नई दिल्ली : दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बृहस्पतिवार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला दिल्ली सरकार के हक में आने की बाद अपने विधायकों, नेताओं के साथ बैठक की, इसके बाद मीडिया के सामने आए. केजरीवाल ने सर्वोच्च अदालत के फैसले को दिल्ली की जनता और लोकतंत्र की जीत, सत्य की जीत बताया.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, ‘सत्यमेव जयते. दिल्ली की जनता की जीत हुई. लोकतंत्र की जीत हुई. सत्य की जीत हुई.’
उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला ऐताहासिक, दिल्ली की जनता के साथ न्याय हुआ. 23 मई, 2015 को पीएम मोदी ने आदेश पारित करवाया कि सेवाओं के मामले सीएम के पास नहीं रहेंगे, एलजी के पास रहेंगे, मैं अगर किसी को रिश्वत लेते पकड़ता तो कार्रवाई नहीं कर सकता था. जान बूझकर ऐसे हेल्थ, फाइनेंस सेक्रेटरी लगाकर जनता के काम रोके गए एक तरह से मेरे दोनों हाथ बांध दिए गए और कहा गया कि अब तैरों.’
आज सुप्रीम कोर्ट का जो आदेश आया है वो दिल्ली की जनता के सहयोग का नतीजा है। अब हमें दिल्ली के लोगों को रिस्पॉन्सिव प्रशासन देना है। अगले कुछ दिनों में दिल्ली में बड़ा प्रशासनिक फेरबदल होगा: दिल्ली CM अरविंद केजरीवाल pic.twitter.com/v4dZ40YV3c
— ANI_HindiNews (@AHindinews) May 11, 2023
दिल्ली के सीएम ने कहा, ‘सारी कठिनाइयों के बावजूद दिल्ली के लिए इतना काम किया, सोचिए अगर ये कठिनाइयां न होतीं तो कितना काम करते मुख्य न्यायधीश चंद्रचूड़ जी, बेंच के बाकी जजों का तहे दिल से धन्यवाद दिल्ली की जनता का शुक्रिया जिन्होंने हमारा साथ दिया. अब 10x speed से काम होगा.’
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अधिकारी बदलेंगे, जिन्होंने जनता काम रोका उन पर होगा एक्शन
उन्होंने कहा, ‘कुछ दिनों में बहुत बड़ा प्रशासनिक फेरबदल होगा. कुछ अधिकारी ऐसे हैं जिन्होंने पिछले डेढ़ साल में जनता के काम रोके, मोहल्ला क्लीनिक्स की दवाइयां, टेस्ट, डीजीबी का पैसा रोका, ऐसे अधिकारियों को उनके कुकर्मों का फल भुगतना पड़ेगा. ईमानदार अधिकारियों और कर्मचारियों को मौक़ा दिया जाएगा जो जनता की सेवा करना चाहते हैं.’
एक पत्रकार के सवाल कि एलजी साहब से मिलने जाएंगे तो क्या बात होगी, जिससे वो अडंगा न लगाएं?
सीएम केजरीवाल ने हाथ जोड़कर कहा कि उनसे आशीर्वाद लेने जाएंगे.
उन्होंने कहा, ‘पिछले साल मोहल्ला क्लीनिक्स में दवाइयां बंद हो गई थीं, लैब टेस्ट बंद हो गए थे. दिल्ली जलबोर्ड के कुछ अफसर विधानसभा में पारित बजट जारी नहीं कर रहे थे. विधानसभा में दिल्ली के लिए जो-जो काम हम कहते हैं, वो अब कर पाएंगे.’
‘हमारी ज़िम्मेदारी पहले भी थी लेकिन वो ज़िम्मेदारी बिना पॉवर की थी, अब हमें ज़िम्मेदारी पूरी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने शक्ति भी दे दी है.’
सीएम ने कहा कि कई मामले सुप्रीम कोर्ट में लटके हुए हैं. कल Alderman का Case आ रहा है. DERC के चेयरमैन की नियुक्ति का Case है. अध्यापकों को फिनलैंड भेजने का केस लटका हुआ है.
उन्होंने कहा कि सेवाओं को लेकर के फ़ैसले के बाद अब एससी-एचसी जाने की ज़्यादा ज़रूरत नहीं पड़ेगी. अब नई पोस्ट बना सकते हैं, पुरानी पोस्ट खत्म कर सकते हैं. एसीबी अभी हमारे पास नहीं है, लेकिन विजिलेंस हमारे पास आ गया है, अगर कोई भ्रष्टाचार करता है, ग़लत काम करता तो हम विजिलेंस कार्रवाई कर सकते हैं.
केजरीवाल ने कहा, ‘केंद्र सरकार से यही निवेदन है कि वो अब काम में टांग न अड़ाए, पहले ही काफी समय बर्बाद कर दिया है. आपको अगर दिल्ली पर राज करना है तो दिल्ली के लोगों का दिल जीतो. आज हम काम कर रहे हैं, कल आप जीत कर काम कर लेना.’
सीएम ने कहा कि पीएम पिता समान होते हैं— उनकी ज़िम्मेदारी है कि सारे बच्चों का पालन पोषण करें. आज सुप्रीम कोर्ट ने कड़े शब्दों में कहा कि केंद्र ने 2015 में जो दिल्ली सरकार की ताकत छीनी, वो गैरसंवैधानिक था. मकसद केवल एक था—आप सरकार को नाकाम साबित करना.
उन्होंने कहा कि जैसे शिक्षा-स्वास्थ्य का मॉडल दिया, वैसे गवर्नेंस और प्रशासन का मॉडल देंगे. कई पदों पर अफ़सर बैठकर अड़चनें ही लगाते हैं, उन्हें हटाकर—जहां ज्यादा ज़रूरत है, वहां और पोस्ट बनाएंगे.
केजरीवाल हैं दिल्ली के असली बॉस
गौरतलब है कि दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने आम आदमी पार्टी (आप) नीत सरकार के हक में फैसला सुनाते हुए आज कहा, ‘निर्वाचित सरकार को प्रशासन पर नियंत्रण रखने की ज़रूरत है.’
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली भले ही पूर्ण राज्य न हो, लेकिन इसके पास कानून बनाने के अधिकार हैं.
अदालत ने कहा, ‘यह निश्चित करना होगा कि राज्य का शासन केंद्र के हाथ में न चला जाए. हम सभी जज इस बात से सहमत हैं कि ऐसा आगे कभी ना हो.’
सीजेआई ने कहा, ‘निर्वाचित सरकार को प्रशासन चलाने की शक्तियां मिलनी चाहिए अगर ऐसा नहीं होता तो यह संघीय ढांचे के लिए बहुत बड़ा नुकसान है.’
अदालत ने कहा, ‘अधिकारी जो अपनी ड्यूटी के लिए तैनात हैं उन्हें मंत्रियों की बात सुननी चाहिए अगर ऐसा नहीं होता है तो यह सिस्टम में बहुत बड़ी खोट है. निर्वाचित सरकार में उसी के पास प्रशासनिक व्यस्था होनी चाहिए. अगर चुनी हुई सरकार के पास ये अधिकार नही रहता तो फिर ट्रिपल चेन जवाबदेही की पूरी नही होती.’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘प्रशासनिक मुद्दों में केंद्र की प्रधानता संघीय व्यवस्था, प्रतिनिधि लोकतंत्र के सिद्धांत को खत्म कर देगी.’
इसने आगे कहा, ‘उन मामलों में केंद्र सरकार की शक्ति जहां केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए सीमित है कि शासन उसके द्वारा नहीं लिया जाता है.’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्ति उन सभी प्रविष्टियों तक फैली हुई है जिन पर उसे कानून बनाने की शक्ति है.’
ये था मामला
गौरतलब है कि मई 2021 में तीन-जजों की पीठ ने केंद्र सरकार के अनुरोध पर मामलो को एक बड़ी पीठ को भेज दिया था.
14 फरवरी, 2019 को सर्वोच्च अदालत की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने सेवाओं पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) और केंद्र सरकार की शक्तियों के सवाल पर एक विभाजित फैसला सुनाया था और मामले को तीन-जजों की पीठ के पास भेज दिया था.
न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने फैसले में कहा था कि दिल्ली सरकार के पास प्रशासनिक सेवाओं पर कोई अधिकार नहीं है. हालांकि उस समय न्यायमूर्ति एके सीकरी ने कहा था कि नौकरशाही के शीर्ष अधिकारियों (संयुक्त निदेशक और ऊपर) के अधिकारियों का स्थानांतरण या पोस्टिंग केवल केंद्र के द्वारा ही की जा सकती है और अन्य नौकरशाहों से संबंधित मामलों के लिए मतभेद की स्थिति में केंद्र सरकार और उपराज्यपाल का विचार मान्य होगा.
फरवरी 2019 के फैसले से पहले, सुप्रीम कोर्ट की पांच-जजों की संविधान पीठ ने 4 जुलाई, 2018 को राष्ट्रीय राजधानी के शासन के लिए व्यापक मानदंड निर्धारित किए थे. इस ऐतिहासिक फैसले में सर्वसम्मति से कहा गया था कि दिल्ली को एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता, लेकिन उपराज्यपाल की शक्तियों को यह कहते हुए कम कर दिया था कि उनके पास ‘स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति’ नहीं है और उन्हें निर्वाचित सरकार की सहायता और सलाह पर कार्य करना होगा.
इसने उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र को भूमि, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था से संबंधित मामलों तक सीमित कर दिया था और अन्य सभी मामलों पर कहा था कि एलजी को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना होगा.
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