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Sunday, 22 December, 2024
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शिबू सोरेन भले ही इस चुनाव में शामिल नहीं हो रहे, लेकिन गुरुजी की छाया झारखंड की राजनीति पर मंडरा रही है

झामुमो के प्रत्येक उम्मीदवार ने उनका आशीर्वाद मांगा है, जिसमें नलिन सोरेन भी शामिल हैं, जो शिबू सोरेन के गढ़ दुमका से चुनाव लड़ने वाले हैं. यह राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण संथाल परगना क्षेत्र की प्रमुख सीट है.

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रांची: झारखंड की राजनीति में एक कद्दावर नेता शिबू सोरेन इस बार चुनावी मैदान में नहीं हैं – दशकों में ऐसा पहली बार हुआ है. 80 वर्षीय शिबू सोरेन ने चुनाव से बाहर रहने का फैसला अपनी बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य समस्याओं के कारण लिया है, जिसके कारण वे रैलियों, चुनावी बैठकों और दौरों में भाग नहीं ले पा रहे हैं.
झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के अध्यक्ष और तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके सोरेन वर्तमान में राज्यसभा सांसद हैं.

अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित दुमका सीट, जिसका प्रतिनिधित्व शिबू सोरेन ने आठ बार किया है, वहां से इस बार नलिन सोरेन चुनाव लड़ रहे हैं.

“दुमका गुरुजी की सीट रही है. इस बार मुझे प्रतिष्ठित दुमका चुनाव में उतारा गया है. यह गुरुजी के आशीर्वाद से है और यह एक बड़ी जिम्मेदारी है. मुझे यह सीट जीतकर गुरुजी को गुरु दक्षिणा देनी है.”

शिबू सोरेन से अपनी मुलाकात के बारे में बात करते हुए 76 वर्षीय नलिन ने कहा, “मुझे हमेशा गुरुजी का स्नेह और विश्वास मिला है, लेकिन वह पल हमेशा मेरी यादों में रहेगा, जब उन्होंने मुझे चुनाव चिन्ह दिया और कहा, ‘चुनाव साहस और समझदारी से लड़ो’. वास्तव में इसने मेरे आत्मविश्वास को बढ़ा दिया.

शिकारीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र से सात बार विधायक और शिबू सोरेन के करीबी नलिन सोरेन ने 10 मई को दुमका सीट के लिए अपना नामांकन दाखिल किया. सातवें चरण के दौरान 1 जून को मतदान होगा. नलिन का मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सीता सोरेन से होगा, जो शिबू सोरेन की बड़ी बहू और जामा से तीन बार विधायक रही हैं. सीता मार्च में झामुमो से भाजपा में शामिल हुई थीं.

इस साल के चुनावों में शिबू सोरेन की अनुपस्थिति के बारे में दिप्रिंट से बात करते हुए झामुमो के दुमका जिला संयोजक शिव कुमार बस्के ने कहा: “हमें गुरुजी की कमी खलती है, लेकिन वे हमारी ताकत हैं. हम उनके नाम और तस्वीर के साथ प्रचार करने के लिए मैदान में जाते हैं और रात को उनके नाम के साथ लौटते हैं. जंगल, पहाड़, गांव, सब उनके आने का इंतजार कर रहे हैं. आदिवासी और पहाड़ी इलाकों में भीषण गर्मी है, इसलिए बेहतर है कि वह अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें.

JMM party workers campaigning before 2024 Lok Sabha elections | Photo: Niraj Sinha

2024 लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी के लिए प्रचार करते हुए जेएमएम के पार्टी वर्कर्स | फोटो: नीरज सिन्हा


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संथाल परगना का महत्व

1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा बनाने के बाद शिबू सोरेन ने दुमका को अपना कार्यक्षेत्र बनाया. उन्होंने इस सीट पर आठ बार जीत दर्ज की है, जिसने दशकों से संथाल परगना में जेएमएम की मजबूत उपस्थिति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. हालांकि, 2019 के चुनाव में भाजपा के सुनील सोरेन ने शिबू सोरेन को करीबी मुकाबले में 47,590 वोटों से हराया था.

झारखंड की उप-राजधानी दुमका, संथाल परगना कमिश्नरेट का मुख्यालय है.

संथाली शब्द ‘दिशोम गुरु’ का अर्थ है ‘देश का गुरु’, शिबू सोरेन के नेतृत्व और महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन और व्यापक झारखंड आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए उन्हें यह उपाधि दी गई है.

नलिन सोरेन अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जो गुरुजी का आशीर्वाद चाहते हैं. जेएमएम के हर उम्मीदवार, नेता और रणनीतिकार, इंडिया ब्लॉक के नेताओं के साथ-साथ, चुनाव मैदान में उतरने से पहले उनका समर्थन चाहते हैं.

शिबू सोरेन ने पिछले पांच महीनों में केवल दो बार जेएमएम की जनसभाओं में भाग लिया है. 21 अप्रैल को, वे रांची में जेएमएम द्वारा आयोजित इंडिया ब्लॉक रैली में शामिल हुए. बाद में, 29 अप्रैल को, वे अपनी बहू कल्पना सोरेन के साथ गांडेय विधानसभा उपचुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने गए. वे उनके नामांकन के बाद आयोजित रैली में भी मौजूद थे. इन आयोजनों में उनकी उपस्थिति को राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बनाया गया. कल्पना सोरेन के आग्रह पर ही शिबू सोरेन दोनों कार्यक्रमों में आशीर्वाद देने पहुंचे.

पिछले 30 वर्षों से शिबू सोरेन के साथ काम कर चुके और उनके करीबी माने जाने वाले झामुमो केंद्रीय समिति के महासचिव विनोद पांडेय ने कहा, ‘गुरुजी स्वास्थ्य कारणों से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन संगठनात्मक गतिविधियों और चुनाव से संबंधित पार्टी में लिए गए सभी निर्णयों की जानकारी उन्हें दी जाती है और महत्वपूर्ण मामलों में उनकी सहमति ली जाती है. गुरुजी को चुनाव गतिविधियों और कार्यकर्ताओं के बारे में भी नियमित जानकारी मिलती रहती है.’

17 मई को शिबू सोरेन ने बरहेट से झामुमो विधायक लोबिन हेम्ब्रोम की बगावत के खिलाफ कार्रवाई की थी. लोबिन हेम्ब्रोम राजमहल सीट पर पार्टी उम्मीदवार विजय कुमार हंसदक के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. हेम्ब्रोम को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है. साथ ही सीता सोरेन को भी पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है.

Vijay Kumar Hansdak, contesting from Rajmahal seat, greets Shibu Soren | Photo: Niraj Sinha
राजमहल सीट से चुनाव लड़ रहे विजय कुमार हंसदक शिबू सोरेन को अभिवादन करते हुए | फोटो: नीरज सिन्हा

संथाल परगना में तीन लोकसभा सीटें हैं – दुमका और राजमहल, दोनों ही आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं, और गोड्डा, जो अनारक्षित है. 2019 के चुनावों में, JMM ने राजमहल सीट जीती, जबकि भाजपा ने दुमका और गोड्डा सीटें हासिल कीं.

संथाल परगना में 18 विधानसभा सीटें भी हैं, और ऐसा माना जाता है कि झारखंड में राजनीतिक सत्ता के लिए इस क्षेत्र पर नियंत्रण हासिल करना महत्वपूर्ण है.

सीता सोरेन के जाने से पहले इनमें से 14 सीटें जेएमएम और कांग्रेस के पास थीं, जबकि चार सीटें बीजेपी के पास थीं. पूर्व सीएम हेमंत सोरेन संथाल परगना के बरहेट से विधायक हैं और उनके छोटे भाई बसंत सोरेन दुमका से विधायक हैं. बसंत सोरेन फिलहाल दुमका में चुनाव प्रचार की कमान संभाल रहे हैं.

Shibu Soren meet son Hemant Soren during last rites of Raja Ram Soren | Photo: X, @JmmJharkhand
राजा राम सोरेन के अंतिम संस्कार के दौरान शिबू सोरेन से मुलाकात करते हुए हेमंत सोरेन | फोटो: X, @JmmJharkhand

शिबू सोरेन के करीबी कार्यकर्ताओं का कहना है कि बेटे हेमंत की प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तारी से गुरुजी काफी आहत हैं और उन्हें लगातार उनकी चिंता सताती रहती है. झारखंड उच्च न्यायालय की अनुमति से हेमंत सोरेन 6 मई को नेमरा (रामगढ़ जिला) में अपने दिवंगत चाचा राजा राम सोरेन के अंतिम संस्कार में शामिल हुए, जहां हेमंत को देखकर शिबू सोरेन काफी भावुक हो गए.

शिबू सोरेन के उतार-चढ़ाव

महाजनी आंदोलन के नायक शिबू सोरेन ने अपने राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं.

शिबू सोरेन को जानने वाले लोग याद करते हैं कि वे दिन भर पैदल चलते थे और रातें जंगलों और पहाड़ों में बिताते थे. वे बिना रुके पुरानी एंबेसडर कार या जीप में 600 किलोमीटर की यात्रा भी कर सकते थे. जेएमएम में विभाजन के बावजूद, वे बाद के चुनावों में पार्टी को सत्ता में वापस लाने में कामयाब रहे हैं.

JMM cadre and supporters wave the party flag in a rally in Gandey | Photo: Niraj Sinha
गांडेय में जेएमएम के कार्यकर्ता और समर्थक रैली में पार्टी का झंडा दिखाते हुए | फोटो: नीरज सिन्हा

2004 में, शिबू सोरेन को UPA सरकार में कोयला मंत्री नियुक्त किया गया था, लेकिन झारखंड में चिरुडीह हत्या मामले में उनकी गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी होने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. तब से वे बरी हो चुके हैं. 2005 के झारखंड विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था, जिसके कारण सोरेन को सीएम के रूप में शपथ दिलाई गई थी. हालांकि, बहुमत न होने के कारण उन्हें 10 दिनों के भीतर ही इस्तीफा देना पड़ा.

2008 में झामुमो ने कोड़ा सरकार से समर्थन वापस ले लिया और स्वतंत्र रूप से सरकार बनाने का दावा किया. शिबू सोरेन ने 27 अगस्त, 2008 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन 12 जनवरी, 2009 को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. उस समय वे विधायक नहीं थे और उन्हें छह महीने के भीतर विधायक बनना था. उन्होंने तमाड़ सीट के लिए उपचुनाव लड़ा, लेकिन झारखंड पार्टी के गोपाल कृष्ण पातर से हार गए. 2009 में तीसरी बार शिबू सोरेन भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बने, लेकिन राजनीतिक उथल-पुथल के कारण उन्हें कुछ महीनों के भीतर ही पद छोड़ना पड़ा.

दिशोम गुरु शिबू सोरेन पुस्तक के लेखक और राजनीतिक विश्लेषक अनुज कुमार सिन्हा ने कहा, ‘हेमंत सोरेन की अनुपस्थिति में (उनकी पत्नी) कल्पना एक अनुभवी राजनेता के रूप में उभर रही हैं और चुनाव प्रचार संभाल रही हैं, लेकिन गुरुजी अलग हैं. कार्यकर्ता और समर्थक निश्चित रूप से उनकी कमी महसूस करेंगे क्योंकि वे चुनाव लड़ने और प्रचार करने में सक्षम नहीं हैं. वोट के लिहाज से भी उनकी मौजूदगी महत्वपूर्ण है. सिन्हा ने दिप्रिंट से कहा कि आदिवासी इलाकों में लोग शिबू सोरेन की एक झलक पाने, उन्हें छूने के लिए 20-30 किलोमीटर पैदल चलकर सभाओं में पहुंचते देखे गए हैं. आदिवासियों के बीच शिबू सोरेन के लिए प्यार बहुत गहरा है.

1990 के दशक में हुए एक चुनावी कार्यक्रम को याद करते हुए विनोद पांडेय कहते हैं, “हम दुमका के एक सुदूर गांव में चुनावी सभा को संबोधित करने गए थे. इस दौरान एक-एक करके कई महिलाएं गुरुजी के सामने आतीं, उन्हें कुछ देतीं और चली जातीं. गुरुजी उनका प्रसाद लेते और अपने कुर्ते की जेब में रखते जाते. बाद में मैंने उनसे पूछा, ‘बाबा, वे महिलाएं आपको क्या दे रही थीं?’ उन्होंने अपनी जेब से पैसे निकाले- दो पांच रुपये के नोट और कुछ सिक्के. उन्होंने कहा कि आदिवासी महिलाओं ने उन्हें यह सोचकर पैसे दिए थे कि वे इतनी दूर से आए हैं, अब घर कैसे लौटेंगे.”

चुनाव प्रचार में शिबू और हेमंत सोरेन की अनुपस्थिति के बारे में कल्पना ने दिप्रिंट से कहा, “इसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. लेकिन दिशोम गुरुजी का आशीर्वाद और हेमंतजी का प्रोत्साहन है, जिसकी वजह से झामुमो का हर कार्यकर्ता चुनाव में अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश कर रहा है. कल्पना चुनावी रैलियों और बैठकों के दौरान अपने पति हेमंत और ससुर शिबू सोरेन का नाम लेना कभी नहीं भूलतीं. उन्होंने कहा, “अब तक मैंने सिर्फ यही सुना था कि झामुमो का मुश्किल वक्त में लड़ने का इतिहास रहा है. अब मैं इसे अपनी आंखों से देख रही हूं.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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