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Monday, 10 February, 2025
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विधायकों से बगावत की धमकी और अनिश्चित स्थिति के कारण भाजपा ने मणिपुर के CM पद से बीरेन सिंह को हटाया

जब तक ‘वैकल्पिक व्यवस्था’ नहीं हो जाती, सिंह पद पर बने रहेंगे. उनका इस्तीफा अब रद्द हो चुके राज्य विधानसभा सत्र से ठीक एक दिन पहले आया है.

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नई दिल्ली: मणिपुर विधानसभा में विपक्षी कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने यानी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायकों की संभवतः अपनी ही सरकार को गिराने की धमकी ने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को रविवार को राज्य के मुख्यमंत्री के पद से एन. बीरेन सिंह को इस्तीफे देने पर मजबूर कर दिया. पार्टी सूत्रों ने दिप्रिंट को यह जानकारी दी.

मणिपुर विधानसभा का सातवां सत्र, जो सोमवार से शुरू होने वाला था, उसे अब रद्द कर दिया गया है.

मणिपुर के राज्यपाल अजय भल्ला ने सिंह और उनके मंत्रिपरिषद का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है. हालांकि, भल्ला के कार्यालय से रविवार रात जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार, सिंह “वैकल्पिक व्यवस्था” होने तक पद पर बने रहेंगे.

भाजपा के पूर्वोत्तर समन्वयक संबित पात्रा पार्टी विधायकों के साथ बैठक करने के लिए पहले से ही इम्फाल में हैं. भाजपा सूत्रों ने कहा कि संभावना है कि बीरेन सिंह की जगह नए मुख्यमंत्री की नियुक्ति का फैसला जल्द ही लिया जाएगा. इस पद के लिए सबसे आगे चल रहे उम्मीदवारों में बीरेन सिंह सरकार में मंत्री वाई. खेमचंद सिंह, पूर्व शिक्षा मंत्री और हीरोक से विधायक थोकचोम राधेश्याम सिंह, कृषि मंत्री थोंगम विश्वजीत सिंह और शिक्षा मंत्री टी. बसंत सिंह शामिल हैं.

भाजपा के एक सूत्र ने कहा, “हालांकि अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है, लेकिन राष्ट्रपति शासन लागू होने की संभावना नहीं है.”

रविवार शाम इस्तीफा देने से पहले सिंह शनिवार रात को एक चार्टर्ड फ्लाइट से दिल्ली पहुंचे थे.

सूत्रों ने कहा कि सिंह अपनी पार्टी के विधायकों के बीच अपने समर्थन आधार के कम होने के कारण अनिश्चित स्थिति में थे. 8 फरवरी को दिल्ली चुनाव के नतीजों से पहले पिछले हफ्ते उनकी सरकार के मंत्रियों सहित राज्य के कई भाजपा विधायकों को दिल्ली बुलाया गया था. उन्होंने पार्टी नेतृत्व को चेतावनी दी कि यदि सिंह को हटाने का कोई फैसला नहीं लिया जाता है, तो वह विधानसभा सत्र में विपक्षी कांग्रेस द्वारा पेश किए जाने वाले किसी भी अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करेंगे.

वाई. खेमचंद सिंह और थोकचोम राधेश्याम सिंह सहित विधायकों को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात का मौका नहीं मिला, लेकिन उन्होंने संबित पात्रा से मुलाकात की. उन्होंने उन्हें बताया कि सिंह ने पार्टी के अधिकांश विधायकों का विश्वास खो दिया है. इसके तुरंत बाद प्रतिनिधिमंडल इम्फाल लौट आया.

भाजपा के एक मैतेई विधायक ने नाम न बताने की शर्त पर इम्फाल से दिप्रिंट को बताया, केंद्रीय नेतृत्व को पता था कि मणिपुर भाजपा इकाई में लंबे समय से असंतोष पनप रहा था और इम्फाल घाटी में मैतेई विधायकों सहित कई विधायक सिंह को हटाना चाहते थे. यह विधायक भी उन लोगों में से थे जो पिछले हफ्ते दिल्ली आए थे.

विधायक ने कहा, “राज्य भाजपा, आरएसएस और राज्य की सुरक्षा एजेंसियों से मिली कई प्रतिक्रियाओं ने भी इस तथ्य की ओर इशारा किया था, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व सही वक्त का इंतज़ार कर रहा था. आसन्न अविश्वास प्रस्ताव का खतरा अंतिम ट्रिगर था.”

उन्होंने कहा कि दिल्ली में अच्छे बहुमत से जीतना भी अब तुरंत फैसले लेने का एक कारक हो सकता था.


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बीरेन की बैठक का MLAs ने किया बहिष्कार

शनिवार सुबह करीब 11 बजे बीरेन सिंह ने विधानसभा सत्र से पहले बजट आवंटन पर चर्चा के लिए अपने आवास पर पार्टी विधायकों की बैठक बुलाई थी.

उनकी सरकार के मंत्रियों समेत एक दर्जन से अधिक भाजपा विधायकों ने दोपहर 1 बजे तक चली बैठक का बहिष्कार किया था. कुछ घंटे बाद सिंह भाजपा के शीर्ष नेताओं से मिलने के लिए चार्टर्ड विमान से दिल्ली पहुंचे. रविवार सुबह अमित शाह से मुलाकात के बाद सिंह पात्रा और अन्य भाजपा नेताओं के साथ इम्फाल लौट आए और इस्तीफा दे दिया.

एक सप्ताह में यह दूसरी बार था जब सिंह को दिल्ली बुलाया गया था.

बुधवार को सिंह अपने वफादार विधायकों के एक समूह के साथ दिल्ली पहुंचे, लेकिन शाह से मुलाकात नहीं हो पाने के बाद महाकुंभ में भाग लेने के लिए प्रयागराज चले गए. 8 फरवरी को दिल्ली चुनाव के नतीजों से ठीक दो दिन पहले केंद्रीय नेतृत्व व्यस्त था.

भाजपा सूत्रों ने कहा कि पार्टी नेतृत्व कोई फैसला लेने से पहले दिल्ली चुनाव के नतीजों की घोषणा होने तक इंतज़ार करना चाहता था. इस चुनाव में भाजपा ने 70 में से 48 सीटें जीतकर निर्णायक जीत हासिल की, जबकि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी सिर्फ 22 सीटें ही हासिल कर सकी.

भाजपा के एक अन्य मैतेई विधायक ने दिप्रिंट से कहा, “केंद्रीय नेतृत्व जानता था कि अगर बीरेन सिंह इस्तीफा नहीं देते हैं, तो पार्टी को विधानसभा सत्र में शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ेगा. उनके पास एक दर्जन विधायकों का भी समर्थन नहीं था. इससे बचने का यही सबसे अच्छा तरीका था.”

60-सदस्यीय मणिपुर विधानसभा में भाजपा के 32 विधायक हैं. इनमें 7 कुकी विधायक भी शामिल हैं, जिन्होंने खुले तौर पर कहा है कि उन्हें बीरेन सिंह के नेतृत्व पर भरोसा नहीं है. 2022 के चुनावों के बाद जनता दल (यूनाइटेड) के पांच विधायक भाजपा में शामिल हो गए, जिससे पार्टी की प्रभावी ताकत 37 हो गई.

बाकी विधायकों में से पांच भाजपा की सहयोगी नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के हैं. कॉनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के सात अन्य विधायकों ने भी बीरेन सिंह सरकार का समर्थन किया था. हालांकि, नवंबर 2024 में एनपीपी के 7 विधायकों ने अपना समर्थन वापस ले लिया. एनपीपी के एक विधायक एन कायसी का जनवरी 2025 में निधन हो गया. भाजपा के एक अन्य सहयोगी, कुकी पीपुल्स अलायंस, जिसके दो विधायक हैं, उन्होंने राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद मई 2023 में ही समर्थन वापस ले लिया था.

तीन निर्दलीय विधायकों में से निशिकांत सपाम और हाओखोलेट किपगेन ने बीरेन सिंह का विरोध किया, जबकि जे. कुमो शा सिंह के साथ हैं.

मणिपुर के एक अन्य भाजपा विधायक ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, “बीरेन सिंह के साथ केवल 8-9 विधायक थे.”

मणिपुर विधानसभा के अध्यक्ष थोकचोम सत्यब्रत सिंह सहित 32 भाजपा विधायकों में से 19 ने बीरेन सिंह के खिलाफ खुलेआम बगावत कर दी है. अक्टूबर 2023 में विधायकों ने कथित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर बीरेन सिंह को हटाने की मांग की थी.

दूसरे विधायक ने कहा, “मणिपुर में आज भाजपा एक विभाजित सदन है.”

भाजपा की अलोकप्रियता

पिछले एक साल में, कई भाजपा विधायकों ने बार-बार दिल्ली की यात्रा की है, मोदी और शाह से मिलने की मांग की है, ताकि बीरेन सिंह और पार्टी दोनों की बढ़ती अलोकप्रियता के बारे में चिंता व्यक्त की जा सके.

भाजपा के एक तीसरे विधायक ने कहा, “हम जहां भी जा रहे थे, हमारे मतदाता खुलेआम हमसे कह रहे थे कि अगर बीरेन सिंह को नहीं हटाया गया तो वह हमें वोट नहीं देंगे. 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए हम बहुत मुश्किल स्थिति में फंस रहे हैं.”

विधायक ने कहा कि लोग राज्य और केंद्र की अक्षमता से तंग आ चुके हैं, जो हर कुछ महीनों में भड़कने वाली हिंसा, उग्रवादी समूहों के खुलेआम घूमने और जबरन वसूली के साथ बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रित करने में असमर्थ हैं.

विधायक ने पूछा, “यहां सामान्य जीवन ठप हो गया है. क्या आप हाल के दिनों में किसी अन्य राज्य की कल्पना कर सकते हैं जो जातीय आधार पर विभाजित हो गया हो?”

यहां तक ​​कि आरएसएस ने भी राज्य की स्थिति पर चिंता जताई है. अक्टूबर 2023 में, संघ की मणिपुर इकाई ने एक बयान जारी कर केंद्र और राज्य सरकारों से जल्द से जल्द चल रहे संघर्ष को “ईमानदारी से” हल करने का आग्रह किया. बयान में कहा गया, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मणिपुर में 3 मई, 2023 से शुरू हुई 19 महीने पुरानी हिंसा अभी तक अनसुलझी है.”

तीसरे भाजपा विधायक ने कहा कि केंद्र लंबे समय से सावधानी से कदम उठा रहा था क्योंकि ऐसी धारणा थी कि अगर सिंह को हटा दिया जाता है, तो घाटी (इम्फाल), जो अभी बहुत अस्थिर है, भड़क सकती है. उन्होंने कहा, “लेकिन अब कोई विकल्प नहीं था. बीरेन सिंह का सीएम के रूप में बने रहना असहनीय हो गया था…यह राज्य में भाजपा के अस्तित्व का सवाल था.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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