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Tuesday, 4 November, 2025
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पिता की बदनामी की छाया शिवानी शुक्ला के चुनावी सफर पर, लालगंज में UK की डिग्री मायने नहीं रखती

कुछ मतदाताओं का कहना है कि शिवानी का परिवार हमेशा लालू यादव के विरोध में रहा है, इसलिए आरजेडी टिकट पर चुनाव लड़ना उनके लिए सही फैसला नहीं था.

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वैशाली (बिहार): एक बादलों भरी शनिवार की सुबह, 28 साल की एक युवती अपने समर्थक की बाइक पर बैठी हैं. बाइक का काफिला वैशाली जिले के लालगंज क्षेत्र के कच्चे, कीचड़ भरे रास्तों से गुज़र रहा है. चुनाव का दिन करीब है और शिवानी शुक्ला अलग-अलग वार्डों में तेज़ी से घूम रही हैं.

शिवानी ने कहा, “लालटेन छाप…आशीर्वाद दीजिएगा.” — लालटेन यानी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का चुनाव चिन्ह.

यह उनका पहला चुनाव है, लेकिन “शुक्ला” उपनाम इस इलाके में किसी पहचान से कम नहीं. आखिरकार, उनके पिता विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला तीन बार के पूर्व विधायक रह चुके हैं. मंत्री ब्रिज बिहारी हत्याकांड में जेल में बंद अपने ‘बाहुबली’ पिता की अनुपस्थिति में, शिवानी अब परिवार की सियासी विरासत को संभालने के मैदान में हैं — दिल्ली और ब्रिटेन के ठंडे माहौल से बिल्कुल अलग, बिहार के लालगंज की धूल-धूप में.

उनकी टक्कर बीजेपी के उम्मीदवार संजय कुमार सिंह से है — रघुवंशी (राजपूत) नेता, जिन्होंने पिछले चुनाव में 26 हज़ार वोटों से जीत हासिल की थी.

आरजेडी उम्मीदवार शिवानी शुक्ला अपने व्यस्त प्रचार अभियान के दौरान | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
आरजेडी उम्मीदवार शिवानी शुक्ला अपने व्यस्त प्रचार अभियान के दौरान | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

लेकिन हर कोई शिवानी के प्रचार अभियान से प्रभावित नहीं है — खासतौर पर इसलिए क्योंकि वह ज्यादातर जगहों पर बिना रुके निकल जाती हैं, जिससे मतदाताओं से सीधा जुड़ाव नहीं बन पाता.

शिवानी की तरह गांव के भूमिहार समुदाय के रंजीत सिंह ने कहा, “उनके बारे में हम इतना ही जानते हैं कि वे मुन्ना शुक्ला की बेटी हैं. कुछ लोग उन्हें पहचानते हैं, लेकिन गांव की औरतें, जो राजनीति नहीं समझतीं, उनके बारे में कुछ नहीं जानतीं. उन्हें रुककर उनसे बात करनी चाहिए थी. वो हमारी गली से गुज़रीं और हाथ हिलाया, मतदाता भी उनके साथ वही करेंगे. उनकी मां का तरीका अलग था, वो गांववालों से मिलतीं-जुलतीं थीं.”

शिवानी की मां अन्नू शुक्ला ने 2010 में जनता दल (यूनाइटेड) यानी जेडीयू के टिकट पर चुनाव जीता था, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में बतौर निर्दलीय चौथे स्थान पर रहीं.

आरजेडी उम्मीदवार के तौर पर, शिवानी को “शुक्ला” नाम से पहचान और भूमिहार वोटरों का कुछ समर्थन तो मिला है, लेकिन दिल्ली पब्लिक स्कूल और यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स से पढ़ी शिवानी अपनी अलग राह बनाना चाहती हैं. उन्हें यह भी बखूबी एहसास है कि उनके पिता की बदनामी मतदान के दिन उनके लिए भारी पड़ सकती है.

उनका सफर आसान नहीं रहा. पहले कांग्रेस ने लालगंज सीट महागठबंधन के तहत अपने हिस्से में पाई और आदित्य कुमार उर्फ राजा को उम्मीदवार बनाया. आरजेडी से टिकट न मिलने पर शिवानी ने निर्दलीय के रूप में नामांकन किया, लेकिन 17 अक्टूबर की शाम तक आरजेडी ने उन्हें अपना उम्मीदवार बना लिया और चार दिन बाद कांग्रेस प्रत्याशी ने नाम वापस ले लिया.

शिवानी का कहना है कि उनका फोकस लालगंज में शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं पर रहेगा.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “अगर मुझे आशीर्वाद मिला तो मैं अपने क्षेत्र के बच्चों की शिक्षा पर सबसे ज्यादा ध्यान दूंगी. मैं एक कंसल्टेंसी सर्विस शुरू करना चाहती हूं, जो 10वीं और ग्रेजुएशन के बाद छात्रों को आगे की पढ़ाई के विकल्पों के बारे में बताए. मेरी सबसे बड़ी प्राथमिकता स्कूलों की स्थिति सुधारना है.”

क्या RJD में जाना गलती थी?

कुछ मतदाताओं का मानना है कि अगर शिवानी शुक्ला बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़तीं, तो उनके लिए ज़्यादा बेहतर मौका होता.

सहथा गांव के रंजीत सिंह ने कहा कि शुक्ला परिवार से 2024 के लोकसभा चुनाव में गलती हुई और वह “गलती” मुन्ना शुक्ला की हार के साथ खत्म नहीं हुई.

भूमिहार किसान रंजीत सिंह याद करते हैं कि मुन्ना शुक्ला ने अपनी राजनीतिक शुरुआत 2000 के विधानसभा चुनाव में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार जीतकर की थी. इसके बाद 2004 में भी उन्होंने निर्दलीय ही लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन वैशाली से आरजेडी के रघुवंश प्रसाद सिंह से हार गए. फिर 2005 में उन्होंने पहले लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के टिकट पर और फिर जेडीयू का उम्मीदवार बनकर दो बार चुनाव जीता. हालांकि, 2009 के लोकसभा चुनाव में रघुवंश सिंह ने उन्हें फिर से करीबी मुकाबले में हराया.

2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मुन्ना शुक्ला ने आरजेडी जॉइन कर ली, लेकिन वैशाली से लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की वीना देवी से हार गए, जबकि उन्हें चार लाख से ज़्यादा वोट मिले थे.

रंजीत सिंह ने कहा, “मुन्ना शुक्ला और उनके मारे गए भाइयों ने पूरी ज़िंदगी लालू यादव और उनकी सवर्ण-विरोधी राजनीति के खिलाफ लड़ाई लड़ी. अब लालू और आरजेडी से सुलह करने की ये कोशिश उनकी विरासत को नुकसान पहुंचा रही है.” उन्होंने यह भी कहा कि अगर परिवार थोड़ा धैर्य रखता तो शायद बीजेपी का टिकट मिल जाता.

चुनाव प्रचार के दौरान बीच रास्ते में ग्रामीणों से बात करतीं शिवानी शुक्ला | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
चुनाव प्रचार के दौरान बीच रास्ते में ग्रामीणों से बात करतीं शिवानी शुक्ला | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

सेवानिवृत्त सेना कर्मी चंद्रभूषण सिंह की राय अलग है. उन्होंने कहा, “उनके पिता का इतिहास अपनी जगह है, लेकिन बेटी एक नई शुरुआत कर रही है. वो स्थानीय समस्याओं — जैसे सड़कें और स्कूल के समाधान का वादा कर रही है. उसे मौका मिलना चाहिए.”

सहथा गांव के कैलिटांड़ टोला में जहां लोग परिवार के प्रति सहानुभूति रखते हैं, वहीं बाकी वार्डों में मौजूदा विधायक संजय कुमार सिंह के प्रति गुस्सा है.

चाय बेचने वाली गोनी साहनी ने कहा, “हमारे विधायक पिछले पांच साल में कभी गांव नहीं आए. हर मौसम में चलने वाली सड़क की सारी बातें धूल फांक रही हैं.”

उन्होंने कहा, “पिछली बार तो उन्हें वोट मिल गए थे, लेकिन इस बार नहीं.”

इलेक्ट्रिक सामान का कारोबार करने वाले सुरेश साहनी ने पूछा, “मुन्ना शुक्ला की विरासत को आगे कौन बढ़ाएगा? अगर शिवानी खड़ी नहीं होंगी और शुक्ला जेल में रहेंगे, तो उनकी राजनीति और विरासत दोनों खत्म हो जाएगी.” वे छठ पूजा पर घर लौटे थे और खास तौर पर वोट डालने के लिए रुके.

शंकर साहनी, एक ईबीसी मतदाता ने कहा कि वे किसी भी उम्मीदवार को वोट देंगे जो लोगों की भलाई के लिए काम करे | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
शंकर साहनी, एक ईबीसी मतदाता ने कहा कि वे किसी भी उम्मीदवार को वोट देंगे जो लोगों की भलाई के लिए काम करे | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

एक और मतदाता, शंकर साहनी, बदलाव के लिए वोट देने को तैयार हैं. उन्होंने कहा, “हम अपना विधायक बदलने के लिए वोट दे रहे हैं. भले ही शिवानी विपक्ष में न होतीं, हम संजय सिंह के खिलाफ वोट डालते. हमें ये फर्क नहीं पड़ता कि सरकार कौन बनाएगा. हमारे विधायक ने हमारी कोई सुनवाई नहीं की, वादे पूरे नहीं किए, इसलिए हम उन्हें हटाना चाहते हैं.”

मोदी-नीतीश का असर

लालगंज बाजार में अपनी दुकान के बाहर चाय पीते हुए महेंद्र प्रसाद एनडीए सरकार के “अच्छे काम” याद करते हैं.

वे मुस्कराते हुए कहते हैं, “लोग कहते थे कि राम मंदिर बन गया तो दंगे होंगे, देश संभालना मुश्किल होगा. अब मंदिर भी वही है और देश भी वही है — सब शांति से चल रहा है.”

उनके माथे पर तिलक है. वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तारीफ करते हुए कहते हैं, “सड़कें, बिजली, गरीबों के लिए योजनाएं सभी में सुधार हुआ है. पेंशन 1100 रुपये तक बढ़ गई है. अब 24 घंटे बिजली आती है और सड़कें भी ठीक हैं.”

लालगंज ब्लॉक के मसुधन पकड़ी गांव के मतदाता बिंदु साहनी ने कहा कि उन्हें किसी नाम से मतलब नहीं — चाहे वह मुन्ना शुक्ला हों, उनकी बेटी या वीआईपी प्रमुख मुकेश साहनी.

गांव में लगभग 500 मल्लाह मतदाता हैं और वे नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देख रहे हैं.

उन्होंने कहा, “काम बोलता है, नाम नहीं. मोदी ने योजनाएं दीं, राम मंदिर दिया और नीतीश ने सड़क, स्कूल और बिजली पर काम किया. आज हमारे गांव की 50 लड़कियां स्कूल जाती हैं जो 20 साल पहले नामुमकिन लगता था.”

बिंदु साहनी ने कहा, “मुझे शिवानी शुक्ला के बारे में इतना ही पता है कि वो मुन्ना शुक्ला की बेटी हैं. मैं तो सरकार के कामकाज के रिकॉर्ड को देखकर वोट दूंगा.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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