नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए नागपुर जाते समय, पूर्व कांग्रेस नेता और केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने मंगलवार को कहा कि संघ, जो “राष्ट्रीय हित के लिए काम करता है” के साथ बातचीत शुरू करना संगठन और स्वदेशी समुदायों के बीच की खाई को पाटने के लिए ज़रूरी है.
छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक प्रभावशाली आदिवासी आवाज़, नेताम, जिन्होंने पूर्व प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी और पी.वी. नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में काम किया, उन्होंने 2023 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस का साथ छोड़ दिया था. उन्होंने पार्टी पर आदिवासी नेताओं को दरकिनार करने और आदिवासी मुद्दों की अनदेखी करने का आरोप लगाया था. बाद में उन्होंने हमार राज पार्टी शुरू की, जिसने अब तक चुनावों में खराब प्रदर्शन किया है.
दिप्रिंट से बात करते हुए 83-वर्षीय नेताम ने कांग्रेस की छत्तीसगढ़ इकाई की आलोचना की, जिसने आदिवासी नेता द्वारा आरएसएस के निमंत्रण को स्वीकार करने पर हैरानी जताई है.
नेताम ने कहा, “वह किस आधार पर मेरे फैसले पर टिप्पणी कर रहे हैं? राज्य कांग्रेस इकाई भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी हुई है. क्या वह राष्ट्र के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं? अगर वह ऐसा कर रहे होते, तो मैं भी उनके साथ जाता. मैं स्वाभाविक रूप से उन लोगों से जुड़ूंगा जो वैचारिक चर्चा और बहस में शामिल हैं.”
उन्होंने कहा, “धर्मांतरण के मुद्दे को ले लीजिए. कांग्रेस कहां खड़ी है? कांग्रेस ने पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम को ठीक से लागू क्यों नहीं किया? फिर, विस्थापन का मुद्दा है.”
नेताम 5 जून को संघ के “कार्यकर्ता विकास वर्ग-द्वितीय समापन समारोह” में मुख्य अतिथि के रूप में बोलने वाले हैं. यह संगठन के दूसरे स्तर के प्रशिक्षण शिविर का समापन समारोह है. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के 2018 में इसी कार्यक्रम में शामिल होने के फैसले ने कांग्रेस आलाकमान को परेशान कर दिया था.
नेता ने कहा कि उन्होंने पहली बार आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से करीब चार महीने पहले मुलाकात की थी. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों से उन्होंने खुद को राजनीति से दूर रखा है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “मैं संघ में शामिल नहीं होने जा रहा हूं. मैं समाज के लिए काम करता हूं और हम जानते हैं कि उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से हमारा समाज किस स्थिति में है. मुझे लगा कि इसे ध्यान में रखते हुए संघ के साथ बातचीत करना ज़रूरी है.”
नेताम ने कहा, “केवल बातचीत और विचारों के आदान-प्रदान से ही आरएसएस और स्वदेशी समुदायों के बीच मौजूद खाई को पाटने में मदद मिल सकती है और यह बड़े पैमाने पर समाज के लिए भी फायदेमंद होगा. आखिरकार, संघ राष्ट्र और सामाजिक विकास के लिए काम करता है.”
नेताम ने आगे कहा कि अपनी यात्रा के दौरान, वह अगली जनगणना में आदिवासियों के लिए एक अलग कोड की मांग उठाने की योजना बना रहे हैं. यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर संघ का अलग दृष्टिकोण है. उन्होंने कहा, “मुझे पता है कि उन्हें आपत्ति है, लेकिन जब तक बातचीत नहीं होगी, तब तक मतभेदों को दूर करने की कोशिश कैसे की जा सकती है?”
विभिन्न आदिवासी समुदाय, जो खुद को हिंदू धर्म, इस्लाम या ईसाई धर्म जैसे संगठित धर्म का सदस्य नहीं मानते हैं, उनकी लंबे समय से मांग रही है कि उन्हें दशकीय जनगणना में “अन्य” के रूप में सूचीबद्ध करने का प्रावधान हो.
हालांकि, आरएसएस, जिसका सहयोगी वनवासी कल्याण आश्रम आदिवासियों के बीच काम करता है, स्वदेशी समुदायों को सनातन धर्म के बड़े हिस्से का हिस्सा मानता है.
नेताम की हमार राज पार्टी भले ही अब तक कोई चुनावी धमाका करने में विफल रही हो, लेकिन इसके उम्मीदवार ने 2024 के आम चुनावों में कांकेर संसदीय सीट पर कांग्रेस पर भारतीय जनता पार्टी की जीत के अंतर से अधिक वोट हासिल किए, जिसका प्रतिनिधित्व नेताम पहले करते थे.
उन्होंने टिप्पणी की, “देखिए, मैं राजनीति से संन्यास ले चुका हूं और अब पार्टी का नेतृत्व नहीं कर रहा हूं, लेकिन एक क्षेत्रीय पार्टी का गठन करना भी सामाजिक चेतना और जागरूकता बढ़ाने का एक तरीका है. राष्ट्रीय दल ऐसा नहीं कर सकते. केवल क्षेत्रीय संगठन ही ऐसा कर सकते हैं. यह एक ऐसा प्रयोग है जो पूरे देश में हुआ है. कांग्रेस को यह महसूस करना होगा कि वह अपने पापों के कारण हारी है.”
कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनावों में राज्य की आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर मजबूत प्रदर्शन के आधार पर सत्ता हासिल की थी. पार्टी ने 2018 के चुनावों में अनुसूचित जनजातियों के लिए 29 में से 25 सीटें जीती थीं, लेकिन 2023 के चुनावों में इसकी संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई और केवल 11 आरक्षित सीटें ही जीत पाई.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़े: लद्दाख को आरक्षण और डोमिसाइल पर मिली नई नीतियां, लेकिन राज्य का दर्जा अभी भी चिंता का विषय