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Friday, 24 January, 2025
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दिल्ली के मुस्लिम वोटर्स के दिल में कांग्रेस है, लेकिन दिमाग में AAP, क्या इससे BJP को होगा फायदा

दिल्ली दंगों के प्रति AAP के नज़रिए को मुसलमानों ने पसंद नहीं किया, यह 2022 के नगर निगम चुनावों के परिणामों से साफ हो गया था क्योंकि कांग्रेस ने दंगा प्रभावित इलाकों में कम से कम पांच वार्ड जीते.

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नई दिल्ली: फरवरी 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) की जीत के कुछ ही दिनों बाद, उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे शहर के उत्तर-पूर्वी इलाके में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिससे घनी आबादी वाले, मिलेजुले-धर्म के लोगों वाले इलाकों में आपसी रिश्ते खराब हो गए, जहां पड़ोसी राज्यों से बड़ी संख्या में प्रवासी आबादी रहती थी.

जबकि यह इलाका हिंसा के दौर से गुज़र रहा था, लेकिन इस दौरान AAP की ओर से कोई ठोस राजनीतिक पहल या कोई राहत देने वाला कदम नहीं उठाया गया, जबकि मुसलमानों ने पार्टी के पक्ष में भारी मतदान किया था, जिससे इसे सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल करने में मदद मिली, जहां 2011 की जनगणना के अनुसार, आबादी में समुदाय की हिस्सेदारी 35 प्रतिशत से 50 प्रतिशत के बीच है.

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हिंसा भड़कने के चार दिन बाद जिले के कुछ हिस्सों का दौरा किया था. यह दौरा दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) डी.एस. मुरलीधर द्वारा राजनीतिक मतभेदों को दरकिनार कर शहर के “उच्चतम पदाधिकारियों” को पीड़ितों से मिलने और उनकी सुरक्षा का आश्वासन देने के आग्रह के कुछ घंटों बाद किया गया था.

यह तथ्य कि मुसलमानों ने AAP के नज़रिए को पसंद नहीं किया, 2022 के दिल्ली नगर निगम चुनावों के परिणामों में साफ दिख रहा था, जिसमें कांग्रेस ने दंगा प्रभावित इलाकों में कम से कम पांच वार्ड में जीत दर्ज की थी. इसने दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के ओखला और जाकिर नगर के मुस्लिम बहुल इलाकों में दो और वार्ड जीते, जिससे यह धारणा मजबूत हुई कि समुदाय AAP से अलग-थलग महसूस करता है.

विधानसभा चुनावों में दो सप्ताह से भी कम समय बचा है, एक सवाल हावी है: क्या भाजपा की संभावित जीत से चिंतित मुसलमान AAP पर अपना भरोसा जताएंगे? या, क्या AAP से मोहभंग के कारण कांग्रेस समुदाय के बीच खोई हुई साख फिर से हासिल कर लेगी?

सीलमपुर की चहल-पहल वाली गली में मोबाइल फोन की दुकान चलाने वाले 65-वर्षीय आफताब ने कहा, “देखिए, यहां हर घर में कांग्रेस समर्थक हैं, लेकिन जब वोट देने की बात आती है, तो AAP समुदाय की पहली पसंद होगी. कांग्रेस हमारे दिल में हो सकती है, लेकिन जब दिमाग की बात आती है, तो हम AAP को वोट देंगे.”

यह भावना न केवल सीलमपुर में, बल्कि पड़ोसी मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों मुस्तफाबाद और बाबरपुर में भी दिखाई दे रही थी. दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के ओखला या पुरानी दिल्ली के मटिया महल और बल्लीमारान जैसे क्षेत्रों में अधिकांश मुसलमान अभी भी AAP को दौड़ में आगे रख रहे हैं. माना जा रहा है कि कांग्रेस और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) जैसी मुस्लिम नेतृत्व वाली पार्टियां अभी भी बातचीत का एक बड़ा हिस्सा हैं.

सत्ता में वापसी के लिए उत्सुक कांग्रेस, मुसलमानों के समर्थन पर निर्भर है, जो 2011 की जनगणना के अनुसार, दिल्ली की आबादी का 12.86 प्रतिशत हैं. दिल्ली में मुसलमानों की सबसे बड़ी आबादी वाले जिले मध्य (33.36 प्रतिशत) और पूर्वी (29.34 प्रतिशत) हैं.

2013 में कांग्रेस ने जिन आठ सीटों पर जीत हासिल की, उनमें से चार मुस्लिम बहुल सीटें थीं. हालांकि, 2015 और 2020 में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली क्योंकि AAP ने सभी मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में जीत दर्ज़ करते हुए चुनावों में क्लीन स्वीप किया था.

2015 के विधानसभा चुनावों के बाद लोकनीति-सीएसडीएस के एक अध्ययन में पाया गया था कि, “यह तर्क दिया जा सकता है कि कांग्रेस 2013 में मुस्लिम वोटर्स का सपोर्ट बनाए रखने के काबिल थी. समुदाय के बीच इसके लिए प्रेम के कारण नहीं बल्कि इसलिए क्योंकि मुसलमानों को यकीन नहीं था कि AAP राष्ट्रीय पार्टी भारतीय जनता पार्टी को हरा पाएगी. एक बार जब उन्होंने AAP की जीतने की क्षमता देखी, तो वह काफी संख्या में उस ओर झुक गए…”

मुस्लिम समर्थन को वापस जीतने के अपने प्रयास में कांग्रेस के नेता रैलियों को संबोधित करते हुए मतदाताओं को बार-बार याद दिला रहे हैं कि केजरीवाल और अन्य AAP नेता, जिनमें इसके विधायक भी शामिल हैं, पांच साल पहले उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के समय दूर रहे थे.

बुधवार को एक चुनावी रैली में कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी द्वारा की गई टिप्पणी पर गौर कीजिए: “जब दिल्ली जल रही थी, तब आपके साथ कौन खड़ा था? संभल में? हाथरस में? कश्मीर में आपके साथ कौन खड़ा था? मणिपुर में? अगर राहुल गांधी हमेशा आपके साथ खड़े रहे हैं और आप किसी तीसरे व्यक्ति को वोट देते हैं, तो यह आपकी अपनी अंतरात्मा के साथ अन्याय होगा.”

लेकिन, क्षेत्रवासियों का कहना है कि रणनीतिक गलती के बिना कांग्रेस इस भावना से लाभ उठा सकती थी. हालांकि, अब्दुल रहमान को मैदान में उतारकर — जिन्होंने 2020 से दिसंबर 2024 में कांग्रेस में शामिल होने तक सीलमपुर का प्रतिनिधित्व किया था — पार्टी ने इसका लाभ उठाने का मौका खो दिया है.

इसके अलावा, AAP ने सीलमपुर के पांच बार के विधायक चौधरी मतीन अहमद का समर्थन हासिल करने में कामयाबी हासिल की, जो 1993 से 2014 तक विधायक रहे हैं. उनके बेटे चौधरी ज़ुबैर अहमद को AAP ने सीलमपुर निर्वाचन क्षेत्र में अपना उम्मीदवार बनाया है. ज़ुबैर की पत्नी शगुफ्ता उन नौ कांग्रेस पार्षदों में शामिल थीं, जिन्होंने 2022 के नागरिक चुनावों में जीत हासिल की.

सीलमपुर के थोक कपड़ा मार्केट में एक दुकानदार मुजीब ने कहा, “अब्दुल रहमान AAP का प्रतिनिधित्व करते थे, जो दंगों के दौरान हस्तक्षेप करने या नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ पूर्वी दिल्ली या ओखला के शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन में भाग लेने से हिचकिचाती रही. रहमान खुद तब मौजूद नहीं थे जब समुदाय को उनकी सबसे ज्यादा ज़रूरत थी. अब, वे मुसलमानों को छोड़ने के लिए AAP को आसानी से दोषी ठहराते हैं. दूसरी ओर, मतीन अहमद का परिवार हमारे लिए उपलब्ध था.”

मुजीब का कहना है कि कांग्रेस को इसके बजाय मोहम्मद इशराक खान को मैदान में उतारना चाहिए था, जो 2015 से 2020 तक AAP के सीलमपुर विधायक थे. इशराक, जो औपचारिक रूप से शिक्षित नहीं हैं, नवंबर 2024 में कांग्रेस में शामिल हो गए थे और क्षेत्र में उनकी अच्छी साख है, लेकिन, कांग्रेस ने उन्हें पड़ोसी बाबरपुर निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में उतारा है, जिसका प्रतिनिधित्व दिल्ली के कैबिनेट मंत्री और वरिष्ठ AAP नेता गोपाल राय 2015 से कर रहे हैं.

राय एक बार फिर उस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जिसे भाजपा ने पहले चार बार जीता है, सबसे हालिया बार 2013 में, जब AAP और कांग्रेस के बीच भाजपा विरोधी वोटों में विभाजन ने भाजपा की मदद की. ऐसा 2008 में भी देखा गया था जब बहुजन समाज पार्टी (बसपा) एक फैक्टर थी.

इलाके में भाजपा के मंडल उपाध्यक्ष श्याम सिंह तोमर को इस बार भी ऐसे ही नतीजे की उम्मीद है, साथ ही हिंदू वोटों का पार्टी के पक्ष में एकजुट होना भी. उनका मानना ​​है कि 2015 और 2020 में AAP का समर्थन करने वाले कई हिंदुओं के पास इस बार ऐसा करने का कोई कारण नहीं है क्योंकि “हमने (भाजपा) न केवल मौजूदा मुफ्त सुविधाओं को बनाए रखने का वादा किया है बल्कि और भी अधिक देने का वादा किया है”.


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खालीपन भरना बाकी

पूरे उत्तर-पूर्वी जिले में इस बात के संकेत हैं कि दंगों के जख्म काफी हद तक भर गए हैं. उदाहरण के लिए इलाके के बाज़ारों में हिंदुओं की दुकानों में काम करने वाले मुस्लिम कर्मचारियों को ढूंढना मुश्किल नहीं है. फिर भी, एक खालीपन है जिसे किसी भी पार्टी ने भरने की कोशिश नहीं की है — और इससे भी बदतर, कुछ ने इसका फायदा उठाने की कोशिश की है.

बाबरपुर में कब्रिस्तान में चल रहे जीर्णोद्धार कार्य का इस्तेमाल सत्तारूढ़ AAP के खिलाफ करने की कोशिश की जा रही है. भाजपा के एक पदाधिकारी ने कहा, “सड़कें टूटी हुई हैं, ड्रेनेज सिस्टम जाम है. कब्रिस्तान की चारदीवारी को वाटरप्रूफ टाइलों से प्लास्टर करने या उन्हें अभी रंगने की क्या ज़रूरत थी? यह AAP की सच्चाई है.” उन्होंने कहा कि पार्टी “ऐसी चालों को उजागर करने” के लिए सोशल मीडिया और व्हाट्सएप का “प्रभावी उपयोग” कर रही है.

भाजपा मुस्तफाबाद में भी इसी तरह के कारकों का फायदा उठाने की उम्मीद कर रही है, जो उत्तर-पूर्वी जिले में ही स्थित है. बाबरपुर की तरह, जहां 2013 में भाजपा ने कांग्रेस और AAP के बीच भाजपा विरोधी वोटों के विभाजन के कारण जीत हासिल की थी और 2008 में कांग्रेस और बसपा के बीच, भाजपा ने 2015 में मुस्तफाबाद में भी जीत हासिल की क्योंकि कांग्रेस और AAP दोनों ने भाजपा विरोधी वोटों को विभाजित किया था.

सड़क किनारे मोजे और अंडरगारमेंट बेचने वाली दुकान चलाने वाले सुनील कुमार का दावा है कि “बाहरी लोग” इस क्षेत्र में घुसपैठ कर रहे हैं क्योंकि AAP सरकार के तहत, कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों और किरायेदारों को अब “पहले की तरह” वेरिफिकेशन की प्रक्रिया से नहीं गुज़रना पड़ता. उनका डर भाजपा के इस दावे को दोहराता है कि AAP ने चुनावी लाभ के लिए ‘रोहिंग्या मुसलमानों’ को बसाने में मदद की है और सुझाव दिया है कि इस नैरेटिव को ग्राउंड पर कुछ गति मिली है.

जो भी हो, मुस्लिम बहुल सीटों पर AAP के लिए जो चीज़ काम कर रही है, वह है केजरीवाल को समुदाय की महिलाओं का समर्थन. जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के पास रहने वाली शकीला ने कहा, “आधी आबादी का समर्थन तो AAP को मिल ही रहा है यहां.”

ओखला में सेवानिवृत्त शिक्षक नूरुल हसन का कहना है कि लगभग हर घर की महिलाओं ने AAP की 2,100 रुपये मासिक वित्तीय सहायता की चुनावी गारंटी के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है. उन्होंने कहा, “ओखला में करीब 50,000 महिला मतदाता पहले ही इस योजना के लिए रजिस्ट्रेशन करा चुकी हैं और रजिस्ट्रेशन कैंपेन वोटर आईडी का इस्तेमाल करके चलाया गया. यह साफ है कि पहला वोट डाले जाने से पहले ही AAP को करीब 50,000 वोटों की बढ़त मिल गई है.”

कांग्रेस की परेशानियों में इजाफा करते हुए उसके स्टार प्रचारक और सबसे लोकप्रिय चेहरे राहुल गांधी ने अब तक दिल्ली में सिर्फ एक चुनावी रैली को संबोधित किया है. पिछले तीन दिनों में, उन्होंने खराब स्वास्थ्य के कारण दो पूर्व-निर्धारित रैलियों को छोड़ दिया, दोनों मुस्लिम इलाकों में थीं, जिससे पार्टी कार्यकर्ता और समर्थक हतोत्साहित हो गए.

दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर तनवीर ऐजाज़ ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी से बढ़ती नाराज़गी के बावजूद मुस्लिमों के चुनाव में AAP का समर्थन करने की संभावना है, लेकिन समुदाय अभी भी केजरीवाल की पार्टी को भाजपा को हराने में अधिक सक्षम मानता है.

ऐजाज़ ने कहा, “अधिकांश स्थानों पर मुस्लिम भाजपा को हराने के लिए रणनीतिक रूप से मतदान करते हैं और दिल्ली में भी स्थिति अलग होने की संभावना नहीं है. हां, दंगों और सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान AAP के रुख को लेकर लोगों में निराशा है. इसके अलावा, क्षेत्र में कई मुस्लिम नागरिक अधिकार समूह कांग्रेस के लिए प्रचार कर रहे हैं, जिससे कई मुस्लिम असमंजस की स्थिति में हैं, लेकिन धीरे-धीरे उनके AAP के साथ जाने की संभावना है.”

उन्होंने कहा, “कांग्रेस का अभियान, जो पूरी तरह से केजरीवाल के खिलाफ है, उसके लिए मददगार नहीं है. साथ ही, अगर राहुल गांधी अस्वस्थ हैं, तो मल्लिकार्जुन खरगे या प्रियंका गांधी वाड्रा प्रचार क्यों नहीं कर रहे हैं? कांग्रेस का अभियान बहुत कुछ कमी छोड़ता है.”

इस बीच, कांग्रेस अकेली ऐसी पार्टी नहीं है जो मुस्लिम समर्थन हासिल करने के मौके को महसूस कर रही है क्योंकि AAP जानबूझकर अल्पसंख्यक समर्थक होने का लेबल लगने से बचने की कोशिश कर रही है — या तो अल्पसंख्यक अधिकारों के मुद्दों को नज़रअंदाज़ करके या अपनी हिंदू समर्थक साख पर जोर देकर, जैसे कि यह घोषणा करना कि अगर पार्टी दिल्ली में सत्ता में लौटती है तो हिंदू पुजारियों और सिख ग्रंथियों को 18,000 रुपये का मासिक भत्ता मिलेगा.

उदाहरण के लिए असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने दो उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है — मुस्तफाबाद से ताहिर हुसैन और ओखला से शिफा-उर-रहमान. हुसैन, जो AAP के पूर्व पार्षद हैं और रहमान, जो जामिया मिलिया इस्लामिया के पूर्व छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष हैं, दोनों फरवरी 2020 के दंगों के सिलसिले में जेल में हैं.

कांग्रेस ने दिल्ली दंगों की एक अन्य आरोपी — वकील और पार्टी की पूर्व निगम पार्षद इशरत जहां को ओखला से मैदान में उतारने पर भी विचार किया था. हालांकि, इसने वर्तमान स्थानीय पार्षद अरीबा खान को चुनाव लड़ने के लिए चुना, जो पूर्व कांग्रेस विधायक आसिफ मोहम्मद खान की बेटी हैं.

जबकि इन उम्मीदवारों का चुनावी चर्चा में उल्लेख किया जाता है, और उनके “समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष” के कारण सम्मान के साथ बात की जाती है, मतदाताओं का तर्क है कि नैतिक या वैचारिक के बजाय “व्यावहारिक विचार”, 5 फरवरी को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) बटन दबाने पर उनकी पसंद को सूचित करेंगे.

जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के पास सिगरेट की दुकान चलाने वाले इकबाल ने कहा, “क्या कांग्रेस या एआईएमआईएम सरकार बनाएगी? नहीं…भाजपा को दूर रखने के लिए हमारा सबसे अच्छा दांव AAP है. लोकसभा चुनावों में, हमने कांग्रेस को सपोर्ट किया था. इस बार यह झाड़ू को मिलेगा.”

इस कड़े मुकाबले वाले चुनाव में AAP के पीछे संभावित मुस्लिम एकजुटता का महत्व, जहां दोनों दलों के बीच अंतर बहुत कम हो सकता है, भाजपा के लिए खोया नहीं है.

इस पर एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने चुटकी लेते हुए कहा, “वो कहता है दिल में कांग्रेस, दिमाग में AAP. असल में दिल में है कांग्रेस, दिमाग में भाजपा.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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