नई दिल्ली: कांग्रेस हाईकमान ने अपनी बिहार इकाई से उन समुदायों को चिन्हित करने को कहा है जो राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ गठबंधन नहीं कर रहे हैं. इससे संकेत मिलता है कि गैर-यादव और दलितों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जिनकी कुल आबादी में 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी है. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.
नेतृत्व ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव गठबंधन में लड़ेगी, लेकिन सीटों के बंटवारे के मामले में सम्मानजनक होना चाहिए. राजद और कांग्रेस दोनों ही विपक्षी दल इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की अध्यक्षता में मंगलवार को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी मुख्यालय में बिहार कांग्रेस नेताओं की बैठक हुई, जिसमें लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, महासचिव (संगठन) के.सी. वेणुगोपाल, बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु, बिहार कांग्रेस प्रमुख राजेश राम, कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान और राज्य के अन्य वरिष्ठ नेता शामिल हुए.
बिहार कांग्रेस के पदाधिकारियों के अनुसार, राजद का मुख्य वोट बैंक यादव और मुसलमान हैं, लेकिन ये दोनों ही धड़े राज्य में जनता दल (यूनाइटेड) या जेडी(यू) के साथ सत्ता में मौजूद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को चुनौती देने के लिए काफी नहीं हैं. इसलिए, कांग्रेस नेतृत्व ने बिहार इकाई से अन्य समुदायों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा है.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “राहुलजी ने कहा है कि हमें बिहार में अपनी जगह बनानी होगी. कुछ जातियां हैं जो परंपरागत रूप से आरजेडी को वोट नहीं देती और अगर हम उनसे संपर्क करें तो वह हमें वोट दे सकती हैं. हमें इन पर ध्यान देने की ज़रूरत है. अपने तरीके से उन्होंने दलित नेता राजेश राम को राज्य प्रमुख बनाने के पीछे के कारण का भी संकेत दिया.”
पदाधिकारी ने कहा कि बैठक में खरगे ने यह कहते हुए इंडिया धड़े पर अधिक जोर दिया कि “हमें इन महत्वपूर्ण चुनावों को एक साथ लड़ने की ज़रूरत है”.
बैठक में मौजूद एक सांसद ने कहा, “हमारे प्रदेश अध्यक्ष ने यह मुद्दा उठाया कि सहयोगी के तौर पर पार्टी को अपने सम्मान से समझौता नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा कि बिहार में राजद कांग्रेस को उतना सम्मान नहीं देता. अचानक राहुल जी ने बीच में टोकते हुए कहा, ‘सम्मान अर्जित किया जाना चाहिए. अगर हम अपनी जगह बनाने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे, तो अन्य सहयोगी भी उतना ही सम्मान देंगे.”
सांसद के अनुसार, अधिकांश वरिष्ठ नेताओं ने मांग रखी कि चुनाव से कम से कम तीन महीने पहले टिकट घोषित किए जाने चाहिए, ताकि उम्मीदवारों को तैयारी के लिए वक्त मिल सके. खरगे ने कहा कि पार्टी इस मांग को पूरा करने की कोशिश करेगी.
कांग्रेस अध्यक्ष ने यह भी कहा कि बिहार के लोग अपने कल्याण, सामाजिक न्याय और प्रगति के बारे में चिंतित हैं. बेरोज़गारी, भर्ती प्रक्रिया में धांधली और पेपर लीक के खिलाफ बढ़ते जन आक्रोश को उजागर करते हुए उन्होंने विश्वास जताया कि बिहार सरकार को हटा दिया जाएगा और लोगों के अनुकूल सरकार बनेगी.
दिप्रिंट को यह भी पता चला है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने आश्वासन दिया है कि पार्टी के पूर्व बिहार प्रमुख अखिलेश प्रसाद सिंह राजद के साथ गठबंधन वार्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे क्योंकि उनका पार्टी सुप्रीमो लालू यादव के परिवार के साथ अच्छा रिश्ता है.
बाद में, मीडिया को जानकारी देते हुए, अल्लावरु ने पुष्टि की कि इंडिया ब्लॉक के साथी भाजपा और उसके सहयोगियों को हराने के लिए मिलकर काम करेंगे.
उनके करीबी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि अल्लावरु ने आलाकमान को सुझाव दिया कि कांग्रेस को पिछले चुनाव में खराब प्रदर्शन के बावजूद राजद से चुनाव लड़ने के लिए कम से कम 60-70 सीटें मांगनी चाहिए, जब वह 243 सदस्यीय विधानसभा में 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें से केवल 19 सीटें ही जीत पाई थी.
अल्लावरु का मानना है कि इस बार पार्टी का प्रदर्शन बेहतर होगा. वह यह भी चाहते हैं कि अगर राजद तेजस्वी यादव का नाम मुख्यमंत्री के तौर पर प्रस्तावित करता है तो पार्टी उपमुख्यमंत्री की कुर्सी की मांग करे.
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कन्हैया ने नहीं लिया बैठक में हिस्सा
दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार, जो हाल ही में बिहार में सक्रिय हुए हैं, मंगलवार की बैठक में शामिल नहीं हुए. कहा जा रहा था कि वे बिहार में ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ पदयात्रा का नेतृत्व करने में व्यस्त थे, लेकिन राज्य के एक नेता ने उनकी अनुपस्थिति का एक अलग कारण बताया.
एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से कहा, “कन्हैया जानते हैं कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का एक वर्ग उनकी यात्रा से बच रहा है, क्योंकि वे पार्टी द्वारा उन्हें दिए जा रहे ‘एक्स्ट्रा फोकस’ और राज्य में एक प्रमुख चेहरे के रूप में उनकी छवि से नाखुश हैं.”
उन्होंने कहा, “इसलिए, अगर कन्हैया बैठक में शामिल होते, तो इस बात की संभावना थी कि ये नेता उनकी यात्रा को लेकर कुछ सवाल उठा सकते थे, इसलिए उन्होंने स्थिति को समझने के बाद खुद ही बैठक में हिस्सा नहीं लिया.”
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