चेन्नई: 2026 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए डीएमके ने तमिलनाडु के पश्चिमी क्षेत्र, खासकर कोयंबटूर में, खुली और सुनियोजित राजनीतिक पहल शुरू कर दी है. यह इलाका लंबे समय से AIADMK का गढ़ और बीजेपी का उभरता आधार माना जाता रहा है. इसके लिए पार्टी जातिगत संपर्क, क्षेत्रीय प्रतीकों और कल्याणकारी राजनीति का मिश्रण अपना रही है.
2021 में राज्य की 234 सीटों में से 133 सीटें जीतकर सत्ता में आने के बावजूद, डीएमके पश्चिमी तमिलनाडु की 68 सीटों में से सिर्फ 24 सीटें ही जीत पाई थी. कोयंबटूर में डीएमके एक भी सीट नहीं जीत सकी, जबकि एआईएडीएमके ने नौ और बीजेपी ने एक सीट जीती थी.
हालांकि पार्टी ने 2021 से ही जमीनी स्तर पर संपर्क और संगठन मजबूत करने का काम शुरू कर दिया था, लेकिन पिछले एक साल में पश्चिमी क्षेत्र में राजनीतिक पूंजी का जो निवेश हुआ है, उसने नायडू समुदाय में असर दिखाया है. इसमें कोयंबटूर के एक फ्लाईओवर का नाम उद्योगपति जी.डी. नायडू के नाम पर रखना और कोयंबटूर की श्री अन्नपूर्णा रेस्टोरेंट चेन के प्रबंध निदेशक डी. श्रीनिवासन को तमिलनाडु राज्य खाद्य आयोग का सदस्य बनाना शामिल है.
इसी तरह पार्टी के भीतर जिला स्तर पर हालिया पुनर्गठन, जिसमें गौंडर समुदाय से आने वाले पूर्व मंत्री वी. सेंथिल बालाजी को कोयंबटूर जिले का प्रभारी मंत्री बनाया गया, और उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन का राज गौंडर द्वारा संचालित पुथिया द्रविड़ कझगम के सम्मेलन में शामिल होना, जमीनी स्तर पर असर दिखा रहा है, ऐसा पश्चिमी क्षेत्र के डीएमके नेताओं का कहना है.
दिप्रिंट से बात करते हुए कोयंबटूर के सिंगनल्लूर विधानसभा क्षेत्र के एक डीएमके पदाधिकारी ने कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद के महीनों में इन दो समुदायों के समर्थन में बदलाव साफ नजर आया है.
उन्होंने कहा, “हम लंबे समय से इन समुदायों के लोगों के साथ काम कर रहे हैं, लेकिन 1990 के दशक के अंत में कुछ वरिष्ठ नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद हमें हमेशा अग्रणी जाति विरोधी और गौंडर विरोधी पार्टी के रूप में देखा गया. अब लोगों को एहसास हुआ है कि हमारी पार्टी सबके लिए काम करती है, हर जाति को समान मानती है और हर समुदाय को प्रतिनिधित्व देती है. इसी वजह से यह बदलाव आया है.”
हालांकि माना जाता है कि पिछले एक साल में डीएमके के प्रतीकात्मक कदमों से गौंडर समुदाय का समर्थन मिला है, लेकिन राजनीतिक टिप्पणीकार रवींद्रन दुरईस्वामी का कहना है कि यह बदलाव 2025 की शुरुआत में ही शुरू हो गया था.
उन्होंने कहा, “2021 के स्थानीय निकाय चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव जीतने के बावजूद असली बदलाव फरवरी 2025 में हुए इरोड ईस्ट उपचुनाव के बाद आया. डीएमके एक तरफ गौंडर समुदाय के प्रति सकारात्मक रुख अपनाती है और दूसरी तरफ गैर-गौंडर समुदायों को कल्याणकारी योजनाओं, प्रतीकात्मक और रणनीतिक कदमों के जरिए एकजुट करती है, बिना सीधे तौर पर सामुदायिक मामलों में शामिल हुए. इससे 2026 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में मदद मिली है.”
पार्टी, जिसका पश्चिमी क्षेत्र में कभी मजबूत आधार था, 1990 के दशक में कमजोर पड़ गई थी. 1994 में वाइको द्वारा शुरू की गई एमडीएमके में इरोड ए. गणेशमूर्ति, तिरुप्पुर दुरईस्वामी और एम. कन्नप्पन जैसे नेताओं के जाने के बाद डीएमके ने यह आधार खो दिया था.
हालांकि पश्चिमी रणनीति राजनीतिक प्रतीकों और जातिगत संतुलन पर आधारित है, लेकिन इसके पीछे एक व्यापक और सूक्ष्म स्तर पर लक्षित कल्याण ढांचा भी है, जिसे पार्टी वोटों में बदलने का जरिया मानती है.
डीएमके ने महिलाओं, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और मछुआरों को ध्यान में रखते हुए कई समुदाय-विशेष योजनाएं शुरू की हैं. आदिवासी आजीविका के लिए थोलकुडी–ऐंथिनई योजना, एससी. एसटी. महिलाओं के लिए भूमि स्वामित्व सब्सिडी, मछुआरा महिलाओं के लिए सूक्ष्म ऋण, नारिकुरवा समुदाय के लिए आवास और अल्पसंख्यक लड़कियों के लिए छात्रवृत्ति इस रणनीति का आधार हैं.
आदि द्रविड़ और जनजातीय कल्याण विभाग की थोलकुडी–ऐंथिनई योजना के तहत लाभार्थियों की संख्या 2023-24 में 1,090 से बढ़कर 2025-26 में 7,564 हो गई है. इसके लिए आवंटन 5.59 करोड़ रुपये से बढ़कर 17.80 करोड़ रुपये हो गया है.
पश्चिमी तमिलनाडु में DMK का वोट शेयर 5% बढ़ा
राजनीतिक विश्लेषक एन. सत्यामूर्ति ने कहा कि पार्टी की हालिया चुनावी सफलताएं पश्चिमी क्षेत्र के लिए बनाई गई सोच-समझकर की गई रणनीति को दिखाती हैं. उन्होंने कहा, “2024 में डीएमके ने पश्चिमी क्षेत्र में अपने वोट शेयर में करीब पांच प्रतिशत की बढ़ोतरी की और स्थानीय निकाय चुनावों और उपचुनावों में सफलता हासिल की.”
उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री की व्यापक राजनीतिक रणनीति यह सुनिश्चित करने की है कि इस क्षेत्र के समुदाय खुद को नजरअंदाज महसूस न करें. “वे मतदाताओं को व्यवस्था से जोड़ रहे हैं. संदेश यह है कि कोई भी समूह गैरजरूरी नहीं है.”
इरोड जिले के डीएमके पदाधिकारियों ने यह भी याद दिलाया कि 2009 में तत्कालीन डीएमके सरकार द्वारा अनुसूचित जाति कोटे के भीतर अरुंधथियार समुदाय के लिए तीन प्रतिशत आंतरिक आरक्षण की शुरुआत अब पश्चिमी क्षेत्र में पार्टी की मदद कर रही है.
इरोड जिले के एक डीएमके पदाधिकारी ने कहा, “अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आंतरिक आरक्षण की वैधता को बरकरार रखने के बाद अरुंधथियार समुदाय तक पहुंचना हमारे लिए आसान हो गया है. यह समुदाय पश्चिमी क्षेत्र, खासकर इरोड जिले में, पहले AIADMK का समर्थन करता था.”
राजनीतिक विश्लेषक सत्यामूर्ति के अनुसार, 2026 के विधानसभा चुनाव में दो बातें हावी रहेंगी. पहली, मापे जा सकने वाले लाभों के साथ व्यक्तिगत स्तर पर लक्षित राजनीति. दूसरी, हिंदुत्व और द्रविड़ या हिंदुत्व-विरोधी राजनीति के बीच वैचारिक मुकाबला, जिसमें अब धर्मनिरपेक्षता, भाषा, संघवाद, स्वास्थ्य और रोजगार योजनाओं पर बहस शामिल है.
हालांकि उन्होंने चेतावनी दी कि कल्याणकारी योजनाएं अब संतृप्ति की ओर बढ़ रही हैं, जो जोखिम पैदा कर सकती हैं. उन्होंने कहा, “महिलाओं को मिलने वाली 1,000 रुपये की सहायता अब परिवार के बजट का हिस्सा बन गई है. अब मतदाता पूछते हैं कि मेरे लिए आगे क्या है. लोग इन लाभों को अपना अधिकार मानने लगे हैं.”
फिर भी, डीएमके यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध दिखती है कि जो क्षेत्र पहले राजनीतिक रूप से दूर माने जाते थे, वे उसकी बढ़ती चुनावी पहुंच से बाहर न रहें.
डीएमके के प्रवक्ता ने कहा कि पार्टी किसी एक जाति के लिए नहीं, बल्कि राज्य के सभी लोगों के लिए काम कर रही है, यहां तक कि उनके लिए भी जिन्होंने पार्टी को वोट नहीं दिया. उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते समय हमारे नेता ने कहा था कि हम इतना काम करेंगे कि जिन्होंने हमें वोट नहीं दिया, वे भी पछताएं. हमने यह सुनिश्चित किया है कि राज्य के सभी लोग सशक्त हों और हर क्षेत्र व हर सेक्टर में विकास हो.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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