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Friday, 15 November, 2024
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महागठबंधन के बिना भी काँटों भरी हो सकती है 2019 में भाजपा की राह: 2014 चुनावों का डेटा

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विश्लेषणों से पता चलता है कि यदि कांग्रेस, सपा, बसपा, रालोद, जेएमएम, जेवीएम और जदयू पार्टियाँ एक साथ चुनाव लड़तीं तो भाजपा 2014 में 64 लोकसभा सीटें खो देती। 

नई दिल्लीः वैसे तो पिछले चुनावी आंकड़े भावी मतदान पैटर्न का सही संकेत नहीं दे सकते हैं, लेकिन अगर कांग्रेस, बसपा, सपा और कुछ अन्य क्षेत्रीय पार्टियाँ एक साथ मिलकर 2014 की अपनी वोट साझेदारी को बनाए रखने में कामयाब रहें तो 2019 के आम चुनाव में भाजपा खुद को खराब स्थिति में पा सकती है।

2014 में निर्वाचन क्षेत्रवार लोकसभा चुनाव के नतीजों के विश्लेषण से पता चलता है कि अगर विपक्षी दल – कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी (बसपा), समाजवादी पार्टी (सपा), राष्ट्रीय लोक दल (रालोद), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ), झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) और जनता दल (सेक्युलर) एक साथ मिलाकर चुनाव लड़ते तो 543 सीटों वाली लोकसभा जिसमें भाजपा ने 282 सीटें जीतीं थी उसमें से वह 64 सीटें खो सकती थी।

तथाकथित महागठबंधन या भाजपा विरोधी संघीय मोर्चा कोई खास असर दिखाने में नाकामयाब रहा है इसीलिए, दिप्रिंट द्वारा विश्लेषण का दायरा उन पार्टियों तक ही सीमित है जिन्होंने इसका अंतिम रूप तय कर लिया है या राज्य के विशिष्ट गठबंधन को मजबूत करने के लिए बातचीत कर रही हैं।

महाराष्ट्र में कांग्रेस एनसीपी के साथ गठबंधन करने के लिए तैयारी कर रही हैं लेकिन दोनों पार्टियों ने 2014 में भी एक साथ चुनाव लड़ा था। कांग्रेस और द्रमुक(DMK), जिन्होंने 2014 में अलग-अलग चुनाव लड़ा था, की 2019 में तमिलनाडु में सीटें साझा करने की संभावना है। यह इस रिपोर्ट में जाहिर नहीं किया गया है क्योंकि भाजपा तमिलनाडु राज्य में एक महत्वहीन पार्टी है।

कांग्रेस और जेडी(एस) ने पहले ही लोकसभा चुनावों में एक साथ चुनाव लड़ने का फैसला ले लिया है, जबकि उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार की अन्य क्षेत्रीय शक्तियाँ कांग्रेस के साथ राज्य-विशिष्ट गठबंधन करने के लिए तैयार है।

उत्तर प्रदेश में विपक्षी महागठबंधन भाजपा के लिए एक बुरे सपने की तरह हो सकता है: 2014 के विश्लेषणों से पता चलता है कि अगर उत्तर प्रदेश में विपक्ष की एकता बरकरार रहती है तो भाजपा के पास आज लोकसभा की जो 68 सीटें हैं उनमें से वह 49 सीटें खो सकती है।

राज्य में इस भगवा पार्टी की एक बड़ी हिस्सेदारी है जहां इसने लोकसभा की 80 सीटों में से 71 पर अपनी जीत दर्ज की थी, जबकि इसके सहयोगी ने पिछले आम चुनाव में दो सीटें जीती थीं।

पिछले साल विधानसभा चुनावों में भारी जनादेश के बाद से सत्तारूढ़ दल का भाग्य अच्छा नहीं रहा है। तब से यह तीन लोकसभा उपचुनाव – मार्च में गोरखपुर (योगी आदित्यनाथ द्वारा रिक्त) और फूलपुर (उनके उप मुख्यमंत्री, केशव प्रसाद मौर्या द्वारा रिक्त) और मई में कैराना – खो चुकी है। सपा और बसपा ने पहले दो पर संयुक्त उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जबकि कांग्रेस ने आरएलडी के टिकट पर एक संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार को मैदान में उतार कर उनके साथ हाथ मिला लिया था।

2017 विधानसभा चुनावों के निर्वाचन क्षेत्रवार आँकड़ों के विश्लेषण से उत्तर प्रदेश में भाजपा को एकजुट विपक्ष से जो खतरा था वो साफ दिखाई दे रहा था। द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चला है कि सपा और बसपा के वोट एक साथ मिलाने पर भाजपा उत्तर प्रदेश में 50 लोकसभा सीटें खो सकती है। 2019 में केन्द्र में सत्ता बनाए रखने हेतु भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश एक महत्वपूर्ण राज्य है।

कांग्रेस-बसपा यूपी के बाहर भी एक दमदार गठबंधन है: 2014 के चुनाव आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि कांग्रेस और बसपा के गठबंधन भाजपा को उत्तर प्रदेश के बाहर नौ सीटों से वंचित कर सकता था – मध्य प्रदेश में पाँच, छत्तीसगढ़ में दो तथा पंजाब और झारखंड में एक-एक सीट। कांग्रेस और बसपा इस समय मध्य प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव में गठबंधन करने के लिए बातचीत कर रहे हैं। कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि इन वार्ताओं का दायरा अन्य राज्यों के विधानसभा और लोकसभा चुनावों तक भी बढ़ सकता है।

इसके अलावा, अगर 2014 के चुनाव में कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) गठबंधन में होते तो बीजेपी कर्नाटक में दो लोकसभा सीटों से वंचित रह जाती। राजद और बसपा एक साथ मिलकर बीजेपी को बिहार की बक्सर सीट से भी वंचित कर सकते थे।

आप और कांग्रेस एक साथ मिलकर बीजेपी की 9 सीटों को कम कर सकते थेः कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी आप के साथ किसी भी गठबंधन का विरोध करने के लिए जाने जाते हैं क्योंकि वह अरविंद केजरीवाल को कांग्रेस की तबाही के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। लेकिन 2014 के लोकसभा परिणामों के विश्लेषण से पता चलता है कि अगर इन दोनों पार्टियों ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा होता तो बीजेपी दिल्ली में 6 सीटों से तथा चंडीगढ़, राजस्थान (करौली-ढोलपुर) और महाराष्ट्र (चंद्रपुर) प्रत्येक में 1-1 सीट से, कुल मिलाकर 9 सीटें हार जाती।

आप ने 2019 में कांग्रेस के साथ सौदा करने की इच्छा जताई है। कांग्रेस नेताओं के एक वर्ग का यह भी मानना है कि पार्टी को बीजेपी को हराने के लिए लोकसभा चुनाव में आप के साथ समझौता करना चाहिए, जिसके बाद वह अपने अलग अलग रास्तों पर जा सकते हैं। लेकिन राहुल गांधी और दिल्ली कांग्रेस के नेताओं के विचार भिन्न हैं।

जेडी (यू) से अलग होना भाजपा के लिए कोई विकल्प नहीं: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कांग्रेस और आरजेडी शिविरों को संकेत और दूत इसलिए भेज रहे हैं क्योंकि वे एक और राजनीतिक उलटफेर करने तथा लोकसभा चुनावों में उनके साथ हाथ मिलाने के लिए तैयार हैं।

कांग्रेस इस विचार के लिए स्पष्ट है लेकिन राजद उन्हें अभी तक क्षमा नहीं कर पायी  है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि कुमार की रणनीति बीजेपी को 2019 में जेडी (यू) के लिए अधिक लोकसभा सीटें प्रदान करने के लिए मजबूर करने के लिए है।

2014 में बिहार में अलग अलग चुनाव लड़ते हुए बीजेपी ने 22 तथा जेडी (यू) ने 40 में से 2 सीटें जीती थीं। भाजपा कुमार की महत्वाकांक्षाओं से नाराज है लेकिन उन्हें खोने का झोखिम नहीं उठा सकती है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह गठबंधन सहयोगी के साथ मतभेदों को हल करने के लिए 12 जुलाई को बिहार जाएंगे।

बीजेपी की जेडी (यू) को खोने की आशाहीनता 2014 में पार्टियों के प्रदर्शन से स्पष्ट की जा सकती है। 2014 के परिणामों के विश्लेषण से पता चलता है कि अगर जेडी (यू) ने कांग्रेस और आरजेडी के साथ समझौता किया होता तो बीजेपी ने 22 सीटों में से 12 सीटों को खो दिया होता।

Read in English : Even without grand alliance, BJP could face trouble next year, shows 2014 poll data

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