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Thursday, 2 May, 2024
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अगर कांग्रेस चुनाव प्रबंधन सीखना चाहती है, तो उसे बस अपनी कर्नाटक इकाई को देखने की जरूरत है

कर्नाटक में आगले साल चुनाव होने हैं. राज्य के कांग्रेस नेताओं का कहना है कि वो मोटे तौर पर तीन चीज़ें चेक कर रहे हैं: जन संपर्क, स्पष्ट नेतृत्व और एक उत्साहित काडर.

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नई दिल्ली: जब देश अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा था, तो एक जनसमूह- जिसमें हर एक ने गर्व के साथ तिरंगा हाथ में लिया हुआ था- बेंगलुरू की सड़कों पर उमड़ पड़ा.

ये देखते हुए कि बीजेपी ने किस तरह 15 अगस्त से पहले बहुत धूमधाम के साथ अपना देशव्यापी ‘हर घर तिरंगा’ अभियान शुरू किया था, शुरू में ऐसा लग सकता था कि ये भी सत्तारूढ़ पार्टी कर्नाटक में एक व्यापक जन लामबंदी का एक प्रयास था, जो अगले साल के आरंभ में चुनाव में जा रहा है.

लेकिन ये देखकर हैरानी हुई कि ये कांग्रेस की ओर से एक शक्ति प्रदर्शन था.

कर्नाटक बीजेपी के स्वतंत्रता दिवस आयोजन में क़रीब 50,000 समर्थकों का अनुमानित फुटफॉल देखा गया था, जबकि पार्टी नेताओं का दावा है कि बेंगलुरू की कांग्रेस रैली में, क़रीब ढाई लाख लोगों ने शिरकत की.

KPCC's Freedom March in Bengaluru on 15 August 2022 | Twitter @INCKarnataka
15 अगस्त 2022 को बेंगलुरु में केपीसीसी का स्वतंत्रता मार्च | ट्विटर @INCKarnataka

दिल्ली में बैठे कांग्रेस नेता भी, बेंगलुरू सिटी रेलवे स्टेशन के पास संगोली रायन्ना प्रतिमा से लेकर बासवनागुड़ी के नेशनल कॉलेज ग्राउण्ड तक, पार्टी के सात किलोमीटर लंबे फ्रीडम मार्च में, भारी संख्या में लोगों की उपस्थिति देखकर स्तब्ध रह गए.

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एक वरिष्ठ कांग्रेस ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, कि हमें याद नहीं कि पार्टी आख़िरी बार देशभर में कहीं भी इस तरह का शो कब कर पाई थी.

आई-डे फ्रीडम मार्च के पीछे क्या विचार है, ये पूछे जाने पर कर्नाटक प्रदेश कमेटी (केपीसीसी) डीके शिवकुमार ने कहा कि ये आउटरीच बहुत महत्वपूर्ण है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘वोटर आपके साथ एक फोटो खिंचवा सकते हैं. वो कह सकते हैं कि उन्हें आप कभी दिखाई नहीं पड़ते, सिवाय तब के जब चुनाव होते हैं. वो आपके ऊपर चिल्ला सकते हैं. वो आपकी तारीफ कर सकते हैं. कुछ भी हो सकता है. लेकिन इस तरह लीडर और वोटर के बीच कम से कम एक बातचीत तो हो रही है’.

KPCC अलग तरह से क्या कर रही है

इससे एक लाख टके का सवाल खड़ा होता है- अपनी पार्टी की संभावनाएं बढ़ाने के लिए, ऐसी क्या चीज़ है जो कर्नाटक कांग्रेस अपने राष्ट्रीय नेतृत्व से अलग ढंग से कर रही है?

सरल शब्दों में कहें तो इसका जवाब ये है, कि ये पहले से बड़े पैमाने पर तैयारी है.

मसलन, फ्रीडम मार्च की तैयारी के तौर पर 60 वर्षीय शिवकुमार राज्य के एक 15-दिवसीय दौरे पर निकल पड़े, ताकि ज़्यादा संख्या में लोगों को फ्रीडम मार्च में शामिल करने के लिए प्रोत्साहित कर सकें.

पार्टी ने बेंगलुरू मेट्रो के एक लाख से अधिक टिकट ख़रीदे, ताकि मार्च में हिस्सा लेने वाले मुफ्त में सफर कर सकें, और उन लोगों की सहायता के लिए एक वेबसाइट तैयार की, जो पंजीकरण कराना चाहते थे.

इसके अलावा, ये सुनिश्चित करने के लिए कि फ्रीडम मार्च के दौरान कोई तिरंगा इधर उधर पड़ा न रह जाए, मार्च के रूट पर 1,200 सेवा दल वॉलंटियर्स तैनात किए गए, जिनका काम उन तिरंगों को उठाना था जिन्हें फेंक दिया गया हो.

केपीसीसी रैली की तुलना अगर कांग्रेस की देशव्यापी भारत जोड़ो यात्रा की तैयारियों से की जाए, तो ये अंतर और ज़्यादा दिखाई पड़ता है.

महीनों की प्लानिंग के बाद दिल्लली में पार्टी नेताओं ने कहा, कि किसी भी समय पर रैली में क़रीब 300 लोग शिरकत करेंगे- ऐसी पार्टी के लिए ये संख्या आश्चर्यजनक रूप से कम है, जिसका संसदीय चुनावों के दौरान अभी भी, राष्ट्रीय स्तर पर 20 प्रतिशत वोटशेयर है.

एक ऐसे सूबे में कांग्रेस को चीज़ों को अलग तरह से करने की प्रेरण कहां से मिलती है, जहां पिछले 37 साल से हर असेम्बली चुनावों में सत्ता बारी बारी से बदलती है?


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‘कर्नाटक में कांग्रेस अलग है, क्योंकि कर्नाटक में बीजेपी भी अलग है,’ये कहना था बेंगलुरू-स्थित राजनीतिक विश्लेषक संदीप शास्त्री का, जो दिल्ली-स्थिति सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (सीएसडीएस) के लोकनीति शोध कार्यक्रम के राष्ट्रीय समन्वयक हैं.

शास्त्री ने आगे कहा कि ‘(कांग्रेस की) कर्नाटक इकाई राष्ट्रीय नेतृत्व से मोटे तौर पर स्वायत्त है’.

अपनी बात को रखते हुए कि पार्टी केंद्रीय नेतृत्व को ज़मीनी पहलक़दमियों पर ज़्यादा फोकस करने की क्यों ज़रूरत है, शिवकुमार ने कांग्रेस के तीन महीने तक चलने वाले सदस्यता अभियान का ज़िक्र किया, जिसके दौरान उन्होंने 100 असेम्बली चुनाव क्षेत्रों का दौरा किया था. इसमें भी, 78 लाख की भारी संख्या में समर्थकों का पंजीकरण करके, कर्नाटक कांग्रेस ने ऐसा सदस्यता कीर्तिमान स्थापित किया, जिसका उससे पहले कांग्रेस की किसी दूसरी प्रदेश इकाई ने प्रयास नहीं किया था.

ये पूछने पर कि क्या कांग्रेस अध्यक्ष के पद में- जिसके लिए चुनाव होने वाले हैं- उनकी कोई दिलचस्पी होगी, डीके शिवकुमार ने कहा कि उन्हें सिर्फ ‘थोड़ा-थोड़ा’ हिंदी आती है, और इसलिए वो इस रोल में अच्छे से फिट नहीं होंगे.

वो फिर कांग्रेस का वही पुराना राग दोहराने लगे: ‘शिखर पर किसी गांधी के रहे बिना कांग्रेस पार्टी काम नहीं कर सकती. कार्यकर्त्ता, नेता और लोग- कोई उसे स्वीकार नहीं करेगा’.

‘लड़ाई की भावना के बिना कुछ हासिल नहीं हो सकता’

कर्नाटक में कांग्रेस नेताओं का मानना है कि दूसरी प्रदेश इकाइयों के विपरीत, वो वो मोटे तौर पर तीन चीज़ें चेक कर रहे हैं: जन संपर्क, स्पष्ट नेतृत्व और एक उत्साहित तथा सक्रिय काडर बेस.

दिल्ली के विपरीत, कर्नाटक में कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ एक दिखाई देने वाला विरोध क़ायम कर पाई है. इस उद्देश्य के लिए शिवकुमार ने क़रीब डेढ़ साल पहले, राज्य में पार्टी के अभियानों को कार्यान्वित करने के लिए, एक राजनीतिक सलाहकार फर्म डिज़ाइनबॉक्स्ड को हायर किया था.

लेकिन, शिवकुमार का कहना है कि पार्टी कार्यकर्त्ताओं को प्रेरित रखने का एक ही तरीक़ा है, कि आप ‘नेता के तौर पर नज़र आएं’.

‘कोविड के दौरान अगर में अपने घर में बैठा रहता, तो ये काम न हो पाता. मुझे दो बार कोविड हुआ और मैं अस्पताल से ज़ूम कॉल्स करके बातचीत करता था, और निर्देश देता था.

उन्होंने कहा, ‘किसी भी नेता को कार्यकर्त्ताओं के मन में विश्वास पैदा करना होता है. लड़ाई की भावना के बिना कुछ हासिल नहीं हो सकता. संबंधित राज्यों (कांग्रेस इकाइयों) को इसे स्थापित करना होगा. मैं किसी की कार्यक्षमता पर उंगली नहीं उठाना चाहता’.

शिवकुमार के सहयोगी और वरिष्ठ कर्नाटक कांग्रेस नेता दिनेश गुंडू राव ने भी कुमार के आंकलन से सहमति जताई.

गुंडू राव ने दिप्रिंट से कहा, ‘मुख्य चीज़ ये है कि ट्वीट्स और प्रेस वार्त्ताओं में न फंसा जाए. अगर नेता लोग दौरे करना बंद कर देंगे, सड़कों पर जाना बंद कर देंगे, ज़मीनी मुद्दों को उठाना बंद कर देंगे, तो फिर कार्यकर्त्ताओं और लोगों दोनों का विश्वास ख़त्म हो जाएगा. कर्नाटक कांग्रेस का हर नेता, चाहे वो मैं हूं, या एमबी पाटिल हूं, या डॉ जी परमेश्वर हों, इसे बहुत गंभीरता से लेता है’.

(L-R) Dinesh Gundu Rao, DK Shivakumar, Siddaramaiah and Mallikarjun Kharge | ANI file photo
(एल-आर) दिनेश गुंडू राव, डीके शिवकुमार, सिद्धारमैया और मल्लिकार्जुन खड़गे | एएनआई फाइल फोटो

मई 2020 में कोविड-19 महामारी की पहली लहर के दौरान, केपीसीसी प्रमुख के तौर पर दिनेश गुंडू राव की जगह लेने के तुरंत बाद, शिवकुमार और गुंडू राव ने अपने निजी फंड्स से कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम को 1-1 करोड़ रुपए अदा किए, ताकि प्रवासियों को मुफ्त परिवहन की सुविधा मिल सके. इसकी वजह से तत्कालीन येदियुरप्पा सरकार को मजबूरन अपने मूल घरों को लौटने के इच्छुक वासियों के लिए मुफ्त परिवहन का ऐलान करना पड़ा.

अप्रैल 2020 में, कर्नाटक कांग्रेस नेताओं ने किसानों से सब्ज़ियां ख़रीदीं, जो अपनी उपज को नष्ट करने की कगार पर थे. फिर उन्हीं सब्ज़ियों को उन्होंने रियायती दरों पर ज़रूरतमंद लोगों को बेंच दिया. शिवकुमार ने कहा, ‘उस समय, मैं भागकर किसानों के पास गया, उनसे बात की और सभी कांग्रेसियों से कहा कि उस उपज को ख़रीदकर उसे लोगों में बांट दें. उस उपज में अंगूर, बीन्स, फूल आदि सबकुछ था’.

उसके बाद नवंबर 2021 में हंगल असेम्बली उप-चुनाव आए- जो सीएम बासवराज बोम्मई के लिए उनके अपने ही इलाक़े में एक आज़माइश थी. कांग्रेस ने न केवल बीजेपी से वो सीट छीन ली, बल्कि ऐसी कड़ी टक्कर दी कि जनता दल (सेक्युलर) उम्मीदवार की ज़मानत ही ज़ब्त हो गई.

कांग्रेस पार्टी सूत्रों ने कहा कि जब आउटरीच की बात आती है, फिज़िकल और मीडिया दोने के ज़रिए, तो कर्नाटक इकाई एक ‘पेशेवर नज़रिए’ पर चलती है.

एक पार्टी पदाधिकारी ने नाम छिपाने की इच्छा के साथ कहा, ‘हर कार्यकर्त्ता को विशेष लक्ष्य दिए जाते हैं, और सत्यापन किया जाता है कि उन्होंने लक्ष्यों को हासिल किया या नहीं. कार्यकर्त्ता कड़ी मेहनत करते हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि उनके काम की रिपोर्ट अध्यक्ष तक जाएगी, और वो उनकी नज़रों में आ जाएंगे’.


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2023 का मार्ग

2023 के असेम्बली चुनावों पर निगाहें जमाकर, बीजेपी को निशाना बनाने के लिए केपीसीसी अब तीन मुद्दों पर फोकस कर रही है: भ्रष्टाचार, शासन और बेरोज़गारी. अभियान के दौरान राष्ट्र-निर्माण में कांग्रेस के योगदान पर भी बल दिया जाएगा.

कर्नाटक कांग्रेस के अभियान समिति प्रमुख एमबी पाटिल ने कहा, ‘हम करारी और संक्षिप्त सामग्री भेज रहे हैं, ताकि आम आदमी समझ सके कि हमने क्या काम किया है. दूसरी ओर, हम ये भी तुलना कर रहे हैं नरेंद्र मोदी और बीजेपी ने रोज़गार मुहैया कराने, महंगाई पर नियंत्रण करने और वस्तुओं पर जीएसटी लगाने के मामले में क्या नहीं किया है’.

इसके अलावा, पाटिल ने कहा कि चुनाव-संबंधित साहित्य को इस हिसाब से तैयार किया गया है, कि उसे कहां वितरित किया जा रहा है. उन्होंने आगे कहा कि केपीसीसी बूथ स्तर पर चार-पांच पन्नों की एक करारी पुस्तिका बांट रही है.

कांग्रेस धार्मिक मठों का समर्थन हासिल करने की भी कोशिश कर रही है, जिनका बहुत प्रभाव है. पाटिल ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं सभी मठों में जा रहा हूं, चाहे वो छोटे हों या बड़े, और उनका आशीर्वाद मांग रहा हूं. बीजेपी ये दिखाने की कोशिश कर रही है कि वो सब बीजेपी के साथ हैं. लेकिन सभी स्वामी जी हमें आशीर्वाद दे रहे हैं’.

(L-R) DK Shivakumar, MB Patil and Siddaramaiah | ANI file photo
(एल-आर) डीके शिवकुमार, एमबी पाटिल और सिद्धारमैया | एएनआई फाइल फोटो

केपीसीसी संचार प्रभारी विधायक प्रियांक खड़गे ने ‘डिजिटल यूथ अ बूथ’ पॉलिसी के बारे में बात की, जिसका उद्देश्य हर बूथ में पार्टी की ओर से एक युवा ‘डिजिटल योद्धा’ तैनात करना है.

उन्होंने आगे कहा, ‘हमने एक युवा व्यक्ति को नामित किया, जिसके पास लोगों को ज़ूम पर लाने, पार्टी गतिविधियों के लिए लोगों को जुटाने, और सदस्यता हासिल करने में लोगों की सहायता करने का ज़िम्मा होगा’.

काडर द्वारा अंजाम दिए गए कार्यों का जायज़ा लेने के लिए केपीसीसी की प्रक्रिया का समर्थन करते हुए खड़गे ने कहा: ‘यही कारण है कि हम पिछले ढाई साल में कर्नाटक में एक नैरेटिव स्थापित करने में कामयाब हो सके हैं’.

गुटबाज़ी, जातीय समीकरण

गुटबाज़ी कांग्रेस के लिए बहुत से राज्यों में एक दुखती रग साबित हुई है, और कर्नाटक भी कोई अपवाद नहीं है.

समय समय पर ख़बरों में शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बीच अनबन की ओर इशारा होता रहा है. पार्टी को सार्वजनिक तौर पर इस अवधारणा की काट करने की कोशिश करते हुए देखा जा सकता है, ताकि समर्थकों को आश्वस्त किया जा सके कि कड़वाहट की सभी बातों पर विराम लगा दिया गया है.

इस महीने सिद्धारमैया जन्मदिवस समारोह इसी की एक मिसाल था.

उनके और शिवकुमार के मतभेदों की अटकलों के बीच, कुमार का सिद्धारमैया को केक खिलाते हुए फोटो लिया गया- ये संकेत देने के लिए कि कम से कम फिलहाल के लिए झगड़े को ख़त्म कर दिया गया है.

(L-R) DK Shivakumar, Siddaramaiah, Rahul Gandhi | ANI file photo

गुंडू राव ने समझाया, ‘दोनों बहुत लोकप्रिय नेता हैं. श्री सिद्धारमैया मुख्यमंत्री रहे हैं और उनका एक व्यापक जनाधार है, जिसकी तुलना बीजेपी के येदियुरप्पा जैसे नेता से की जा सकती है. इसके अलावा, ज़ाहिरी कारणों से वर्तमान बीजेपी सरकार के कामकाज की, उन्हीं की सरकार से तुलना की जाएगी’.

उन्होंने आगे कहा : ‘दूसरी ओर, श्री डीके शिवकुमार भी बेहद लोकप्रिय हैं और एक चतुर संगठन-व्यक्ति हैं. वो बहुत सक्रिय हैं और कार्यकर्त्ता उनसे प्रेरित होते हैं. साथ मिलकर वो दोनों एक ज़बर्दस्त जोड़ी बनाते हैं’.

कर्नाटक कांग्रेस सूत्रों को लगता है कि यही कारण है कि पार्टी आलाकमान ने आगामी विधान सभा चुनावों से पहले, किसी मुख्यमंत्री उम्मीदवार का ऐलान न करने का फैसला किया है.

संदीप शास्त्री ने कहा कि गुटबाज़ी बीजेपी के लिए भी उतनी ही बड़ी चुनौती है, जितनी कांग्रेस के लिए है. संदीप शास्त्री ने कहा, ‘मैंने हमेशा ये कहा है कि कांग्रेस को ख़ुद कांग्रेस के अलावा कोई नहीं हराता. वो सबसे अच्छा तभी लड़ते हैं जब पार्टी एकजुट होती है’.

आगे ये कहते हुए कि कांग्रेस ने ‘बहुत सोच-समझकर कोई सीएम उम्मीदवार घोषित नहीं किया है’, शास्त्री ने कहा कि इसका कारण ये है कि पार्टी की ताक़त इसमें होगी, कि वो ओबीसीज़, अल्पसंख्यकों, और प्रमुख जातियों ख़ासकर वोक्कालिगाओं को एक साथ ले आए.

शास्त्री ने दिप्रिंट से कहा, ‘ऐसा करने के लिए पार्टी को किसी सीएम उम्मीदवार का ऐलान करना मुश्किल हो जाएगा. जैसे ही आप सिद्धारमैया का नाम घोषित करते हैं, तो वोक्कालिगाओं का क्या होगा? और अगर आप शिवकुमार के नाम का ऐलान करते हैं, तो ओबीसीज़ का क्या होगा? इसलिए रणनीतिक तौर पर, ऐसा लगता है कि पार्टी ने सामूहिक नेतृत्व का फैसला किया है’.

सिद्धारमैया की पहचान एक ओबीसी के तौर पर है, जबकि शिवकुमार एक वोक्कालिगा के तौर पर जाने जाते हैं.

लेकिन शास्त्री ने चेतावनी दी कि गुटबाज़ी और जातीय समीकरण कर्नाटक में कांग्रेस को किस तरह प्रभावित करेंगे, ये कहना बहुत जल्दबाज़ी होगी. उन्होंने आगे कहा कि ये मुद्दे टिकट वितरण के समय खड़े हो सकते हैं. और उन्होंने कहा कि वही समय होगा जब कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व को आगे आना होगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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