नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में इस चुनावी साल में कांग्रेस के पास भारतीय जनता पार्टी-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मुकाबले के लिए एक नई रणनीति है—यह है पुजारी प्रकोष्ठ.
कांग्रेस नेताओं ने दिप्रिंट से कहा कि पिछले साल जुलाई-अगस्त में गठित पुजारी प्रकोष्ठ पार्टी को भाजपा के इन आरोपों का जवाब देने में मदद करेगी कि पार्टी धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति तुष्टीकरण की राजनीति में लिप्त है.
इस प्रकोष्ठ को रविवार को सम्पन्न मध्यप्रदेश कांग्रेस के एक धार्मिक सम्मेलन ‘धर्म संवाद’ में खासी तवज्जो दी गई.
सम्मेलन के आयोजकों के मुताबिक, भोपाल में राज्य कांग्रेस मुख्यालय में आयोजित इस कार्यक्रम में विभिन्न मंदिरों और मठों के 1,600 से अधिक पुजारी शामिल हुए.
मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एमपीसीसी) के मीडिया प्रमुख के.के. मिश्रा ने दिप्रिंट से बातचीत में बताया कि इस तरह के सम्मेलन आयोजित करने के पीछे दो उद्देश्य थे.
मिश्रा ने कहा, ‘पहली बात तो हम भाजपा को बताना चाहते थे कि धर्म हमारे विश्वास की आधारशिला भी है. दूसरा ये कहते रहते हैं कि हम तुष्टीकरण की राजनीति कर रहे हैं. यह सच नहीं है. हम अपने धार्मिक विश्वासों के प्रति उतने ही प्रतिबद्ध हैं.’ साथ ही जोड़ा कि राज्य में सभी संभावित प्रत्याशियों से अपने क्षेत्र में इस तरह के आयोजन करने को कहा गया है.
मध्य प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष और उसके सभी प्रकोष्ठों के प्रभारी नेता जे.पी. धनोपिया ने इस बात से इनकार किया कि धर्म संवाद ‘वोट बैंक बढ़ाने का एक प्रयास’ था, इसके बजाये, उन्होंने दावा किया कि पार्टी केवल पुजारियों की शिकायतों को दूर करने की कोशिश कर रही है.
धनोपिया ने कहा, ‘पुजारी और मंदिर संगठन भाजपा से असंतुष्ट हैं. उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया गया है, उनके पास अपनी खुद की कोई संपत्ति नहीं है, उन्हें तो बमुश्किल अपनी जीविका चलाने लायक ही छोड़ा गया है.’
उन्होंने कहा, ‘भाजपा केवल वोट पाने के लिए यह दिखाना चाहती है कि वे धार्मिक हैं और धर्म की बात करते हैं. लेकिन पुजारियों की शिकायतें हमें दिखाती हैं कि वह धर्म या धार्मिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए कुछ नहीं कर रही.’
यह घटनाक्रम ऐसे समय सामने आया है जब कुछ महीनों बाद ही राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं.
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‘हिंदू वोट पाने की कोशिश’
मध्य प्रदेश कांग्रेस पुजारी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष और उज्जैन के एक मंदिर के पुजारी शिव नारायण शर्मा के मुताबिक, इस प्रकोष्ठ का गठन पिछले साल जुलाई-अगस्त में किया गया था और इसमें पुजारी शामिल हैं, जो मौजूदा समय में उनकी तरह मंदिरों में सेवा करते हैं.
शर्मा ने दिप्रंट को बताया फिलहाल केवल एक राज्य स्तरीय प्रकोष्ठ है, पार्टी अभी भी विभिन्न जिलों के लिए प्रमुखों की नियुक्ति कर रही है.
एमपीसीसी अध्यक्ष और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने रविवार को धर्म संवाद सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि भाजपा ने ‘भगवा’ के एकमात्र प्रतिनिधि होने का ‘ठेका’ नहीं ले लिया है.
कमलनाथ ने कहा, ‘हर बार जब भी कांग्रेस कोई धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करती है या कांग्रेस नेता ऐसे किसी कार्यक्रम में हिस्सा लेते हैं तो भाजपा परेशान हो जाती है.’
कांग्रेस भले ही इस बात से इनकार करे कि यह प्रकोष्ठ हिंदू वोटों को लुभाने का एक प्रयास है लेकिन, मध्य प्रदेश के पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह एक रणनीतिक कदम है, खासकर यह देखते हुए कि स्थानीय पुजारियों का अपने क्षेत्रों में हिंदुओं पर कितना प्रभाव होता है.
कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘उदाहरण के तौर पर, अगर स्थानीय मंदिर में पुजारी कांग्रेस से खुश हैं, तो वह रोजाना मंदिर आने वालों के बीच तक संदेश पहुंचाएंगे. जब भाजपा उनकी मांगों को पूरा नहीं कर रही है, तो यह उन्हें (कांग्रेस के) साथ लाने का एक अच्छा अवसर है.’
कांग्रेस के एक अन्य पदाधिकारी ने भी कहा कि यह आरएसएस से मुकाबले का एक तरीका है.
पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘भाजपा और आरएसएस के घनिष्ठ संबंधों के वजह से धर्म के राजनीतिकरण होने से पुजारी भी नाखुश हैं. इस राजनीतिक रिश्ते की वजह से वे अपनी धार्मिक मांगों को उठाने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं. हम इसे भुनाने की कोशिश कर रहे हैं.’
धनोपिया ने यह भी कहा कि कांग्रेस प्रकोष्ठ में पुजारी सभी जातियों से आते हैं.
उन्होंने कहा, ‘वैष्णव और निचली जातियों के पुजारी से लेकर आदिवासी पुजारी तक हैं. हमारे प्रकोष्ट में वे सभी शामिल हैं.’
पुजारियों से किए वादों से मुकरी भाजपा सरकार
शिव नारायण शर्मा ने बताया कि पिछले अक्टूबर में पुजारी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष बनाए जाने से पहले तक उनका कांग्रेस से कोई सरोकार नहीं था.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि राज्य में शिवराज सिंह चौहान की अगुआई वाली भाजपा सरकार के पुजारियों से किए गए अपने वादे से ‘मुकरने’ के बाद पिछले साल उन्होंने मदद के लिए कमलनाथ से संपर्क साधा था.
उन्होंने दावा किया, ‘(मुख्यमंत्री) शिवराज सिंह चौहान ने उज्जैन के महाकाल में हमसे वादा किया था कि हमें (पुजारियों को) मंदिरों से इनाम के रूप में मिली भूमि का नियंत्रण दिया जाएगा. हमने मुख्यमंत्री के आवास पर तीन बार भोजन किया और वहां भी मदद का आश्वासन दिया गया.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हमारे पास कोई विकल्प न रहने के बाद, हम पिछले साल कमलनाथ जी के पास पहुंचे. तभी उन्होंने कहा कि वह हमारे लिए एक प्रकोष्ठ बनाएंगे और जब वह सीएम बनेंगे, तो हमारी मांगों को पूरा करेंगे.’
उनकी पहली मांग यही है कि मंदिरों का नियंत्रण पुजारियों को वापस दिया जाए. 1974 के बाद से कई मंदिरों का नियंत्रण राज्य कानून के तहत जिलाधिकारियों को सौंप दिया गया है.
दूसरी मांग यह है कि नातेदारी संबंधी नियमों के अनुसार उन्हें उपहार में मिली जमीन का हस्तांतरण किया जाए.
शर्मा ने कहा, ‘हमारे पूर्वज 400 से अधिक वर्षों से कुछ मंदिरों से जुड़े हुए हैं. उस समय हमारे परिवारों को मंदिर चलाने वाले राजाओं की तरफ से जमीन के छोटे टुकड़े दिए गए थे. लेकिन सैकड़ों साल बाद, ये भूमि अब सरकार के नियंत्रण में है और हमें नहीं दी जाती है. इसका मतलब है कि सैकड़ों वर्षों की सेवा के बाद हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है.’
कमलनाथ और ‘हिंदू एजेंडा’ पर जोर
पिछले कुछ महीनों के दौरान कांग्रेस कमलनाथ के नेतृत्व में हिंदू एजेंडे को आगे बढ़ाते नजर आई है.
पूर्व मुख्यमंत्री ने पिछले कुछ सालों में बड़ी सावधानी के साथ अपनी छवि एक हनुमान भक्त के तौर पर बनाई है.
2018 यानी पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले, कमलनाथ ने अपने निर्वाचन क्षेत्र छिंदवाड़ा में 101 फुट ऊंची हनुमान प्रतिमा बनवाई थी. इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में स्थानीय लोगों के हवाले से बताय गया है कि उन्होंने इलाके में कई मंदिर भी बनवाए हैं.
2022 में, उन्होंने अपने जन्मदिन पर भगवान हनुमान के चित्र वाले चार-मंजिले मंदिर के आकार का केक काटा था, जिस पर खासा विवाद भी हो गया था.
इस साल फरवरी में, कमलनाथ ने मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के बागेश्वर धाम में स्वयंभू संत धीरेंद्र शास्त्री से मुलाकात की. शास्त्री खुले तौर पर एक हिंदू राष्ट्र की वकालत करते हैं.
हालांकि, यात्रा के बारे में पूछे जाने पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने सीधे तौर पर कोई जवाब नहीं दिया. उन्होंने तब कहा था, “भारत अपने संविधान के आधार पर चलता है, जिसे बाबासाहेब अंबेडकर ने तैयार किया था.’
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