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रविवार, 11 मई, 2025
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कांग्रेस ने सीज़फायर में USA की भूमिका पर उठाए सवाल, 1971 के युद्ध में इंदिरा की भूमिका को किया याद

कांग्रेस के कई नेताओं ने प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में 1971 के युद्ध की तुलना की, जिसमें भारत ने पाकिस्तान पर निर्णायक जीत हासिल की थी.

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नई दिल्ली: कांग्रेस ने शनिवार को अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा की गई इस घोषणा को “अभूतपूर्व” करार दिया कि भारत और पाकिस्तान अमेरिका की मध्यस्थता वाली वार्ता के बाद “पूर्ण और तत्काल” संघर्षविराम पर सहमत हो गए हैं.

कांग्रेस के कुछ नेताओं ने केंद्र पर अमेरिकी दबाव के आगे झुकने का आरोप लगाया.

कांग्रेस के कई नेताओं ने वाशिंगटन की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में 1971 के युद्ध की तुलना की, जिसमें भारत ने पाकिस्तान पर निर्णायक जीत हासिल की थी. उन्होंने कहा कि वह कभी भी अमेरिका को दोनों पड़ोसियों के बीच विवाद में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं देतीं.

कांग्रेस ने पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले के बाद की घटनाओं पर चर्चा के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है.

कांग्रेस महासचिव और संचार प्रभारी जयराम रमेश ने एक्स पर लिखा, “वाशिंगटन डीसी से अभूतपूर्व घोषणाओं के मद्देनज़र, अब पहले से कहीं अधिक ज़रूरत है कि प्रधानमंत्री सर्वदलीय बैठक की अध्यक्षता करें और राजनीतिक दलों को विश्वास में लें तथा संसद का विशेष सत्र बुलाकर पिछले 18 दिनों की घटनाओं पर चर्चा करें, जिसमें पहलगाम में हुए क्रूर आतंकवादी हमलों और आगे की रणनीति से लेकर सामूहिक संकल्प का प्रदर्शन शामिल है.”

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भी रमेश की बात दोहराते हुए कहा कि संसद का विशेष सत्र ज़रूरी है क्योंकि देश को यह जानने का हक है कि उसने क्या हासिल किया और “क्या खोया”.

खेड़ा ने संवाददाताओं से कहा, “यह अभूतपूर्व है कि हमें अमेरिकी राष्ट्रपति से यह पता चला…इसलिए, भारत जो सवाल पूछना चाहता है, उसका जवाब संसद के विशेष सत्र के ज़रिए ही दिया जा सकता है. इसलिए, कांग्रेस संसद का विशेष सत्र और सर्वदलीय बैठक की मांग करती है…पहलगाम के पीड़ित भी जानना चाहेंगे कि उन्हें न्याय मिला है या नहीं.”

कांग्रेस के आधिकारिक एक्स हैंडल ने इंदिरा गांधी की एक तस्वीर पोस्ट की, जिसका शीर्षक था: “इंदिरा गांधी. साहस | दृढ़ विश्वास | ताकत”.

पार्टी नेता सुप्रिया श्रीनेत ने लिखा: “इंदिरा गांधी जैसा बनना आसान नहीं”.

एक्स पर एक पोस्ट में, कांग्रेस के लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने बताया कि अमेरिका भारत और पाकिस्तान के बीच शत्रुता समाप्त करने के लिए समझौता कराने में अपनी भूमिका के बारे में कोई संकोच नहीं कर रहा है.

तिवारी ने लिखा, “वह (अमेरिका) इसे हवा दे रहा है. यह भी दिलचस्प है कि नीचे दिए गए बयान में संघर्ष विराम को व्यापक मुद्दों पर एक तटस्थ स्थान पर बातचीत के साथ जोड़ दिया गया है. इसे आप जो भी नाम देना चाहें, यह तीसरे पक्ष की मध्यस्थता है.”

पूर्व युवा कांग्रेस अध्यक्ष श्रीनिवास बी.वी. ने लिखा कि जो नेता “अमेरिकी दबाव के आगे झुक रहे हैं” उन्हें इंदिरा गांधी के साहस को याद रखना चाहिए.

श्रीनिवास ने लिखा, “अमेरिका ने इंदिरा गांधी पर भी दबाव बनाया था; धमकियां दी गईं और चेतावनी दी गई कि अगर भारत ने कोई कदम आगे बढ़ाया तो उसे इसके परिणाम भुगतने होंगे, लेकिन इंदिरा गांधी न रुकीं, न झुकीं और न ही डरीं. उन्होंने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि भारत की सीमाओं और सम्मान की रक्षा किसी भी अंतर्राष्ट्रीय दबाव से ऊपर है. नतीजा — 1971 में इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को दो टुकड़ों में विभाजित कर दिया और बांग्लादेश बना दिया.”

वामपंथी दलों ने भी दोनों पड़ोसियों के बीच मध्यस्थता में अमेरिका की भूमिका पर सवाल उठाए हैं.

सीपीआईएमएल के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने एक बयान में कहा,“इसलिए मोदी के नेतृत्व में भारत को अब युद्ध विराम पर सहमत होने के लिए ‘अमेरिकी मध्यस्थता की एक लंबी रात’ की ज़रूरत है, क्योंकि देश में तीन दिनों से पूर्ण पैमाने पर भारत-पाकिस्तान सैन्य संघर्ष के परिणामों के बारे में चिंता बढ़ रही है. युद्ध विराम की खबर भारत और पाकिस्तान द्वारा पुष्टि किए जाने से पहले ट्रम्प और उनके अधिकारियों द्वारा दी गई थी. काश दोनों शासन अपने लोगों की बात सुनते और अमेरिकी हस्तक्षेप के लिए कोई जगह नहीं छोड़ते.”

उन्होंने कहा, “युद्ध विराम को पूर्ण तनाव कम करने की दिशा में पहला कदम माना जाना चाहिए. भारत और पाकिस्तान दोनों को पहलगाम आतंकी हमले के मद्देनज़र की गई घोषणाओं को वापस लेना चाहिए और दोनों पड़ोसियों के बीच पूर्ण राजनयिक संबंध बहाल करने चाहिए. पहलगाम आतंकी हमले के अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए और क्षेत्र में स्थायी शांति सुनिश्चित करने और मित्रता और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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