गुरुग्राम: हरियाणा विधानसभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) की नियुक्ति करने में कांग्रेस पार्टी की विफलता ने नायब सिंह सैनी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार को एक असामान्य मुश्किल में डाल दिया है. यह प्रमुख वैधानिक पदों पर नियुक्तियां करने में असमर्थ है.
एलओपी की अनुपस्थिति ने महत्वपूर्ण नियुक्तियों को रोक दिया है, विशेष रूप से हरियाणा राज्य सूचना आयोग में, जिसके पास दिसंबर 2024 तक सूचना के अधिकार (आरटीआई) अनुरोधों से संबंधित 7,000 से अधिक मामलों का बैकलॉग है.
मुख्य सूचना आयुक्त के अलावा हरियाणा राज्य सूचना आयोग में अधिकतम 10 राज्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की जा सकती है.
मुख्यमंत्री, विपक्ष के नेता और एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री वाली समिति की सिफारिश पर राज्यपाल द्वारा नियुक्तियां की जाती हैं.
ऐसा माना जा रहा है कि सरकार महाधिवक्ता से कानूनी सलाह ले रही है कि क्या वह राज्यपाल को सिफारिशें करने वाले पैनल में विपक्ष के नेता को शामिल करने की वैधानिक आवश्यकता को दरकिनार कर सकती है.
दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए हरियाणा सरकार से संपर्क किया, लेकिन रिपोर्ट के छपने तक कोई जवाब नहीं मिला पाया है. जवाब आने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
पानीपत के आरटीआई कार्यकर्ता पी.पी. कपूर, जिन्होंने आरटीआई दायर की थी, जिसके कारण हरियाणा राज्य सूचना आयोग के पास लंबित मामलों के बारे में खुलासा हुआ, उन्होंने बुधवार को दिप्रिंट को बताया कि इस साल की शुरुआत से स्थिति और खराब हो गई है क्योंकि आयोग में केवल तीन सूचना आयुक्त हैं.
कपूर को 11 फरवरी को उनकी आरटीआई क्वेरी का जवाब मिला है.
वर्तमान में आयोग में तीन सूचना आयुक्त हैं, जिनके नाम जगबीर सिंह, प्रदीप कुमार शेखावत और कुलबीर छिकारा हैं.
हरियाणा सरकार ने 4 मार्च को एक मुख्य सूचना आयुक्त और सात राज्य सूचना आयुक्तों के पद के लिए विज्ञापन निकाला था. इसमें सेवानिवृत्त आईएएस, आईपीएस और एचसीएस अधिकारियों के साथ-साथ सेवारत अधिकारियों सहित 345 आवेदन प्राप्त हुए.
मुख्य सचिव अनुराग रस्तोगी की अध्यक्षता वाली और अतिरिक्त मुख्य सचिव सुधीर राजपाल और डॉ. सुमिता मिश्रा की खोज समिति ने प्रारंभिक स्क्रीनिंग पूरी कर ली है और हर पद के लिए तीन उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट करने की तैयारी कर रही है.
हालांकि, अंतिम चयन सीएम, एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री और विपक्ष के नेता वाली समिति द्वारा किया जाना है, जैसा कि आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 15(3) के तहत अनिवार्य है.
सरकार के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, “नेता विपक्ष की अनुपस्थिति के कारण रुकी हुई नियुक्तियों को आगे बढ़ाने के तरीके खोजने के लिए सरकार महाधिवक्ता से कानूनी सलाह ले रही है.”
उन्होंने आगे कहा कि सरकार झारखंड के एक ऐसे ही मामले में जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर न्यायिक उपायों पर भी विचार कर रही है.
उस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य विधानसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भाजपा को दो हफ्ते के भीतर विपक्ष का नेता नियुक्त करने का निर्देश दिया था, जिसके कारण मार्च में बाबूलाल मरांडी की इस पद पर नियुक्ति हुई थी.
जहां तक हरियाणा कांग्रेस का सवाल है, तो उसका रुकावट का फैसला अंदरूनी कलह की वजह से आया है क्योंकि पार्टी हाईकमान विधानसभा चुनाव के नतीजों की घोषणा के छह महीने बाद भी संगठनात्मक पुनर्गठन पर ध्यान केंद्रित कर रहा है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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