गुरुग्राम: हरियाणा के पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर ने रविवार को मोदी कैबिनेट में कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली, जबकि राव इंद्रजीत सिंह और कृष्ण पाल गुर्जर को राज्य मंत्री के रूप में शामिल किया गया.
राव और गुर्जर पिछली मोदी कैबिनेट में भी थे, जबकि रतन लाल कटारिया हरियाणा से तीसरा चेहरा थे.
कुल मिलाकर, चुनावी राज्य हरियाणा से भाजपा के पांच में से तीन सांसद टीम मोदी-3 में जगह बनाने में सफल रहे. 2019 में भाजपा ने हरियाणा की सभी 10 संसदीय सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि इस बार भाजपा और कांग्रेस ने पांच-पांच सीटें जीती हैं.
पहली बार सांसद बने खट्टर ने राजनाथ सिंह, अमित शाह, नितिन गडकरी, जे.पी. नड्डा, शिवराज सिंह चौहान, निर्मला सीतारमण और एस. जयशंकर के बाद आठवें नंबर पर कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली.
राज्य मंत्रियों (स्वतंत्र प्रभार) में राव इंद्रजीत सिंह को सबसे पहले शपथ दिलाई गई. शपथ लेने वाले राज्य मंत्रियों में कृष्ण पाल गुर्जर चौथे स्थान पर रहे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हरियाणा के पांच सांसदों में से तीन को अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने के फैसले को अक्टूबर में होने वाले राज्य चुनावों के संदर्भ में देखा जा रहा है.
खट्टर पंजाबी समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो विभाजन के बाद पाकिस्तान के पंजाब से पलायन कर हरियाणा के विभिन्न जिलों में बस गए थे. राव इंद्रजीत सिंह एक प्रमुख अहीर नेता हैं, जिनका दक्षिण हरियाणा, खासकर रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ जिलों और गुरुग्राम जिले के कुछ हिस्सों पर प्रभाव है. कृष्ण पाल गुर्जर गुज्जर समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के अंतर्गत आता है.
भिवानी-महेंद्रगढ़ से भाजपा सांसद धर्मबीर सिंह, जो हरियाणा से एक मात्र जाट सांसद हैं, को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है.
राजनीतिक विश्लेषक हेमंत अत्री ने कहा कि रविवार को शपथ लेने वाले मंत्रियों की संख्या और मंत्रियों का चयन आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए सावधानी से किया गया है.
अत्री ने दिप्रिंट को बताया, ‘राव इंद्रजीत सिंह एक प्रमुख अहीर नेता हैं, जिनकी पारिवारिक विरासत है. दक्षिण हरियाणा में यादव समुदाय के लोगों पर उनका बहुत प्रभाव है. वह मोदी 1.0 और मोदी 2.0 में भी राज्यमंत्री थे. इस बार लोगों को उम्मीद थी कि उनके प्रभाव और बीजेपी की झोली में वह जितनी सीटें लाते हैं, उसे देखते हुए मोदी उन्हें पदोन्नत करके कैबिनेट रैंक प्रदान करेंगे. कृष्ण पाल गुर्जर भी भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और पार्टी के पुराने कार्यकर्ता हैं,’
हालांकि, वह मोदी कैबिनेट में खट्टर को शामिल करने के फैसले से हैरान हैं, क्योंकि लोगों में उनके खिलाफ असंतोष के कारण मार्च में मोदी ने उन्हें “काफी बेपरवाही के साथ” बदल दिया था.
उन्होंने कहा, “अगर 2019 में 10 में से 10 सीटों पर क्लीन स्वीप करने के बाद भाजपा को पांच सीटों का नुकसान हुआ है, तो इसका मुख्य कारण ई-टेंडरिंग, संपत्ति और परिवार पहचान पत्र जैसी नीतियां हैं, जिन्हें उन्होंने शुरू किया था. नए सीएम नायब सिंह सैनी ने विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इन नीतियों में संशोधन की प्रक्रिया शुरू कर दी है.”
अत्रि ने कहा कि रविवार को हुए घटनाक्रम से किसी को संदेह नहीं रह गया कि भाजपा जाति के आधार पर मतदाताओं को बांटने के उद्देश्य से चुनाव लड़ना चाहती है. उन्होंने कहा कि पार्टी ने जानबूझकर जाटों को दूर रखा है – इसने अक्टूबर में ही भाजपा के राज्य प्रमुख ओपी धनखड़ को हटा दिया था – ताकि वह खुद को गैर-जाटों के हितैषी के रूप में पेश कर सकें और उनके वोट हासिल कर सके.
हालांकि, उन्होंने कहा कि जिस तरह से हरियाणा ने संसदीय चुनावों में वोट दिया और जातिगत सीमाओं से ऊपर उठकर काम किया, उससे यह असंभव लगता है कि भाजपा की “विभाजनकारी योजनाएं” काम करेंगी.
एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र गुप्ता ने अत्रि की टिप्पणियों को दोहराया, लेकिन जोर देकर कहा कि मोदी मंत्रिमंडल में हरियाणा की हिस्सेदारी पिछले दौर की तुलना में अधिक है.
गुप्ता ने कहा, “यह सच है कि 2019 में मोदी ने शुरुआत में तीन मंत्रियों को शामिल किया था – राव, गुर्जर और कटारिया. हालांकि, जुलाई 2021 में फेरबदल के दौरान कटारिया को हटा दिया गया और कार्यकाल पूरा होने तक केवल पहले वाले दो ही मंत्री बने रहे. इस बार, पांच में से तीन को मंत्री बनाया गया है, जो काफी हद तक आने वाले विधानसभा चुनावों के कारण लगता है.”
उन्होंने कहा कि मंत्रियों के चयन से किसी को भी संदेह नहीं है कि भाजपा ने जाट बनाम गैर-जाट के आधार पर चुनाव लड़ने की योजना बनाई है. “सत्तारूढ़ पार्टी जानती है कि जाट उसे वोट नहीं देंगे. इसलिए, वह गैर-जाटों को आकर्षित करने के लिए जानबूझकर अपने जाट नेताओं को बाहर रख रही है.”
हालांकि, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता संजय शर्मा ने जाट बनाम गैर-जाट की बातों को बेतुका बताया.
शर्मा ने दिप्रिंट से कहा, “भाजपा कभी भी विभाजनकारी राजनीति में विश्वास नहीं करती. अपने मंत्रियों के चयन में पीएम मोदी हमेशा अनुभव और वरिष्ठता को ही मापदंड मानते रहे हैं. राव इंद्रजीत सिंह और कृष्ण पाल गुर्जर मोदी के पिछले कार्यकाल में मंत्री थे, जबकि खट्टर दो बार सीएम रह चुके हैं.”
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