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Thursday, 21 November, 2024
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कांग्रेस के गढ़ रायबरेली में जिस नेता की थी गांधी परिवार से ज्यादा हनक, कैंसर से हुई मौत

अखिलेश सिंह की छवि एक बाहुबली की रही थी, उन पर कई मामले भी दर्ज थे. इसके बाद भी लोग उन्हें पसंद करते थे और हर बार वे आसानी से चुनाव जीत जाते थे.

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रायबरेली : यूं तो सियासत में रायबरेली की पहचान गांधी परिवार के गढ़ के तौर पर है लेकिन रायबरेली में ही पूर्व विधायक अखिलेश सिंह की हनक गांधी परिवार से ज्यादा मानी जाती रही. कैंसर की बीमारी से जूझ रहे अखिलेश ने मंगलवार को आखिरी सांस ली. पांच बार के विधायक रहे अखिलेश के निधन से रायबरेली में शोक का माहौल है.

अखिलेश की पुत्री और मौजूदा कांग्रेस विधायक अदिति सिंह को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का करीबी माना जाता है. बीते लोकसभा चुनाव में रायबरेली में सोनिया गांधी की जीत की अहम वजह अदिति सिंह की बढ़ती पकड़ भी मानी जाती है. 2017 के चुनाव में अपनी गिरती सेहत और सियासी विरासत को संजोए रखने के लिए अखिलेश ने अपनी बेटी को कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ाकर विधानसभा भेजा.

काफी समय से थे बीमार

पिछले लंबे वक्त से अखिलेश बीमार चल रहे थे और यही कारण था कि उन्होंने अपनी बेटी को राजनीति के मैदान में उतारा था. अखिलेश सिंह की छवि एक बाहुबली की रही थी, उन पर कई मामले भी दर्ज थे. इसके बाद भी लोग उन्हें पसंद करते थे और हर बार वे आसानी से चुनाव जीत जाते थे. हालांकि पिछले 10 सालों से उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती थी और उनकी जीत का मार्जिन कम होता जा रहा था.


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रायबरेली में हमेशा रही हनक

रायबरेली वैसे तो कांग्रेस और सोनिया गांधी के कारण जाना जाता है लेकिन जब बात रायबरेली सदर की हो तो यहां केवल और केवल अखिलेश सिंह का ही सिक्का चलता रहा है. रायबरेली लखनऊ से सटा है और वीआईपी इलाका है. 1951 में फिरोज़ गांधी यहां से चुनाव जीते थे, 1967 में इंदिरा. बीच में थोड़ा उठापटक जरूर हुई लेकिन 2004 से अभी तक सोनिया गांधी यहां से सांसद हैं.

अखिलेश सिंह 1993 से 2012 तक लगातार पांच बार इस सीट से विधायक चुने गये. सिंह शुरुआत में तीन बार कांग्रेस के टिकट से विधानसभा पहुंचे. उसके बाद वह वर्ष 2007 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जबकि 2012 का विधानसभा चुनाव पीस पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जीते.

1988 के मशहूर सैयद मोदी हत्याकांड में भी उनका नाम आया था. हत्याकांड में अखिलेश सिंह के अलावा अमेठी राजघराने के संजय सिंह और सैयद मोदी की पत्नी अमिता मोदी पर भी मुकदमा दर्ज हुआ था. साल 1990 में संजय सिंह और अमिता को बरी कर दिया गया और 1996 में अखिलेश सिंह भी बरी हो गए.


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गांधी परिवार भी मान गया लोहा

अखिलेश सिंह ने चाहे पीस पार्टी ज्वाइन की हो या फिर निर्दलीय चुनाव लड़ा हो, वो जीतते रहे. वो पहले कांग्रेस में ही थे लेकिन उनकी छवि पर लगातार सवाल उठ रहे थे और फिर एक दिन कांग्रेस ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया था. बावजूद उनकी पकड़ कम नहीं हुई. ‘विधायक जी’ नाम से मशहूर अखिलेश की कमजोर तबके के बीच मजबूत पकड़ मानी जाती रही. अदिति के विधायक बनने के बाद हाल ही में प्रियंका गांधी ने भी दो बार अखिलेश सिंह से मुलाकात कर कांग्रेस का समर्थन करने की अपील की थी.

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