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Friday, 3 May, 2024
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राजस्थान बीजेपी एग्जक्यूटिव कमिटी में विरोधी की संख्या समर्थकों से ज्यादा होने से नाराज हैं वसुंधरा

पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात की और नाराजगी व्यक्त की है क्योंकि नई एक्सक्यूटिव कमीटी में ज्यादातर सतीश पूनिया के वफादार और आरएसएस की पृष्ठभूमि वाले नेता शामिल हैं.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राजस्थान इकाई की नवगठित राज्य कार्यकारिणी समिति में अपने कई ‘वफादारों’ को जगह नहीं मिलने से नाराज पार्टी की वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने केंद्रीय नेतृत्व के सामने अपनी नाराज़गी जताई है.

केंद्रीय नेतृत्व से मिलने के लिए पिछले हफ्ते दिल्ली आईं वसुंधरा ने राजस्थान में राजनीतिक संकट के बीच भौं चढ़ा दी है.

सूत्र ने बताया, पूर्व सीएम ने भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और भाजपा महासचिव (संगठन) से 6-7 अगस्त को राज्य के हालात पर चर्चा करने के लिए मुलाकात की है.

नई कार्यकारी समिति की स्थापना 1 अगस्त को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया द्वारा की गई थी. सूत्रों ने कहा, सूची में पूनिया के वफादार माने जाने वाले या आरएसएस से संबंध रखने वाले लोग शामिल थे.

सांसद सी.पी. जोशी, विधायक चंद्रकांता मेघवाल, पूर्व विधायक अलका गुर्जर, अजयपाल सिंह, हेमराज मीणा, प्रसन मेहता, मुकेश दाधीच और माधोराम चौधरी को पार्टी के उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है.

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एक पार्टी के सोर्स ने कहा, ‘उदाहरण के लिए, जिन्हें महासचिव का पद दिया गया है, मदन दिलावर को आरएसएस का करीबी माना जाता है.’

राजस्थान में पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के अनुसार, राजे ने केंद्रीय नेताओं से कहा कि राज्य भाजपा ‘जिस तरह कार्य कर रही है वह उससे खुश नहीं है.’

राजस्थान बीजेपी के पदाधिकारी ने कहा, ‘राजे ने वरिष्ठ नेताओं से कहा कि राज्य इकाई आगामी विधानसभा सत्र और उनके ओवरऑल कामकाज को लेकर राज्य इकाई जिस तरह से रणनीति बना रही है, उससे वह खुश नहीं हैं.’ उन्होंने हाल ही में गठित प्रदेश कार्यसमिति में उनके समर्थकों को कम जगह दिए जाने की जानकारी भी हाई कमान को दी.


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राजे परेशान क्यों है?

राजे के कई आलोचकों को राज्य की कार्यकारी समिति में जगह मिली है. उदाहरण के लिए, विधायक मदन दिलावर की नियुक्ति, आरएसएस के व्यक्ति हैं, उन्हें 2013 के राज्य चुनावों में पार्टी का टिकट नहीं दिया गया था. उन्हें 2018 में पार्टी ने मैदान में उतारा और रामगंज मंडी सीट से जीत हासिल की.

‘दिलावर और राजे के बीच असहज संबंध है क्योंकि पहले राजे ने उन्हें टिकट देने से इनकार कर दिया गया था. इस तथ्य को ऐसे समझा जा सकता है कि उन्हें महासचिव का पद दिया गया है, इससे पता चलता है कि उनके पास केंद्रीय नेतृत्व के साथ-साथ आरएसएस का भी समर्थन है.’

भाजपा के वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘ यह वही हैं जिसने कांग्रेस के साथ बसपा के विलय को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में मामला दायर किया था.’

अजय पाल सिंह जो पहले राजे के निकट माने जाने थे बाद में उनकी निकटता में दरार आई. उन्हें भी उपाध्यक्ष के रूप में समिति में शामिल किया गया है.

पार्टी पदाधिकारी ने आगे बताया, ‘ उन्होंने पहले राजस्थान हाउसिंग बोर्ड के अध्यक्ष का पद संभाला था और उन्हें पूर्व सीएम का करीबी भी माना जाता था. लेकिन बाद में उन्होंने आस-पास के लोगों को बताया कि उनके साथ गलत व्यवहार किया गया था, और उनके खिलाफ कुछ निराधार आरोप भी लगाए गए थे. राजे के साथ उनका साथ भी अच्छा नहीं रहा है.
राजसमंद की सांसद दीया कुमारी, जिन्हें पूर्व सीएम ने ‘तैयार’ किया था, ने भी उन्हें निराश किया.

राजस्थान के दूसरे भाजपा नेता ने कहा, ‘ दिया जब राजनीति में आईं तो राजे ने उन्हें काफी सपोर्ट किया था. क्योंकि वह भी रोयल फैमिल से आती हैं और राजे जानबूझकर युवा राजपूता नेताओं को पार्टी में शामिल करना चाहती थीं.

नेता के अनुसार, राजे ने पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भी कुमारी को मैदान में उतारने के पक्ष में नहीं थीं, लेकिन पार्टी ने उनकी अनदेखी की.

2016 में जब राजे मुख्यमंत्री थीं जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) ने राजमहल पैलेस के मुख्य द्वार को अपने स्वामित्व का दावा करने को लेकर राजमाता पद्मिनी देवी के नेतृत्व में पूर्व राजपरिवार ने विरोध प्रदर्शन किया था.

एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘ पैलेस होटल तत्कालीन भाजपा विधायक दीया कुमारी के परिवार के स्वामित्व में था. इसके बाद, इस मुद्दे को हल करने के लिए भाजपा को हस्तक्षेप करना पड़ा. इसने उनके रिश्ते को प्रभावित किया था. ‘

जेडीए ने विरासत की संपत्ति से सटे 12 बीघा जमीन को अपने कब्जे में ले लिया और होटल के मुख्य द्वार को भी सील कर दिया, यह इंगित करते हुए कि यह उस भूमि पर था जो नागरिक निकाय के कब्जे में थी.


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भाजपा की नई राज्य ईकाई

पूनिया के नजदीकी ने बताया, ‘प्रदेश अध्यक्ष द्वारा गठित राज्य कार्यकारिणी में सोशल इंजीनियरिंग का ध्यान रखा गया है. हमने राजपूतों, जाटों, दलितों, ब्राह्मणों को कार्यकारिणी में स्थान दिया है. हमें विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों को समायोजित करना था और किसी को भी इस दौरान नजरअंदाज नहीं किया है. ‘

विधायक सतीश पूनिया को 2019 के अगस्त में राजस्थान का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. तभी से राजस्थान में पदाधिकारी और नेता, राज्य की कार्यकारिणी घोषित होने की प्रतीक्षा कर रहे थे.

भाजपा द्वारा गठित समिति में आठ उपाध्यक्ष, चार महासचिव, नौ सचिव और एक राज्य प्रवक्ता हैं. एक पांच-व्यक्ति की अनुशासनात्मक समिति का भी गठन किया गया है. संसद सदस्य दीया कुमारी को भी महासचिवों में से एक के रूप में समिति में जगह मिली है.

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, भाजपा के विधानसभा चुनाव हारने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री को 2018 में ही केंद्रीय नेतृत्व ने दरकिनार करना शुरू कर दिया था. बाद में पार्टी ने सतीश पूनिया को अपने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया, जिनका आधार एबीवीपी और आरएसएस दोनों से जुड़ा था.

राजस्थान सरकार क्राइसिस के दौरान ‘चुप’ थीं वसुंधरा

राजस्थान में पिछले महीने उस समय राजनीतिक संकट में फंस गया जब प्रदेश के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट अपने कई विधायकों के साथ अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली अपनी ही कांग्रेस पार्टी के खिलाफ बगावत कर दी थी. अब जबकि सचिन पायलट ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रियंका गांधी और राहुल गांधी से मुलाकात कर ली है और बागी विधायकों ने पार्टी के साथ पैचअप (समझौता) कर लिया है. हालांकि अभी भी राज्य में कुछ अनिश्चितताएं बनी हुईं हैं.

हालांकि, इस सब के बीच, दो बार के पूर्व सीएम राजे ने खुद को लो प्रोफाइल बनाए रखा, और राज्य इकाई द्वारा बुलाई गई बैठकों में भी हिस्सा नहीं लिया.

सूत्रों ने बताया कि राजे जब राजनीति में एक्टिव नहीं होती हैं तो वह अपने धौलपुर स्थित घर पर ही रहती हैं. एक अन्य नेता ने कहा, ‘अब एक बैठक 13 अगस्त को होगी. इन सब चर्चाओं के अलावा, इस मीटिंग में आगामी विधानसभा सत्र के लिए रणनीति भी तय की जाएगी.’ एक दूसरे नेता ने कहा, ‘आरएसएस बैकग्राउंड से आने वाले श्रवण वर्मा को धौलपुर भाजपा के जिला अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है. वर्मा ने आरएसएस के कार्यकर्ता होने के साथ संगठन में कई पद संभाले हैं.

14 अगस्त से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र के लिए वसुंधरा राजे और नड्डा के बीच चर्चा हुई. दोनों नेताओं ने विधानसभा सत्र के बाद उत्पन्न होने वाली स्थिति पर भी चर्चा की, लेकिन उन्होंने राज्य संगठन के कामकाज और निर्णयों पर भी आपत्ति जताई. इसी दौरान वसुंधरा राजे ने नड्डा ने राज्य संगठन के कामकाज और विधानसभा में विधायक दल द्वारा अपनाई गई रणनीति पर भी आपत्ति जताई और पिछले सप्ताह गठित प्रदेश कार्यसमिति में अपने समर्थकों को कम जगह मिलने के बारे में भी हाईकमान से बात की.

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