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Monday, 10 November, 2025
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दादरा, दमन चुनाव: कांग्रेस ने लगाए ‘इलेक्शन चोरी’ की आरोप, EC से टकराव में अगला कदम तय कर रही पार्टी

कांग्रेस भाजपा पर चुनावों को ‘हाईजैक’ करने का आरोप लगाने और यह आरोप लगाने के बाद कि 80% कांग्रेस उम्मीदवारों और निर्दलीय उम्मीदवारों के नामांकन जांच के चरण में खारिज कर दिए गए, अदालत जाने पर विचार कर रही है.

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नई दिल्ली: दादरा और नगर हवेली व दमन और दीव (केंद्रीय शासित प्रदेश) में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की बड़ी जीत के बीच कांग्रेस अपने आगे के कदमों पर विचार कर रही है. पार्टी ने आरोप लगाया है कि बीजेपी ने चुनाव को “हाइजैक” कर लिया, क्योंकि जांच के दौरान कांग्रेस के लगभग 80 प्रतिशत उम्मीदवारों के नामांकन, साथ ही कई निर्दलीय उम्मीदवारों के नामांकन, खारिज कर दिए गए.

कांग्रेस उम्मीदवार इन दो केंद्रीय शासित प्रदेशों के चुनाव आयोग या बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनाव याचिका दायर कर सकते हैं. ऐसी याचिका किसी चुनाव की वैधता को चुनौती देती है और जिस राज्य में चुनाव हुआ हो, उस राज्य की हाई कोर्ट में दायर की जा सकती है.

“हमें शायद पहले चुनाव आयोग के पास जाना पड़े, क्योंकि पिछली बार हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा था कि क्या उन्होंने ऐसा किया है. हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि वे पूरा चुनाव प्रक्रिया खत्म होने के बाद याचिका दायर करेंगे,” एआईसीसी सचिव और गोवा, दमन और दीव तथा दादरा और नगर हवेली की सह-प्रभारी डॉ. अंजलि निंबालकर ने दिप्रिंट से कहा.

उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि हम दोनों जगह एक साथ जाने की कोशिश कर सकते हैं.”

बीजेपी ने स्थानीय चुनावों में दमण जिला पंचायत की 16 में से 15 सीटें, दमण नगर परिषद की 15 में से 14 सीटें और 16 में से 15 सरपंच पद जीते. दीव में बीजेपी ने जिला पंचायत की सभी 8 सीटें जीतीं. दादरा और नगर हवेली में जिला पंचायत की 26 में से 24 सीटें और नगर परिषद की सभी 15 सीटें जीतीं. पार्टी 122 में से 91 सीटों पर निर्विरोध विजयी रही.

बीजेपी ने अपनी “भारी जीत” का श्रेय “सुशासन” को दिया है. हालांकि, कांग्रेस ने दावा किया है कि चुनाव “जांच प्रक्रिया के दौरान ही हाइजैक” कर लिया गया.

निंबालकर ने कहा, “राहुलजी ‘वोट चोरी’ की बात कर रहे हैं. उन्होंने अब स्थानीय निकाय चुनावों से ही ‘इलेक्शन चोरी’ शुरू कर दी है. दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव में पूरा चुनाव प्रक्रिया गड़बड़ और हाइजैक की गई.”

दादरा और नगर हवेली व दमन और दीव ने ग्राम पंचायत और जिला पंचायत चुनावों की घोषणा 10 अक्टूबर को की थी. नामांकन की लास्ट डेट 17 अक्टूबर थी और नामांकन की जांच 18 अक्टूबर को हुई. मतदान 5 नवंबर को हुआ.

चार निर्दलीय उम्मीदवारों के नामांकन खारिज होने को चुनौती देते हुए 27 अक्टूबर को बॉम्बे हाई कोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गईं. याचिकाओं में मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था. ये याचिकाएं रिटर्निंग ऑफिसर, केंद्रीय शासित प्रदेशों के चुनाव आयोग, यूटी प्रशासन और चुनाव आयोग (भारत) के खिलाफ दायर की गईं.

मतदान से एक दिन पहले, 5 नवंबर को, हाई कोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने याचिकाएं निपटाते हुए कहा कि प्रतिवादियों—रिटर्निंग ऑफिसर और यूटी प्रशासन—ने यह आश्वासन दिया है कि नामांकन खारिज करने के लिखित आदेश 15 दिनों के भीतर याचिकाकर्ताओं को दिए जाएंगे.

प्रतिवादियों ने यह भी दावा किया कि लिखित आदेश याचिकाकर्ताओं को देने की कोशिश की गई थी, लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किया. इसके जवाब में, याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कहा कि वे चुनाव याचिका दायर कर सकते हैं.

‘कुप्रबंधन और अफरातफरी’

एक याचिका वैशालीबेन पटेल और धर्मेशभाई सुरेशभाई गिम्भाल ने दायर की थी, जबकि दूसरी अस्मिताबेन संदीप बोबा और सन्वाजी जन्या गरेल ने. ये सभी दादरा और नगर हवेली में ग्राम पंचायत वार्ड की सरपंच चुनाव की उम्मीदवार थीं.

उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें “मनमाने तरीके से अपने ग्राम पंचायत का प्रतिनिधित्व करने और सरपंच बनने का अवसर नहीं दिया गया.”

दिप्रिंट ने देखी याचिकाओं में कहा गया है कि 11 और 12 अक्टूबर को यूटी चुनाव आयोग का कार्यालय बंद था, जिसके चलते आवश्यक दस्तावेजों और औपचारिकताओं से संबंधित कोई जानकारी नहीं मिल सकी. 14 अक्टूबर को आयोग ने नए दस्तावेजों की सूची जारी की, जिन्हें नामांकन पत्रों के साथ जमा करना अनिवार्य था.

याचिकाओं का कहना है कि आयोग की इस “देरी” और आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराने में विफलता की वजह से नामांकन दायर करने की वास्तविक अवधि घटकर सिर्फ 15 से 17 अक्टूबर की तीन तारीखों तक रह गई.

उन्होंने कहा, “प्रतिवादियों ने नामांकन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित, समान और सभ्य तरीके से आयोजित करने के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं की. उचित योजना के अभाव में नामांकन पत्र जमा करते समय पूरा माहौल कुप्रबंधन और अफरातफरी से भर गया.”

याचिकाओं में कहा गया है कि सभी दस्तावेज जमा करने के बावजूद नामांकन बिना किसी त्रुटि सुधार के अवसर दिए खारिज कर दिए गए. अंतिम सूची में नाम न देखकर ही उन्हें पता चला कि उनका नामांकन खारिज कर दिया गया है.

इसके बाद उन्होंने 25 अक्टूबर को रिटर्निंग ऑफिसर को आवेदन देकर नामांकन खारिज करने के आदेश की प्रमाणित प्रति मांगी.

‘बहुत संदिग्ध’

याचिकाओं में दर्ज बिंदुओं के अलावा, निंबालकर के अनुसार कांग्रेस उम्मीदवारों के नामांकन की जांच में और भी गड़बड़ियां हुईं.

उन्होंने कहा, “जब जांच का दिन आया, तो उम्मीदवारों को पहले उसी जगह बुलाया गया जहां उन्होंने नामांकन भरा था. कुछ घंटों बाद उन्हें बताया गया कि जांच कलेक्ट्रेट में हो रही है. कोई चुनाव इस तरह अव्यवस्थित तरीके से नहीं होता.”

कलेक्ट्रेट पहुंचने तक उम्मीदवारों को बताया गया कि समय समाप्त हो गया है और उनके फॉर्म खारिज कर दिए गए हैं.

निंबालकर ने कहा, “कुछ फॉर्म पर हस्ताक्षर नहीं होने का आरोप लगाया गया. यह बहुत संदिग्ध है. कोई भी अधिकारी बिना साइन के फॉर्म कैसे स्वीकार कर सकता है? इसलिए नगरपालिका चुनाव में हमारी 15 में से 14 फॉर्म खारिज कर दिए गए.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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