मुम्बई: उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली महाराष्ट्र सरकार ने रविवार को, मुम्बई की आरे कॉलोनी में प्रस्तावित, विवादास्पद मेट्रो कार डिपो को दूसरी जगह ले जाने का फैसला करके, कई वर्षों से चली आ रही अनिश्चितता पर विराम लगा दिया है.
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए राज्य को संबोधित करते हुए, मुख्यमंत्री ठाकरे ने कहा कि अंडरग्राउंड कोलाबा-बांद्रा-एसईईपीज़ेड मेट्रो के लिए, कार डिपो को गोरेगांव की आरे कॉलोनी से हटाकर, कांजुरमार्ग ले जाया जाएगा. आरे कलोनी को मुम्बई का हरियाली का फेफड़ा कहा जाता है.
ठाकरे ने कहा, ‘इस बारे में बहुत सारे सवाल हैं, कि इसका लागत पर क्या असर पड़ेगा, और प्रोजेक्ट पर जो पैसा पहले ही ख़र्च हो चुका है उसका क्या. मैं इन सबका जवाब दूंगा. कांजुरमार्ग की ज़मीन राज्य सरकार की मिल्कियत है, और इस ज़ीरो लागत पर प्रोजेक्ट के लिए दिया जाएगा’.
उन्होंने आगे कहा, ‘आरे में ज़मीन के भराव और एक बिल्डिंग बनाने में, 100 करोड़ रुपए ख़र्च किए गए हैं. उस बिल्डिंग का इस्तेमाल हम किसी अच्छे काम के लिए करेंगे’.
ठाकरे ने ये भी कहा कि सरकार ने फैसला किया है, कि वन घोषित किए जाने वाले इलाक़े को, पहले घोषित किए गए 600 एकड़ से बढ़ाकर, 800 एकड़ कर दिया गया है. उन्होंने आगे कहा,‘ऐसा करने में आरे कॉलोनी में पहले से रह रहे, आदिवासियों के अधिकारों का, कोई अतिक्रमण नहीं होगा’.
फैसले के कुछ ही घंटे बाद पर्यावरण मंत्री, और सीएम के बेटे आदित्य ठाकरे ने, जो पहले ‘आरे बचाओ’ मुहिम चला चुके थे, दो शब्दों का ट्वीट किया: ‘आरे बचाया’.
Aarey Saved!
— Aaditya Thackeray (@AUThackeray) October 11, 2020
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परियोजना
33.5 किलोमीटर लंबे कोलाबा-बांद्रा-एसईईपीज़ेड मेट्रो कॉरिडोर को कार्यान्वित कर रही, राज्य सरकार की एजेंसी मुम्बई मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (एमएमआरसी) के अधिकारियों ने, पहले कहा था कि इस स्टेज पर कार शेड को, आरे कॉलोनी से कहीं और ले जाने से, परियोजना की लागत 2,000 करोड़ रुपए बढ़ जाएगी, और परियोजना में देरी भी होगी.
कोलाबा-बांद्रा-एसईईपीज़ेड मेट्रो, शहर का पहला और अभी तक एक मात्र, पूरी तरह भूमिगत मेट्रो कॉरिडोर होगा.
अभी तक, अथॉरिटीज़ ने परियोजना के लिए सुरंग खोदने का 80 प्रतिशत, और कुल सिविल कार्य का 60 प्रतिशत काम पूरा कर लिया है. प्रोजेक्ट की मूल अनुमानित लागत 23,136 करोड़ रुपए थी, लेकिन बार बार देरी और आरे कार शेड में काम रुकने के कारण, ये लागत अब बढ़ाकर 32,000 करोड़ रुपए कर दी गई है.
अधिकारी उम्मीद कर रहे थे कि अगले साल जून तक, वो आरे कॉलोनी से बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स तक के कॉरीडोर को, आंशिक रूप से चालू कर देंगे. लेकिन अलाइनमेंट में इस नए बदलाव से, अब फिर से देरी हो सकती है.
आरे कॉलोनी 1949 में गोरेगांव में, 1,287 हेक्टेयर ज़मीन में स्थापित की गई थी. ये महाराष्ट्र के डेयरी विकास विभाग के अधिकार क्षेत्र में आती है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, आरे की कुल ज़मीन में से, 430 हेक्टेयर ज़मीन राज्य और केंद्र सरकार के, विभिन्न विभागों और संस्थानों को आवंटित की गई है. इसके अलावा इलाक़े में डेयरी विभाग की 30 स्थाई इकाइयां हैं, और लगभग 1,000 एकड़ के अन्य इलाक़े में, क़रीब 27 आदिवासी बस्तियां हैं.
आरे विरोध प्रदर्शन
जिस समय से आरे कॉलोनी में कार शेडस का प्रस्ताव सामने आया, तभी से एमएमआरसी के प्लान के ख़िलाफ, पर्यावरण विदों, राजनेताओं और आम नागरिकों की ओर से, विरोध की लहरें उठती रही हैं.
इस योजना का प्रस्ताव पहली बार 2012 में सामने आया, लेकिन ‘आरे बचाओ’ आंदोलन ने 2015 में ही ज़ोर पकड़ना शुरू किया, जब योजना टेंडर की स्टेज पर आ गई थी, और पैसों का प्रबंध हो चुका था, जिसकी वजह से अधिकारियों ने चिंता जताई, कि इस स्टेज पर किसी भी बदलाव से, समय और धन दोनों मामलों में, प्रोजेक्ट की लागत में भारी बढ़ोतरी हो जाएगी.
देवेंद्र फड़णवीस की अगुवाई वाली बीजेपी-शिव सेना सरकार भी, आरे कॉलोनी में कार शेड बनाने की योजना पर आगे बढ़ना चाहती थी, हालांकि शिव सेना इसके खिलाफ थी.
उसके बाद के सालों में, एमएमआरसी की योजना को रुकवाने के लिए, कार्यकर्ताओं ने कई अदालतों के दरवाज़े खटखटाए.
पिछले साल, नगर निगम के वृक्ष प्राधिकरण की ओर से, आरे कॉलोनी में 2,646 पेड़ काटे जाने की मंज़ूरी के बाद, इस मामले ने फिर हवा ले ली, और योजना के विरोध में व्यापर प्रदर्शन हुए. शिव सेना के नेताओं ने, जिनमें आदित्य ठाकर भी शामिल थे, इन प्रदर्शनों का समर्थन किया.
पिछले साल अक्तूबर में, उस जगह पर काफी ड्रामा हुआ, जब बॉम्बे हाईकोर्ट से अपने पक्ष में फैसला आने के बाद, एमएमआरसी अधिकारी आधी रात में पेट काटने पहुंच गए, जबकि कार्यकर्ता उस जगह प्रदर्शन कर रहे थे. बहुत से कार्यकर्ताओं को पुलिस ने हिरासत में ले लिया.
पिछले महीने राज्य सरकार ने, उन सभी पर्यावरण कार्यकर्ताओं के खिलाफ दर्ज मुक़दमे वापस लेने की घोषणा कर दी, जो आरे कार डिपो का विरोध कर रहे थे.
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