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Saturday, 27 April, 2024
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अमेठी और रायबरेली की ‘घरेलू’ सीट बचा पाने में नाकाम रही कांग्रेस

गांधी परिवार का गढ़ माने जाने वाली सीटों पर कांग्रेस को 2017 में 10 में से दो सीटें मिली थीं. इस बार उसे शून्य पर संतोष करना पड़ा है. बीजेपी ने पिछली बार छह सीटें पाई थीं. वोटों की गिनती में बीजेपी चार सीटों पर आगे है और सपा छह सीटों पर बढ़त बनाए हुए है.

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दिल्लीः गांधी परिवार का गढ़ माने जाने वाली अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है. दोनों जिलों की कुल 10 विधानसभा सीटों में से उसे शून्य पर संतोष करना पड़ा है. पार्टी का इस बार खाता भी नहीं खुल सका है.

2017 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी को छह सीटें मिली थीं. कांग्रेस-समाजवादी पार्टी (सपा) गठबंधन को चार सीटें प्राप्त हुई थीं. इनमें कांग्रेस ने रायबरेली और हरचंदपुर की सीटें जीती थीं.

इन दोनों सीटों पर कांग्रेस के विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया था. अदिति सिंह रायबरेली से और राकेश सिंह हरचंदपुर से इस बार बीजेपी के उम्मीदवार थे.

रायबरेली के 21 राउंड की गिनती में अदिति सिंह रायबरेली में लगभग 10,000 मतों से आगे चल रही थीं, जबकि राकेश सिंह हरचंदपुर में समाजवादी पार्टी के राहुल राजपूत से लगभग 20,000 मतों से पीछे थे.

अमेठी में दिसंबर 2021 में एक रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने कहा था, यह मेरा घर है. यह उनकी 2019 के लोकसभा के चुनावों के बाद दूसरी यात्रा थी, उस चुनाव में वे बीजेपी की स्मृति ईरानी से चुनाव हार गए थे.

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राहुल की हार का मतलब था कि 20 वर्षों में पहली बार कांग्रेस पार्टी या गांधी परिवार पहली बार इस सीट से लोकसभा में प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा था. राहुल केरल के वायनाड से लोकसभा में गए जो उनका दूसरा चुनाव क्षेत्र था. उनकी मां सोनिया गांधी जो इस समय कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं किसी तरह रायबरेली सीट बचाए रखने में कामयाब रहीं.

अब इन दोनों जिलों से कांग्रेस पूरी तरह से उत्तर प्रदेश विधान सभा में साफ हो चुकी है.

उत्तर प्रदेश में यह कहा जाता था कि भले ही कांग्रेस तीन दशकों से ज्यादा समय तक प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब न रही हो, लेकिन रायबरेली-अमेठी से पार्टी और गांधी परिवार का जुड़ाव हमेशा ही बने रहने वाला है.

दिप्रिंट से बातचीत के दौरान जिले से कांग्रेस के पूर्व नेता जो अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं दूसरी बात कहते हैं. उनके पास अपने दावों को मजबूत करने के लिए आंकड़े हैं.

पिछली बार से तुलना करें तो बीजेपी इस बार चार सीटों पर आगे और दो पर पीछे है. वहीं, सपा छह सीटों पर बढ़त बनाए हुए है.


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कांग्रेस के बागी बीजेपी के लिए जिताऊ उम्मीदवार

रायबरेली सीट से कांग्रेस की विधायक अदिति सिंह नवम्बर 2021 में बीजेपी में शामिल हुई थीं. गांधी परिवार से मतभेद के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी. अबकी बार वे इसी सीट पर बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं.

अदिति सिंह कांग्रेस के पूर्व नेता अखिलेश सिंह की बेटी हैं, जिनका वर्चस्व रायबरेली सदर सीट पर 1993 से लेकर लगभग दो दशकों तक रहा था. हालांकि, एक राजनेता के रूप में अखिलेश सिंह की छवि रायबरेली में एक तरह से स्थानीय रॉबिनहुड के तौर पर रही. उनके रिश्ते पार्टी और गांधी परिवार से नरम-गरम रहते थे. हालांकि, उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर 1993 से लेकर 2002 तक सभी चुनावों में जीत दर्ज की. उसके बाद पार्टी छोड़कर स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में 2007 का चुनाव लड़ा और जीते. 2012 में उन्होंने अपना आखिरी चुनाव पीस पार्टी ऑफ इंडिया से लड़ा था और विजयी हुए थे.

अपने पिता के गिरते स्वास्थ्य के चलते अदिति ने 2017 से मोर्चा संभाला बीजेपी की लहर होने के बावजूद चुनाव जीतने में कामयाब रहीं. उसके बाद से ही वह कांग्रेस के खिलाफ खुले तौर पर बोलती रहीं और यह सिलसिला उनके पार्टी छोड़ने तक जारी रहा. जिससे उनकी आलोचना हुई.

इस चुनाव में उनके खिलाफ कांग्रेस ने मनीष सिंह चौहान को उतारा है. वह पेशे से डॉक्टर हैं और उनकी छवि काफी साफ-सुथरी है. हालांकि, उन्हें एक कमजोर उम्मीदवार माना जा रहा है. पार्टी सूत्रों की मानें तो यह निर्णय सपा उम्मीदवार आर.पी.यादव को देखते हुए लिया गया है.

इस विधानसभा सीट पर ब्राह्मण, कायस्थ, मुस्लिम और दूसरी पिछड़ी जाति के वोटरों का वर्चस्व है. ऐसे में कांग्रेस को लगा था कि इस सीट पर चौहान को उम्मीदवारी देने से पूरी लड़ाई ठाकुर बनाम यादव की हो जाएगी और उच्च जाति के वोट बंट जाएंगे जिसका नुकसान अदिति को होगा.

हालांकि, अदिति का वोट बैंक उनके पिता वाला ही है जिसमें उच्च जाति के हिंदुओं के साथ ही, मुसलमान, और यादव को छोड़कर दूसरी पिछड़ी जातियां शामिल हैं. इसके अलावा, आर.पी.यादव की आपराधिक पृष्ठभूमि भी अदिति के पक्ष में काम कर सकती हैं जिसकी चर्चा वे अपने चुनाव प्रचार के दौरान करती आई हैं.

दिप्रिंट से बातचीत के दौरान कांग्रेस के रायबरेली के एक जिला पदाधिकारी ने कहा, ‘हमारा एकमात्र उद्देश्य अदिति सिंह को चुनाव हराना है, भले ही हम यह सीट समाजवादी पार्टी से हार जाएं.’

परिणामों को देखते हुए लगता है कि यह बाजी ठीक ही पड़ने वाली है.

एक दूसरे बड़े कांग्रेसी नेता जो इस बार पाला बदलकर बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं वह ‘अमेठी के राजा’ के नाम से मशहूर संजय सिंह हैं. संजय सिंह को बीजेपी ने अमेठी सदर सीट से चुनाव में उतारा है. इस सीट पर पिछली बार भी बीजेपी उम्मीदवार ने चुनाव जीता था.

30 सालों में यह पहली बार है जब 70 साल के सिंह विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. हालांकि, कांग्रेस ने आशीष शुक्ला को अपना उम्मीदवार बनाया है. वे पहले बीजेपी में थे. उनकी मुख्य लड़ाई सपा के महराजी प्रजापति से थी. प्रजापति सपा के पूर्व नेता गायत्री प्रजापति की पत्नी हैं. पिछले साल बलात्कार के मामले में उन्हें उम्रकैद की सजा मिली है.

साल 2017 के चुनाव में अमेठी में दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला था, जब सिंह की तलाकशुदा पत्नी और वर्तमान पत्नी चुनावी मैदान में आमने-सामने आ गई थीं. उस समय उनकी पहली पत्नी गरिमा बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतने में कामयाब रही थी. वहीं, सिंह की वर्तमान पत्नी अमिता को चौथा स्थान मिला था. अमिता, कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में थी और उनके पक्ष में सिंह ने भी कैंपेन किया था.

इसके बाद, सिंह 2019 के लोकसभा चुनाव में सुल्तानपुर सीट से मेनका गांधी के खिलाफ चुनाव लड़े और हार गए. बाद में सिंह और उनकी पत्नी अमिता बीजेपी में शामिल हो गए.

गौरतलब है कि कांग्रेस ने बीजेपी के असंतुष्ट नेता आशीष शुक्ला को सिंह के खिलाफ मैदान में उतारा था. हालांकि, उनकी मुख्य लड़ाई सपा के महराजी प्रजापति से थी. प्रजापति, सपा के पूर्व नेता गायत्री प्रजापति की पत्नी हैं. पिछले साल बलात्कार के मामले में उन्हें उम्रकैद की सजा मिली है.

अमेठी सीट पर सिंह 23 राउंड की मतगणना के बाद, प्रजापति से 12,000 वोटों से पीछे चल रहे हैं.
चुनाव परिणाम आने से पहले, सिंह ने दिप्रिंट से कहा कि आलाकमान की ओर से ‘पार्टी क्या चाहती है’ के बजाय ‘वे क्या चाहते हैं’ को तवज्जो देने की वजह से कांग्रेस के इस दुर्ग से पार्टी का सफाया हो गया है.

उन्होंने कहा, ‘जब पार्टी के नेता, चाहे राहुल हों, प्रियंका हों या सोनिया हों, लोगों से नहीं जुड़ सकते, तब यही होता है.’

सिंह ने कहा, ‘हमने किसी खास वजह से अपनी राजनीति की शुरुआत कांग्रेस के साथ की थी. लेकिन एक राजनेता होने के नाते मुझे यह देखना होगा कि मेरे मतदाताओं का जुड़ाव पार्टी से कैसा है. अगर पार्टी का जनता के साथ जुड़ाव ही खत्म हो गया, तो गांधी परिवार का क्या मतलब है.’

रायबरेली जिले के हरचंदपुर से कांग्रेस के मौजूदा विधायक राकेश सिंह चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गए थे. वह बीजेपी के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ रहे थे. उन्होंने अपने पूर्व पार्टी को हरा दिया है./सपा से चुनाव हार गए हैं.

रायबरेली और अमेठी में कांग्रेस की योजना

इस क्षेत्र में सिर्फ़ सोनिया गांधी और उनकी संसदीय सीट पर ही कांग्रेस का राजनीतिक प्रतिनिधित्व बचा हुआ है. कांग्रेस अगले लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी में फेरबदल करना चाहती है.

इस बार और इससे पहले पहले भी राज्य में पार्टी के प्रचार अभियान की अगुवाई करने वाली प्रियंका गांधी ने भी घोषणा की है कि वह यूपी में पार्टी को मजबूत बनाएंगी. राज्य के पार्टी पदाधिकारियों का कहना है कि प्रियंका की योजना इस महीने के अंत में दोनों जिलों में दौरा करने की है.

अमेठी के एक कांग्रेस नेता और उत्तर प्रदेश में विधान परिषद (एमएलसी) के सदस्य दीपक सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘मतदान खत्म होते ही सभी राजनीतिक दलों ने यूपी में अपनी गतिविधियां बंद कर दी. लेकिन, प्रियंका गांधी को देखिए, उन्होंने 8 मार्च को महिला दिवस के मौके पर भी पार्टी के लिए कार्यक्रम का आयोजन किया.’

उन्होंने कहा, ‘इस महीने के अंत तक, वह (प्रियंका) फिर से अमेठी और रायबरेली का दौरा करने वाली हैं. हमने इन क्षेत्रों में अपने संगठन में भी फेरबदल किया है. वह मन बना चुकी हैं कि अभी से 2024 तक इन दो जिलों में छोटे-बड़े कार्यक्रम और कैंपेन का आयोजन करना है. वह लोगों से जुड़ाव को बेहतर बनाने के लिए दौरे भी करती रहेंगी. पार्टी इन दो जिलों पर पहले की तरह ध्यान केंद्रित करेगी.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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