नई दिल्ली: पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार का बनने तय हो गया है. यहां आप के सीएम उम्मीदवार भगवंत मान ने कहा है कि अब सबको पंजाब के पौने तीन करोड़ पंजाबियों की इज़्ज़त करनी पड़ेगी.
इसी के साथ कांग्रेस को पंजाब में बड़ा झटका लगा है. पांजाब इकाई के पार्टी अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू अमृतसर पूर्व सीट से चुनाव हार गए हैं.
उधर, राज्य के प्रवक्ता गुरिंदर सिंह ने राहुल गांधी, सोनिया गांधी और पंजाब के पार्टी प्रभारी हरीश चौधरी सहित पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से आग्रह किया है कि वो पार्टी के भीतर कुछ अनुशासन लाएं.
बता दें कि पिछले कई महीनों से कांग्रेस के भीतर विवाद चल रहा है जिसका सीधा असर राज्य में कांग्रेस के प्रदर्शन पर पड़ा है. राज्य में पहले तो नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच चली तकरार ने पार्टी में फूट डालने के काम किया. जिसके कारण पार्टी के आलाकमान ने सीएम पद से कैप्टन को हटा दिया. इसके बाद उन्होंन पार्टी का दामन छोड़ अपनी नई पार्टी का गठन कर इस चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन किया. पार्टी से एक कद्दावर नेता के छोड़ देने से कांग्रेस को अपने गढ़ पंजाब में खासा नुकसान देखने को मिला है.
अमरिंदर के बाद सिद्धू और चन्नी में विवाद शुरू हुआ. दरअसल सिद्धू चन्नी सरकार में इकबाल प्रीत सिंह सहोता को पंजाब पुलिस के महानिदेशक का अतिरिक्त प्रभार दिए जाने से खासे नाराज थे उनका कहना था कि वो फरीदकोट में गुरु ग्रन्थ साहिब की बेअदबी मामले में उन्होंने बेकसूर लोगों को फंसाया था और कैप्टन अमरिंदर के परिवार वालों को बचा लिया था. बता दें कि तत्कालीन अकाली सरकार ने बेअदबी मामले में 2015 में एक जांच कमिटी बनाई थी जिसके प्रीत सिंह सहोता अध्यक्ष थे. इसी मामले को लेकर अमरिंदर और सिद्धू के बीच खींचतान चल रही थी.
इस पूरे विवाद का असर यह हुआ कि कांग्रेस को साल 1997 के बाद से सबसे खराब प्रदर्शन का सामना करना पड़ेगा.
अगर पंजाब में कांग्रेस को 20 सीटें भी मिल जाती हैं तो खबरों के मुताबिक यह उसका 1977 के बाद से सबसे खराब प्रदर्शन होगा. गौरतलब है कि आपातकाल के बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 17 सीटें जीती थी. राज्य में 2017 में 10 साल के बाद कांग्रेस की वापसी हुई और उसने 77 सीटें के साथ अपनी सरकार बनाई थी.
1985 में जब राज्य में विधानसभा चुनाव में उसे 32 सीटें मिली थीं. 1997 में महज 14 सीटें जीती थीं.
1977 में आपातकाल की वजह से कांग्रेस की छवि को काफी नुकसान पहुंचा था. जिसके कारण लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था. उस समय कांग्रेस को
पंजाब में उसे 117 सीटों में से सिर्फ 17 सीटें मिली थीं. इस दौरान अकाली दल ने अपनी पैठ जमाई और उसने अपनी पहुंच 24 सीटों से बढ़ाकर 58 तक बना ली.
पंजाब में 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने 63 सीटें हासिल करके दरबारा सिंह की सरकार बनाई थी. इसके बाद सिख दंगों से कांग्रेस को भारी नुकसान झेलना पड़ा और 1985 के विधानसभा चुनाव में उसे सिर्फ 31 सीटें मिलीं.
1992 में कांग्रेस को 87 सीटें जीतीं और पूर्ण बहुमत से सरकार बनाईं. पंजाब में आतंकवाद के खिलाफ सरकार की महीम पर कई सवाल खड़े होने लगे और विरोध किया गया. अगले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को महज 14 सीटें ही मिलीं और उसे हार का सामना करना पड़ा.
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