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मंगलवार, 22 अप्रैल, 2025
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ठाकरे के चचेरे भाई राज और उद्धव के आपसी मतभेद भुलाकर ‘मराठी मानुस’ मुद्दे पर एकजुट होने के पांच कारण

हालांकि, पहले भी इस मिलन की चर्चाएं होती रही हैं, लेकिन इस बार उद्धव ने राज की कोशिशों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है. राज ने 2005 में शिवसेना से अलग होकर मनसे का गठन किया था.

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मुंबई: क्या ठाकरे परिवार फिर एक साथ आएगा या एक होने की संभावना सिर्फ “भावनात्मक चर्चा” है? महाराष्ट्र के राजनीतिक हलकों में इस सवाल पर चर्चा हो रही है, क्योंकि अलग हुए दोनों चचेरे भाईयों ने 2005 में राज ठाकरे के शिवसेना से बाहर निकलने के दो दशक बाद फिर से एक होने की इच्छा जताई है.

राज ने मार्च 2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) का गठन किया, जबकि उद्धव ने 2012 में बालासाहेब ठाकरे के निधन के बाद शिवसेना नेतृत्व की कमान संभाली. मनसे प्रमुख ने 2009 में 13 विधानसभा सीटों के साथ शुरुआत की, लेकिन उसके बाद पार्टी का ग्राफ तेज़ी से गिरने लगा, उनकी पार्टी पिछले साल अपना खाता खोलने में विफल रही.

उद्धव ठाकरे भी उतार-चढ़ाव भरे सफर से गुज़रे. 2022 में महाराष्ट्र के मौजूदा उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने शिवसेना को दो हिस्सों में बांट दिया. उस विभाजन के कारण उसी साल जून में उद्धव के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (MVA) का पतन हो गया.

इन परिस्थितियों को देखते हुए, पुनर्मिलन की चर्चा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पहली बार है जब उद्धव ने राज के प्रस्तावों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है. शनिवार को जारी अभिनेता-निर्देशक महेश मांजरेकर के साथ पॉडकास्ट में, मनसे प्रमुख ने कहा कि, महाराष्ट्र के हित के लिए, वे उद्धव के साथ “मामूली झगड़े” को भूलने को तैयार हैं. इस पर, उद्धव ने जवाब देते हुए कहा कि अगर राज महायुति नेताओं के साथ घुलने-मिलने को तैयार नहीं हैं, जिन्हें वे “महाराष्ट्र विरोधी” मानते हैं, तो वे अपने छोटे-मोटे मतभेदों को भुलाने को तैयार हैं.

हालांकि, संजय राउत जैसे शिवसेना (यूबीटी) नेताओं ने कहा है कि दोनों भाइयों को फैसला लेने की ज़रूरत है, लेकिन संदीप देशपांडे जैसे बाकी मनसे नेताओं ने सवाल उठाया है कि जब राज ने कई मौकों पर सेना (यूबीटी) से संपर्क किया था, तो उसने पहले सकारात्मक प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी.

दिप्रिंट यहां आपको वह पांच कारणों बता रहा है जो ठाकरे बंधुओं को बाल ठाकरे की विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए अपने मतभेदों को अलग रखने के लिए प्रेरित कर सकते हैं.


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अस्तित्व का संकट

दोनों ठाकरे ने विकल्प खुले रखे हुए हैं. उद्धव के मामले में, शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख ने महाराष्ट्र चुनाव के तुरंत बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर अपने हमले को कम कर दिया, जिससे यह धारणा बनी कि उन्होंने दरवाज़े खुले रखे हैं.

सेना (यूबीटी) ने 20 विधानसभा सीटें जीतीं, जिनमें से आधी मुंबई में थीं. नतीजों से पता चला कि पार्टी की महाराष्ट्र के बाकी हिस्सों में सीमित उपस्थिति थी.

दूसरी ओर, राज अक्सर शिंदे और फडणवीस से मिलते रहे हैं, जिससे दोनों एक दूसरे से बराबर दूरी बनाए रखते हैं. मनसे प्रमुख का अकेले चुनाव लड़ने का फैसला उल्टा पड़ गया, क्योंकि पार्टी का वोट शेयर 6 प्रतिशत से गिरकर 1 प्रतिशत पर आ गया.

दोनों पार्टियों और चचेरे भाइयों, जो खुद को मराठी मानुस का संरक्षक कहते हैं — के सामने अस्तित्व का सवाल है.

शिवसेना (यूबीटी) के मुखपत्र सामना ने अपने ताज़ा एडिशन में राज के साथ सुलह के विचार पर अपना रुख दोहराया और राज की राजनीतिक बदकिस्मती के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को जिम्मेदार ठहराया. इसमें कहा गया कि बीजेपी ने राज को “नकली हिंदुत्व” अपनाने के लिए प्रेरित किया और वह उस जाल में फंस गए. इसमें कहा गया, “शिंदे सेना और बीजेपी ने राज ठाकरे का इस्तेमाल शिवसेना पर हमला करने के लिए किया.”

बीजेपी नेताओं और शिंदे द्वारा उद्धव पर जोरदार हमला किए जाने के बाद, सुलह महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री को उन प्रतिद्वंद्वियों से निपटने के लिए अतिरिक्त हथियार दे सकती है, जो उनकी पार्टी के विभाजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे.

एकनाथ शिंदे का अलग-थलग पड़ना

विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद शिंदे को उम्मीद थी कि वह मुख्यमंत्री पद का अपना कार्यकाल दोहराएंगे, लेकिन भाजपा ने फडणवीस को शीर्ष पद के लिए आगे बढ़ाया. स्पष्ट रूप से परेशान शिंदे बीते कुछ महीनों से नाराज़ चल रहे हैं.

शिंदे ने महाराष्ट्र में आगामी नगर निकाय चुनावों के लिए संभवतः राज के साथ गठबंधन करने के लिए उनसे मुलाकात भी की. ऐसा कोई भी गठबंधन चुनावों में शिंदे और उनकी शिवसेना के लिए एक बढ़ावा हो सकता है.

यह संभावना कम ही है क्योंकि सुलह की स्थिति में मराठी वोटों के अपने पक्ष में एकजुट होने से दोनों ठाकरे को अधिक लाभ होगा.

फडणवीस ने पहले ही महायुति के भीतर शिंदे को अलग-थलग कर दिया है, ऐसे में शिंदे के लिए वापस लड़ना मुश्किल होगा और वह अलग-थलग पड़ जाएंगे.

ठाकरे के लिए उपजाऊ ज़मीन

महायुति द्वारा यह घोषणा कि महाराष्ट्र के प्राइमरी स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा बनाया जाएगा, दोनों चचेरे भाइयों को मराठी मानुष को केंद्रीय विषय बनाकर साथ आने का एक बेहतरीन मौका देती है.

चूंकि, शिवसेना का गठन 1966 में मराठी मानुष के मुद्दे पर हुआ था, इसलिए राज और उद्धव महाराष्ट्र में ‘हिंदी थोपे जाने’ के खिलाफ खुद को चेहरा बनाकर हाथ मिला सकते हैं.

नगर निकाय चुनाव

शिवसेना 1997 से बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) पर शासन कर रही है, लेकिन शिंदे के नेतृत्व में विद्रोह और उद्धव को छोड़ने वाले कई पूर्व पार्षदों के बाद से, प्रतिष्ठित नगर निकाय को बनाए रखना मुश्किल होगा. राज को नासिक नगर निगम में भी ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ रहा है, जो 2012 से उनकी पार्टी के अधीन है. अगर चचेरे भाई एक साथ आते हैं और मराठी लोग गठबंधन के लिए वोट करते हैं, तो शिवसेना (यूबीटी) के बीएमसी को बनाए रखने और संभवतः मनसे को अन्य नगर निकायों में अच्छा समर्थन मिलने की प्रबल संभावना है.

एमवीए के भीतर मतभेद

चुनावों के बाद, एमवीए एकजुट मोर्चा बनाने में विफल रहा है. महाराष्ट्र विधानसभा सत्र के दौरान भी, अघाड़ी विधायकों और एमएलसी में सदन में समन्वय की कमी दिखी.

उद्धव के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती शिवसेना 2014 में सीट बंटवारे के मुद्दे पर भाजपा के साथ अपने गठबंधन से बाहर निकलकर कुछ महीनों बाद फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल हो गई. 2019 में, उद्धव कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रतिद्वंद्वी खेमे में शामिल हो गए और 2022 तक अघाड़ी सरकार का नेतृत्व किया.

इस बीच, राज ने पिछले 10 वर्षों में कई गठबंधनों को अपनाया है.

2019 के आम चुनाव में, उन्होंने कांग्रेस और एनसीपी का समर्थन किया. चूंकि, यह कदम सफल नहीं हुआ, इसलिए मनसे प्रमुख ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को बिना शर्त समर्थन दिया. उनकी पार्टी ने पिछले साल के आम चुनाव में किसी भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ा था.

महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे राज के लिए बहुत खराब रहे, क्योंकि उनके बेटे अमित माहिम सीट से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत में ही हार गए और तीसरे नंबर पर रहे, जिन्हें सिर्फ 31,611 वोट ही मिले.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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