो जीतने में नाकाम रहे. 117 सदस्यीय विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को सिर्फ 18 सीटें मिलीं थीं. इसके अलावा पार्टी को अन्य चार राज्यों – उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भी हार का सामना करना पड़ा.

विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद सिद्धू समेत चार राज्यों के कांग्रेस प्रमुखों को इस्तीफा देने के लिए कहा गया था ताकि प्रदेश कांग्रेस कमेटियों का पुनर्गठन किया जा सके. सिद्धू को अभी तक पंजाब कांग्रेस में एक संगठनात्मक पद नहीं दिया गया है.

पार्टी के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि वडिंग को पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीपीसीसी) का प्रमुख बनाने का फैसला पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में केंद्रीय और राज्य के नेताओं के बीच कई दौर की बातचीत के बाद लिया गया.

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सिद्धू के इस्तीफा देने के एक महीने बाद वडिंग की नियुक्ति ऐसे समय में हुई है जब महीनों तक चली अंदरूनी लड़ाई से पंजाब में कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे के कमजोर पड़ने का खतरा मंडरा रहा है. हाल की नियुक्तियों के कारण पार्टी में और भी उथल-पुथल होने की संभावना बनी हुई है.

पिछले हफ्ते लुधियाना से कांग्रेस के लोकसभा सांसद रवनीत बिट्टू ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी. बिट्टू ने एक ट्वीट में कहा कि उन्होंने बैठक में ‘पंजाब के मुद्दों पर चर्चा’ की. इसके बाद से पार्टी के भीतर और राजनीतिक हलकों में खलबली मची हुई है.

उस समय कांग्रेस के एक खेमे ने दिप्रिंट को बताया था कि यह ‘आलाकमान के लिए एक संकेत’ हो सकता है क्योंकि उन्होंने इस बात पर विचार-विमर्श किया था कि अगला पीपीसीसी प्रमुख कौन होगा. अन्य लोगों ने कहा कि शायद यह बिट्टू के भाजपा में शामिल होने का संकेत हैं.

बिट्टू ने अभी इस बैठक को लेकर और कोई बयान नहीं दिया है. फिलहाल बिट्टू को कांग्रेस के पाले में रखना पीपीसीसी प्रमुख के रूप में वडिंग का पहला काम हो सकता है.

‘सोथा से वडिंग तक का सफर’

वडिंग पंजाब के मुक्तसर जिले के गिद्दड़बाहा निर्वाचन क्षेत्र से तीन बार विधायक रहे हैं. कभी पूर्व कांग्रेस सांसद जगमीत बराड़ (जो अब शिरोमणि अकाली दल से जुड़े हैं) के कहने पर उन्होंने 2000 में मुक्तसर में युवा कांग्रेस के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी.

राजनीति में आने से पहले वडिंग को ‘राजा सोथा’ के नाम से जाना जाता था. दिलचस्प बात यह है कि बचपन में उन्हें ‘राजा’ कहा जाता था क्योंकि वह पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के हमनाम थे. लेकिन जब 2021 में कैप्टन, सिद्धू और गांधी परिवार के बीच उथल-पुथल सामने आई तो वडिंग पंजाब कांग्रेस में अमरिंदर के सबसे बड़े आलोचकों में से एक बन गए.

‘सोथा’ मुक्तसर में वडिंग की मां का पैतृक गांव का नाम है. बचपन में उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी जिसके बाद उनके मामा ने ही उनका पालन-पोषण किया था. तभी से उन्होंने कथित तौर पर अपने नाम के साथ ‘सोथा’ जोड़ना शुरू कर दिया था. उन्हें सलाह दी गई थी कि जब वे राजनीति में आए तो अपने पैतृक गांव वडिंग के नाम को अपने उपनाम के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दें. इस तरह से राजा सोथा, राजा वडिंग बन गए. वैसे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कुछ हलकों में उन्हें अभी भी राजा बराड़ के रूप में जाना जाता है. बराड़ उनकी मां का उपनाम था.

‘राहुल गांधी ने चुना’

2012 के राज्य विधानसभा चुनावों में गिद्दड़बाहा से चुनाव लड़ने के लिए राहुल गांधी ने ही उन्हें चुना था. इससे पहले वडिंग पंजाब में युवा कांग्रेस में कई पदों पर बने रहे थे.

उन्होंने मनप्रीत सिंह बादल को हराकर सीट जीती थी. बादल शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर बादल के चचेरे भाई और तत्कालीन पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब (पीपीपी) के प्रमुख थे. उसके बाद मनप्रीत कांग्रेस में शामिल हो गए और उन्हें अमरिंदर सिंह और चन्नी के नेतृत्व वाली सरकारों में वित्त मंत्री का कार्यभार सौंपा गया था. हालांकि, वडिंग और मनप्रीत बादल के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता अभी भी जारी है.

वडिंग राहुल गांधी के कहने पर 2014 से 2018 तक भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में काम करते रहे. इस दौरान उन्होंने 2017 के पंजाब चुनावों में दूसरी बार गिद्दड़बाहा सीट पर जीत हासिल की थी.

2019 में, उन्होंने शिअद की हरसिमरत कौर बादल के खिलाफ बठिंडा से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन बहुत ही कम अंतर से वह हार गए थे.

उन्हें सितंबर 2021 में चन्नी सरकार में परिवहन मंत्री के रूप में शामिल किया गया. वह पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के मुखर आलोचक में से एक रहे हैं. अमरिंदर सिंह को गांधी परिवार ने पद से हटा दिया था.

वडिंग को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है. गांधी परिवार केंद्रीय नेतृत्व के साथ-साथ, राज्य इकाइयों में पार्टी के पुराने नेताओं के प्रभाव को कम करने के प्रयासों में जुटा है. वडिंग की नियुक्ति को इन्हीं प्रयासों के एक हिस्से के रूप में देखा जा रहा है.

पार्टी को एकजुट बनाए रखने का मुश्किल काम

पंजाब कांग्रेस के नए अध्यक्ष बनने की दौड़ में वडिंग के अलावा पंजाब विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के नेता 65 वर्षीय प्रताप सिंह बाजवा सहित कई अन्य नेता शामिल थे. पूर्व खाद्य मंत्री और दो बार के विधायक भारत भूषण आशु (51), पूर्व डिप्टी सीएम सुखजिंदर रंधावा (63), पूर्व लोक निर्माण मंत्री विजय इंदर सिंगला (50) और रवनीत बिट्टू (46) के नाम भी चर्चा में थे.

वडिंग को अध्यक्ष और आशु को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. जबकि बाजवा को कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना गया है और विधायक दल के उपनेता डॉ राजकुमार चब्बेवाल हैं.

विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद कुछ ही हफ्तों में सोनिया गांधी ने हार की वजह का आकलन करने और संभावित संगठनात्मक परिवर्तनों पर सलाह-मशविरा लेने के लिए पंजाब के सांसदों और नेताओं से मुलाकात की थी.

सभी नेताओं की सहमति के बाद ही वडिंग को राज्य में पार्टी को एकजुट बनाए रखने का काम सौंपा गया.

राज्य में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के बीच की खींचतान, चुनावी नुकसान का एक बड़ा कारण थी. इसे देखते हुए पंजाब कांग्रेस प्रमुख को चुनने का निर्णय आलाकमान के लिए थोड़ा ज्यादा मुश्किल था.

2021 की दूसरी छमाही में शुरू हुए एक आंतरिक सत्ता संघर्ष में गांधी परिवार ने अमरिंदर सिंह की जगह नवजोत सिद्धू को लाने का समर्थन किया था. इसके बाद अमरिंदर ने मुख्यमंत्री पद और पार्टी दोनों से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने पंजाब लोक कांग्रेस नाम की अपनी एक अलग पार्टी बनाई और भाजपा के साथ गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़ा. लेकिन चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. वह अपनी सीट तक नहीं बचा पाए.

वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ की जगह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस प्रमुख बनाया गया था. सीएम की कुर्सी चुनाव से छह महीने पहले चरणजीत सिंह चन्नी को दी गई थी. जैसे-जैसे दलित सिखों के नेता के रूप में चन्नी की लोकप्रियता बढ़ी, एक बार फिर से पार्टी में आंतरिक कलह शुरू हो गई. इस बार ये लड़ाई एक जाट सिख सिद्धू और चन्नी के बीच थी. चुनाव से कुछ हफ्ते पहले सभी मामलों को अस्थायी रूप से सुलझा लिया गया और चन्नी को पार्टी के सीएम चेहरे के रूप में लेकर आए.

कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की मार्च महीने में हुई बैठक में सोनिया गांधी ने कथित तौर पर कहा था कि वह अमरिंदर के खिलाफ ‘शिकायतों के बावजूद’ उनका ‘बचाव’ करती रही थीं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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