मुंबई: महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली महायुति सरकार के गठन के दो महीने बाद, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और उसके गठबंधन सहयोगियों — बीजेपी और अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी — के बीच मतभेद बढ़ते दिख रहे हैं.
हाल के हफ्तों में मतभेद के साफ संकेत सामने भी आए हैं, जिसमें वित्त मंत्री अजित पवार द्वारा बुलाई गई जिला योजना और विकास समिति (डीपीडीसी) की बैठक से शिवसेना विधायकों को बाहर रखना, शिवसेना के उम्मीदवार के बजाय महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (एमएसआरटीसी) के प्रमुख के पद पर आईएएस अधिकारी की नियुक्ति और मुख्यमंत्री शिंदे के कार्यकाल में शुरू की गई योजनाओं की समीक्षा शामिल है.
बढ़ते तनाव के हालिया संकेत में शिंदे ने बुधवार को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की अध्यक्षता में दो बैठकों को छोड़ दिया, जबकि शहर बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनावों के लिए तैयार है, जहां भाजपा और शिवसेना दोनों अपना प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं.
मंगलवार को उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने रायगढ़ जिले के लिए डीपीडीसी की बैठक बुलाई, लेकिन शिवसेना का कोई भी विधायक मौजूद नहीं था, यहां तक कि कैबिनेट मंत्री भरत गोगावले भी मौजूद नहीं थे, जो इस क्षेत्र से विधायक हैं. हालांकि, एनसीपी की अदिति तटकरे, जो राज्य मंत्री और रायगढ़ की संरक्षक मंत्री हैं, मौजूद थीं, लेकिन शिवसेना विधायकों ने शिकायत की कि उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया था.
शिवसेना विधायक महेंद्र दलवी ने कहा, “हमें जिला समिति की बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया, जो रायगढ़ की योजना और विकास के लिए बुलाई गई थी. हालांकि, हम देख सकते थे कि अदिति तटकरे वहां मौजूद थीं, लेकिन हममें से किसी भी शिवसैनिक को नहीं बुलाया गया. ऐसा लगता है कि हमें जानबूझकर दूर रखा गया.”
हालांकि, एकनाथ शिंदे ने इस मुद्दे को कमतर आंका.
शिंदे ने मुंबई में संवाददाताओं से कहा, “बैठक रायगढ़ के संबंध में आयोजित की गई थी और सभी विधायक जिनके पास अपने क्षेत्रों के बारे में कोई सुझाव है, वह हमें दे सकते हैं. मैं, मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री अजित पवार इसे सुलझाने की कोशिश करेंगे.”
फिर भी, संरक्षक मंत्रियों की नियुक्ति का बड़ा मुद्दा अभी भी अनसुलझा है.
अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी से अदिति तटकरे को रायगढ़ का संरक्षक मंत्री और भाजपा के गिरीश महाजन को नासिक का संरक्षक मंत्री नियुक्त किए जाने से शिंदे के नेतृत्व वाली सेना खास तौर पर नाराज़ है, जिसके मन में अपने उम्मीदवार थे. शिवसैनिक विरोध में सड़कों पर भी उतर आए हैं.
सरकार ने नियुक्तियों को रोक दिया और वादा किया कि फडणवीस के दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम से लौटने पर मामले को सुलझा लिया जाएगा.
मुख्यमंत्री को वापस आए दो हफ्ते से अधिक हो गए हैं, लेकिन मुद्दा अभी भी अनसुलझा है.
शिवसेना के एक नेता ने कहा, “उन्होंने (शिंदे) सार्वजनिक रूप से कहा था कि मसला बहुत जल्द हल हो जाएगा. वे चाहते थे कि फडणवीस के दावोस से वापस आने के बाद संरक्षक मंत्री का मुद्दा हल हो जाए पर, यह अभी भी लंबित है. हम भी अब कम संख्या में नहीं हैं. हम 60 विधायकों का समूह हैं. इसलिए, हम सरकार में अपनी बात रखना चाहते हैं.”
राजनीतिक विश्लेषक अभय देशपांडे ने कहा कि तनाव का सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि शिंदे को एक सख्त सौदेबाज माना जाता है. हालांकि, सीएम के पद पर उनका कार्यकाल एक माध्यमिक की भूमिका में खुद को समायोजित करना चुनौतीपूर्ण बना सकता है.
उन्होंने कहा, “वे मुख्यमंत्री रह चुके हैं. इसलिए हां, अब एक मध्यस्थ की भूमिका निभाना उनके लिए थोड़ा मुश्किल है. उन्हें इसके लिए तैयार होने में थोड़ा वक्त लगेगा, लेकिन इसके अलावा, मुझे नहीं लगता कि कोई बड़ी परेशानी है.”
कल्याणकारी योजनाओं की समीक्षा
कैबिनेट की बैठकें भी चर्चा का विषय बन गई हैं.
मंगलवार को सरकार ने घोषणा की कि वह एकनाथ शिंदे को समायोजित करने के लिए राज्य आपदा प्रबंधन अधिनियम में संशोधन करेगी.
नए नियमों के अनुसार, मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाले आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में दोनों उपमुख्यमंत्रियों सहित नौ सदस्य होंगे.
हालांकि, सोमवार को शिंदे को आपदा प्रबंधन प्राधिकरण से बाहर कर दिया गया. वे शहरी विकास विभाग के प्रभारी हैं और मुंबई के संरक्षक मंत्री हैं.
2005 में मुंबई में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद गठित यह प्राधिकरण मुंबई, पुणे और नागपुर में बाढ़ से संबंधित संकटों से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
पिछली कुछ कैबिनेट बैठकों में शिंदे के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान चलाई गई कल्याणकारी योजनाओं की समीक्षा की गई है. इनमें आनंदाचा शिधा या त्योहारों के दौरान गरीब लोगों को दी जाने वाली राशन किट, मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना, जिसके तहत वरिष्ठ नागरिकों को तीर्थ यात्रा पर जाने के लिए वित्तीय सहायता मिलती है और महामारी के दौरान एमवीए सरकार द्वारा शुरू की गई कम लागत वाली शिव भोजन योजना जो शिवसेना के 2019 के घोषणापत्र का हिस्सा थी शामिल है.
सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इन योजनाओं को खत्म नहीं किया जाएगा, लेकिन महाराष्ट्र की वित्तीय स्थिति के कारण इन्हें संशोधित किया जा सकता है.
परिवहन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजय सेठी को एमएसआरटीसी का अध्यक्ष नियुक्त करने के साथ एक और झटका लगा.
पिछले अध्यक्ष, शिवसेना विधायक भरत गोगावले ने कैबिनेट में शामिल होने के बाद सीट खाली कर दी थी. शिवसेना चाहती थी कि उसका कोई विधायक इस पद पर रहे, जिसे कैबिनेट में शामिल नहीं किया जा सका.
शिवसेना के एक नेता ने कहा, “शिंदे साहब के नेतृत्व में ऐतिहासिक जीत के बाद, हम सभी ने सोचा था कि वे सरकार का नेतृत्व करेंगे. हालांकि, ऐसा नहीं हुआ.”
उन्होंने कहा, “इसके अलावा, मंत्रिमंडल के संबंध में उनकी कुछ मांगें भी पूरी नहीं की गईं. परेशान होना स्वाभाविक है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे कैबिनेट की बैठकों या सार्वजनिक रूप से इसका गुस्सा निकाल रहे हैं. वे एक परिपक्व राजनेता हैं.”
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क्या शिंदे नाराज़ हैं?
प्रमुख बैठकों में शिंदे की अनुपस्थिति ने उनके असंतोष की अटकलों को हवा दी है.
पिछले सोमवार को स्वास्थ्य, आवास (शिंदे के पास एक विभाग) और जलापूर्ति एवं स्वच्छता जैसे विभिन्न विभागों से संबंधित परियोजनाओं पर चर्चा के लिए मुख्यमंत्री द्वारा आयोजित वार रूम बैठक में उनकी अनुपस्थिति ने सभी को चौंका दिया. ये विभाग शिवसेना के मंत्रियों के पास थे.
दो हफ्ते पहले भी वे कैबिनेट की बैठक में शामिल नहीं हुए थे.
जनवरी की शुरुआत में संरक्षक मंत्री पद पर असहमति के बाद, शिंदे सतारा जिले में अपने गांव, दारे में चले गए थे.
देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने पूर्ण मंत्रिमंडल को शामिल करने के एक महीने से अधिक समय बाद महाराष्ट्र के 36 जिलों के लिए संरक्षक मंत्रियों के नाम घोषित किए. रायगढ़ में शिवसेना के भरत गोगावले इस पद पर नज़र गड़ाए हुए थे, जबकि नागपुर में पार्टी के दादा भुसे आकांक्षी थे.
महायुति द्वारा विधानसभा चुनावों में भारी जीत हासिल करने के कुछ दिनों बाद, जिसमें महायुति की 288 में से 230 सीटों में से 132 सीटें जीतकर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, गठबंधन ने फडणवीस को नया मुख्यमंत्री चुना, जिससे कथित तौर पर शिंदे नाराज़ हो गए.
इसलिए, कुछ दिनों तक वे अपने गांव में ही रहे. कुछ दिनों बाद वे सामने आए और उन्होंने “स्पष्टीकरण” दिया कि वे अस्वस्थ होने के कारण आराम कर रहे थे.
विभाग वितरण के दौरान भी शिंदे गृह विभाग चाहते थे, लेकिन अंतिम समय में उन्होंने नरम रुख अपनाया.
शिंदे ने बार-बार दावा किया है कि वे परेशान नहीं हैं और आराम करने या किसी काम के लिए अपने गांव जाते हैं.
हालांकि, पिछले दो महीनों में उपमुख्यमंत्री ने जितनी भी जनसभाओं को संबोधित किया है, उनमें उन्होंने लोगों को बतौर मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल की याद दिलाई है.
इसके बाद, वे बताते हैं कि कैसे पहले वे मुख्यमंत्री (आम आदमी) थे, लेकिन अब एक डीसीएम (आम आदमी को समर्पित) के रूप में वे एक सामान्य ‘कार्यकर्ता’ की तरह अपना काम करते रहेंगे.
शिंदे ने हाल ही में नांदेड़ में अपनी यात्रा निकाली और बड़ी संख्या में शिवसेना को वोट देने के लिए लोगों को धन्यवाद दिया.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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