नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा को विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट लंबित होने तक संसद के उच्च सदन से निलंबित कर दिया गया है. आप के एक अन्य राज्यसभा सांसद संजय सिंह का निलंबन, जिन्हें पहले चालू मानसून सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित किया गया था, अब विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट दाखिल होने तक समय में संशोधन किया गया है.
सिंह और लोकसभा सांसद सुशील कुमार रिंकू के बाद चड्ढा तीसरे आप सांसद हैं, जिन्हें इस संसद सत्र के दौरान निलंबित किया गया है.
सदन के नेता पीयूष गोयल ने शुक्रवार को चड्ढा के निलंबन का प्रस्ताव पेश किया, “प्रस्तावित चयन समिति के सदस्यों की सूची में बिना कॉन्टेंट वाले सांसदों का नाम शामिल करना सदस्यों के विशेषाधिकार का उल्लंघन है… जो एक राज्यसभा सदस्य के लिए अशोभनीय है.”
सोमवार को दिल्ली सेवा विधेयक पर बहस के दौरान चड्ढा तब विवादों में आ गए थे जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उनके खिलाफ विशेषाधिकार कार्यवाही की मांग की थी. उन्होंने दावा किया था कि पांच सांसदों ने शिकायत की थी कि प्रस्तावित समिति में उनके “फर्जी” हस्ताक्षर करके उनके नाम सूचीबद्ध किए गए थे.
जबकि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह, जो विवाद के समय सदन के पीठासीन अधिकारी थे, ने घोषणा की थी कि “मामले की जांच की जाएगी”, राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को मामले को जांच के लिए विशेषाधिकार समिति को भेज दिया था.
चड्ढा के निलंबन के बाद, उनके कार्यालय ने एक बयान जारी कर कहा कि निलंबन गुरुवार को उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस “मामले के कथित उल्लंघन में खुद का बचाव करने” का परिणाम था, और “पीयूष गोयल के निलंबन प्रस्ताव या विशेषाधिकार समिति द्वारा दिए गए नोटिस में कहीं भी इन शब्दों का उल्लेख नहीं किया गया था” जालसाज़ी या नकली, हस्ताक्षर, फर्ज़ीवाड़ा आदि इसमें इस आशय का दूर-दूर तक कोई आरोप नहीं है.”
इससे पहले, सोमवार को विधेयक पारित होने के बाद संसद भवन से निकलते समय चड्ढा ने मीडिया से कहा था कि अगर उन्हें नोटिस दिया गया तो वह विशेषाधिकार समिति को जवाब देंगे. उन्होंने शाह द्वारा लगाए गए आरोपों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
इस बीच, मंगलवार को आप के प्रवक्ता संजय सिंह ने एक बयान में कहा था कि “एक असंवैधानिक बिल को संसद ने मंजूरी दे दी है और केंद्रीय गृह मंत्री सख्त मांग कर रहे थे कि राघव चड्ढा का नाम विशेषाधिकार समिति को भेजा जाए. क्या वह नियमों से अनजान है? नियम कहीं नहीं कहते कि किसी सदस्य का नाम प्रस्तावित चयन समिति में जोड़ने के लिए उसके हस्ताक्षर की आवश्यकता है. वह (अमित शाह) लोगों को धोखा दे रहे हैं.”
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023, सदन की चयन समिति को भेजने सहित कानून को रोकने के विपक्ष के ठोस प्रयासों के बावजूद, सोमवार रात राज्यसभा द्वारा पारित कर दिया गया.
विधेयक के पारित होने से दिल्ली सेवा अध्यादेश का मार्ग प्रशस्त हो गया है, जो दिल्ली सरकार से सिविल सेवकों के स्थानांतरण और पदस्थापना की शक्तियों को छीन लेता है, जो अब एक कानून बन गया है.
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‘अव्यवस्था को सदन का आदेश नहीं बनने दिया जा सकता’
चड्ढा के निलंबन का प्रस्ताव पेश करते समय उनके खिलाफ लगे आरोप का जिक्र करते हुए गोयल ने कहा, “जब [दिल्ली सेवा विधेयक के लिए चयन समिति पर] प्रस्ताव परिषद के सामने विचार के लिए आया, तो कुछ सदस्यों ने, जिनके नाम सूची में थे, गंभीर आपत्ति जताई. नौबत सदन की सदस्यता खोने तक जा सकती है. यह विशेषाधिकार के उल्लंघन का स्तर है जो सांसद [चड्ढा] ने किया है.”
उन्होंने कहा: “अगर कल को पार्टी को संदेह होने लगे कि उदाहरण के लिए डॉ. सस्मित पात्रा [बीजू जनता दल के एक सांसद जिन्होंने दावा किया है कि प्रस्ताव में उनका नाम शामिल करने से पहले उनकी सहमति नहीं ली गई थी] अवज्ञा कर रहे थे और दूसरे पक्ष के साथ जा रहे थे और पार्टी का व्हिप तोड़ने पर इसके कई परिणाम हो सकते हैं. ये सदस्य बेहद परेशान और आहत हैं और अपने अधिकारों की सुरक्षा और उन्हें उचित न्याय दिलाने के लिए आसन की ओर देख रहे हैं.”
गोयल ने आगे कहा कि (कथित अपराध के लिए) खेद स्वीकार करने के बजाय, चड्ढा भ्रामक बयान दे रहे थे.
गोयल ने कहा, “दुर्भाग्य से, अपने अनैतिक आचरण, नियमों की अपमानजनक अवहेलना के लिए पश्चाताप स्वीकार करने के बजाय, राघव चड्ढा ने प्रेस के साथ बातचीत में आपत्ति का उपहास किया. उन्हीं मुद्दों पर 10 अगस्त को उनके ट्वीट एक संसद सदस्य के लिए बेहद अशोभनीय हैं. उन्होंने प्रस्ताव में सदस्यों के नाम शामिल करने को जन्मदिन के निमंत्रण कार्ड के बराबर बताया.”
प्रस्ताव सुनने के बाद धनखड़ ने कहा कि ‘अव्यवस्था को सदन का आदेश नहीं बनने दिया जा सकता.’
उन्होंने कहा, “यहां तक कि किसी सदस्य का वेल में आना भी दुखद है. सदस्य को इस बात की जानकारी नहीं है कि उसके आचरण को 1.3 अरब से अधिक लोग अस्वीकार करेंगे. अव्यवस्था को सदन का आदेश नहीं बनने दिया जा सकता. इसे एक राजनीतिक रणनीति के रूप में हथियार बनाया गया है, और यह अलोकतांत्रिक और संविधान विरोधी है. मेरे लिए इस कुर्सी पर बैठकर इस तरह के अपराधों को नजरअंदाज करना बहुत मुश्किल होगा.”
संवैधानिक विशेषज्ञों ने पहले दिप्रिंट को बताया था कि प्रस्तावित समिति के सदस्यों की सूची में अन्य सांसदों की इच्छा सुनिश्चित किए बिना उनका नाम शामिल करना उल्लंघन है, लेकिन जरूरी नहीं कि इसका मतलब विशेषाधिकार का उल्लंघन हो.
(संपादन: हिना)
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